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Ramcharitmanas

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PANCHKOSH SADHNA – Chaitra Navratri Sadhna Satra – Online Global Class – 21 Apr 2021 (5:00 am to 06:30 am) –  Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह

ॐ भूर्भुवः स्‍वः तत्‍सवितुर्वरेण्‍यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्‌|

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sᴜʙᴊᴇᴄᴛ: रामचरितमानस

Broadcasting: आ॰ नितिन आहुजा जी

श्रद्धेय लाल बिहारी बाबूजी

आज प्रज्ञाकुंज सासाराम में चैत्र नवरात्रि की पूर्णाहुति व रामनवमी पर्वोत्सव।

पर्व-परंपरा: भारतीय संस्कृति की मणि मंजुषा।  पर्वों का मुख्य उद्देश्य – सर्व साधारण में आध्यात्मिकता, सामाजिकता, पराक्रम, सौजन्यता, आत्मीयता व परोपकार आदि की भावनायें बढ़ें। जो त्यौहार/ उत्सव किसी प्राचीन महापुरुष/ अवतार आदि की जयंती के रूप में मनाए जाते हैं उनका उद्देश्य – सर्वसाधारण उनके सच्चरित्रता, नैतिकता, सेवा, सद्भावना आदि से प्रेरणा लेवें। ‌पर्वोत्सव के 3 चरण हैं ~ १. मिलन, २. प्रधान देवता का पूजन व ३. प्रशिक्षण।

वर्णानामर्थसंघानां रसानां छन्दसामपि।  मंगलानां च कर्त्तारौ वन्दे वाणीविनायकौ॥ अक्षरों, अर्थ समूहों, रसों,  छन्दों और मंगलों को करने वाली सरस्वतीजी और गणेशजी की मैं वंदना करता हूँ॥
सत्यं ब्रुयात् प्रियं ब्रुयात्। शब्दों का कभी दुरूपयोग ना करें। सत्यं नाम मनोवाक्काय कर्मभिर्भूतहित यथार्थाभिभाषणम्। सत्य‌ का अर्थ है मन, वचन, शरीर, एवं कर्म से जो हितकारी हो, वही वाणी प्राणियों के समक्ष बोलना। (शाण्डिल्योपनिषद्)

भवानीशंकरौ वन्दे श्रद्धाविश्वासरूपिणौ। याभ्यां विना न पश्यन्ति सिद्धाः स्वान्तःस्थमीश्वरम्‌॥ – श्रद्धा और विश्वास के स्वरूप श्री पार्वतीजी और श्री शंकरजी की मैं वंदना करता हूँ, जिनके बिना सिद्धजन अपने अन्तःकरण में स्थित ईश्वर को नहीं देख सकते॥

भारतीय संस्कृति का प्राण – संस्कारों में बसते हैं। श्रीराम जी के जीवन चरित्र में किये गये संस्कारों से हम प्रेरणा ले सकते हैं व इनके उद्देश्य/ प्रशिक्षण को आत्मसात कर सकते हैं।

काम कोह मद मान न मोहा। लोभ न छोभ न राग न द्रोहा॥ जिन्ह कें कपट दंभ नहिं माया। तिन्ह कें हृदय बसहु रघुराया॥ @ अध्यात्म = अंतरंग परिष्कृत – बहिरंग सुव्यवस्थित।। तजि निज धरमु विसय लय लीना। सोचिअ नृपति जो नीति न जाना। जेहि न प्रजा प्रिय प्रान समाना। ~ सद्ज्ञान व‌ सत्कर्म – मानव जीवन के अनिवार्य तत्त्व।

सोचिअ विप्र जो वेद विहीना। तजि निज धरमु विसय लय लीना। सोचिअ नृपति जो नीति न जाना। जेहि न प्रजा प्रिय प्रान समाना। ~ सद्ज्ञान व‌ सत्कर्म – मानव जीवन के अनिवार्य तत्त्व।

बैखानस सोइ सोचै जोगू। तपु विहाइ जेहि भावइ भोगू। सोचअ पिसुन अकारन क्रोधी। जननि जनक गुर बंधु विराधी।‌ @ वानप्रस्थ आश्रम।

तुलसी तरुवर विविध सुहाय। कहुँ कहुँ सिएँ , कहुं लखन लगाये।। @ वातावरण परिष्कराये – पर्यावरणीय संपन्नता।

निसिचर हीन करउँ महि भुज उठाइ पन कीन्ह। सकल मुनिन्ह के आश्रमन्हि जाइ जाइ सुख दीन्ह॥ @ प्राणवान साधक साहसिक/ रचनात्मक कार्यों में सहभागिता सुनिश्चित करते हैं।

नवधा भगति कहउँ तोहि पाहीं। सावधान सुनु धरु मन माहीं॥ प्रथम भगति संतन्ह कर संगा। दूसरि रति मम कथा प्रसंगा॥‌ @ नवधा भक्ति – गायत्री मंत्र की दीक्षा है।

जामवंत के बचन सुहाए। सुनि हनुमंत हृदय अति भाए॥‌ @ गुरूदेव आज के हनुमानों के जामवंत की भूमिका में हैं। आत्मनिर्माणी ही विश्वनिर्माणी होते हैं। श्रद्धा विश्वास, प्रज्ञा, श्रमशीलता व निष्ठा।

उलटि पलटि कपि लंका जारी, कूदि परा पुनि सिन्धु मझारी।‌ @ Sex energy है सोने की लंका। इसका रूपांतरण से बात बनती है। काम बीज का रूपांतरण ज्ञान बीज में।

सोहमस्मि इति बृत्ति अखंडा। दीप सिखा सोइ परम प्रचंडा॥ आतम अनुभव सुख सुप्रकासा। तब भव मूल भेद भ्रम नासा॥ “सोऽहमस्मि’ यह जो अखंड वृत्ति है, वही परम प्रचंड दीपशिखा है। जब आत्मानुभव के सुख का सुंदर प्रकाश फैलता है, तब संसार के मूल भेद रूपी भ्रम का नाश हो जाता है॥

जिज्ञासा समाधान

विप्र (ब्राह्मण) वे कहे जा सकते हैं जो चरित्र, चिंतन व व्यवहार के धनी हों। गुरूदेव कहते हैं मनुष्य का मुल्यांकन योग्यता/ उपलब्धि से नहीं प्रत्युत् सद्विचार व सत्कर्म को मानें।

सभी शब्दों में (प्रणव) ध्वनि को feel करना – नादयोग साधना के अंतर्गत आता है।

अनन्ता वे वेदा – वेद अनंत हैं। मंत्रों के अर्थ अनंत हैं। मंत्रों के अर्थ की सार्थकता तभी है जब वो चिंतन-मनन से आचरण में आये। उत्कृष्ट चिन्तन, आदर्श चरित्र व शालीन व्यवहार को मंत्र सिद्धि/उपलब्धि समझ सकते हैं।

कथनी व करनी में समानता रखी जाए। मन, वचन व कर्म से सबके हेतु हितकारी शब्द ‘सत्य’ हैं।

लव – कुश को ऋषि वाल्मीकि आश्रम में प्रशिक्षित होने के विधान को श्रीराम जी का सीता जी से बिछुड़ने के क्रम में ले सकते हैं। दैवीय योजना गोपनीय भी होती हैं। सकारात्मकता बनाये रखें।

ब्राह्मण तपस्वी होते हैं। लव – कुश अर्थात् सद्ज्ञान – सत्कर्म।

ॐ  शांतिः शांतिः शांतिः।।

Writer: Vishnu Anand

 

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