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पंचकोश जिज्ञासा समाधान (27-12-2024)

पंचकोश जिज्ञासा समाधान (27-12-2024)

कक्षा (27-12-2024) की चर्चा के मुख्य केंद्र बिंदु:-

ईशावास्योपनिषद् में आया है कि जो लोग असम्भूति की उपासना करते है वे लोग घोर अंधकार में घिर जाते है, जो केवल सम्भूति की उपासना करते है वे भी घोर अंधकार में घिर जाते है, का क्या अर्थ है

  • सम्भूति = सृजन
  • सृष्टि परिवर्तन शील है, यदि किसी एक चीज का सृजन कर दिए तो वह कालांतर में अनुपयोगी हो जाता है तब उसको गलाकर नया बनाना पड़ता है
  • Einestein ने कहा था कि उर्जा की एक सीमित मात्रा है, उसे हम घटा या बढ़ा नहीं सकते, रुपांतरित हो सकता है
  • यदि हम Einestein की बात को महत्व दे तथा वेद को नहीं, वेद में, पुरुसुत्त में आया है कि ईश्वर के एक हिस्से में ये सारी ब्रह्माण्डिय क्रियाएं चल रही है
  • हमें दोनो तरह की विद्याएं जाननी चाहिएं
  • CO2 को O2 मे बदलने की प्रक्रिया पेड पौधे करते है, सृजन के साथ में परिवर्तन भी करना होगा, गलाई + ढलाई दोनो अनिवार्य है
  • हमारी भारतीय संस्कृति (सनातन) इसलिए बनी रहती है क्योंकि यह हर घाट पर नहाकर नया रूप ले लेती है
  • जैसे अभी की वेशभूषा में महिला व पुरुष एक ही जैसे कपड़े पहनने है जैसे मिलट्री में, पहले घुडसवारी करते थे
  • आज के समय में हमें दोनो व्यवस्थाए जाननी चाहिए – सृजन के साथ विनाश भी अनिवार्य है
  • राम राज्य बनाने के लिए लंका दहन भी अनिवार्य है, राम ने दोनो काम किया, धर्म की जय हो, यह तो ठीक है परन्तु अधर्म का नाश भी हो
  • यदि हम यह कहे कि यदि धर्म की स्थापना हो जाएगी तो अधर्म स्वयं ही समाप्त हो जाएगा परंतु वास्तव में उसे स्थिति में भी अधर्म ज्यों का त्यों बना रहेगा
  • केवल सृजन ही नहीं अपितु विनाश भी अनिवार्य है, Recycling प्रक्रिया में दोनो जाननी चाहिए नही तो फिर फंस जाएंगे
  • सनातन धर्म में जो भी मरा तो उसे अग्नि से वायूभूत कर दे तो अधिक जगह भी नही लगती
  • पुरानी बाकी संस्कृतिया इसलिए समाप्त हो जाते है क्योंकि Recycling प्रक्रिया में उन्हें दिक्कत होती है, वे वेद के अनुसार नहीं चलते

परमहंसपरिवाज्रकोपनिषद् में आया है कि ब्रह्मा जी अपने पिता आदि नारायण से प्रश्न कर रहे है तो आदिनारायण को हम क्या समझे

  • आदिनारायण = विराट
    पुरुसुक्त से हम देखे, वेदो से ही उपनिषद् निकले है
  • आदिपुरुष = ब्रह्मा विष्णु महेश

परमहंसपरिवाज्रकोपनिषद् में आया है कि स्वस्थ क्रम से आत्मश्राद्ध एवं विरजा होम (संन्यास ग्रहण के लिए किया जाने वाला यज्ञ विशेष) करके अग्नि को आत्मा में आरोपित करके अपनी लौकिक और वैदिक सामर्थ्य को तथा अपनी चतुर्दशकरण प्रवृति को पुत्र में आरोपित करे, का क्या तात्पर्य है

  • इसका तात्पर्य है कि विधिवत अधिकृत हो ताकि समाज भी उसे जाने तथा व्यवस्था की सारी विधी उसे बताई जाए
  • जैसे व्यापार में यदि नए पद को सभालने वाले ठीक से कार्य करना या ग्राहक से अच्छे से व्यवहार करना नहीं जानते तो कभी कभी नुकसान भी होता है
  • इसलिए किसी को भी हम जिम्मेदारी देते हैं तो विधिवत् रूप से सांगोपान जानकारी दे
  • समयदान के लिए आए साधक / परिवाज्रक को ऐसे ही बाहर मत भेजे, पहले उसे अच्छे से Training दे, फिर बाहर भेजा जाए

निरालम्बोंपनिषद् में जब इस चैतन्य स्वरूप ईश्वर को ब्रह्मा विष्णु रुद्र तथा इन्द्रांदि नामों से रुपो के द्वारा देखकर मिथ्याभिमान हो जाता है कि मै स्थूल हूँ तब उसे जीव कहते है, यह चैतन्य सोहम् स्वरूप में एक होने पर भी शरीरों की भिन्नता के कारण जीव अनेक विध बन जाता है, का क्या अर्थ है

  • निरालम्बोपनिषद् में उपर आया है कि सर्वम खल्लुइदम ब्रह्म -> जो कुछ भी हम इस संसार में देख रहे हैं वह सब ब्रह्म है तथा ब्रह्म एक है परन्तु हमें यहा अनेक जीवो, पेड़, पौधो वनस्पतियों के रूप में दिख रहा है
  • यहा सब दिख भी अलग-अलग रहा है तथा अलग-अलग व्यवहार भी कर रहा है तो सामान्य व्यक्ति और भी अधिक भम्र में पड जाता है
  • ऐसे जीवो के अलग अलग व्यवहारों को देखते हुए केवल ज्ञानी व्यक्ति ही टिक पाएगा, नही तो यही लगेगा कि सब ब्रह्म कैसे हो सकते है
  • ब्रह्म ने अपने आनन्द के लिए सृष्टि बनाई, दुसरी कोई सत्ता यहा नहीं है
  • जवाला में से चिंगारियां निकलती है
  • गायंत्री मंत्र का जप जब हम करते हैं तो अपने आभामंडल से भी कुछ चिंगारियां, Radiation / Thoughtron के रूप में निकलने लग जाती हैं, इसी प्रकार जब वे ईश्वर एक आकाश तत्व के रूप में थे तब ईश्वर/ब्रह्म ने एक से अनेक बनने के लिए अपने भीतर में से कुछ चिंगारियां निकाली तो ये आत्मा रूपी चिंगारियां भी उन्ही का आकाश है तथा उसी में तर रहा है, इसलिए यह दो तो हुआ नहीं
  • बुद्धि नामक प्रकृति से भिन्न भिन्न लोको की (शरीरों की) (गाड़ी की) रचना की, तथा स्वयं उस गाड़ी में ड्राइवर बनकर चिंगारी के रूप में घुस गए
  • कुछ दिन कालांतर में छोटी चिंगारी के रूप में एक Limited Body (स्थूल शरीर) में रहते रहते उसे यह भ्रम हो जाता है कि मै इतना ही Limit तक हूँ
  • यदि सोहम् भाव में रहता तब तक कोई दिक्कत नहीं होती
  • एक Limited जानकारी में रहते रहते गाड़ी में बैठा ड्राइवर अपने को गाड़ी मानने लगता है
  • जब हमें विभिन्न शरीरो में रहकर यह भ्रम हो जाता है तो ब्रह्मा विष्णु महेश चाहे जो भी हो, वे सभी जीव कहलाने लगेगे
  • चावल पर छिलका लगने से उसका नाम बदल कर धान हो जाता है
  • इसी प्रकार स्वयं को (आत्मा को) अन्नमय, प्राणमय, मनोमय, विज्ञानमय, आनन्दमय कोशो से आवृत कर लिया कि मै शरीर हूँ तो आप जीव कहलाएंगे
  • मै शरीर नही बल्कि उसके भीतर उसका मालिक हूँ तथा शरीर कभी भी छोड दुंगा तो उस अवस्था में आप शिव ही बने रहेंगे

महोपनिषद् में आया कि बीज की अंकुरावस्था को प्राप्त करने के समान ही चेतन विषयों को स्वयं से अलग सा मानते हुए वह संकल्पावस्था को प्राप्त करता है तथा संकल्प से उसकी क्रिया अपने आप ही प्रकट होती है और वह स्वयं ही शीघ्रा अतिशीघ्र वृद्धि को प्राप्त होता है, का क्या अर्थ है

  • जब हमने यह कहा कि
  1. ईश्वर के सिवा दूसरा यहा कुछ नहीं है
  2. सर्वम खल्लुइदम् ब्रह्म
  3. ला इलाहा इलइलाहा -> यह उर्दू का शब्द है
  4. There is no Other But GOD
    तथा इन सभी का यही अर्थ है कि यहा ईश्वर के सिवा कोई दूसरा नहीं है तथा यही सत्य है, सत्य तो बोलना ही होगा चाहे उसे आप हिंदी में कहे, संस्कृत में कहे या उर्दू में कहे, English में कहें -> सत्य वही रहेगा
  • जब सब जगह ईश्वर ही है तो वह जड है या चेतन, कोई वस्तु हो या अन्य कोई भी हो, यहा पर फिर भ्रम होगा परन्तु जिस दिन आप मान लेंगे कि यह अलग है मै अलग हूँ तब उसे पाने की इच्छा वहा उठने लगेगी तथा द्वैत भाव आने लगेगा / द्वैत भाव जन्म लेगा
  • द्वैत भाव का होना ही ब्राह्मण्त्व का मरना है
  • कुछ नया हो तो जाने, जहां जानने की प्रक्रिया शुरू हो गई तो वहां संकल्प शुरू हो गया और वृत्तिया आ गई तथा फिर उसमें फंसना निकलना शुरू हो गया
  • अद्वैत में रहने में ही भलाई है
  • व्यवहार करते समय भी अद्वैत की स्थिति में रहेकोई यदि आपसे आपकी जानकारी पूछे तो उसे अपना नाम तो बताएं क्योंकि उसे आपके लौकिक नाम से मतलब है, यदि उससे कहेंगे कि में आत्मा हूँ तो उसे Tension हो जाएंगी परंतु भीतर ही भीतर यह भी दिमाग में सोचते रहे कि मैं झूठ बोल रहा हूं, भीतर ही भीतर यह सोचे कि यह झूठ है कि मै नागेन्द्र हूँ, यह नाम मेरा जन्म लेने के बाद पड़ा था, जन्म से पहले भी तो हमारी सत्ता थी
  • इस प्रकार हम व्यवहार करते हुए भी, संसार रूपी माया से परे रह सकते हैं

वांग्मय 22 में आया है कि सामान्यतः मनुष्य जीवित लोगो से ही सम्पर्क रख सकने में ही समर्थ होता है परन्तु यदि मनोमय कोश का धरातल कुछ ऊंचा हो जाए, तो उस विश्व ब्रह्माण्ड में परिभ्रमण करती हुई अनेकानेक दिवंगत आत्माओं से सम्पर्क सध सकता है और एक एक लोक के साथ घनिष्ठ संबंध रह सकता है, जिसके बारे में अब तक नहीं के बराबर जानकारी रही है, मोटे तौर पर यही समझा जाता है कि भूत प्रेत कही शमशान पीपल या खण्डर में बैठे रहते हैं तथा जिस किस को डराकर कुछ पूजा पत्री ऐठते रहते हैं पर गहरी जानकारियो ने बताया कि उनका एक सुविस्तृत लोक अपने इस

मनोलोक जैसा ही है, जहा के निवासी जीवित मनुष्यों की तरह से सेवा सहायता भी करते रहते है, उन्हे पूर्वाभास कराते और मुसीबतो से बचाते हुए अप्रत्याशित सुविधाओं का सुयोग बैठाते हैं, विकसित सुख शरीर के तंत्र विज्ञान के माध्यम से इनके साथ सफलतापूर्वक संबंध सध सकता है, हम तो यह मानते है कि भूत होती ही नहीं है तो उनका लोक मनुष्य लोक जैसा कैसे होता है तथा क्या यह बताई गई तंत्र साधना, मनोमय कोश के Practical जैसा ही है या ये तांत्रिक साधना है

  • इसे तांत्रिक साधना ही कही जाएगी
  • तंत्र का अर्थ यहा यह है कि यहा इस सारे Universe का जो पसारा है वह एक System है उस पर अपनी आत्म शक्ति से नियंत्रण कर लाभ लेना है,यह तंत्र महाविज्ञान है
  • भारत जगत गुरु जब बना था तो तंत्र विद्या के आधार पर ही बना था, कही से आग पैदा करना या आग से आदमी पैदा कर लेना -> सारे पदार्थ जगत के परमाणुओं पर भी अपनी आत्मा के द्वारा नियंत्रण कर रहा था
  • एक साधारण सा तीर केवल संकल्प शक्ति के आधार पर पानी बरसाने या अग्नि बरसाने लगता था
  • आत्मसंकल्प के आधार पर प्रकृति / पदार्थ के परमाणुओं में हलचल / परिवर्तन कर उत्पन्न कर सकते थे, मंत्रो के आधार पर ये परिवर्तन होते थे
  • मंत्राधीनम् च देवता -> जो भी Divine Particle है ( जो संसार के सभी घटक है) वे सब देवता हैं
  • ऐसे भी साधक / योगी मिलते है जिन्होंने अपने चक्रो से काम लेना शुरू कर दिया है, कुण्डलिनी जागरण में चक्रो की जरूरत पड़ती है, हर चक्र अलग अलग लोको से भी जुडा है
  • मूलाधार भूलोक से जुड़ा हुआ है
  • स्वादिष्ठान भुवः लोक से जुड़ा हुआ है . . .
  • जो अन्य शरीरो में जैसे Bioplasmic Body, Cosmic Body, Astral Body, Causal Body में जो अंतरिक्ष में टहल रहे है, वे अपने जैसे लोगों से बातचीत करते रहते हैं, वे सभी इसी Universe में है, वो हमें देख लेगे परन्तु हम उन्हे नहीं देख पाएंगे
  • पूज्य गुरुदेव को इनसे सम्पर्क साधने का महारथ हासिल था, वे अदृश्य जगत में कहीं से भी सम्पर्क कर लेते थे, शांतिकुज में 2% रहते थे तथा 98% बाहर रहते थे
  • एक बार गुरुदेव ने कहा कि वे एक साथ पांच जगह प्रवचन कर रहे हैं
  • पदार्थ जगत पर Control करने की विधा अपनी संकल्प शक्ति से है
  • अन्य लोको से भी सम्पर्क साधने की विधा है
  • परिक्षित गर्भ में ही मर गए थे परन्तु आत्मा तो टहल रही थी, इसी आत्मा को चेतना के Particle भी कहा जाता है
  • चेतना के Particle हर जगह विद्यमान रहते है तो कृष्ण ने इन चेतना रूपी Particle (आत्मा) को बुलाकर फिर से उसके शरीर में डाल दिया, इस विद्या में वे पारंगत रहे थे, गुरदेव ने भी अनेक मृतको को इसी विद्या से जीवित किया था
  • एक व्यक्ति ने प्रेतो को सिद्ध कर लिया था
  • प्रेत 1 घंटा में 200 – 2000 Miles प्रति घंटे तक चल सकता है, वह प्रेत जानकारी का पता लगाकर ले आता था
  • इस प्रकार प्रेतो को भी सिद्ध किया जाता है तथा यह सब तंत्र साधना के अंतर्गत आता है, यह सभी चेतना के Particles हैं
  • ऋषियों का इस विद्या पर तथा भौतिक विज्ञान पर भी Command रहता था, जैसे मारीची ऋषि ने कश्यप ऋषि को आकाश में से ही पैदा कर दिया था क्योंकि चेतना के Particles तथा पदार्थ के पांचो तत्व भी आकाश में परमाणुओं के रूप में उड़ती धूल के रूप में है तो उसको इक्कठा कर दिया तो शरीर बन गया तथा Will Power से आत्मा (चेतना के Particle) को उस शरीर के भीतर डाल देते थे तथा इस प्रकार वे कही से कुछ भी पैदा कर लेते थे

नाड़ी शोधन प्राणायाम का लाभ सामान्यतः कितने समय में मिलता है इसको कम समय में प्राप्त करने का सहज और सरल तरीका क्या है कृप्या प्रकाश डाला जाय

  • नाडी शोधन का लाभ हर सास में मिलता है
    कम होता है तो हम उस कम लाभ को पकड नहीं पाते है
  • जो भी प्राणायाम हम करते है चाहे एक मिनट, आधा घंटा या एक घंटा किए तो वह उसी समय लाभ देना शुरू कर देता है क्योंकि यह एक विज्ञान है -> हमने प्राण को खींचा है, कुंभक किया गर्मी बढ़ी Toxines खत्म होगे तथा प्राण शक्ति बढ़ेगी
  • यदि हमें अधिक जकड़न है या शारीरिक समस्या अधिक है तो पूरा ठीक होने में समय लगता है तथा जब पूरा ठीक होता है तब हम कहते है कि अब हमें लाभ मिला
  • परन्तु लाभ मिलने की प्रक्रिया प्रतिदिन ही चल रहा है, बडा लाभ मिलने में समय लगा तथा जब वह हमें कुछ दिनों बाद मिला तो हम कहते है कि आज वह लाभ मिला परंतु वास्तव में हर सांस हमें लाभ देता है
  • प्राणायाम केवल सांस से ही नहीं अपितु Thought के माध्यम से भी होता है, सोहम् भाव से भी होता है
  • जब हम जप कर रहे हैं तो Meditation में ध्यान कर रहे हैं कि सविता का तेज आ रहा है, शरीर में ओजस बढ़ रहा है ->शरीर निरोग हो रहा है, तेजस बढ़ रहा है -> दिमाग Brilliant बना रहा है तथा वर्चस की किरणे आत्मा को पवित्र बना रही है, इस प्रकार सोचा भी जा रहा है तो भी यह प्राणायाम हो रहा है
  • इस प्रकार जप के माध्यम से Mental प्राणायाम चल रहा है
  • माधवाचार्य ने 13 साल तक इस प्रकार करने पर भी सिद्धी नहीं मिली फिर भैरव मंत्र से 1 साल में सिद्धी मिल गई तथा वर देने के लिए भैरव सामने नहीं आ सकते थे
  • तब समझे कि उनकी तपस्या पिछले जन्मों के कर्मो को गलाने में लग गई
  • फिर एक साल और साधना किए तो गायंत्री की सिद्धी मिल गई तथा फिर माधव निदान ग्रंथ लिखे जो औषधिय प्रणाली की जानकारी में उपयोगी है

गीता के 13वे अध्याय के 24वे श्लोक में सांख्ययोग और नियत कर्म योग के बारे में बताया गया है, कृप्या इस पर प्रकाश डाले 

  • इसमें बताया गया है कि यदि हमें ज्ञान मिल गया, आत्मज्ञान मिल गया, ज्ञानी बन गए तो इसमें आत्मा की जानकारी, स्थिरप्रज्ञ की स्थिति बताई गई है, आत्मा न मरती है न जन्म लेती है
  • यह सब जान गये तथा साधना कर वैसा बन गए तो भी जब तक शरीर है तब तक नित्य नैमतिक कर्म करना ही पड़ेगा
  • नित्य नैमतिक कर्म में यज्ञ तप व दान आता है
  • जो यज्ञ नहीं करते उसका तेज नष्ट होता है
  • यज्ञ का अर्थ छोटे स्वरूप में न ले, श्री कृष्ण ने यहा यज्ञ के 14 प्रारूप बताए है
  • संसार के लोगो को भी ज्ञान दे, स्वयं ज्ञानी बन गए तो वह काफी नहीं, समाज के लिए हमने क्या किया, यह महत्वपूर्ण है तथा यह सब भी हमारी जिम्मेदारी है

क्या प्रेतो को अपने वश में करके उनसे अपना कार्य लेना क्या सही है या गलत

– गलत नही है, गुरुदेव भी प्रेतो से मिलता करके अपना कार्य लेते थे

  • गुरुदेव के अखंड ज्योति प्रकाशन के लिए पेज भी प्रेत ले आते थे तथा सारी व्यवस्था संभालते थे
  • देवऋषि नारद, तुलसीदास, सुकरात तथा मैडम ब्लावट्स्की के पास भी प्रेत/Demon थे
  • ऐसे भी हमारे साथ भी प्रेत रहते है, पितर लोग हमारा सहयोग करते रहते है, हम लोग उसे value नहीं देते कि अचानक हमें यह सहयोग कैसे मिल गया, ये सभी पितर लोग ही हमारा सहयोग करते रहते है, जो कल्याण कारी होते हैं उन्हे पितर कहते है      🙏

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