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पंचकोश जिज्ञासा समाधान (28-11-2024)

पंचकोश जिज्ञासा समाधान (28-11-2024)

कक्षा (28-11-2024) की चर्चा के मुख्य केंद्र बिंदु:-

सुर्यअर्थवशिशोपनिषद् में आया है कि ॐ भू, ॐ भुवः, ॐ स्वः, ॐ महः, ॐ जनः, ॐ तपः, ॐ सत्यम, ये सात लोक है, ॐ स्वरूप वह सविता ही वरण करने योग्य है, उस भर्गो देव को हम अपनी बुद्धि से धारण करते हैं, यहा 7 लोकों का क्या अर्थ है

  • मंत्रो की एक खूबी यह है कि उसका अर्थ जाने या ना भी जाने तो भी ध्वनि विज्ञान का लाभ तो अवश्य मिलेगा परन्तु यदि उसके अर्थ को जानकर भावना पूर्वक बोला जाए तो उसका कई हजार गुणा अधिक लाभ ले सकता है
  • गायंत्री गीता में एक एक अक्षर की व्याख्या में आता है कि ये सब प्राण के अलग अलग स्वरूप है
  • गुरुदेव ने इसके बारे में कहा है कि ये प्राण के ही सब Dimension है, जो कुछ बना है सब प्राण से ही बना है – गायंत्री वा इदम् सर्वम
  • प्राण से ही सृष्टि उत्पन्न हुआ है, प्राण एक ऐसा तत्व है जो ज्ञानयुक्त उर्जा है तथा इसी प्राण से ही सृष्टि उत्पन्न हुआ
  • ज्ञानयुक्त उर्जा में सब लहरा रहा है तथा इसके भी 7 आयाम है, सूक्ष्म से Condense होते जाना है
  • जैसे पृथ्वी तत्व आकाश का ही Highly Condense / गाढ़ा रूप है
  • प्राण के 2 स्वरूप
  1. धावमान
  2. स्थिर
  • गतिमान / धावमान से प्रकृति बनी
  • शाश्वतता(परा प्रकृति) ईश्वर का एक स्वरूप है
  • जहा गति है, वहा Wavelength व Frequency है, जिसे 7 भागों में बाटा गया
  • प्रकाश में अलग अलग Frequency व wavelength की लहरें हैं
  • अलग अलग रगों में केवल Frequency व Wavelength का ही अंतर आ रहा है
  • यहा दो धारा बह रही है, इन्ही को ठंडा गर्म, ईडा पिंगला, नर नारी, शिव शक्ति कह सकते है
  • प्राण के सात आयाम -> पृथ्वी जल अग्नि वायु आकाश के बाद मनः तत्व (मनस) शुरू हुआ, फिर मनस तत्व (मन बुद्वि चित अहंकार) के बाद आत्म तत्व है, यहीं सहस्तार है
  • लोक = कार्यक्षेत्र = कहा तक उसका Area है
  • हर व्यक्ति के सोचने का एक Area (लोक) होता है, इसे Ionosphere भी कहते है
  • स्वर्ग लोक = Positive Thought वाला दिमाग
  • नरक लोक = Negative Thought वाला दिमाग
  • बाकी वे लोक ऐसे नहीं है जैसा पृथ्वी है, वहा की आबादी भी पृथ्वी से अधिक है परन्तु वहा Space भी बहुत है
  • ऐसे लोक भी है जहा एक सूई की नोक पर 10 अरब आत्माएं दूर दूर तक बैठकर मीटिंग कर सकता है

वांग्मय न० 20 में आया है कि नोबल पुरस्कार विजेता, प्रख्यात न्यूरोसर्जन डा० रोजन स्पैरो ने मानवीय मस्तिष्क पर गहन अनुसंधान किया है, उनके अनुसार मस्तिष्क के दो भाग है, जिनमें दाया व बायां गोलार्ध है, बाए भाग को विचार बुद्धि द्वारा तथा दाए भाग को भाव स्वेदना द्वारा प्रभावित नियंत्रित देखा गया है, मस्तिष्क के दोनो भाग सामान्य स्थिति में एक सिर से जुडे होते है, इनमें बाए भाग को विचार बुद्धि के द्वारा तथा दाये भाग को भाव संवेदना के द्वारा प्रभावित नियंत्रित होते देखा गया है, मस्तिष्क के दोनो भाग सामान्य स्थिति में, एक सिर से जुडे रहते है, जिसे Corpus Callosum कहते है, इसी के कारण जानकारियों व भाव सवेंदनाओं का आदान प्रदान होता रहता है, दोनो गोलार्धो को समान रूप से क्रियाशील बनाकर कोई व्यक्ति अपनी समग्र क्षमता को बढ़ाकर बहुमुखी प्रतिभा का विकास कर पाने में सफल होता है, शरीर के अन्यान अंग अव्यवों को मनुष्य अपनी इच्छानुसार मोडने मरोड़ने में एक सीमा तक ही सफल हो सकता है पर मस्तिष्क के सम्बन्ध में बात दूसरी है, उसे सुधारा बदला ही नही वरन उल्टा तक किया जा सकता है, का क्या अर्थ है

  • Corpus Callosum एक हवाई पट्टी या आध्यात्मिक पट्टी है, Right Parietal Lobe.
  • एक भौतिक जगत व एक आध्यात्मिक जगत
  • बाये व दाये से वैज्ञानिक ने छेडछाड करके देखा तो पाया कि Right Brain Emotional / आध्यात्मिक अधिक है
  • जब प्राणायाम करने से मस्तिष्क के बीच में आदान प्रदान होता है तो इस आर पार वाले हिस्से को Corpus Callasum मानते हैं
  • विज्ञान व आध्यात्म को साथ लेकर चल सकता है, यही वैज्ञानिक आध्यात्म है, अन्य जीवों के पास ये खूबी नहीं
  • Thought के आधार पर स्वर बदल सकते है, प्राणायाम की हर समय आवश्यकता नहीं
  • युद्ध भूमि में भी ध्यान कर सकते है तभी श्री कृष्ण यह बात कहते है कि तू युद्ध भी कर और हमें स्मरण भी कर -> इसका अर्थ यह हुआ कि अब साधक मस्तिष्क के Left व Right दोनो भाग उपयोग कर रहा है
  • सुष्मना हर जगह हैं तथा इसमें दोनो current दौड रहे है

गायंत्री महाविज्ञान में स्वर योग में सुष्मना स्वर में आरम्भ होने वाले कार्यो का परिणाम अच्छा नहीं होता तथा वे अक्सर अधूरे व असफल रह जाते है, का क्या अर्थ है

  • सुष्मना में सांसारिक काम अच्छा नही होगा
  • ईश्वरीय कार्य सुष्मना में ही अच्छे से होगें, सुष्मना आध्यात्मिक है
  • यह नियम जो यहा बताया है, यह सामान्य आदमियो के लिए है, योगियो पर यह नियम लागु नहीं होता, उस पर तो संसार का कोई नियम लागु नहीं होता
  • सुष्मना में शांत स्वर रहता है, ना ही Positive तथा ना ही Negative
  • महाभारत में बलराम व विदुर कहा थे
    बलराम तीर्थ यात्रा पर थे, विदुर भी किसी पक्ष में नही थे
  • कृष्ण ने कहा है कि धर्म अधर्म का युद्ध हो रहा है तो किसी एक पक्ष में रहे मूक दर्शक न बने रहे
  • यहा कहने का अर्थ यही है कि जो भी काम करे मन लगाकर करे चाहे पढ़ना हो, युद्ध करना हो या खेलना हो परन्तु यहा सुष्मना में रहेगे तो ये सांसारिक कार्य ठीक से नहीं होगे
  • यदि आत्मानुसंधान करना है तो फिर दोनों को छोड़ना पडता है तब सुष्मना में रहकर बढ़िया कार्य होगा

नारदपरिव्राजकोपनिषद् में संन्यास के विषय में आया है कि इसे हमने बह्मा जी से सुना था, शरीर को लेकर बह्मा जी के पास जाते है, बह्मा जी बताते है कि हे नारद पुरातन समय में पुरुसुत्त व उपनिषदो में वर्णित किए गए गूढ़ रहस्यानुकुल अनुकुल अति श्रेष्ठ दिव्य विग्रहधारी विराट पुरुष ने जो मेरे लिए उपदेश किया था उसी दिव्य ज्ञान को तुम्ही के समक्ष प्रकट कर रहा हूं, वह श्रेष्ठ दिव्य विग्रह धारी विराट पुरुष का क्या अर्थ है

  • विराट पुरुष = महाविष्णु
  • विग्रह = आकृति
  • पुरुसुत्त में आया है कि त्रिपादस्य अमृतम् देही, उतने वाले हिस्से को विराट कहते है
  • तीन चौथाई हिस्सा तो शून्य में रहता है, वह हिस्सा पृथ्वी को छूता ही नहीं, उस हिस्से में कोई हलचल नहीं होती, वह हिस्सा इससे प्रभावित नहीं होता
  • करोड़ो बह्माण्डो का बनना व नष्ट होना यह केवल एक हिस्से में ही हो रहा है
  • यहां पर विराट के रूप में ब्रह्मा विष्णु महेश -> यह सब प्रजापति कहलाते हैं, इनको बांटे नहीं
  • अर्थवशिरोपनिषद् में शिव को ही परबह्म के रूप में कहा, यहा पर अलग अलग देवताओं की अलग अलग आकृति दिखाई जाती है तो यह सब Philosphy है
  • आदमी अपनी Mentality के आधार पर विग्रह देखता है
  • कर्म में भावना को जोड दे तो संसार से लिप्तता नहीं होगी और भावना के साथ कर्म भी जोड दे, यह भक्त भगवान का अर्जुन बन जाएंगा
  • पदार्थ विज्ञान की उर्जा को Refined करना तप कहलाएगा, APMB को तप कहते है तथा ज्ञान को योग कह दिया जाता है
  • अपने Toxine को हटाए व अच्छे गुणो को भी बढ़ाए
  • गलाई = तप , ढलाई = योग

सावित्री कुण्डलिनी एवं तंत्र में आया है

योग व तप का समनवय होने से गायंत्री कुण्डलिनी बन जाती है, का क्या अर्थ है

  • गांयत्री आत्म भौतिकी बन जाती है
  • आत्मज्ञान संसार को भी चलाने लगेगा
  • मन पर भी अपना नियंत्रण कर लेगा
  • काम वासना वैसे नियंत्रण में नहीं आता परन्तु कुण्डलिनी शक्ति, काम उर्जा पर भी नियंत्रण कर लेगी तथा काम उर्जा को ज्ञान में बदल देगा
  • पूरा शरीर / पदार्थ जगत, आत्मा के नियंत्रण में ही रहेगा तथा यही कुण्डलिनी बन जाएगा

क्या साधारण व्यक्ति में यह हीन भावना आनी चाहिए कि हम चोटी रखे है परन्तु गुरुदेव ने चोटी रखने वालो के लिए मना किया है

  • हीन भावना नहीं आएगी क्योंकि कबीर पंथी वाले भी जनेऊ नही पहनते थे परन्तु वे भी भगवान को पाए थे
  • दिगम्बरी जैनी या संन्यास आश्रम में भी ये सब नहीं पहनते

जो पथ हमने चुना है तो उसी पर ही रहना होगा जैसे Physics की कक्षा में Physics पर ही चर्चा होनी चाहिए ना कि किसी अन्य विषय की

  • यह बात तब लागु होती जब सब जगह सनातन धर्म था तथा अन्य मजहब नहीं थे, उन दिनों भारतीय आचार संहिता में यह Compulsory था,
  • आज मजहबों में संसार बट चुके है तो सब जनेऊ नही पहनेगें, हम इन मजहबो में भेदभाव नहीं बरतेगे, हमें आज सभी को Respect देना है तथा सभी को समझदार, जिम्मेदार व बहादुर बनाना है, इसलिए चरित्र चिन्तन व को व्यवहार में लाना होगा
  • संन्यासियों को वेदान्त ने अलिंगी का आदेश दिया है, उसे कोई Symbol नहीं रखना है
  • जिन्हें श्रद्धा है वे पहने, Compulsary नहीं रखा, संस्कार रखा परन्तु compulsary नहीं किया, जैसे अनपढ व्यक्ति यदि वेदारम्भ संस्कार कर भी ले तो भी उसे लाभ नहीं मिलेगा
  • समय के सापेक्ष में 44 संस्कार घटकर कम कर दिए गए
  • नियम इतना अधिक कडा न बनाए कि पूरे विश्व को पढ़ा ही न पाए
  • कर्मकाण्डो को लचीला रखा गया
  • वेदान्त का ही आदेश है, जिसका ज्ञान ही शिखा हो तथा ज्ञान ही यज्ञोपवित हो उसका बाह्मात्व सफल है बाकी तो केवल डोरी लपेटकर घूम रहे है
  • पहनना भी जरूरी परन्तु यह उनके लिए है जो भारतीय संस्कृति से प्यार करते हैं
  • वर्तमान समय में 12 संस्कार ही काफी है

राम कृष्ण मिशन में संन्यास के विषय में 12 साल तक नियम पालन करते है

  • यह पात्रता के आधार पर रखा जाता है जैसे सुखदेव मुनि जन्म से ही सन्यासी थें तथा परिक्षित को ज्ञान दे रहे है
  • केवल हिन्दु धर्म में आवश्यक है
  • संस्कार से कभी कभी श्रद्धा घटती भी है
  • हमें वैज्ञानिक युग में दोनो का तालमेल बैठा कर चलना है
  • संस्कार कडा हो गया तो अधिकतर का छूट भी गया
  • भारतीयो का संस्कार इसलिए भी खत्म हुआ क्योंकि उसकी वैज्ञानिक व्याख्या नहीं की गई तथा दूसरी बात यह है कि पहाड़ की तरह कड़ा बना दिया तथा दान दक्षिणा लेकर इसे खर्चीला भी बना दिया, गुरुदेव नें सबको हटा दिया
  • यदि आप यह कहते हैं कि पहले आप जनेऊ पहनीय तभी आप शिक्षा देंगे तो इस तरह हम पूरे विश्व को एक साथ देकर नहीं चल सकते
  • भारतीय संस्कृति विश्व संस्कृति है तथा इसमें सभी संप्रदायों की गुंजाइश रहती है

गुरुदेव के बताएं 12 संस्कारों में से यदि कोई व्यक्ति केवल 10 संस्कार ही करना चाहे तथा दो को छोड़ना चाहे तो क्या वह ऐसा कर सकता है

  • पहले गर्भाधान संस्कार था परन्तु आज संयम ही नहीं रहा तो इस का आज के समय में उपयोग नहीं होता
  • समय के सापेक्ष में अपने संस्कारों का मखौल नहीं उड़ाना
  • orthodox (रुढीवादी) जहा रहेगे तो संस्कृति वघ नष्ट हो जाएगी

वेदो में इनको compulsary बताया है तो इसे Bypass कैसे कर सकते है अन्यथा यह Controversy हो जाएगी

  • Controversy बिल्कुल नहीं होगी, बिल्कुल तालमेल है, विज्ञान तो एक ही रहेगा तथा यहा केवल विज्ञान बता रहे है कि संतति पर आपके DNA का प्रभाव पडता है
  • केवल जनेऊ मात्र पहनने से बात नहीं बनती
  • कर्मकांड और वैज्ञानिकता को साथ लेकर चलना है
  • कुसंस्कारी लोग / Negative Thought वाले / कुविचारी व्यक्ति / रोगी व्यक्ति तेजस्वी संतान नहीं दे सकते यह पूर्ण रूप से वैज्ञानिक तथ्य है, विज्ञान सदैव शाश्वत रहेगा
  • भारतीय विज्ञान के दर्शन का उपयोग वैज्ञानिक है
  • केवल कर्मकाण्डो से कोई आत्मज्ञानी नहीं बनता, चरित्र – चिंतन – व्यवहार में परिवर्तन लाना होगा तथा शपथ समारोह अधिक काम की चीज है / अधिक महत्वपूर्ण है
  • गुरुदेव ने कर्मकांडों को कम महत्व दिया है परन्तु कर्मकाण्डो से जनश्रृद्धा विकसित होती है परंतु गुरुदेव ने इसकी वैज्ञानिकता को अधिक महत्व दिया है
  • कभी कभी कर्मकाण्ड समप्रदाय भी बन जाता है
  • गुरुदेव ने मूर्ति स्थापना भी कराया परंतु मूर्ति का ध्यान नहीं कराया, केवल सविता का या निराकार का ध्यान ही करवाया
  • यदि पूरे विश्व को लेकर चलना है तो अपने को लचीला रखें     🙏

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