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Kundalini Science – 5

Kundalini Science – 5

PANCHKOSH SADHNA – Online Global Class – 29 Nov 2020 (5:00 am to 06:30 am) – Pragyakunj Sasaram – प्रशिक्षक Shri Lal Bihari Singh

ॐ भूर्भुवः स्‍वः तत्‍सवितुर्वरेण्‍यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्‌|

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sᴜʙᴊᴇᴄᴛ: कुण्डलिनी साइंस – 5 (कुण्डलिनी जागरण की ध्यान धारणा)

Broadcasting. आ॰ अंकुर जी

श्रद्धेय लाल बिहारी बाबूजी

Online global participants द्वारा कुण्डलिनी जागरण की ध्यान धारणा का अभ्यास – वंदनीय माता जी व परम पूज्य गुरुदेव की आवाज व दिशानिर्देश अनुसार।

कुण्डलिनी – प्राण विद्युत @ जीवनी-शक्ति @ योगाग्नि @ अंतःऊर्जा @ ब्रह्म-ज्योति
(क) मंथन – ऊर्जा की उत्पत्ति व अभिवृद्धि। अन्तर्जगत का मंथन करने से ‘ब्रह्म-ज्योति’ उदय। प्राणायाम क्रिया से मंथन संपन्न।
(ख) उर्ध्वगमन – उत्थान/ उत्कर्ष/ अभ्यूदय। जागृत कुण्डलिनी से प्राण का उर्ध्व-गमन (upward) होता है अर्थात् पतन रूकता है उत्थान प्रारंभ होता है। पतन – दुरूपयोग (misuse) तो उत्थान सदुपयोग (good use)। ध्यान – जागृत कुण्डलिनी मेरूदण्ड – ‘सुषुम्ना’ मार्ग से उपर चढ़ती ब्रह्मरंध्र ‘सहस्रार’ से मिलन।
(ग) वेधन – लक्ष्य-वेध @ शब्द-वेध @ चक्रव्युह-वेध, चक्र जागरण अर्थात् जागृत कुण्डलिनी शक्ति द्वारा बंधनों को सुलझाने/ खोलने का क्रम ‘वेधन’। वेध means सही निशाना लगाना भी होता है अर्जुन की तरह, एकलव्य की तरह। ध्यान – मूलाधार से योगाग्नि के ज्योति कण शक्ति केंद्र षट्-चक्रों को वेध रहे हैं – शक्ति केंद्रों का जागरण।
(घ) विस्तरण – आत्म विस्तार @ आत्मवत् सर्वभूतेषु सीमित को असीम बनाना (संकीर्णता – नर तो उदात्त – नारायण)। स्वार्थ का रूपांतरण परमार्थ में @ आत्मिक प्रगति। ध्यान – ‘मूलाधार’ स्थित सामान्य स्फूलिंग का प्रचंड ज्वाला में विस्तार।
(ङ) परिवर्तन @ काम बीज का ज्ञान बीज में। क्षुद्रता का महानता में परिवर्तन, कामना का भावना में, नर का नारायण में, नरक का स्वर्ग में, बंधन का मुक्ति में। ध्यान – शक्ति क्षेत्र ‘मूलाधार’ की तरंगों का शिव क्षेत्र ‘सहस्रार’ में विलय।

प्रश्नोत्तरी सेशन

कुण्डलिनी जागरण के ध्यान-धारणा के शब्दावली क्रम को वैज्ञानिक ढंग से समझने हेतु ‘वांग्मय -15’ एवं ‘ब्रह्मवर्चस की ध्यान-धारणा’ पुस्तक का अध्ययन करें।
तीन दिव्य सत्ता – गुरू, गायत्री व यज्ञ।
ब्रह्म संदोह – संकल्प शक्ति से ब्रह्म ज्योति/ शक्ति को रोम रोम में खींचना – भरना।
‘ध्यान’ की भूमिका में प्रवेश में हमें ‘अंतःकरण चतुष्टय’ को अंतर्मुखी बनाना होता है। ‘वासना’ का अर्थ हमारे मन में जो वास करता है। काम वासना, शास्त्र वासना, देह वासना से हमें उपर उठना होता है।
कुण्डलिनी जागरण की ध्यान धारणा में ‘मंथन’ ही अलंकारिक रूप से समुद्र मंथन की प्रक्रिया से समझाई गयी है। Negativity/ toxins/ unwanted को प्रक्षालित कर हम उपर उठते हैं यह ‘उर्ध्वगमन’ है। शक्ति केंद्रों, चक्रों के जागरण ‘वेधन’ अर्थात् सुषुम्ना में जीना @ संघर्ष को सहज अंगीकार करना। आत्म-प्रगति अर्थात् आत्मीयता का विस्तार ‘विस्तरण’। जीव का ‘परिवर्तन’ शिव में @ रूपांतरण – क्षुद्रता का महानता में, कामना का भावना में, नर का नारायण में।

कुण्डलिनी जागरण – अन्नमयकोश – प्राण विद्युत, प्राणमयकोश – जीवनी-शक्ति, मनोमयकोश – योगाग्नि, विज्ञानमयकोश – अंतःऊर्जा व आनंदमयकोश – ब्रह्म-ज्योति।

‘गंगा’ – ‘यमुना’ का मिलन ‘सरस्वती’ @ ईड़ा – पिंग्ला मध्य ‘सुषुम्ना’ @ Dipole between Negative and Positive pole @ स्थित-प्रज्ञ @ साक्षी @ अवधूत। ‘समर्पण/विलय/सायुज्यता’ को ‘मिलन’ के अर्थ में लें अर्थात् ‘अद्वैत’ @ ‘एकं ब्रह्म द्वितीयो नास्ति’/ ‘ईशावास्यं इदं सर्वं’/ ‘गायत्री वा इदं सर्वं’।

‘कामना’ का ‘भावना’ में रूपांतरण अर्थात् स्वार्थ का परमार्थ में रूपांतरण। केवल स्वयं का भला सोचना – ‘संकीर्णता’ और सबका भला सोचना (सर्वे भवन्तु सुखिनः …) – ‘उदात्त’ बनना। असीम (I – मैं) से ससीम (We – हम) की journey है @ वसुधैव कुटुंबकम्।

‘ध्यान-धारणा’ में गुरूदेव द्वारा प्रयोग में लाये गये शब्दावली के अर्थों को ‘हृदयंगम’ (स्मरण + चिंतन-मनन + निदिध्यासन) कर शुभ ज्योति के पुंज अनादि अनुपम – ‘श्वेत प्रकाश’ रूप में ध्यान कर – ‘मंथन, उर्ध्वगमन, वेधन, विस्तरण व परिवर्तन’ की प्रक्रिया संपन्न कर सकते हैं। शब्दों को क्रमशः स्मरण करने से हम सुविधानुसार सहजता से ‘ध्यान’ की समय-सीमा को घटा बढ़ा सकते हैं।

ॐ शांतिः शांतिः शांतिः।।

Writer: Vishnu Anand

 

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