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पंचकोश जिज्ञासा समाधान (27-11-2024)

पंचकोश जिज्ञासा समाधान (27-11-2024)

कक्षा (27-11-2024) की चर्चा के मुख्य केंद्र बिंदु:-

वांग्मय 20 में प्राण शक्ति को ग्रहण करने की विधी में आया है कि विश्व के समस्त पदार्थ स्फुरण कम Vibration में है, छोटे छोटे परमाणु से लेकर बडे से बडे सुर्य तक सभी स्फुरण की दशा में है, प्रकृति में कोई भी वस्तु पूर्णतया स्थिर नहीं है, यदि एक परमाणु भी कंपन रहित हो जाए तो सारी सृष्टि नष्ट हो सकती है, मानव शरीर के परमाणुओं में भी अनवरत स्फुरण होता रहता है, सदैव अनन्त परिवर्तन हुआ करते है, जिन परमाणुओं से यह शरीर बना है उनमें थोड़े ही दिनों में पूरा परिवर्तन हो जाता है, आज जिन परमाणुओं से हमारी देह बनी है, कुछ महीनो के बाद उनमें से शायद एक भी शेष नहीं रहेगा, बस स्फुरण लगातार स्फुरण, बस परिवर्तन लगातार परिवर्तन, इसमें कुछ दिनो या कुछ महीनो की बात को स्पष्ट करे

  • शरीर छोटी छोटी कोशिकाओ से मिलकर बना है, 2 प्रकार के Cell शरीर में होते हैं
  1. Nerve cell (Neuron)
  2. Body cell (Somatic) [Soma=Body]
  • दिमाग के Neurons नहीं बदलते
  • शरीर में रहने वाली कोशिकाएं स्वतंत्र जीव सत्ता है, उनकी उम्र कम है इसलिए जब वो मरती रहती है तो बराबर भोजन की जरूरत शरीर को रहती है भोजन के आभाव में शरीर निर्बल हो सकता है
  • भीतर एक तरह का शमशान घाट चलता रहता है, पुरानी कोशिकाएं मर रही है तथा नई जन्म ले रही तो परिवर्तन बना रहता है,
  • यदि हमारा खान पान मांसाहारी तो Body Cell तमोगुणी होगा, भोजन के जैसा ही हमारा शरीर बन जाएगा
  • यदि 6 महीने मांस खाना छोड दे तथा सतोगणी भोजन ले तो शरीर के Body Cell में मांस वाले गुण खत्म हो जाते हैं तथा सब सतोगुणी आ जाएंगे, staff बदल गया तो व्यवहार बदलते देखा जा सकता है
  • प्रत्येक अपना कायाकल्प कर सकता है, आहार शुद्धि इसलिए करवाया जाता है

त्राटक ध्यान का एक अंग है अतः त्राटक बाह्य त्राटक व भेदक दृष्टि में क्या अंतर है

  • त्राटक = टकाटक देखना = लगातार देखना
  • दो प्रकार का त्राटक है क्योंकि संसार भी दो प्रकार का है अदृश्य संसार व दृश्य संसार -> अंतः त्राटक (नहीं दिखने वाला)व बाह्य त्राटक (दिखने वाला)
  • देखने वाले को देखेगे तो यह बाह्य त्राटक है
  • नहीं देखने वाले को कल्पना में जाकर देखेगे तो यह अंतः त्राटक, यह अपेक्षाकृत अधिक लाभ देगा
  • भीतर देखने का महत्व अधिक है इसलिए ध्यान को अधिक महत्व दिया गया है
  • भीतर देखना है तो अपने दोष दुर्गुणो को देखे
  • आत्मसमीक्षा तभी बनेगा जब आंख बंद करके हम भीतर भी देखेंगे
  • भेदक दृष्टि = किसी के भीतर ज्ञान की दृष्टि से झांकना, आँखो से भी लगातार बिजली निकलता रहता है, इसी से नजर / टोना भी लगता है भेदक का एक अर्थ छेदना है
  • किसी के भीतर अपने विचारो को भेज कर उसे बदल सकते है
  • जैसे भगवान शिव ने तीसरा नेत्र खोलकर कामदेव को भस्म कर दिया था
  • इसी से मैस्मरिजम / हैटनोटिजम करते है

प्राण पर अधिकार किए बिना लम्बे समय तक स्थिर समाधि नही लग सकती, प्राण पर अधिकार किस प्रकार प्राप्त किया जा सकता है

  • प्राण विचार होता है, मन से जो Electro Magnetic तरंग निकला वह विचार है
  • विचार भी प्राण होता है
  • विचारों में एक मैग्नेटिज्म होता है जो कि अपने जैसे विचारों को इकट्ठा करके लाता है
  • मन से अपनी बात मनवा लेना अधिकार कहलाता है, यदि काम लायक बात मन ने कहा तो मान लिया तो अन्यथा उसे Ignore कर दिया, यही अधिकार है
  • इसी को Command कहते है तथा Command को ही तंत्र साधना कहते है
  • आत्मा का Command यदि मन पर है तो यही अधिकार है
  • आत्म नियंत्रण को ही साधना कहते हैं
  • गुरुदेव ने कहा कि सबसे बड़ा दीन व दुर्बल वही है जिसे अपने उपर नियंत्रण नही है, तंत्र साधना में यही नियंत्रण अपने शरीर व अपने मन पर करना होता है, सारे संसार की सभी System एक तंत्र में आएंगे

सावित्री कुण्डलिनी एवं तंत्र में आया है कि गायंत्री द्वारा योग साधना के पिपलिका मार्ग, दादर मार्ग, विहंगम मार्ग इन पर चलने से क्रमशः परा पश्यन्ति मध्यमा और बैखरी चारो वाणिया प्रस्फुटित होती है, इसके अनेक लाभ है, इस में तीन मार्ग जो बताए है उनका क्या अर्थ है

  • यहा मार्ग का अर्थ गति से है
  • यदि हम साधना कर रहे है 3-4 साल में यदि बहुत धीमी प्रगति हुई तो धीमी प्रगति / धीमा मार्ग चीटीं की तरह है तो पिपलिका मार्ग कहलाएगा
  • चीटीं की गति (पिपलिका मार्ग) से यदि हम चले तो अपने इस जीवन में अधिक दूर तक की यात्रा नहीं कर पाएंगें, हमारा यह छोटा सा जीवन है तथा इसी जीवन में बहुत से काम करने है तो रेंगकर चलने से बात नही बनेगी तो मनुष्यों में ऐसी क्षमता दी गई है, इसलिए कुण्डलिनी जगाया जाता है ताकि गति थोडी बढ़ जाए
  • दादर – मेढक की गति मध्यम गति है, चीटीं से थोडा तेज चलना, यह सामान्य गति है
  • IQ Level कम है तथा Age अधिक है तो यह पिपलिका मार्ग से चलना कहलाएगा
  • Age कम है परन्तु IQ अधिक है जैसे Einestein का IQ सामान्यों से अधिक रहता था, वायुयान मार्ग को विहंगम मार्ग कहते है
  • विहंगम = वायु मार्ग, पक्षी की तरह
  • कुण्डलिनी जागरण का मार्ग विहंगम मार्ग है ताकि हम जल्दी अपने लक्ष्य को प्राप्त कर ले
  • पंचकोश साधना भी विहंगम मार्ग ही है
  • कुण्डलिनी जागरण व पंचकोश जागरण दोनों ही गायंत्री की उच्च स्तरीय साधनाओं में आते है, इसलिए ये दोनो ही विहंगम मार्ग है
  • कुण्डलिनी का अन्य लोको से भी सम्बन्ध है तो इससे साधना पथ में गति बढ़ जाती है
  • वास्तव में ये तीनो मार्ग प्रगति में तीन अवस्थाएं भर है

गायंत्री साधना से मिलने वाले पहले लाभ में परा पश्यन्ति मध्यमा और बैखरी चारो वाणियां प्रस्फुटित होती है तो यहा पहले लाभ में वाणियों को ही क्यों लिया गया

  • वाणी को इसलिए रखा है क्योंकि सारी सृष्टि वाणी से ही चल रही है
  • पकृति में गति है तो गति को कौन ठेल रहा है, यह वाणी ही नियंत्रित हो रहा है
  • देखने में यह पहला लगता है परन्तु अन्त तक भी यही है, सभी ॐ ध्वनि से ही संचालित है

स्कन्दोपनिषद् में आया है कि बंधन में बंधा हुआ जीव होता है और वही कर्मो के नष्ट होने पर सदाशिव होता है अथवा दूसरे शब्दों में पाश में बंधा जीव, जीव कहलाता है और पाश मुक्त होने पर सदाशिव हो जाता है, क्या यहा कर्मो का नष्ट होना उसके भोग विलास का समाप्त होकर ईश्वर की भक्ति में लीन होना है

  • इसे हम इस प्रकार समझ सकते हैं कि जैसे हमारी आत्मा पर पांच परते है, यही पांच परत पाश है
  • चावल में छिलका लगा देगे तो धान कहेगें, छिलका हटा देंगें तो चावल कहलाएगा
  • धान को बोएंगे तो फसल होगी, चावल को बोएंगे तो फसल नहीं होगी, इसलिए पंचकोश साधना में पांचो कोशो को अनावृत किया जाता है, इन कोशो के शुद्ध होने की प्रक्रिया में भोग विलास रुकावट डालते है तथा यही भोग विलास आदमी को परावलंभी बनाकर कमजोर करते जाते है
  • अपने आप को तितिक्षा करके मजबूत करना होता है
  • यहा पर यह बताया गया है कि हम संसार के किसी भी प्रकार के बंधनों में ना रहे, यह बंधन विचार का, भावना का, जाति का, वर्णो का या मान्यताओं का किसी का भी हो सकता है
  • आत्मा का कोई लिंग नहीं होता तथा सभी तरह के बंधनो का खत्म होना ही जीवन मुक्ति / मोक्ष है

मन, बुद्धि और विवेक में से मन में जो बात उठती है, बुद्धि उसे Manage करने के लिए योजना बनाती है, क्या बुद्धि मन की बात को नकार भी सकती है

  • बुद्धि का काम निर्णय लेना है इसलिए बुद्धि, मन से श्रेष्ठ है
  • आत्मिक हित में सोचेंगे तो बुद्धि, विवेक/प्रज्ञा कहलाने लगेगी तब बुद्धि उचित – अनुचित, श्रेय प्रेय का निर्णय लेती है
  • बुद्धि की वह समझदारी चाहे वह शरीर के लिए हो या आत्मा के लिए, हर जगह रहेगी
  • मन बुद्धि विवेक, बारीकी से सोचने पर अलग लगती है पर अलग है नहीं, सभी चेतना की ही अलग अलग Frequencies है
  • दुरदर्शिता को देखकर Decision लेना = प्रज्ञा / विवेक कहलाता है
  • आत्म तत्व से जुडी हुई बुद्धि विकार में भी बह्म को देखेगी, वही रितम्बरा प्रज्ञा कहलाएगा
  • सापेक्ष सत्य को देखने वाला या निरपेक्ष सत्य में रहने वाला -> ये सभी Frequencies के Qualities है, हमें धीरे-धीरे अपने मन व बुद्धि को अधिक प्रांजल बनाना चाहिए ताकि वह हर समय सही निर्णय ले सके

कभी कभी ऐसा होता है कि मन बुद्धि की बात नही मानता

  • मन नौकर है, कभी कभी नौकर भी मालिक की बात नहीं मानता
  • मन को बार बार समझाना पड़ता है

मन कैसे बदला जाए

  • पहले समझाया जाए, फिर उसके सामने तथ्य रखकर बात किया जाए
  • मन को मनाने को ही साधना कहते हैं साधना केवल मन की ही होती है, चित्त वृतियो का निरोध करना होता है

हम हमेशा भूल जाते है कि मन ही मात्र संसार है, इसे याद कैसे रखा जाए

  • भुल्लकडी भी अच्छी है फायदा भी करता है
  • मन यदि संसार में गया है तो भी जाने दीजिए तथा फंसे नही, आनन्द लीजिए

मन जब ससांर से जुड़ता है तो आनन्द की स्थिति नहीं रहती तथा मन कही और ही ले जाता है

  • तंत्र साधना करेगे तो मन नियंत्रण में आने लगता है

निरन्तरता बनी रहे तथा यह मन संसार में फंसे नहीं, इसके लिए क्या करे

  • मन के (इसके) रहस्यो को जानना होता है, तत्वदृष्टि होनी चाहिए कि यह कैसे बनता है, कब बदलता है, क्या होता है, इसकी जानकारी रहेगा तो संसार में चलने में सुविधा होगी
  • हर दिन हर पल इसी मन को पढ़ते रहना पडता है तब इसने विषय में जानकारी मिलती जाती है
  • जिस व्यापार को हम कर रहे हैं तो उसके विषय में हमें पढ़ना चाहिए, वहां हनुमान चालीसा नहीं पढ़नी है
  • यदि आत्मा के विषय में जानना है केवल तभी उसके बारे में हमें पढ़ना होगा तथा आत्मा का गुण देखना होगा
  • संसार की जानकारी व आत्मा की जानकारी दोनों आवश्यक है
  • धीरे धीरे जब नियंत्रण की अवस्था आती जाएगी तब भुल्लकडी भी कम होगी
  • किसी भी अवस्था में Tension नहीं लेना, हर हाल मस्त रहना है
  • भूल जाए तो भी कोई बात नहीं, इस शरीर पर ईश्वर का भी अधिकार है, कोई ओर भी आपके शरीर को इस्तेमाल कर रहा है तथा वह केवल ईश्वर ही है
  • इस शरीर पर ईश्वर का भी अधिकार है तो कुछ अपनी भी चलाए तथा कुछ उनकी भी चलने दे, तालमेल बैठा कर के बात बन जाती है

घर में झगडा हो गया तथा मैने खाना पीना छोड दिया हूँ तथा नमकीन Mixture खा लेता हूँ तो अभी सात्विक खाने की अपेक्षा अधिक उर्जा आ रहा है तो क्या यह खाते रहना चाहिए

  • पहले कचरा अधिक खा लिए तो उसी को आपका शरीर खा रहा है
  • तुरन्त गड़बड़ नहीं होता है परन्तु लगातार खाते रहने से Acidity बढ़ता है, इसलिए यदि खाना ही है तो स्वयं भोजन बनाकर खा ले
  • यह शरीर केवल आपका नहीं है यह ईश्वर का भी शरीर है तो इसमें अधिक लंबे समय तक Mixture डालकर नहीं चल सकता
  • कुछ समय तक नमकीन Mixture खा कर चल जाएगा क्योंकि ईश्वर भी श्रमाशील है, एक दो दिन ले लिया तो ठीक है परन्तु लंबे समय तक इस का उपयोग कर सकते
  • होश में रहिए व क्रोध को Balance रखिए

प्रज्ञापुराण में आया है कि शिक्षा मानव को नश्वर पदार्थो की उपलब्धि करवाती है तथा विद्या अमरता की ओर ले जाती है, यह कहने का क्या उद्देश्य है

  • शिक्षा से बाहर की जानकारी मिलती है, शिक्षा पेट भरने के लिए व रोजी रोटी के लिए होता है
  • नश्वर संसार = भौतिक जगत -> पदार्थ विज्ञान को शिक्षा कहते हैं
  • आत्म विज्ञान = विद्या = आध्यात्म
  • संसार हमें सुख देता है, जीवन जीने के लिए तथा आत्मा हमें शांति देगा व ईश्वर से मिलाएगा

गायंत्री मंत्र का लाभ व्यक्ति, परिवार एवं समाज को कब और कैसे मिलता है कृप्या प्रकाश डाला जाय

  • गांयत्री स्मृति में परिवार लाभ के विषय में आया है कि घर को कैसे चलाए तथा महिलाओं के साथ कैसे व्यवहार हो
  • अपनी रचना शक्ति का महत्व समझें तथा घर में प्रत्येक को श्रेष्ठ बनाएं, निर्मात्री आप ही है
  • गायंत्री हृदयम में या गायंत्री गीता में जानेंगे गायत्री स्मृति समाज के साथ में कैसा हमारा व्यवहार हो
  • भारत की राष्ट्रीय उपासना गायंत्री मंत्र जप थी तब भारत जगतगुरु भी था और सोने की चिड़िया भी था
  • गायंत्री मंत्र को ही देव संस्कृति के माता पिता कहा गया

हर हाल में मस्त रहना तो इसमें नैष्टिकता कैसे निभ पाएंगी

  • नैष्टिकता = ईशवर को सर्वव्यापी मानो, इनके प्रति भी तो हमें नैष्टिक होना है
  • शत्रु व मित्र में एक समान बुद्धि रखो हमारी इसके प्रति नैष्टिकता क्यों नहीं हो रही
  • अपने गोल के प्रति नैष्टिक रहने के लिए देखा जाता है कि हमारा स्तर क्या है तो इसे ही स्वधर्म रहते है, अपने धर्म में जीना व मरना
  • शुरुआत में सापेक्षता के सिद्धांत पर आदमी चलता है कि इतनी नैष्टिकता हमसे निभ जाएंगी
  • हम यह देखे कि अपने रूटीन में रहते हुए अपने आत्मिक विकास के लिए तथा अपने सामाजिक विकास के लिए आस-पास क्या अच्छा कर सकते हैं, उतना निर्धारण करके चले
  • केवल इसी में ही नए फंसे रहे इस प्रकार अपनी नैष्टिकता की भी वृद्धि करनी चाहिए
  • युद्ध भी एक कला है क्रीड़ा है -> तो युद्ध भी करें तो टेंशन में ना करें उसे भी एक क्रीडा के भाव से करें
  • ईश्वर / आत्मा आनंदमय है
  • संसार को क्रीडा माने व आनन्द ले, दुखः का भी आनन्द ले
  • यदि कोई आतंकवादी का पाठ यदि सही हैं तो हमें उसे मारने वाला का पाठ करना है -> ईश्वर ही दोनो रूपो में पाठ कर रहा है

यह तो हिंसा है तो फिर अंहिसा का पालन कैसे करें

  • इसी को (आंतकवादी) को मारना ही अहिंसा कहलाता है, धर्म युक्त हिंसा को अहिंसा कहते है -> अहिंसा परमो धर्मम, धर्मम हिंसा तथव च
  • आधा लाईन न पढे
  • इसी बात को महाभारत में श्री कृष्ण ने कहा
  • उर्जा का नाश नही होता तथा आत्मा मरती नहीं, ईश्वर ने हमें यह शरीर संसार के कल्याण के लिए ही दिया है, जिसके पास ताकत है, वह छीन लेता है
  • यह (धर्मम हिंसा) भी अहिंसा है तथा यही परम धर्म भी है      🙏

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