पंचकोश जिज्ञासा समाधान (29-11-2024)
कक्षा (29-11-2024) की चर्चा के मुख्य केंद्र बिंदु:-
वांग्मय 22 में आया है हम अपने स्थान पर रहकर भी दूर रहने वाले व्यक्ति के हृदय की धारणा को बदल सकते है, दूसरे व्यक्ति के विचारो को बदलना, अपने चित्त की एकाग्रता पर निर्भर रहता है, एक व्यक्ति यदि दूसरे व्यक्ति को कोरे तर्क के बल पर प्रभावित करना चाहे तो वह देखेगा कि उसका प्रयत्न व्यर्थ गया, जब तर्क करने वाले व्यक्ति के प्रति किसी व्यक्ति की श्रद्धा नही होती तो युक्तियों को सुनने वाले के मन पर कोई भी अनुकुल असर नहीं होता, तर्क करने से कभी कभी प्रतिकूल परिणाम होता है, मनुष्य की बुद्धि उसके हृदय की दासी है, जब तक हम मनुष्य के हृदय पर अधिकार नहीं करते, उसकी बुद्धि को भी प्रभावित नहीं कर सकते, का क्या अर्थ है
- एक सदवाक्य आया है तर्क नहीं श्रद्धा प्रधान, तथा एक अन्य इसका उल्टा वाक्य भीआया है वेश नहीं गुण कर्म प्रधान तर्क तथ्य को दे सम्मान
- भगवान बुद्ध के समय में जानकारी नही थी तब लोग गलतियां अधिक करते थे अभी गुरुदेव ने जानकारी दिया व तर्क – तथ्यों के आधार पर समझाया, यज्ञ के नाम पर हिंसा नही होनी चाहिए
- जब बुद्धिजीवी ही जानबूझकर गलती कर रहा हो जैसे Smoking Drinking में वैधानिक चेतावनी को नही मान रहा, वैधानिक का अर्थ कि proof है कि यह सत्य है
- पढे लिखे व्यक्ति आतंकवाद या रिश्वत लेने लगे, श्रद्धा का शोषण करने लगे तब समाज भी गलत दिशा में ही चलेगा
- गुरुदेव की एक पुस्तक समझदारो की नासमझी में कई सारे उदाहरण से इसे बताया है
- आज के समय में जब बुद्ध का ज्ञान काम नहीं कर रहा तब भगवान को अगला अवतार लेकर आना पड़ा -> बुद्ध का उत्तरार्ध प्रज्ञा अवतार, इन्होंने आत्मिकी का खेती किया
- संत + बाह्मण का मिश्रण प्रज्ञावतार है
- यदि श्रद्धा व भक्ति भाव न हो तथा ज्ञान बढ़ जाए तो नास्तिकता आ जाती है
- प्रज्ञापुराण में बताया गया है कि अनास्था से आतप्त से शुष्क मानवीय अंतकरण पर श्रद्धा की वर्षा कर दो तथा मानवीय अंतःकरण को फिर से हरा भरा कर दो क्योंकि आज के समय में भाव संवेदना की कमी है
- श्री अरविदों ने भी बताया कि मन के उपर वाले Layer में हम जाए
- एक बार टाइफाईड में मरने की स्थिति आ गई थी तथा डाक्टर ने कहा कि आप मरने के केवल 10 दिन पहले ही यहा आए हैं
- जब बीमारी गहरी चली जाए तो केवल बाहरी उपचार से काम नहीं चलेगा, जैसे कैन्सर या अन्य गंभीर बीमारी
- ऐसी अवस्था में अब श्रद्धा काम आ जाएगा
- श्रद्धा की अग्नि से आत्मा प्रदीप्त होती है
- श्रद्धावान लभते ज्ञानम् = कृष्ण ने कहा
- जिसकी जैसी श्रद्धा है वैसा ही उसका व्यक्तित्व -> इसलिए नारद से कहा कि तुम श्रद्धा प्रज्ञा व निष्ठा को पैदा करो
नारदपरिव्राजकोपनिषद् में आया है कि जब प्रमाद परम तत्व रूप सनातन बह्म का सम्यक ज्ञान हो जाए, तब एक दण्ड धारण करके शिखा व यज्ञोपवित का परित्याग कर देना चाहिए, जो परमात्मा में अनुरक्त है तथा अन्य समस्त वस्तुओं के प्रति विरक्त है, यहा आया है कि जब परमात्मा का ज्ञान हो जाए तो सब त्याग कर देना चाहिए, आतुर सन्यांस कब लेना चाहिए फिर कहा कि जब मृत्यु नजदीक हो तब लेना चाहिए, का क्या अर्थ है
- इसका अर्थ है कि यदि आत्मा के बारे में मरने तक नहीं जाना तथा अन्ततः घर का लोभ मोह में ही फसे रहे
- त्याग से ही आत्मा मिलता है
- यहा कहने का अर्थ यह है कि आत्मानुसंधान कम से कम जीवन के अंतिम दिनो में तो पढ़ सकते है ताकि अगली कक्षा में कम पढ़ना होगा, आत्मज्ञान Traveller cheque है
संन्यास ग्रहण करते समय उन व्यक्तियो को संन्यास नही ग्रहण करना चाहिए जैसे शिवभक्त है या कोढी है, इनको संन्यास ग्रहण नहीं करना चाहिए, का क्या अर्थ है परन्तु फिर भी किसी के मन में यह संन्यास ग्रहण करने का भाव आ जाए तो क्या करना चाहिए
- वह अपने लिए एक कुटिया बनाकर या गुफा में रह सकता है परन्तु एक साधु संन्यासी घूमने वाला ( जंघम ) भी होता है
- यदि साधु कोढी/रोगी है तो वह अन्यों में भी वह रोग फैला सकता है
- आम लोंगो के बीच रहने वाले साधु भी होते है
- गुफा में रहकर अवधूत वाला परमहंस बन सकता है
गांयत्री हृदयम् में आया है कि पंचकोशो का निर्माण में आया है कि जल आवरण का निर्माण पहले किया गया, आनंद की अनभूति से आनन्दमय कोश का तथा फिर विज्ञानमय कोश का निर्माण हुआ, का क्या अर्थ है
- पंचकोशों से पंचतत्वो का निर्माण हुआ तो सबसे पहले जल तत्व बताया गया परन्तु हमने पढ़ा कि पहले आकाश तत्व फिर वायु तत्व . . .
- यहा जल का निर्माण 2 बार बताया गया
- यहा पहले वाले जल तत्व का अर्थ आनंद है जो कि ईश्वर का गुण है
- पूरे जीवन भर आनन्द लेगा क्योंकि यही आत्मा का गुण है, वह शांतिमय है व आनन्दमय है तथा परमात्मा की ईकाई को आत्मा कहते है
- प्रत्येक व्यक्ति अपने पूरे जीवन में शांति व आनंद के लिए ही प्रयास करेगा क्योंकि शांति व आनंद आत्मा का स्वभाव है, जहां आनंद नहीं मिलेगा वहां पर Variation खोजेगा
- पंचतत्वो में वह आनन्द लेगा, पानी या रस के माध्यम से मिलने वाले आंनद को स्वाद कहते है
- छुने से जो आनंद मिल रहा है उसे स्पर्श कहेगें
- हवा के माध्यम से मिलने वाले आनन्द को स्पर्श कहेंगे, छूने से भी आनन्द मिलता है
- वह आनन्दमय है व कण कण में है
- आँखो से दिखने वाले दृश्यो से मिलने वाले आनन्द को रूप कहते है
- भोजन से मिलने वाले आनन्द को गंध कहते है, इसी प्रकार solid Liquid Gas का अपना अपना आनन्द है
एक पुस्तक में Law of Secret में आया है कि यदि हम अपने को अलग अलग frequency में रखते है तो हमारे जीवन में अमूलचूल परिवर्तन आता है, एक Frequency [अवस्था] से दूसरी Frequency [अवस्था] में Shift कैसे होते है या कैसे जाते है
- जैसे एक Gear से दूसरे में जाने में बीच में Neutral Gear आ रहा है, सीधा नहीं जा रहे
- Neutral को सुष्मना कहते है
- समत्व योग / Neutral / सुष्मना में जब रहेगे तब हरि व्यापक सर्वत्र समाना वाली स्थिति बन जाएगी, जब समत्व में रहेगें तो हमारी उपस्थिति सब जगह हो जाएगी तब एक Frequency से दूसरी में जा सकते है
- सुष्मना में स्थित रहने को स्थिरप्रज्ञ कहते है, स्थिरपज्ञ व्यक्ति हर चीज का / हर परिस्थिति का आनन्द ले सकता है -> जैसे सेना का जवान युद्ध के समय अचानक क्रोध भाव में तथा फिर सरल भाव में आ सकता है
- Army में रहने वाला व्यक्ति कभी भी हथियार लेकर Cool Mind से भी निकल जाएगा
- यह वही कर सकता है जो सुषुम्ना में स्थित है
- अपने मूड के Control को ही स्वर संयम कहते हैं
आपकी Frequency पर यह बहमाण्ड प्रतिक्रिया देता है जैसी उर्जा आप लगाते है, वैसी ही उर्जा हमारे पास वापस आती है
- किसी व्यक्ति से हम बात कर रहे है तो हमारे शब्द के उच्चारण के आधार पर ही उसकी प्रतिक्रिया होगी
- शब्द में अथाह ताकत है, यह ध्वनि विज्ञान है
- मंत्रो में अथाह शक्ति होती है यदि हम किसी भी मंत्र को सिद्ध कर लें तो उसे हमारे जीवन में बहुत बड़ा परिवर्तन हो सकता है
- सारा संसार ध्वनि विज्ञान पर चल रहा है इसी आधार पर मंत्रो को सिद्ध किया जाता है
- इस पर नियंत्रण तभी कर सकते है जब हम सुष्मना में रहेंगे
साधना के बाद साधक समाज में Doctor की भूमिका में जाता है तो साधक बहुत सी उर्जा खोता है साधना में Disturb होता है, ऐसी अवस्था में क्या करे, जब कभी भीड में जाते है तो ऐसा लगता है कि आपकी पूरी उर्जा चूस ली गई है
- उर्जा का क्षरण तभी होगा जब गांठ बना लिया है, परन्तु जब आत्मभाव में रहेगा तो उस की उर्जा का क्षरण नहीं होगा
- आत्मा तो प्राणो का स्त्रोत है जहा से निरन्तर प्राणो का प्रवाह सुर्य से निकलने वाली रश्मियों की भाति होता रहता है
- इसलिए आत्मा से उर्जा को पूर्णतया चूसा नही जा सकता क्योंकि आत्मा पर किसी भी प्रकार के अस्त्रो का प्रभाव नही पडता
- आत्मा के अलावा अन्य किसी भाव में रहेगे तो आपकी उर्जा संसार के द्वारा चूस ली जाएगी
- इसलिए यह जरूरी है कि हम स्थिरप्रज्ञ भाव में रहे तब वह व्यक्ति संसार के उठा पटक से प्रभावित नही होता तब वह इस अवस्था को (बंधन मोक्ष से परे) अनुभव करने लगेगा
- ईश्वर को सर्वव्यापी माने -> युग निर्माण सदसंकल्प का यह पहली क्लास भी अगर हम पास कर जाएं तो भी समझे कि हमने संसार को जीत लिया
- इसलिए गुरुदेव ने पहली किताब यही लिखी थी कि मै कौन हूँ
- जो जितना बाहर रहेगा उतना बढ़ेगा क्योंकि हर जगह वह ईश्वर से मिला है
- अपने को हीन मान लिया तो समझे कि हमने साधना ही नहीं किया, हम साधक ही नहीं है
क्या समत्व भाव व साक्षी भाव दोनो एक ही है या अलग अलग
- साक्षी भाव को समत्व भाव कह सकते है
- साक्षी भाव ईश्वर का गुण है इसलिए वह कहीं लिप्त नहीं होता
आपके साथ सुबह जो चर्चा करते हैं, क्या यह भी स्वाध्याय में गिना जाएगा
- यह महा स्वाध्याय है
- यदि जिज्ञासा का समाधान हो जाता है तो साधना की रफ्तार और भी तेज हो जाती है
आर्ष ग्रन्थो का Reference जो हम देते है तो इतने ज्ञान जो गुरुदेव ने दिया है उसको एक Sequence में कैसे लाए
- Sequence के लिए जो हमारी जरूरत है वो पहले पढ़े
- हर व्यक्ति की मनोभूमि अलग-अलग Variety कि होती है तथा वांग्मय व उपनिषद् में ऋषियों की मनोभूमि उच्च स्तर की होती है
- जो राजनीति में है या विद्या के क्षेत्र में है तो अपने अनुरूप वांग्मय का चयन करे
- जो आत्मिकी के क्षेत्र में जानना चाहते है तो वो उसके लिए उपनिषद् पढ़े
- मंत्रो को आज के समय में कैसे समझा जाए, यह ज्ञान गुरुदेव ने हमें दिया
- क्योंकि ईश्वर कण-कण में घुला हुआ है इसलिए यदि हम किसी भी विषय में गहराई तक उतरेंगे तो ईश्वर को पा लेंगे
- हम अपनी रुचि के अनुसार अपने विषयों को स्वाध्याय के लिए चुन सकते हैं
- जितना अधिक Market में Option रहेगा उतना अधिक हम अपनी इच्छा के अनुसार चुन सकते हैं
वांग्मय 5 में चित्त वृति के निरोध करने से हम सामने वाले के चित्त को प्रभावित कर सकते हैं, तो दूसरे व्यक्ति को बिना मिले कैसे प्रभावित कर सकते है तथा चितवृति निरोध को निरोध कैसे करें
- बिना मिले भी प्रभावित कर सकते है क्योंकि चित्त कोई Partical नहीं है, चित्त एक आकाश है, जिसे चित्ताकाश भी कहते है, यही आकाश उस व्यक्ति में से भी गुजर रहा है जिसे हम प्रभावित करना चाहते हैं, यह Telepathy से भी संभव हो सकता है
- यदि हमारी भावनाए केंद्रित होकर आत्म बल के साथ निकलेगी तो वह कही भी धरती पर रहेगा तो वह छटपटाने लगेगा तथा मिलने के लिए बेचैन हो सकता है तथा उसका कल्याण कर देगा
- ऋषि लोग पहले ये सब करते थे तथा अपने को एक Dimension से दूसरे में Shift कर देते थे
- अपने स्तर को साधना से बढ़ाएंगे तब यह सब हम भी कर सकते है
- विज्ञानमय कोश में जाएंगे तो यह सब बिल्कुल आसान होगा
- विज्ञानमय कोश से नीचे में सरल नहीं होगा
- विज्ञानमय कोश चित्ताकाश है तथा नीचे वाले कोश आकाश में रूप रस गंध तथा इनमें सब Toxine भी अधिक है
- मन की कामनाएं भी रूकावट डालती है
- साधना में पहला Target इतना रखना चाहिए कि हम मन से पार चले जाएं
- सारा संसार मन है तथा यह तरंग से बना है
- तरंगों का उत्पादन केन्द्र मन है
- जैसे जैसे इसकी यर्थातता समझ में आती जाएगी तो हमारी चित्त वृतिया शान्त होती जाएंगी
- सही जानकारी मिलती / बढ़ती जाएगी तो चित्त वृतिया शान्त होती जाएंगी
Cold Allergy के लिए कौन सा आसन प्राणायाम या औषधि ली जाय कृपया बताने की कृपा करें
- गिलोय भी लाभकारी है तथा
- प्राणायाम में सुर्य भेदन प्राणायाम भी लाभकारी है
- क्षारीय वस्तुएं व क्षारीय भोजन भी हमारी एलर्जी को हटाती है
क्या अध्यात्म का लक्ष्य आत्मबोधत्व है ?
क्या आत्मबोधत्व हमेशा आत्मभाव में रहने से प्राप्त हो सकता है ? क्या आत्मभाव बना रहे , इसके लिये स्वाध्याय,हमेशा मानसिक जप, सोहम् साधना किया जाये , तो ही सफलता मिलेगी ?
- ईश्वर के प्रति समर्पण महत्वपूर्ण / compulory चीज है, उपासना सर्मपण योग
- अनासक्त प्रेम बहुत जल्दी आत्म साक्षात्कार दिलाता है
- आध्यात्म का लक्ष्य संसार को बहिरंग बनाना व आत्मा को सुसस्कृत बनाना / Refine करना
- सम्पन्नता – शक्ति – समृद्धि – मान बनाना व आत्मा को ईश्वरीय गुणो से भरना 🙏
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