
Pragyopnishad-4, Experience Sharing Questions and Answers
PANCHKOSH SADHNA – Navratri Online Global Class – 05 April 2022 (5:00 am to 06:30 am) – Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।
SUBJECT: प्रज्ञोपनिषद् (चतुर्थ मण्डल), अनुभव शेयरिंग व प्रश्नोत्तरी
Broadcasting: आ॰ अंकूर जी/ आ॰ अमन जी/ आ॰ नितिन जी
श्रद्धेय श्री लाल बिहारी सिंह @ बाबूजी (सासाराम, बिहार)
देवसंस्कृति प्रकरण
प्रज्ञोपनिषद् में वर्तमान युग के सभी चुनौतियां/ उलझनें/ समस्याओं का समाधान ।
देव संस्कृति जो मानव को देवत्व (उत्कृष्ट चिंतन + आदर्श चरित्र + शालीन व्यवहार) का धारक बनाए । A set of idealism is called God.
ऋग्वेद – सा प्रथमा संस्कृति विश्ववाराः ।
अध्यात्म – आत्म सत्ता का पदार्थ जगत पर नियंत्रण व ईश्वर प्राणिधान (समर्पण विलय विसर्जन – आत्म चेतना ईश्वरीय अनुशासन में कार्य करें) ।
“ईश्वरीय अनुशासन में ईश्वर के सहचर बन ईश्वरीय पसारे इस संसार में सदुपयोग का माध्यम बनें ।”
पंच तत्वों की सुक्ष्म शक्तियां हैं जिनकी इन्द्रिय जन्य अनुभूति तन्मात्राएं (शब्द, रूप, रस, गंध व स्पर्श) पदार्थ जगत से आसक्ति (विषयासक्ति) की मूल वजह है ।
जीव भाव से आबद्ध आत्मचेतना (जीवात्मा), आसक्ति (मनोभाव) अनुरूप कर्म करता है एवं तदनरूप जीव शरीर (जन्म मरण से आबद्ध 84 लाख योनियों) में भ्रमण करती हैं और भोग भोगती हैं (गहणाकर्मणोगति) । @ जीवः शिवः शिवो जीवः स जीवः केवलः शिवः । तुषेण बद्धो व्रीहिः स्या त्तुषाभावेन तण्डुलः॥
४ मुख्य तथ्य:-
१. संसार परिवर्तनशील है – लोभ ना करें ।
२. आत्मा अमर है अतः देवता बनें (आत्म चेतना प्रखर बनाएं) ।
३. “गहणाकर्मणोगति ।” अतः सत्कर्मों से नाता जोड़ें ।
४. लोक लोकोत्तर प्रकरण – अतः मरने की शानदार तैयारी करें (आत्मज्ञान – traveller cheque) ।
वर्ण (योग्यताओं का सुनियोजन) का वैज्ञानिक आधार, जन्म के आधार पर नहीं प्रत्युत् व्यक्तित्व (गुण + कर्म + स्वभाव) है:-
१. ब्राह्मण – आत्मभौतिकी के शिक्षक – educational
२. क्षत्रिय – शक्ति प्रधान – defence
३. वैश्य – ‘श्रीं’ – समृद्धि प्रधान – commercial
४. शुद्र – श्रम देवता की अराधना – hardworking
http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1964/June/v2.22
आश्रम (उम्र के सुनियोजन की व्यवस्था):-
१. ब्रह्मचर्य (प्रथम 25 वर्ष) – शरीर, मन व बुद्धि विकास ।
२. गृहस्थ (25 – 50 वर्ष) – “धर्म + अर्थ + काम + मोक्ष” ।
३. वानप्रस्थ (50 – 75 वर्ष) – जनसेवा/ लोकसेवा ।
४. सन्यास (75 – 100 वर्ष) – अद्वैत ।
http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1964/June/v2.23
संस्कार प्रकरण – http://literature.awgp.org/book/kram_kand_bhaskar/v2.52 ।
पर्व त्यौहार का उद्देश्य – http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1987/June/v2.41 ।
अनुभव शेयरिंग
Host: आ॰ नितिन आहुजा जी (IT professional, पंचगव्य शोधार्थी, पंचकोश शोधार्थी, हरियाणा)
1. आ॰ ताप्ती देवी जी (समाजसेवी, गृहिणी, पटना, बिहार)
उपलब्धियां: स्वस्थ तन – मन, पांच शरीर – पांच खजाने, कृतज्ञता भाव, आदर्श परिवार आदि ।
2. आ॰ कमला दीदी जी (समाजसेवी, गृहिणी, पटना, बिहार)
उपलब्धियां: सकारात्मकता, आवेश नियंत्रण, आत्मीयता का विस्तार, आत्मवत् सर्वभूतेषु व वसुधैव कुटुंबकम् आदि ।
3. आ॰ जया देवी जी (समाजसेवी, गृहिणी, पटना, बिहार)
उपलब्धियां: कृत्य कृत्य, आत्मसंयमी, आत्मसंतोष, आत्मप्रगति आदि ।
4. आ॰ शारदा देवी जी (समाजसेवी, गृहिणी, पटना, बिहार)
उपलब्धियां: शांत व प्रसन्न मन, स्वस्थ शरीर, सुखमय जीवन आदि ।
5. आ॰ डॉ ॰ शिवाजी मस्के जी (लोकसेवी, सिकन्दरपुर, महाराष्ट्र)
उपलब्धियां: शारीरिक लोंच में अभिवृद्धि, ऊर्जावान, क्रियावान, शांत व प्रसन्न मन, समझदारी, जिम्मेदारी, ईमानदारी आदि ।
6. आ॰ अरविंद कुमार सिंह जी (अधिवक्ता, पटना, बिहार)
उपलब्धियां: स्वस्थ तन – मन, चिंतन चरित्र व व्यवहार के धनी, प्रसन्नता, आत्मीयता आदि ।
7. आ॰ आरव शर्मा जी (MBA, बैंगलोर, कर्नाटक)
उपलब्धियां: Healthy body and mind, focused, determined and sincerity etc.
जिज्ञासा समाधान
नवरात्रि साधना में ब्रह्म मुहूर्त में जगने (आत्मबोध) से लेकर रात्रि सोने तक (तत्त्वबोध) की जाती है । सात्विक आहार विहार, योगाभ्यास, स्वाध्याय सत्संग व ईश्वर प्राणिधान आदि को प्राथमिकता दी जा सकती है ।
एकाग्रता बढ़ाने के लिए उनके लाभ का स्मरण अर्थात् विषय के प्रति अभिरुचि (intrest) बढ़ाया जाए । Then उस पर अभ्यास करें (practice) और finally उसका application करें । “theory + practical + application” की त्रिवेणी संगम में डुबकी लगाई जाए तो सिद्धि (सफलता) पीछे पीछे भागती हैं @ पाछे पाछे हरी फिरें ।
प्रारब्ध कर्म – पूर्व जन्म के कर्म accident के रूप में आते हैं ।
क्रियमान कर्म – मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता नियंत्रणकर्ता व स्वामी है ।
संचित कर्म – जन्म जन्मान्तरों के संचित संस्कारों (पाप पुण्य आदि) को ज्ञानाग्नि (आत्मज्ञान) से भस्म कर देना ।
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः।।
Writer: Vishnu Anand
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