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पंचकोश जिज्ञासा समाधान (28-10-2024)

पंचकोश जिज्ञासा समाधान (28-10-2024)

आज की कक्षा (28-10-2024) की चर्चा के मुख्य केंद्र बिंदु:-

स ह वै उपनिषद् में आया है कि न मांस खाए, न स्त्री की निंदा करे, न घृणा करे, न झूठ बोले, ऋतुकाल के पश्चात स्वस्त्री के साथ यज्ञ करे, ब्राह्मण पयोव्रत अथवा उपवास करे, क्षत्रिय यवागू (दलिया या लस्सी) का सेवन करे, वैश्य आमिछा (मठ्ठा या छाछ) सेवन करे, सौम्य और हिसांदि विचारों से मुक्त रहे, यज्ञ में ये व्रत कहे गए है, का क्या अर्थ है

  • बाह्मण क्षत्रिय वैश्य सभी के लिए अलग अलग उपवास बताया है
  • बाह्मण – आत्मानुसंधान में लगे साधक -> वे दुध पर रहे (पयोव्रत) (पय = दुध)
  • जो क्षत्रिय (Defence में) है तो केवल दुध से काम नही चलने वाला तो वे जौ (यवागू) की रोटी / दलिया पर रहे, जौ सात्विक है तथा जौ में बल भी है
  • वैश्य छाछ पर रहे, छाछ खट्टा है, वायु तत्व को बढ़ाता है तथा वायु में गतिशीलता है, उन्हे यहा से वहा (Travel) अधिक जाना होता है
  • पत्नी के साथ यज्ञ = बृहदारण्यकपनिषद् में सहवास को भी यज्ञ कहा गया

बह्मविद्योपनिषद् में आया है कि हंस की 8 प्रकार की वृत्तियां होती है, हृदय स्थित अष्ट कमल में विभिन्न प्रकार की विभिन्न वृतिया विराजती है, इसके पूर्व दल में मति, अग्नेय दल में निद्रा और आलस्य, दक्षिण दल में स्थूल मति, नैऋत्य दल में पाप बुद्धि, पश्चिम दल में क्रीडा वृति, वायव्य दल में गमन करने की बुद्धि, उत्तर दल में प्रीति, ईशान दल में द्रव्य दान की वृति, मध्य दल में वैराग्य की वृति, का क्या अर्थ है

  • वृति = बहिरंग भाव को वृति कहते है, सांसारिक व्यापार जब मन करता है तो इसे वृति कहते है ।
  • बाहरी संसार में रहते हुए क्रोध करना, साधना करना आदि कर्म करने पड़ते हैं
  • उत्तर दिशा = सहस्तार = परबह्म की दिशा = आत्मसाधना = सबसे उपर
  • अन्य दिशाओं में भी संभव है परन्तु फिसलन है, जैसे हिमालय में फिसलन से बचने के लिए छडी अनिवार्य है

आगे आया है, जिस प्रकार इसका ऋषि हंस है, गायंत्री छदं है और देवता परमहंस है, हं बीज है और स शक्ति है और सोहम कीलक है, का क्या अर्थ है

  • कीलक = दो पल्लो को जोडने वाला
  • Connecting Link को कीलक कहते है
  • जीव व ईश्वर को जोडने वाली प्रक्रिया में अवग्रह (सोहम्) को कीलक कहते है
  • जैसे तत् त्वम असि में असि कीलक है
  • सुर्य केवल आग का गोला भर नही है उसमें ओजस तेजस वर्चस भी है, सुर्य में कुछ आध्यात्मिक गुण है जो देवत्व प्रदान करते है
  • सविता देवता से प्रार्थना की गई है कि वे हमें शारीरिक आरोग्यता, मन की तेजस्विता व आत्मा की पवित्रता प्रदान करे, सुर्य के आध्यात्मिक गुणो से देवत्व संवर्धन की बात यहा की गई है

जाबालदर्शनोपनिषद् में आया है कि हे मुनिश्वर नाभी कंद से दो अंगुल नीचे कुण्डलिनी स्थित है तथा उसके 2 अंगुल नीचे स्थित कुण्डलिनी को अष्टरूपा कहा गया है . . . का क्या अर्थ है

  • यहा नाभी कंद एक ही Variety का न माने
  • नाभीकंद (मणिपुर + स्वादिष्ठान) के 2 अंगुल नीचे मूलाधार में कुण्डलिनी है इसमे Lumbar के साथ Sacral भी जुड़ा है, इसी को नाभी कंद यहा कहा है, इसके नीचे Cocyx Region (मूलाधार) में कुण्डलिनी का वास बताया है
  • केवल मणीपुर को Solar Plexus कहा है
  • L4 + L5 के साथ Sacral का S1 व S2 भी जुड़ा हुआ है -> ये चारो मिलकर गुच्छक बनाता है तभी कुछ लोग दोनो (Lumbo – Sacral Plexus) को जोड़ लेते है

गीता के 6 वे अध्याय के 26 वे श्लोक में आया है कि यह स्थिर न रहने वाला चंचल मन जिस जिस शब्दादि विषय के निमित्त से संसार में विचरता है उस उस विषय से इसे बार बार हटाकार परमात्मा में ही निरुक्त करे, तो यही तो कठिन है

  • अर्जुन ने कहा है कि कठिन है, हवा को रोकने जैसा
  • कठिन इसलिए है कि मन बहुत तेज गति से दौडता है
  • तेज गति की कार को नियंत्रण करना कठिन है तो मन की गति तो प्रकाश से भी अधिक है
  • मन विचारो की Firing करता है
  • मन की गति से तेज गति वाला (आत्म शक्ति वाला) उसे रोकेगा तथा नियंत्रण करेगा
  • मन घोडे की भाति ईधर उधर दौड रहा है तो उस घोडे को चाबुक व नथुने से बलपूर्वक नियंत्रण करना ही प्रत्याहार कहलाता है तथा प्रत्याहार में मन को बल पूर्वक खीचना होता है
  • मन पर ज्ञान का बल लगता है / तत्वज्ञान से मन को खींचना होता है, जहा मन जा रहा है उसकी वास्तविकता वह नही है, वह Plastic का घास है तो मन को तत्वज्ञान से बताना पड़ता है तभी भटकाव बंद होगा
  • बिना तत्वज्ञान के समझ में नहीं आता

कंद मूल निवासिनी कुण्डलिनी का वास कहा पर है, यदि मूल का अर्थ उदगम से समझे तो शिशु के शरीर की उत्पत्ति माँ के गर्भ में नाभी से होती है तथा वह माँ के गर्भ में नाभी से ही भोजन लेता है तो इसके अनुसार तो कुण्डलिनी का मूल स्थान नाभी (मणीपुर) में होना चाहिए, कृप्या स्पष्ट करे

  • नाभी कंद में कंद शब्द का प्रयोग हुआ है, जहा कंद शब्द आ गया तो समझे कि उसमें तीनों (मणीपुर + स्वादिष्ठान + मूलाधार) शामिल हैं
  • जहा कदं शब्द आया तो कदं कोई Point नही होता है जैसे शक्करकदं, जिमीकदं . .
  • कदं एक Point ना होकर बडा Area होता है
  • कदं का मूल = तीनो के भीतर में रहने वाला Center (गर्भगृह) को मूल कहते है
  • नाभी हम किसे माने -> ढोड़ी को या मूलाधार को -> नख से शिख तक शरीर का Center कहा पर है तो जहा मोड होंगा वही धुरी मानेंगे तो यह Middle Line मूलाधार पड़ता है, उसे मां की नाभी से न जोड़ें
  • क्योंकि कश्यप ऋषि नाभी से नही, प्रकाश से उत्पन्न हो गए, इनके अलावा जितने भी मानस पुत्र हुए कोई भी माँ के गर्भ से नही आया
  • यदि वहा हम माँ को नाभीकंद ले लेते है तो माँ को सविता या परबह्म मानना होगा
  • यदि Physical शरीर को देखे तो यह नाभी भी एक Brain है एक Brain यहा नाभी में होता है, Secondary Brain है, यहा भी 50 करोड़ Neurons है
  • यदि नाभी Compulsory रहता तो Life Time वह व्यक्ति नाभी से ही खाता
  • कदं मूल कुण्डलिनी शब्द में Human Body का Center देखा जाएगा कि कहा पर है
  • नाभी से जुड़ी वह नली (Cord) आगे जाकर सीधा Liver में जाता है क्योंकि उसमे रस जा रहा है
  • इस शरीर के भीतर माता पिता आत्मा को नही जन्मा रहे है, केवल शरीर को जन्म दे रहे है, कुण्डलिनी एक बिजली की शक्ति है तथा कंद मूल निवासिनी मूलाधार है
  • यहा तीनो को मिलाकर कदं मानिए तब दोनो परिभाषाओं में यह Fit हो जाएगा
  • नाभी हमारा Vegus Nerve के द्वारा Brain से Link है तभी यदि हमें कोई शोक समाचार मिले तो हमें भूख तक नहीं लगती या भोजन ले ले तो भोजन अच्छे से हजम नही होता अन्यथा पेट का मस्तिष्क से भला क्या संबंध हो सकता है
  • सबका सबसे लिंक है तथा फिर भी शरीर का Center भी देखे तो वह नाभी के नीचे (मूलाधार) ही पड़ रहा है
  • यदि एक अन्य तरीके से देखे कि यदि तीनो चक्रो को यदि कंद माने तो उस कंद का मूल कहा पर हो सकता है -> वह मूलाधार ही होगा
  • कुण्डलिनी को मूल ( भौतिक शरीर का मूल नाभी ) निवासिनी नहीं अपितु कदं (मणीपुर + स्वादिष्ठान + मूलाधार) – मूल निवासिनी कहा गया है, इसलिए केवल नाभी को ही मूल मानकर कुण्डलिनी का वास मणीपुर में नहीं मान सकते

गुरुदेव ने कहा है कि मंत्र दीक्षा बैखरी वाणी से दी जाती है तथा अग्नि / प्राण दीक्षा में मध्यमा / पश्यन्ति का प्रयोग होता है तथा इसमें गुरु अपना प्राण शिष्य में बीज रूप में शिष्य के प्राण में घोलता है, पश्यन्ति हृदय की वाणी है, बह्म दीक्षा में परा वाणी उपयोग की जाती है, जब स्वपन में ही हमारे प्रश्नो का समाधान मिलता है तो यह कौन सी वाणी है

  • मन तदगतेन न मनसा पश्यन्ति
  • अपने विचार किसी विषयों से जुडे रहते है, परिमित / सीमित होते है
  • उस सीमित को वही तोड सकता है जो असीमित हो
  • तो अपना विचार जब समष्टि मन से जुडता है तो पश्यन्ति बन जाता है तब समष्टि मन Guide करने लगता है तथा वह समष्टि मन समाधान दे देता है
  • स्वपन में जो समाधान मिलता है वह पश्यन्ति वाणी ही है जो अवचेतन मन के साथ मिलकर (समष्टि मन के साथ मिलकर) समाधान खोज लेता है, जिस पर अपना नियंत्रण नहीं है
  • समष्टि मन ही सभी समाधान देता है चाहे वह भौतिक हो या आध्यात्मिक हो, उसी को पश्यन्ति मन कहते है

शरीर में विद्यमान चक्र नीचे नुकीले व उपर खुले होते है, प्रत्येक चक्र जब नीचे से उपर या Limited से Unlimited की ओर बढ़ता है तो उसका विस्तार उस बिन्दु पर मूलाधार से सहस्तार तक हो रहा है, क्या ऐसा मान सकते है

  • जहा पर Dipole बन रहा हो, वहा पर उस Point के लिए एक मध्य बिंदु आएगा, जैसे ईडा पिंगला के मध्य में सुष्मना आता है
  • जहा दोनो जुडा है वह कीलक होगा तथा वही जड़ भी होगा
  • यदि हम चक्र को एक शरीर माने तो उसका अपना Nucleus होगा तथा इसी प्रकार पूरे शरीर का Nucleus भी ढूढ़ना होगा, इसी Center Point के आधार पर आर्केमैडीज ने लीवर का सिद्धान्त दिया था तथा इसी आधार पर कहा था कि एक उंगली पर पूरी पृथ्वी को उठा सकते है

क्या वाग्मय १३ पंचकोशी साधना – महाविज्ञान तृतीय भाग का ही विस्तारित स्वरूप है या फिर दोनों को अलग अलग पढ़ना है ?

  • तृतीय भाग का ही विस्तारित रूप हैं
  • फिर भी अलग-अलग पढ़े क्योंकि वांग्मय 13 में गायंत्री मंजरी वाले 46 सुत्र संकलित नहीं है
  • बाकी सब वांग्मय 13 में मिल जाएगा

अथातो ब्रह्म जिज्ञासा की इच्छा कब और कहा से उत्पन्न होती है कृपया प्रकाश डाला जाय

  • जब साधक को सांसारिक थपेडो से लहु लुहान होगे तब इच्छा जगती है
  • अथातो बह्म जिज्ञासा ->
    जब अथ होगा (सांसारिक थपेड़ो से लहुलुहान होगा), तब वह जिज्ञासा जगेगी इससे पहले नहीं
  • इसलिए प्रकृति इतना पीटती है कि व्यक्ति पस्त हो जाता है

मेरी कलाई और घुटने मूव करने पर कट कट बोलता है,इसका क्या मतलब है।प्राणायाम करते समय कभी कभी कान लगता है जाम हो गया, कभी कान से हवा निकल जाता है

  • महामुद्रा महाबंध महावेध का Practical करना है तब कान का समस्या खत्म होगा
  • जहा कट कट बज रहा है, वहा पर Air फंसा होता है तथा कोई Tendon  जरूर बीच में आ रहा है, जो छटकता है     🙏

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