
Introduction to Panchkosh Sadhna and Benefits
PANCHKOSH SADHNA – Online Global Class – 24 Apr 2021 (5:00 am to 06:30 am) – Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्|
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sᴜʙᴊᴇᴄᴛ: गायत्री पंचकोशी साधना का परिचय व उपलब्धियां
Broadcasting: आ॰ अमन जी
आ॰ सुभाष चन्द्र सिंह (गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश)
वैश्विक महामारी COVID-19 आपदा में हम सभी संयमित व संतुलित रहें। एक ही परिस्थिति में मनःस्थिति भिन्न-भिन्न होने के कारण व्यक्ति के आचरण में अंतर पाया जाता है।
चतुर्विधा भजन्ते मां जनाः सुकृतिनोऽर्जुन। आर्तो जिज्ञासुरर्थाथी ज्ञानी च भरतर्षभ॥7.16॥ भावार्थ: हे भरतवंशियोंमें श्रेष्ठ अर्जुन ! उत्तम कर्म करनेवाले अर्थार्थी, आर्त, जिज्ञासु और ज्ञानी – ऐसे चार प्रकार के भक्तजन मुझे भजते हैं।
तेषां ज्ञानी नित्ययुक्त एकभक्तर्विशिष्यते।प्रियो हि ज्ञानिनोऽत्यर्थमहं स च मम प्रियः।।7.17।। भावार्थ: उनमें से नित्य मुझमें एकभक्ति से स्थित अनन्य प्रेमभक्तिवाला ज्ञानी भक्त अति उत्तम है, क्योंकि मुझको तत्त्वसे जाननेवाले ज्ञानीको मैं और वह ज्ञानी मुझे, अत्यन्त प्रिय है।
ऋषि-मुनि तपस्वी योगी, आर्त अर्थी चिंतित भोगी। जो जो शरण तुम्हारी आवें सो सो मन वांछित फल पावें।। गायत्री पंचकोशी साधना उच्चस्तरीय अर्थात् सर्वसाधारण हेतु सर्वोपयोगी (अनंत ऋद्धियां – सिद्धियां) हैं, जिन्हें पाकर जीव धन्य हो जाता है।
‘जिज्ञासा‘ (जानने की इच्छा)/ Curiosity – ‘ज्ञान’ की जननी है। मनुष्य की प्रगति में जिज्ञासा की बहुत बड़ी भूमिका रही है। हमारी आत्मा व परमात्मा को जानने की जिज्ञासा – मैं कौन हूं? ‘आत्मज्ञान’ का मार्ग प्रशस्त करती हैं। वेदान्त दर्शन – “अथातो ब्रह्म जिज्ञासा” ~ अहं ब्रह्मस्मि (मैं ब्रह्म हूं)। तत्त्वमसि (वह ब्रह्म तुम्हीं हो)। सोऽहं (मैं वह हूँ)। सर्वत्रं खल्विदं ब्रह्म् (सर्वत्र ब्रह्म ही है)।
‘वरूण‘ के पुत्र ‘भृगु‘ ने पिता से ‘ब्रह्मज्ञान‘ की जिज्ञासा की। वरूण जी ने भृगु से कहा “तपसा ब्रह्मविजिज्ञासत्व तपो ब्रह्मोति” अर्थात् ‘तु तप करके ब्रह्म को जानने का प्रयास कर, क्योंकि ब्रह्म को तप के द्वारा ही जाना जाता है। भृगु जी ने कठोर तप द्वारा सुक्ष्मातिसुक्ष्म में प्रवेश करते हुए क्रमशः बोधत्व किया:-
१. अन्नमय जगत में – अन्नो वै ब्रह्म।
२. प्राणमय जगत में – प्राणो वै ब्रह्म।
३. मनोमय जगत में – मनो वै ब्रह्म।
४. विज्ञानमय जगत – विज्ञानो वै ब्रह्म।
५. आनन्दमय जगत में – आनन्दो वै ब्रह्म।
गायत्री महाविज्ञान के तृतीय खण्ड में ‘गायत्री – मंजरी’ का स्वाध्याय कर गायत्री पंचकोशी साधना का परिचय व उपलब्धियां आदियोगी महाशिव के श्रीमुख से गुरूदेव के युगानुकुल भाष्य में स्वाध्याय कर सकते हैं। गायत्री के 5 मुख, आत्मा के 5 कोश/ आवरण हैं।
१. अन्नमय कोश
२. प्राणमय कोश
३. मनोमय कोश
४. विज्ञानमय कोश
५. आनन्दमय कोश
यह आत्मा के आवागमन के, कैद तथा छुटकारे के वैसे ही द्वार हैं जैसे हमारे शरीर में सांसों के आवागमन के लिए नाक में छिद्र होते हैं।
गायत्री की 10 भुजाएं, जीवन की 10 शूलों (दोषयुक्त दृष्टि, परावलम्बन, भय, क्षुद्रता, असावधानी, स्वार्थपरता, अविवेक, क्रोध, आलस्य व तृष्णा), कष्ट-दुःखों का निवारण करने वाली महाशक्तियां हैं।
सफलता हेतु अनिवार्य तत्त्व -अन्तःकरण में श्रद्धा, मस्तिष्क में प्रज्ञा, काया में निष्ठा व श्रमशीलता। योगसाधक के अभ्यास में सहजता, सजगता, नियमितता का समावेश होने से प्रगति तीव्र हो जाती है।
शनिवार व रविवार की online global class एवं प्रज्ञाकुंज सासाराम (बिहार) में आयोजित सत्रों में गायत्री पंचकोशी साधना के theory & practical का प्रशिक्षण प्राप्त किया जा सकता है।
जिज्ञासा समाधान – कोरोना आपदा प्रबंधन में सूर्यभेदन व प्राणाकर्षण प्राणायाम का अभ्यास किया जा सकता है। सोऽहं भाव से विचलन नहीं होता है।
जिज्ञासा समाधान – श्रद्धेय लाल बिहारी बाबूजी
सूर्यभेदन प्राणायाम में right nostril से प्राणवायु को खींच कर ‘कुण्डलिनी’ तक ले जाया जाए और अच्छा लगने तक कुंभक कर left nostril से रेचक (exhale) करें। यह क्रिया R-L अच्छा लगने तक बारंबार अभ्यास करें। यह शरीर के infections को समाप्त कर देता है।
भावातीत अवस्था (मान्यता रहित) ‘महः’ लोक है। सारे भूतों में आत्मानुभूति ‘जनः’ लोक है। ये सब consciousness layers हैं इसका anatomical विवेचन संभव नहीं बन पड़ता। भाव विज्ञान है अतः इसे छूते हुए तथ्यों को रखा जाता है।
आत्मोन्नति की 5 कक्षाएं हैं। 5 भूमिकाएं हैं। उनमें से जो जिस कक्षा की भूमिका को उत्तीर्ण कर लेता है, उस श्रेणी का ऋषि बन जाता है।
हर हाल मस्त रहना – आस्तिकता है। संतुलित मनःस्थिति से किसी भी परिस्थिति में समाधान का हिस्सा बना जा सकता है @ survival of the fittest। कोरोना काल में protocols को follow करते हुए सादगीपूर्ण शादी को प्राथमिकता दी जा सकती है।
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः।।
Writer: Vishnu Anand
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