पंचकोश जिज्ञासा समाधान (27-09-2024)
आज की कक्षा (27-09-2024) की चर्चा के मुख्य केंद्र बिंदु:-
गायंत्रीपनिषद् में आया है कि मध्यकालीन संध्या गायंत्री श्वेत कमलासन पर आसीन श्वेत वर्ण धारण किए हुए श्वेत चन्दन आदि सुगंधित द्रव्यों के लेप से युक्त पंचमुखी, त्रिनेत्रा, दस भुजा, दसों भुजाओं में त्रिशुल, डमरू, असि, खग . . . गदा, कपाल तथा अभय मुद्रा धारण किए हुए स्वः धारण घोषिता सविता सावित्री . . .तीन पदो वाली तथा 6 कुच्छि धारण करने वाली है, का क्या अर्थ है
- कुच्छि = दिशाएं = कोख
- किसके कोख से जन्म लिया
- 6 कुच्छि = चारो दिशाए + उपर + नीचे
प्राणमय कोश की साधना में क्या ध्यान रखना चाहिए
- गायंत्री मंजरी में प्राणमय कोश की शिव जी व्याख्या करते है कि हे पार्वती 10 प्राणो से प्राणमय कोश बनता है तो प्राणमय कोश में इन्हीं दस प्राणो का ध्यान करना है
- मूलाधार चक्र में प्राणमय कोश का मुख्यालय है लेकिन अन्य भी सभी Center है
- मस्तिष्क में व्यान और धनंजय है, वे सुषुप्तावस्था में न रहे नही तो मस्तिष्क वाला Area निष्प्राण हो जाएगा
- दिमाग की सभी बीमारी व Toxines , वहा के प्राण कमजोर होने से हो सकती है
- चेतन, अवचेतन व सुपरचेतन मन को जो बिजली देता है वह व्यान है, यही व्यान Pineal Gland से भी जुड़ा हुआ है
- Pitutary Gland से धनंजय प्राण जुडा हुआ है, यह पूरे Body System को command करता है, पैर से सिर तक के Growth से लेकर सारे System को यही Control करता है, एक ज्ञान है तो एक उर्जा पक्ष को नियंत्रण कर रहा है, ये दोनो प्राण प्रखर होने चाहिए
- प्राण से प्रखर हुआ तो Hormonal systen भी ठीक रहता है
- गले में उदान व देवदत है Thyroid व Parathyroid ग्रथियो को ठीक रखता है, इन ग्रथियों की खराबियों को अन्य किसी भी तरीके या दवा से Control या ठीक नही किया जा सकता, प्राण के Control से ही संभव हो सकता है
- उदान के Control में Palathyroid तथा धनंजय Thyroid के Problem को ठीक कर लेता है, दोनो प्राण मिलकर के यहा Command कर लेते हैं
- यहा गले से प्राण की गति नाड़ियो के माध्यम से शरीर में 16 जगह पर जा रही है तो उन 16 स्थानो पर भी ध्यान करे तथा हमारा सारा system ठीक हो रहा है, यह प्राणायाम के समय में ध्यान करना है कि हम बह्माण्ड से प्राण खीचे, व्यान व धनंजय को प्रखर बनाए, शुद्ध किए, उदान व देवदत्त को मजबूत बनाए, प्राण व नाग को मजबूत बनाए, समान व कृकल को मजबूत बनाए, अपान व कुर्म को मजबूत बनाए
- समान व कृकल यदि कमजोर रहेगा तो वात पित व कफ की बीमारियां होती रहेगी, इन दोनो को Balance रखने से आर्युवेद में वर्णित कोई भी बीमारी नही होगी, पूरा यही Command कर लेता है
- अपान व कुर्म के contrrol में आने से शरीर की विसर्जन प्रणाली ठीक रहेगी, हमारी कमेंद्रिया ठीक रहेगी, sex Hormones निकलते रहेगे तो जीवन भर युवा बने रहेंगे, उत्साह व ओज बना रहेगा
- प्राणमय कोश का Photo, शरीर के 6 इंच बाहर तक उष्मा निकलती रहती है, इसका Linear Diagram होता है, अन्नमय कोश का Granual होता है, Particle के रूप में आते है, Bioelectric का Linear होता है उसे हमें प्रखर बनाना है, प्राण से ही शरीर काम करता है
- हृदय वाला प्राण यदि कमजोर है तो हृदय वाली बीमारिया होगी तो इसलिए हमे प्राण व नाग को मजबूत करना है
- इसी प्रकार प्राणमय कोश के लिए दसो प्राण पर ध्यान करके अपने पूरे शरीर को प्राणवान बना सकते है
त्राटक में सामने की वस्तु दिखती है तो क्या करे
- त्राटक में सामने की वस्तु यदि दिखती है तो त्राटक के Area को कम करे
- सामने दीवार पर एक चकोर बड़ा सा white Paper चिपका दे तथा उस पर काला Dot चिपका दे, बीच में एक पीला सा सरसो का दाना चिपका दे तथा अब हम त्राटक केवल सरसो पर करे तो अन्य वस्तु फिर नही दिखेगी
- या बाहर करना है तो सुर्य पर त्राटक करे तथा फिर आस पास न देखे
- या कुछ भी ना हो तो नाक के अग्र भाग पर त्राटक करे तब नाक को छेदकर भी वस्तुएं दिखने लगेगी तो नाक भी रुकावट नही डालेगा
- फिर सरसों भी हमारी इच्छानुसार हलचल करेगा तथा जहा कहेंगे वही जाएगा
- अब इस अवस्था में हमारे भीतर Particle को Change करने की क्षमता आ रही है
- इसी का अभ्यास करके तांत्रिक Hypnotism, Mesmerism करते है
- तब वह तांत्रिक इन्ही आखों से Radiation फैककर हमारे चेतन मन को सुलाकर अपना प्रभाव डालने लगते है तथा अवचेतन मन से बडबडाना शुरू कर दे
नाक पर त्राटक करने से नाक गायब होने पर पीछे की वस्तु दिखने लगती है, क्या करे
- नाक के गायब होने पर आंख बंद कर ले
- आंख के बंद हो जाने के पश्चात इस गायब होने को पूरे Universe में देखे कि संसार में object कही नही है केवल आकाश है तथा सब कुछ आकाश से ही बना है
- संसार के झूठ को समझना है कि संसार में सब तरंग है तथा solid यहा कुछ भी नही है
- हर क्रिया का ध्यान बहुत जरूरी है
छान्दग्योपनिषद् में आया है कि अग्नि में स्वाहा कहते हैं तथा पंच प्राण का उच्चारण करते हैं तो ये पाच प्राणों के नाम उन्हे बताए या ना बताएं
- उसके सामने दूसरी भाषा का उपयोग करे, प्राण अपान व्यान . . . ये सभी शब्द पढे लिखे लोगो के लिए है
- प्राणाय स्वाहा / नमः का अर्थ -> शरीर को मजबूत करने वाला भोजन करे, शरीर को खराब करने वाला भोजन न ले
- पाचन के अनरूप भोजन ले मैदा ना ले, Fibrous Food, पानी घूट घूट भरके पीते रहे तथा Toxine, Urine के रास्ते निकल जाए तो यही अपानाय स्वाहा हो गया, शब्दो में न फंसे
- प्रत्येक प्राण का गुण जान ले तथा वह गुण किस भोजन में है वह भोजन करने का कहे
- दुबला व्यक्ति अपनी Health बनाए, यही उदानाय स्वाहः है
- पढ़ा लिखा student अपनी बुद्धि बढाए -> यही व्यानाय स्वाहा हो गया
- यदि कोई नही पूछे तो मत बताईए, जब पूछे तब बताएं, जब तबीयत खराब हो तब बताए, जबरन किसी को दवा नही खिलाया जा सकता नही तो यह ज्ञान का दुरूपयोग हुआ, डॉक्टर भी तभी दवाई देता है जब मरीज उसके पास जाता है, डाक्टर स्वयं दवाई बांटता नही फिरता या जबरन किसी का Operation नही करता
- दायित्व यह है कि केवल सलाह दी जाए
- बच्चो को पढ़ाने के लिए मास्टर अपने घर का नही रखा जाता, यह बात सदैव ध्यान रखनी चाहिए तथा अपने घर में सुधार की प्रक्रिया भी धीमी होती है
- बाहर सुधार जल्दी होगा
- इसलिए अपने घर के लिए मौन व प्यार के सिवा कुछ काम नहीं करता है
- मौन रहे, प्रसन्न रहे व प्यार दे,जबरन ज्ञान न दे
लोकतत्व उपनिषद् में प्राणायाम की प्रक्रिया में आता है कि केवल कुंभक जब सिद्ध हो जाता है तो रेचक व पूरक का परित्याग कर देना चाहिए तो ये केवल कुंभक क्या है
- केवल कुंभक कहा जाता है कि जब बाहर से श्वास को खीचने व छोड़ने की आवश्यकता न पड़े
- जब सारी नाड़िया शुद्ध हो जाती है तो चमडे भी श्वास लेना शुरू कर देते है तो केवल फेफडे के काम करने की भूमिका उसमें नही रहती तथा तब वह Mental प्राण का आवागमन Meditation में होगा
- जैसे जब ऋषि ध्यान में फ्रिजीकरण में जाते हैं तो 4 महीने जब बर्फ में दब गए तब उनके नाक व मुह तो दब गए तो वह सास कैसे ले सकता है परन्तु उस अवस्था में भी उसके चक्र उपचक्र कार्य करते रहते है तथा वह Mentally, Meditation से उर्जा ले लेते हैं तथा 4 महीने के बाद बर्फ से जब निकलेंगे तो एक उर्जा / प्राण शक्ति के साथ charge होकर निकलेंगे
- उस समय Meditation में आकाश को ही अपना शरीर मान लेते है, जब हम आकाश है तो वह तो हर जगह है तब उसे सास की क्या आवश्यकता है
- केवली प्राणायाम बहुत ही कम लोगो का सिद्ध होता है परन्तु निरन्तर करते रहने से श्वास की गति कम होने लगती है तथा ऐसा ध्यान की गहराई में जाने पर होता रहता है
- सामान्य अवस्था में एक 1 मिनट में लगभग 15-20 बार श्वास लेना पडता है परन्तु ध्यान की अवस्था में शीर्षासन में 5 -6 बार ही लेना होता है तथा यह गहरा होते होते 2-3 बार या फिर यह भी आवश्यकता न पड़े तथा स्थिरता आ जाए, यह अभ्यास से ही आता है
ध्यान के बाद आए पसीने को शरीर पर मल लेने का क्या विज्ञान है
- पहले नहा कर के शरीर के रोमकूपो को साफ कर लेते है अब आपके भीतर जो पसीना निकल रहा है, प्राणायाम के द्वारा तो उसमें विद्युत आयन निकलते है, जैसे अमरोली मुद्रा में पहली बार बेकार पानी निकलने के बाद जब Meditation के बाद जो आ रहा है तो हमारा शरीर उन चक्रो से उन Ions को Charge किए रहते है, ये व्यर्थ नही है, इसी का पान किया जाता है, यही नियम पसीने के साथ भी होता है, यह सब रक्त से ही निकल रहे है, इनमें कीमती तत्व होते है तथा इससे उर्जा बढ़ जाती है, उसे विकार न माने
- जब हम स्नान कर के Toxines निकालकर कर रहे है तो अब जो पसीना आएगा वह हमें शक्तिशाली बनाएगा
कर्मकाण्ड भास्कर में श्राद संस्कार में जल में 11 देवता कौन कौन से है
- वाच = वाणी = सरस्वति
- वाचस्पति = बृहस्पति
- मह: देव = महः तत्व
- विष्णवे = विष्णु
- अदभ्ये = जल
- अमामपते = जल का स्वामी
- वरूण = जल ही है, जल के अनेक प्रकार होते है
कैवल्योपनिषद् में जागृत से स्वपन से सुषुप्ति अवस्था में जब जीवात्मा जाता है तो उसी प्रकार से पुनः वह जीव जन्म जन्मातरो की प्रेरणा से सुषुप्ति से स्वपनावस्था तथा स्वपनावस्था से जागृत अवस्था में गमन करता है, इसी प्रकार स्थूल सूक्ष्म कारण तीन पुरो में जो जीव गमन करता है उसी से सभी प्रपंचो की विचित्रता उत्पन्न होती है
- जैसे महः तत्व से आकाश निकला, आकाश से वायु, वायु से अग्नि, अग्नि से जल व जल से पृथ्वी बना
- समेटने की क्रिया में यह ऐसे ही जाएगा -> पृथ्वी जल में, जल अग्नि में, अग्नि वायु में, वायु आकाश में विलीन हो जाएगा, आकाश महः तत्व में, महः तत्व प्राण तत्व में विलीन हो जाएगा, प्राण आत्मा में तथा आत्मा परमात्मा में विलीन हो जाएगा
- यहा प्रसवन प्रतिप्रसवन की क्रिया यहा बताई गई है, जैसे पहले जागृत अवस्था फिर स्वपनावस्था तथा फिर सुषुप्तिवस्था आती है तथा फिर वापसी में सुषुप्ति से स्वपनावस्था से जागृत अवस्था आती है
- जिस तरह से हम गए रहते है वैसे ही आना होता है, जैसे शून्य से संसार की उत्पत्ति तथा संसार से शून्य में विलीनता, यही क्रिया बताने का ऋषि प्रयास कर रहे है
- प्रपंच = संसार = पांच ज्ञानेद्रिया = पांच प्राण = पाच महाभूत = प्रंचधा प्रकृति, प्रपंच का अर्थ यहा जालसाजी नहीं
- तत्वों की variety को प्रपंच कहा गया
- उन्हीं से सारा संसार बना बना है
कुछ लोग कहते है कि यदि खाना बनाना है तथा समय नही है तो पहले तैयार करके सब्जीकाट कर तथा आटा गूंध कर रख ले तथा फिर बनाए तो क्या यह सही तरीका है
- यह सर्वमान्य नियम नहीं है
- किसी खास परिस्थिति के लिए खास लोगो के लिए खास समय के लिए उपयोगी होता है, वह सिर्फ Time management भर है, इसमें उलझना नही है
- संसार का कोई भी नियम सभी के लिए लागु नहीं होता
परमपूज्य गुरुदेव हर 10 वर्ष के बाद
सुक्ष्मीकरण में जाते थे तो यह सूक्ष्मीकरण प्रक्रिया क्या है
- सूक्ष्मीकरण क्रिया = Detail में पढ़ना
- जैसे पहले की कक्षाओ में केवल Basic जानकारी पढ़ते थे परन्तु फिर बड़ी कक्षाओ में एक ही विषय की अनेक शांखाए तथा उसमें भी विषय की गहराई बढती जाती है
- सूक्ष्मीकरण का अर्थ है कि उस विषय के रेशे रेशे को समझना व Command करना
- जैसे 1 रुपये का सूक्ष्मीकरण 1 पैसा है
- पचंकोश की साधना भी सूक्ष्मीकरण की साधना है
केनोपनिषद् में आया है कि मन से जिसका मनन नही किया जा सकता अपितु मन जिसकी महत्ता से मनन करता है, मन द्वारा मनन किए हुए जिसकी लोग उपासना करते हैं वह बह्म नहीं है, का क्या भाव है
- जो मन से परे हो तो मन उसे (बह्म को) समझ ही नही सकता, बह्म ने मन को बनाया तो जो उत्पन्न हुआ है वह अपने उत्पन्न करने वाले को कैसे समझ सकता है
- जैसे बच्चे अपने माता पिता को नही जान पाते, लोगों ने कह दिया कि ये तुम्हारे माता पिता है तो मान लिया परन्तु स्वयं बच्चो ने देखा तो नहीं
- जो वस्तु बनी है तो वह वस्तु नहीं जान सकती कि उसे किसने बनाया, कारीगर जान सकता है कि उसने क्या बनाया
- इसी प्रकार मन भी नही जान सकता
- यदि वह व्यक्ति या शरीर स्वयं के बारे में जानना भी चाहे कि उसे किसने बनाया तो वह उल्टी दिशा में जाएगा तो पहले उसे छोटा होना पड़ेगा तथा फिर शुक्राणु होना पड़ेगा शुक्राणु से DNA में जाएगा फिर और नीचे तक जाते जाते फिर उसकी सत्ता खत्म हो जाएगी
- Particle Physics से सत्य को नहीं जाना जा सकता क्योंकि वह ठोस भी अन्त तक जाते जाते विलीन हो जाएगा तो फट जाएगा /समाप्त हो जाएगा
- इसलिए सत्य को पाने के मार्ग में मन की सत्ता समाप्त हो जाती है इसलिए मन से मनन नहीं किया जा सकता इसलिए मन से वो करेंगे जो मन के बाद मन से उत्पन्न हुआ है
- मन व बुद्धि से जो हम करेंगे वह सीमित तर्क करेंगे तथा तर्क से भगवान नहीं मिलता 🙏
No Comments