Pragyakunj, Sasaram, BR-821113, India
panchkosh.yoga[At]gmail.com

Swar Sanyam and Granthi Bhedhan

Swar Sanyam and Granthi Bhedhan

स्वर संयम व ग्रन्थि भेदन

PANCHKOSH SADHNA – Online Global Class – 04 Sep 2021 (5:00 am to 06:30 am) –  Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह

ॐ भूर्भुवः स्‍वः तत्‍सवितुर्वरेण्‍यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्‌|

SUBJECT:  स्वर संयम एवं ग्रन्थि भेदन‌ साधना

Broadcasting: आ॰ नितिन जी

श्री विष्णु आनन्द जी (कटिहार, बिहार)

आ॰ अनिरूद्ध सिंह चौहान जी (बैंगलोर, कर्नाटक)

तीन बन्धन ग्रन्थियां –
१. रूद्र ग्रन्थि (महाकाली – क्लीं) – मूत्राशय के समीप बेर के समान उपर को नुकीला, नीचे को भारी, पैंदे में गड्ढा लिए – वर्ण कालापन मिला हुआ लाल – शाखा ग्रन्थियां मूलाधार चक्र व स्वाधिष्ठान चक्र।
अभ्यास – मूल बन्ध, ‘अपान’ और ‘कूर्म’ प्राण के आघात से जाग्रत हुई क्लीं बीज की कुंचकी क्रिया।

२. विष्णु ग्रन्थि (महालक्ष्मी – श्रीं) – अमाशय के उर्ध्व भाग में नील वर्ण, गोल आकार, शंख ध्वनि, कौस्तुभ मणि, वनमाला – शाखा ग्रन्थियां मणिपुर चक्र व अनाहत चक्र।
अभ्यास – विष्णु ग्रन्थि को जाग्रत करने के लिए जालंधर बन्धन बाँधकर ‘समान’ और ‘उदान’ प्राणों द्वारा दबाना।

३. ब्रह्म ग्रन्थि (सरस्वती – ह्रीं) – मस्तिष्क मध्य केन्द्र में उपर से चतुष्कोण और नीचे से फैली हुई, एक तन्तु ब्रह्मरंध्र से जुड़ी हुई – शाखा ग्रन्थियां विशुद्धि चक्र व आज्ञा चक्र।
अभ्यास – उड्डियान बन्धन लगाकर ध्यान और धनंजय प्राणों द्वारा ब्रह्म ग्रन्थि को पकाया जाता है।

त्रिगुणात्मक प्रकृति के परिप्रेक्ष्य में:-
१. रूद्र ग्रन्थि – तम (शक्ति)
२. विष्णु ग्रन्थि – रज (साधन)
३. ब्रह्म ग्रन्थि – सत् (ज्ञान)

तीन शरीर के आधार पर:-
१. रूद्र ग्रन्थि – स्थूल शरीर
२. विष्णु ग्रन्थि – सुक्ष्म शरीर
३. ब्रह्म ग्रन्थि – कारण शरीर

तीन ऋण के आधार पर:-
१. रूद्र ग्रन्थि – पितृ-ऋण
२. विष्णु ग्रन्थि – ऋषि-ऋण
३. ब्रह्म ग्रन्थि – देव-ऋण

व्यवहारिक जगत के आधार पर:-
१. रूद्र ग्रन्थि – सांसारिक जीवन
२. विष्णु ग्रन्थि – व्यक्तिगत जीवन
३. ब्रह्म ग्रन्थि – आध्यात्मिक जीवन

जिज्ञासा समाधान (श्री लाल बिहारी सिंह ‘बाबूजी’)

आ॰ अनिरुद्ध सिंह चौहान जी को आभार।

शिक्षण में व्यवहारिक शब्दों को प्राथमिकता देने से अभिव्यक्ति सरल, सहज व सुबोध होती है। अध्यात्म – अंतरंग परिष्कृत व बहिरंग सुव्यवस्थित।

ग्रन्थियां भावनात्मक होती हैं। स्थान विशेष – भावना की बहुलता/ प्रचुरता व माध्यम का परिचायक हैं।

सजल श्रद्धा व प्रखर प्रज्ञा। दोनों का युग्म (pair) है। इनकी जुगलबंदी से बात बनती है। भवानी शंकरौ वन्दे श्रद्धा विश्वास रूपिणौ।

अपने लिए कठोरता व दूसरों के लिए उदारता का सूत्र हमें kind hearted बनाता है व जीवन में सादगी का समावेश करता है।
सादा जीवन व उच्च विचार @ तप व योग @ आत्मशोधन व परमार्थ के युगलबंदी से बात बनती है।

क्रियायोग – आत्मसाधना में catalyst (उत्प्रेरक) का कार्य करते हैं।

प्राण के नियंत्रण से मन पर नियंत्रण होता है। अतः प्राणायाम – मनोभाव के संतुलन/ नियंत्रण में सहायक हैं।
Vice versa मनोभाव पर नियंत्रण कर प्राण पर नियंत्रण किया जा सकता है। स्वाध्याय, सत्संग व ईश्वर प्राणिधान इसके साधन हैं।

ॐ  शांतिः शांतिः शांतिः।।

Writer: Vishnu Anand

 

No Comments

Add your comment