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Yagyopathy

Yagyopathy

यज्ञ चिकित्सा @ यज्ञोपैथी (यज्ञ विज्ञान)

PANCHKOSH SADHNA – Online Global Class – 27 Aug 2022 (5:00 am to 06:30 am) –  Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह

ॐ भूर्भुवः स्‍वः तत्‍सवितुर्वरेण्‍यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्‌ ।

SUBJECT: यज्ञ चिकित्सा @ यज्ञोपैथी (यज्ञ विज्ञान)

Broadcasting: आ॰ अमन जी/ आ॰ अंकुर जी/ आ॰ नितिन जी

शिक्षक बैंच: डॉ॰ ममता सक्सैना जी (नोएडा, NCR)

यज्ञ (अग्निहोत्र) के 4 आधार:-
1. यज्ञ में प्रयुक्त मंत्र
2. यज्ञाग्नि
3. यज्ञ में प्रयुक्त समिधा
4. याजक का व्यक्तित्व

यज्ञोपैथी के लाभ:-
1. रोग निवारण + बल संवर्धन
2. ओजस् + तेजस् + वर्चस्
3. रोग प्रतिरोधक क्षमता में अभिवृद्धि
4. औषधियों के वायुभूत होने से सामुहिक रोग निवारण अर्थात् पैनेडेमिक निवारण आदि में विशेष प्रभावी ।

(यज्ञोपैथी) वायु की पहुँच शरीर के छोटे छोटे जीव कोषों तक है इसलिए यज्ञोपचार के माध्यम से ग्रहण की गई वायु भूत औषधि शरीर के समस्त घटकों तक जा पहुँचती है और अपना प्रभाव दिखाती है ।

चिकित्सीय यज्ञ प्रारूप:-
1. 7 आहुतियां घी से
2. 24 मंत्राहुति (गायत्री/ सूर्य गायत्री/ चन्द्र गायत्री)
3. 5/11 महामृत्युंजय मंत्र आहुति
4. वसोधारा, धृतावधारण, भस्म धारण व शांतिपाठ ।
5. यज्ञोपरांत – 10 मिनट जप + 20 मिनट प्राणायाम ।
6. यज्ञ में प्रयुक्त होने वाली औषधियों का 2 टाइम्स काढ़ा ।
7. सायंकाल यज्ञ में प्रयुक्त औषधियों का धूम्र रूप में सेवन ।
8. पथ्य अपथ्य – सात्विक सुपाच्य भोजन लेवें । तले भुने मसालेदार खाद्य पदार्थों से परहेज़ ।
9. बीमारियों के अनुरूप यज्ञ चिकित्सा की अवधि होती है । सामान्य बीमारी में 3-4 दिन तो क्रोनिक स्टेज में लंबा समय लग सकता है ।

यज्ञ एक समग्र उपचार:-
1. सुक्ष्मीकरण विधा पर आधारित यज्ञोपैथी ।
2. रोगानुसार औषधियां अग्निहोत्र में प्रयुक्त करने से यथोचित समय में लाभ ।
3. कोई साईड इफेक्ट नहीं व लाभ – स्थायी ।
4. वायु भूत औषधियां व मंत्र शक्ति से शारीरिक व मानसिक आधि व्याधियों का निवारण ।
5. वातावरण से रोगाणुओं का सफाया ।
6. यज्ञ में गौ घृत का उपयोग ।
7. बोल कर मंत्र आहुति ।
8. यज्ञ प्रक्रिया – एक समग्र विज्ञान ।

यज्ञ पर शोध:-
1. सरस्वती पंचक का बच्चों पर प्रयोग ।
2. डायबिटीज़, जोड़ों के दर्द व अस्थमा आदि रोगों के निवारण में यज्ञ का प्रभाव ।
3. घर के अंदर रोगाणुओं पर यज्ञ के धुम्र का प्रभाव ।

आ॰ ममता सक्सैना दीदी जी ने अपने उपरोक्त शोध कार्यों पर विशिष्ट डाटा, ग्राफ्स, ब्रीफिंग, स्लाइड प्रजेंटेशन पर प्रोवाइड किया है । जिस हेतु वीडियो रेफर किया जा सकता है ।

जिज्ञासा समाधान

रोग निवारण में प्रयुक्त औषधियों के ज्ञान विज्ञान हेतु युग संस्कृति विश्वविद्यालय से संपर्क साधा जा सकता है ।

यज्ञकुंड के आकृति का निर्धारण प्रयोजन विशेष होते हैं ।

होता है सारे विश्व का कल्याण यज्ञ से …. अतः इसके सामुहिक लाभ लिया जाए । यज्ञ, अग्निहोत्र तक ही सीमित नहीं है प्रत्युत् जीवन के सभी अंगों में समाहित है । संपूर्ण लाभ हेतु हवन के संग श्रद्धा,ध्यानात्मक APMB, स्वाध्याय सत्संग, संतुलित/संयमित आहार विहार आदि का जीवन में समावेश हो ।

(अग्निहोत्र) यज्ञ में नुकसान पहुंचाने वाले धुएं (कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनो ऑक्साइड आदि) ना उत्पन्न हों; इस हेतु यज्ञीय विज्ञान के सुत्रों को ध्यान में रखा जाए । समिधाएं सुखी हों । यज्ञीय स्थान खुला हो । हवन‌ सामग्री, कर्पुर, गौ घृत, नारियल आदि का प्रयोग । मिट्टी, तांबे, आयरन आदि का यज्ञकुंड ।

जिज्ञासा समाधान (श्री लाल बिहारी सिंह ‘बाबूजी’)

आ॰ ममता सक्सैना दीदी को साइंटिफिक कक्षा व PPT Graphics representation हेतु आभार ।

यज्ञ के दौरान हमारा ब्रीदिंग प्रोसेस चलता है । उसमें श्रद्धा, गहनता व सकारात्मकता आदि का समावेश कर दें तो वह ‘क्रियायोग’ बन जाते हैं ।

यज्ञ श्रेष्ठतम कर्म हैं । गीता में 15 प्रकार के यज्ञ का वर्णन है । और इनकी शाखाओं में प्रवेश करें तो यज्ञ अनन्त हैं । “यज्ञ पिता – गायत्री माता।” @ “सद्ज्ञान + सत्कर्म = सद्भाव।”
पंचकोश भी पांच अग्निकुंड हैं । पंचकोशी क्रियायोग से पंचकोश की पंचाग्नि (प्राणाग्नि, जीवाग्नि, योगाग्नि आत्माग्नि व ब्रह्माग्नि) प्रज्वलित कर आत्मकल्याण व लोककल्याण में संलग्न हुआ जा सकता है ।

ॐ  शांतिः शांतिः शांतिः ।।

Writer: Vishnu Anand

 

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