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Pragyopnishad-5, Experience Sharing Questions and Answers

Pragyopnishad-5, Experience Sharing Questions and Answers

प्रज्ञोपनिषद् (पंचम मण्डल), अनुभव शेयरिंग व प्रश्नोत्तरी

PANCHKOSH SADHNA –  Navratri Online Global Class – 06 April 2022 (5:00 am to 06:30 am) –  Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह

ॐ भूर्भुवः स्‍वः तत्‍सवितुर्वरेण्‍यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्‌

SUBJECT:  प्रज्ञोपनिषद् (पंचम मण्डल), अनुभव शेयरिंग व प्रश्नोत्तरी

Broadcasting: आ॰ अंकूर जी/ आ॰ अमन जी/ आ॰ नितिन जी

श्रद्धेय श्री लाल बिहारी सिंह @ बाबूजी (सासाराम, बिहार)

सत्राध्यक्ष: ऋषि याज्ञवल्क्य जी (महाप्राज्ञ, ब्रह्मज्ञानी, विदेह राजा जनक के अध्यात्मिक गुरु, यज्ञ विज्ञान के प्रणेता)

प्रथम लक्ष्य – आत्मबोध (मनुष्य में देवत्व का संवर्धन) उपरांत द्वितीय लक्ष्य – तत्त्वबोध (धरा पर स्वर्ग का अवतरण) । मानव जीवन की पूर्णता/ सार्थकता = आत्मबोध + तत्त्वबोध ।

मानव – ईश्वर का सहचर/ सहयोगी/ वरिष्ठतम राजकुमार ।
मानव शरीर (पंचकोश) – देव शक्तियों का धारक ।
मानव का सृजन स्वतंत्र शासक रूपेण नहीं प्रत्युत् सृष्टि में सुव्यवस्था बनाए रखने हेतु ईश्वरीय प्रतिनिधि/ सहचर/ सहयोगी के रूप में है ।
आत्मबोध = मैं क्या हूं ?
तत्त्वबोध = Unconditional love/ dutifulness/ service @ निः स्वार्थ प्रेम @ ‘ऋषि ऋण + पितृ ऋण + देव ऋण’ । 

परम पुरुषार्थ = दोष दुर्गुण को हटाना (तप – दुष्प्रवृत्ति उन्मूलन) + आदर्शों/ दैवीय गुणों को धारण करना (योग – सत्प्रवृत्ति संवर्धन) ।
जीवनोद्देश्य = आत्मकल्याणाय  लोककल्याणाय वातावरण परिष्काराये ।

मानव जन्म सार्थक कब ?
उत्तर: जब हम मानवीय अंतःकरण के धारक बनते हैं । अर्थात् हमारा व्यक्तित्व (गुण + कर्म + स्वभाव) मानवीय गरिमा के अनुरूप (उत्कृष्ट चिंतन + आदर्श चरित्र + शालीन व्यवहार) हो ।

‘जल’ और ‘मन’ (पाश्विक वृत्तियां @ जन्म जन्मान्तरों के संचित कुसंस्कार) दोनों की प्रवृत्ति नीचे जाने की होती है ।
जल यंत्र से उपर उठता है मन मंत्र (आत्मज्ञान) से उपर उठता है (उर्ध्वगमन/ उन्नयन/ प्रगति) ।
आदत बुरी सुधार लो बस हो गया भजन – भजन ।। @ आत्मसुधार संसार की सबसे बड़ी सेवा है ।

आत्मपरिष्कार = आत्म-समीक्षा आत्मसुधार + आत्मनिर्माण + आत्मविकास ।”

आत्मबोध व तत्त्वबोध की दैनंदिन साधना:-
1. आत्मबोध (हर दिन नया जन्म): प्रातः काल आंख खुलते ही मानवीय गरिमा के अनुरूप (उत्कृष्ट) चिंतन व तदनुरूप (आदर्श) चरित्र बनाने व (शालीन) व्यवहार हेतु संकल्पित ।
2. तत्वबोध (हर रात्रि नई मौत): निद्रा में जाने से पहले पूरे दिन की:-
आत्मदेव के समक्ष आत्मसमीक्षा,
जहां ग़लती हुई वहां आत्मसुधार हेतु संकल्पित,
आत्मसुधार हेतु की गई क्रियायोग से आत्मनिर्माण एवं
आत्मनिर्माणी ही विश्वनिर्माणी होते हैं (आत्मप्रगति)
आत्मपरिष्कार की प्रथम चरण – आत्मसमीक्षा में स्वाध्याय/ सत्संग/ गुरू शिक्षण प्रशिक्षण की भुमिका महती है । 

लोकसेवा/ जनसेवा:-
1. सुव्यवस्था हेतु सुविधाओं को बढ़ाना ।
2. पीड़ा निवारण हेतु प्रस्तुत ।
3. कमज़ोरों को उपर उठाना ।
4. ऋषि परंपराओं का पुनर्जीवन ।

आत्मबोध: आत्मवत् सर्वभूतेषु यः पश्यति स पण्डितः । @ निः स्वार्थ प्रेम । @ वसुधैव कुटुंबकम्

धर्म धारणा प्रकरण ।

उपासना, साधना व अराधना प्रकरण ।

अनुभव शेयरिंग

Host: आ॰ नितिन आहुजा जी (IT Professional, पंचगव्य शोधार्थी व पंचकोश शोधार्थी, हरियाणा)

1. आ॰ रजनी जी (समाजसेवी, गृहिणी, पटना, बिहार)

प्रज्ञाकुंज सासाराम में साधना सत्र में प्रतिभागिता से प्रगति/ विकास को नए आयाम मिलते हैं । अतः सभी participants को atleast one session प्रज्ञाकुंज सासाराम में attend करनी चाहिए ।
उपलब्धियां: आरोग्य, मानसिक संतुलन, एकाग्रता, दृढ़ता व आत्मीयता आदि ।

2. आ॰ अमुल चौहान जी (लोकसेवी, कृषक, गौपालक, हिमाचल प्रदेश)

उपलब्धियां: आरोग्य, शांति, कांति व आत्मीयता आदि ।

3. आ॰ राधिका देवी जी (समाजसेवी, गृहिणी, पटना, बिहार)

उपलब्धियां:  आनंद, प्रेरणाओं का धारण व संवर्धन, श्रद्धा व निष्ठा आदि

4. आ॰ अमन कुमार जी (IT Professional, लोकसेवी, आत्मसाधक, पंचकोश रिसर्च ग्रुप एडमिन & होस्ट गुरूग्राम, हरियाणा)

उपलब्धियां: आत्मिकता (आत्मिक दृष्टिकोण तदनरूप आचरण), आत्मसंतोष, आत्मनिर्माण व आत्मप्रगति आदि ।

5. आ॰ अनिल कुमार त्रिवेदी (प्रोफेसर, आत्मसाधक, रायबरेली, उ॰ प्र॰)

प्रज्ञाकुंज सासाराम की सात्विकता (सात्विक आहार विहार यज्ञीय वातावरण) व आत्मिकता (आत्मिक शिक्षण प्रशिक्षण) में साधनात्मक प्रगति बनी है ।
साधना का आधार निष्ठा है । जितनी दृढ़तापूर्वक हम लक्ष्य पथ पर बने रहते हैं उतना ही लक्ष्यभेद अवश्यंभावी होता है ।

जिज्ञासा समाधान

पदार्थ जगत से आसक्ति – वासना (लोभ) । तृष्णा = पुत्रेष्णा + वित्तेष्णा + लोकेष्णा @ (संबंधों से आसक्ति – मोह) । मान्यताओं से आसक्ति – अहंकार

जीवन लक्ष्य देवता हैं । आदर्शों के समुच्चय को ईश्वर कहते हैं । अतः ब्रह्मचर्य को धारण करने हेतु:-
1. लक्ष्य के प्रति केंद्रित रहें ।
2. रचनात्मकता बनाए रखें ।
3. संयमित (इन्द्रिय + समय + विचार + अर्थ संयम) व सदाचारी बनें अर्थात् ‘चिंतन, चरित्र व व्यवहार’ के धनी बनें @ व्यक्तित्व परिष्कार ।
4. Expertise हेतु वांछित Expert लोगों के सान्निध्य में रहें ।
5. सावित्री कुण्डलिनी तंत्र पढ़ें, समझें व जानें ।
6. श्रद्धा, प्रज्ञा, निष्ठा, स्वाध्याय/ सत्संग आदि @ उपासना, साधना व अराधना का जीवन में समावेश रखें ।

ॐ  शांतिः शांतिः शांतिः।।

Writer: Vishnu Anand

 

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