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Tools of Manomay Kosh

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PANCHKOSH SADHNA – Online Global Class – 06 Mar 2021 (5:00 am to 06:30 am) –  Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह।

ॐ भूर्भुवः स्‍वः तत्‍सवितुर्वरेण्‍यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्‌|

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sᴜʙᴊᴇᴄᴛ: जप, ध्यान, त्राटक व तन्मात्रा साधना

आ॰ अंकुर सक्सेना जी  (गाजियाबाद, उ॰ प्र॰)

Broadcasting: आ॰ अमन जी

मनोमयकोश का परिचय उसे उज्जवल बनाने के साधन और साधनात्मक अनुभव।

आत्मा‘ के 5 आवरण – पंचकोश ~ अन्नमयकोश, प्राणमयकोश, मनोमयकोश, विज्ञानमयकोश व आनंदमयकोश।
पंचकोश‘ के विकृति के कारण जीव स्वयं के वास्तविक स्वरूप को भूलकर ‘द्वैत’ के भाव से युक्त हो जाता है। पंचकोश साधना @ आत्मसाधना – स्वयं के वास्तविक सच्चिदानन्द स्वरूप @ ‘अद्वैत’ बोधत्व हेतु है।
मनोमयकोश‘ पंचकोश साधना के मध्य में है। आज के बौद्धिक युग में मनोमयकोश का परिष्कृत होना अनिवार्य है अन्यथा ‘मन’ बन्धन का कारण बन जाता है @ मन एव मनुष्याणां बन्धन मोक्ष कारणयोः।
संतुलित मन ही विज्ञानमयकोश व आनंदमयकोश में प्रवेश दिलाता है। मन विचारणा, भावना व इच्छा का केंद्र है। 

मन‘ की सुघड़ता/ संतुलन ही व्यक्तिगत, सामाजिक व आध्यात्मिक जीवन को सफल बनाता है। वहीं दुसरी तरफ ‘मन’ की अनगढ़ता/ असंतुलन अचिंत्य चिंतन व अयोग्य आचरण फलस्वरूप कलह क्लेश व नाश का कारण बन जाती हैं।

जैसा खायें अन्न वैसा हो मन‘ – अन्न का प्रभाव मन पर पड़ता है। ऋतभोक्, मितभोक् व हितभोक् का ध्यान रखे जाने से मनोमयकोश साधना में सहजता होती है।
बलिवैश्य यज्ञ के द्वारा भावनात्मक रूप से ‘अन्न’/ भोजन को सुसंस्कृत बनाया जाता है।

जैसा संग वैसा रंग‘ – सामान्यतः सर्वसाधारण पर Local Environment का असर पड़ता है। संतुलित आहार संग संतुलित विहार से साधनात्मक प्रगति को गति मिल जाती है।
स्वाध्याय, सत्संग, तीर्थाटन आदि को जीवन में शामिल करें।

असुर‘ ~ आसक्ति, षड् उर्मि, षड् विकार, षड् भाव आदि मन के असंतुलन का कारण बनते हैं। साधक ‘अद्वैत’ की साधना से इसे निष्क्रिय बना सकते हैं ‌

तन्मे मनः शिवसंकल्पमस्तु‘ – शिव संकल्प उपनिषद् के स्वाध्याय व तदनुरूप क्रियान्वयन से मन को उज्जवल बनाया जा सकता है।

मनोमयकोश‘ को उज्जवल बनाने के ४ साधन – जप, ध्यान, त्राटक व तन्मात्रा साधना।

ध्यान‘ – सफलता/ प्रगति हेतु ध्यान से कार्य संपादन की आवश्यकता/ अनिवार्यता होती है। ध्यान करने (Meditation) के अभ्यास से हम मन की चंचलता/ बिखराव को रोकते हैं और एकाग्रता बढ़ाते हैं। ध्यान के विभिन्न प्रकारों में सहजता पूर्ण चुनाव किया जा सकता है। ‘मौन’ भी एक प्रकार ध्यान जो अंतः करण चतुष्टय को अंतर्मुखी बनाता है। हम परिवार में मौन, स्वाध्याय, सत्संग आदि का दैनंदिन अभ्यास कर सकते हैं।

त्राटक‘ – अन्तः त्राटक व बाह्य त्राटक। उद्देश्य – मन की एकाग्रता। अन्तः त्राटक का कोई भी side affects नहीं है और आत्म-जागरण में अद्वितीय भूमिका निभाता है।

जप‘ – बारंबार ‘मंत्र’ (सलाह) को दुहराने, स्मरण (चिंतन-मनन-मंथन) व स्वाध्याय (क्रियान्वयन – परिष्करण) से मनोमय कोश को उज्जवल बनाया जाता है। महामंत्र जितने जग माहीं कोऊ गायत्री सम नाहीं – गायत्री महामंत्र के २४ अक्षरों के अर्थों को चिंतन-मनन, स्वाध्याय तदनुरूपरूप क्रियान्वयन से जप योग को सार्थक बनाया जा सकता है।

तन्मात्रा साधना‘ – पंच भूतों की इन्द्रिय जनित अनुभूति ‘शब्द’, ‘रूप’, ‘रस’, ‘गंध’ व ‘स्पर्श’ को संयमित कर आसक्ति रहित @ अनासक्त होना, इस साधना का उद्देश्य है। इसमें एक-एक पर अभ्यास बताये गये हैं जिनका उद्देश्य इनसे परे जाने की है।

उपरोक्त तथ्यों संग अहरह (नियमित) ‘स्वाध्याय’ को जीवन का अनिवार्य अंग बना कर हम सतत प्रगति जारी रख सकते हैं।

प्रश्नोत्तरी सेशन विद् श्रद्धेय लाल बिहारी बाबूजी

जब हम जप करते हैं तो ‘शब्द-वृत’ बनते हैं तो वह सूर्य/आदित्य को छूकर आता है और साधक के मर्म स्थलों को लाभ पहुंचाता है।
जब ध्वनि संग भावनाओं को जोड़ा जाता है तब ‘भाव-वृत’ बनते हैं और वह मंत्र के गुणावली को साधक में धारण कराते हैं अर्थात् आचरण में अवतरण हो जाता है।
मंत्र लेखन‘ में मन की एकाग्रता बढ़ जाती है। उंगलियों के व्यायाम से वृद्धावस्था में  हाथ में पर्किंसन रोग नहीं होते हैं। ‘त्राटक’ साथ में सधता है। हमारी लेखनी हमारे आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन सकती हैं।

तीन माला ‘गायत्री’ मंत्र का जाप नित्य किया जा सकता है। ‘सोऽहम’ भाव संग जप को आयाम दिया जा सकता है।

ध्वनि‘ विज्ञान के लाभ हैं। ‘भाव’ से इसे नये आयाम दिए जाते हैं। ‘भाव’ को साधने/ परिष्करण हेतु ‘स्वाध्याय’ (ऋषि चिंतन @ अध्ययन के परिप्रेक्ष्य में स्वस्य अध्ययनं स्वाध्यायं) अनिवार्य।

सविता सर्वभूतानां सर्व भावश्च सूयते।
स्रजनात्प्रेरणाच्चैव सविता तेन चोच्यते।। – समस्त सृष्टि के ईश्वर सविता हैं। अतः किसी भी आधार संग लक्ष्य का वरण किया जा सकता है। स्मरण रहे ‘सदुपयोग’ से बात बनती है व ‘दुरूपयोग’ से बिगड़ती हैं।

ॐ  शांतिः शांतिः शांतिः।।

Writer: Vishnu Anand

 

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