Sankhya Darshan (सांख्य दर्शन) – 2
🌕 PANCHKOSH SADHNA ~ Online Global Class – 02 Aug 2020 (5:00 am to 06:30 am) – Pragyakunj Sasaram – प्रशिक्षक Shri Lal Bihari Singh @ बाबूजी
🙏ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्|
📽 Please refer to the video uploaded on youtube. https://youtu.be/aKyw6s4RZOA
📔 sᴜʙᴊᴇᴄᴛ. सांख्य दर्शन – 2
📡 Broadcasting. आ॰ अमन कुमार/आ॰ अंकुर सक्सेना जी
🌞 आ॰ श्री चन्दन प्रियदर्शी जी
🌸 चतुर्थ अध्याय. मोक्ष @ त्रिविध दुःखों से मुक्ति @ आत्म ज्ञान के उपाय हेतु उदाहरण/ कथा के पात्रों के माध्यम से निम्नांकित बताये गये हैं:-
👉 श्रवण
👉 चिंतन – मनन
👉 ध्यान – निदिध्यासन
👉 विवेक अर्थात् तत्त्व ज्ञान जो प्राप्त होता है अभ्यास व वैराग्य से
👉 अपरिग्रह @ निःस्वार्थ
👉 अनासक्त/ निष्काम @ विषयों में वैराग्य एवं त्याग की भावना
🌸 पंचम अध्याय
👉 ईश्वर, जीव व प्रकृति का तत्त्व दर्शन
👉 दार्शनिक परिप्रेक्ष्य
👉 सद्ज्ञान व सत्कर्म की महत्ता
👉 गहणाकर्मणोगति
🐵 Vishnu Anand @ अपनों से अपनी बात
✍ अविवेक – जीवात्मा के बंधन का मूल कारण तो विवेक – मोक्ष का।
✍ कठोपनिषद् – आत्मानँ रथितं विद्धि शरीरँ रथमेव तु। बुद्धिं तु सारथिं विद्धि मनः प्रग्रहमेव च॥ आत्मा को रथी जानो और शरीर को रथ । बुद्धि को सारथी जानो और इस मन को लगाम॥३॥
✍ स्थिरसुखमासनम् – स्थिर का अर्थ है शांत होकर बैठना जो एकाग्र चित्त हेतु आवश्यक।
✍ आसन से बाह्य इन्द्रियां स्थिर किंतु संचालक मन चंचल रहता है उसे शांत करने हेतु ध्यान की आवश्यकता।
✍ निः संङ्गेऽप्युपरागोऽविवेकात् – संग रहित @ असंग आत्मा में भी अविवेक के कारण विषयों की प्राप्ति होती है।
✍ एकाग्र चित्त व प्रसन्न चित्त साधक के लिए हर स्थान साधना हेतु उपयुक्त है।
🙏 ईश्वर, जीव और प्रकृति के तत्त्व मीमांसा को साधना विज्ञान में कुछ इस तरह समझ पा रहा हूं:-
१. त्रैत – साधक, साध्य व साधन,
२. द्वैत – साधक व साध्य
३. अद्वैत – साध्य
🌞 Shri Lal Bihari Singh
🙏 गायत्री मंजरी. यथावत् पूर्णतो ज्ञानं संसारस्य च स्वस्य च। नूनामित्येब विज्ञानं प्रोक्तं विज्ञान वेतृभिः।।24।।
अर्थात् संसार का और अपना ठीक ठीक और पूरा पूरा ज्ञान होने को ही विज्ञान वेत्ताओं ने विज्ञान कहा है।
🙏 गुरुदेव ने सिद्धावस्था के बाद सबसे पहली पुस्तक लिखी “मैं कौन हूं?” अपने बारे में पूरी जानकारी/ ज्ञान का होना।
🙏 षष्ठोध्यायः – मैं .. हूं – की प्रतीति यह सिद्ध करती है की आत्मा है। ।।१।।
🙏 वह आत्मा विलक्षण होने के कारण देह से पृथक है।।२।।
अध्यात्म उपनिषद् – असङ्गोऽहमनङ्गोऽहमलिङ्गोऽहं हरिः। प्रशान्तोऽहमनन्तोऽहं परिपूर्णश्चिरन्तनः॥६८।।
अर्थात् मैं सङ्ग रहित हूँ,अङ्ग रहित हूँ, चिह्न रहित और स्वयं हरि हूँ । मैं प्रशान्त हूँ, अनन्त हूँ, परिपूर्ण और चिरन्तन अर्थात् प्राचीन से प्राचीन हूँ।।
🙏 देह के अंगों को अपना बताया जाता है ना की मैं – देह हूं। छठी विभक्ति का कथन होने के कारण वस्तुओं में भेद होने से घटित होता है। मैं और देह की भिन्नता प्रत्यक्ष है अतः आत्मा शरीर से पृथक है। ।। ३।।
🙏 ध्यानं निर्विषयं मनः – मन का विषय रहित हो जाना ही ध्यान है।। २५।।
कठोपनिषद – इन्द्रियाणि हयानाहुर्विषयाँ स्तेषु गोचरान्। आत्मेन्द्रियमनोयुक्तं भोक्तेत्याहुर्मनीषिणः॥४॥ इन्द्रियाँ घोडों के सामान हैं। विषय उन घोड़ों के विचरने के मार्ग हैं। इन्द्रियों और मन के साथ युक्त हुआ वह आत्मा ही भोक्ता है। ऐसा ही मनीषी कहते हैं।।
🙏 ध्यानधारणाभ्यासवैराग्यादिभिस्तन्निरोधः ।।२९।। – ध्यान, धारणा, अभ्यास, वैराग्य आदि के द्वारा उस विषयोपराग का निरोध हो जाता है।
🙏 अहंकार कर्ता न पुरूषः ।।५४।। अहंकार कर्ता है ना की पुरुष। @ प्रज्ञा युक्त कर्म बंधन का कारण नहीं बनते हैं।
🙏 यद्वा तद्वा तदुच्छितः पुरूषार्थस्तदुच्छितः पुरूषार्थः – जिस किसी निमित्त से त्रिविध तापों का अंत हो उस हेतु पुरूषार्थ करें।
🌞 Q & A with Shri Lal Bihari Singh 💐
🙏 १९ पंचकोशी क्रियायोग एक complete package है जिसके अभ्यास से त्रिविध तापों का अंत किया जा सकता है।
🙏 सांख्य दर्शन का उद्देश्य अनासक्त भाव से कर्तव्यरत् रहें; जिस हेतु विवेक (प्रज्ञा) को धारण करना अनिवार्य है।
🙏 गायत्री महामंत्र में पंचकोशी साधना का तत्त्व दर्शन सन्निहित है ~ ॐ – आनन्दमय, भूर्भुवः स्वः – विज्ञानमय, तत्सवितुर्वरेण्यं – मनोमय, भर्गो देवस्य धीमहि – प्राणमय व धियो यो नः प्रचोदयात् – अन्नमय कोश।
🙏 पंचकोशी क्रियायोग में स्व रूचि/ सहजता का ध्यान रखते हुए हर एक कोश से क्रियायोग का चुनाव कर निष्ठापूर्वक नियमित रूप से अभ्यास करें।
🙏 आत्मा शाश्वत हैं अतः यथार्थता को समझने हेतु प्रयासरत रहें।
🙏 ॐ शांतिः शांतिः शांतिः।।
🙏Writer: Vishnu Anand 🕉
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