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पंचकोश जिज्ञासा समाधान (26-11-2024)

पंचकोश जिज्ञासा समाधान (26-11-2024)

कक्षा (26-11-2024) की चर्चा के मुख्य केंद्र बिंदु:-

गायंत्री महाविज्ञान भाग २ में कवच का अर्थ आच्छादन दिया है, जिस प्रकार पदार्थों से बने कवच से शरीर की रक्षा की जाती है उसी प्रकार आध्यात्मिक शक्ति सम्पन्न ऐसे दैविक कवच भी होते है जिनका आवरण ओढ़ लेने पर हमारी रक्षा हो सकती है, मंत्र शक्ति कर्मकाण्ड व श्रद्धा का समन्वित आध्यात्मिक कवच इस प्रकार का है कि उससे अपने आप को आच्छादित कर लेने पर शरीर व मन पर आक्रमण करने वाले अनिष्टों को सफलता नहीं मिलती है, नीचे दो कवच दिए है एक में गायंत्री के अक्षरो को शक्ति बीज मानकर उनके द्वारा अपनी रक्षा का आच्छादन बुना जाता है दूसरे कवच में गायंत्री को शक्ति मानकर उसके विविध रूपों द्वारा अपने चारों ओर एक घेरा स्थापित किया जाता है, सुविधा व उपयोग के अनुसार इनमें से किसी एक को या दोनो को ही काम में लिया जाता है

ये कवच क्या है और इन्हे कब और कैसे उपयोग में लिया जाता है

  • कवच रक्षा ही करता है
  • युद्ध भूमि में रक्षा के लिए कवच पहनते है ताकि भाला न लगे या सुरक्षा कवच के रूप में Bullet Proof शीशा भी लगाते है
  • यदि हम भगवान के भक्त है तो जब जब हम भगवान से जुड़ते हैं तथा उन्हे बार बार याद करते हैं तो उनकी किरणें आकर रक्षा कवच बना लेगी
  • साथक कितनी प्रगाढ़ता से जुडा, समर्पण की मात्रा जितनी अधिक तो कवच उतना ही मजबूत होगा
  • समग्र सर्मपण से जुड़ा तो बहुत ही अधिक मजबूत कवच मिलता है
  • भक्त अपनी श्रद्धा व निष्ठा से संबंध जोडता है तो उसे वह कवच प्राप्त होता है
  • एक श्रद्धा की अग्नि होती है जो आत्मा से निकलती है, वह क्षद्धा की अग्नि रक्षा करती है
  • दूसरा यदि कोई अपनी रक्षा नहीं कर सकता तो गुरु भी रक्षा कवच बनाता है, गुरू भी उसे सुरक्षा कवच दे देता है, यदि गुरु के प्रति समर्पण रहे तथा हम ईश्वर का काम करते रहे तो एक तरफा भी हो सकता है
  • भक्त न भी चाहे तो भी भगवान चाहे, भगवान को जरूरत है तो भी बचा लेगा
  • कवच एक प्रकार का आभामंडल है, सारा संसार प्रकाश से ही बना है (पदार्थ भी प्रकाश की Condense Form ही है)
  • पहले शांतिकुंज से रक्षा कवच मिलता था, माता जी सिद्ध करके देती थी
  • भस्म भी रक्षा कवच का काम करते है, भूत प्रेत बाधा में भी इसका उपयोग होता है
  • तंत्र विज्ञान में आत्म शक्ति से पदार्थ जगत पर नियंत्रण करना होता है / आत्मा के तेज से प्रकाश जगत पर control करना तंत्र है
  • शरीर के भीतर सभी 7 चक्र रक्षा कवच है, वे चक्र अपना सपर्क अन्य लोको से जोड लेते है तथा साधक को बचा लेते हैं, पांचों कोश पांच रक्षा कवच है, ये सब बहुत मजबूत है, इसलिए इस शरीर को अयोध्या कहा गया
  • अष्टचक्रा नवद्वारा देवानां पूरयोध्या – आठ चक्र और नौ द्वारों वाली अयोध्या यह शरीर है, देवताओं की पुरी / नगरी में ये सब सुरक्षा कवच रूपी छिलके है ताकि इसे क्षति न पहुंचे, इसे जगाकर अपनी शक्ति बढ़ानी चाहिए
  • ताबीज भी रक्षा कवच के रूप में तात्रिकों द्वारा दिए जाते है परन्तु वे कम कारगर है, भीतर वाला सुरक्षा कवच अधिक कारगर है
  • 12 वर्ष तक गायंत्री मंत्र जप कर ले तो मंत्र सिद्ध हो जाता है तथा यह रक्षा कवच का काम करता है, पंचकोश साधना से भी जल्दी ही रक्षा कवच तैयार हो जाता है तथा यह स्थाई रहता है
  • एक रक्षा कवच साधक अपने आभामंडल के रूप में अपनी मन से भी अल्फा बीटा थीटा गामा तरंग रूप में भी निकल सकता है
  • गुरु के संरक्षण में भी रक्षा कवच मिलता रहता है जैसे छोटा बच्चा माँ के पास रहता है तो एक रक्षा कवच माँ का मिलता रहता है परन्तु जब माँ से अलग हुआ तो उस पर टोना टोटका का प्रभाव भी पडता देखा जाता है
  • कौशिश करे कि हम स्वयं ही आत्मावलंभी बने ताकि हम अपनी रक्षा स्वयं कर सके, इसलिए जूडो कराटे या अन्य Training दी जाती है ताकि एक छोटी Range तक Self Defence कर सके
  • इसी प्रकार यह कवच यहा मंत्रात्मक है

नाद योग को स्पष्ट करे जो ध्वनि बजती है उसके साथ कैसे ध्यान करे, नाद योग को ठीक से कैसे करे

  • जैसे शान्तिकुंज में नादयोग का कैसेट बजता है, यह नादयोग एक ऐसी ध्वनि है जो हमे प्रकृति से जोडती है
  • यह नादयोग आहत नाद/ध्वनि है परन्तु हमें आहत से अनाहात नाद की तरफ जाना है तथा अनाहत में ॐ सुनना है
  • कुछ साधको की मनोभूमि नादयोग की आहत ध्वनि के प्रति प्रबल नही होती तो वह नादयोग उन्हें लाभ भी नहीं देगा
  • साधक अपनी मनोभूमि के आधार पर ही ध्वनियों को पकडेगा
  • कोई DJ Sound में तो कोई शास्त्रीय संगीत में अच्छा महसूस करता है
  • इन ध्वनियों का उद्देश्य स्वयं को भूलना व Relax होना, शरीर से Oxytocin व Dopamine जैसे तत्वों को निकालना
  • एक ऐसा भी नादयोग ॐ ध्वनि के रूप में भी है जो इतना Relax है कि कण कण में जाकर भी किसी में लिप्त नहीं होता, यही ईश्वर के द्वारा संचारित स्वर है
  • जो ध्वनि हमें अच्छी लगती है Relax करती है चाहे वह फिल्मी गाने ही क्यों न हो, उस व्यक्ति के लिए नादयोग फिल्मी गाने से ही शुरू होगा, इसके बाद वह आगे बढ़ेगा
  • ऋषियों ने पाया कि गायंत्री मंत्र एक ऐसा नाद योग है जो किसी के साथ भी Set कर जाता है, यह एक ऐसा ध्वनि है जो प्रकृति में किसी भी तत्व के साथ तालमेल बिठा लेता है
  • गायंत्री मंत्र, व्यक्ति – पेड पौधे – पशु पक्षी किसी के साथ तालमेल बैठा लेता है

निष्ठा का सरलीकरण करे, निष्ठा का व्यवहारिक रूप क्या हो तथा निष्ठा को आचरण में कैसे उतारे

  • जैसे हम कभी-कभी गुरु जी का काम करने की सोचते है कि हमारा मन किया तो गुरू जी का काम कर लिया, एक हनुमान जी को देखिए राम काज किए बिना मोहे कहा विश्राम -> उठते बैठते सोते जागते उन्हे एक जूनून हमेशा रहता था तथा उन्होंने राम को अपने हृदय में ही बैठा लिया कि हम उसके सिवा कोई काम नहीं सुझता है -> ऐसा करने से उनके प्रति समर्पण से निष्ठा आएंगी
  • वैदिक भाषा में यदि बात करे तो ईश्वर के प्रति श्रद्धा से अच्छे गुणों से दोस्ती हुई और वह प्रेम यदि अटूट हो, साधारण प्रेम नहीं
  • आदर्शो से अटूट प्रेम हो तो श्रद्धा में बदलेगी, श्रद्धा एक गहरे प्रेम की चरम सीमा है
  • जीवन में जब इस श्रद्धा को धारण किया तो ही प्रज्ञावान कहलाएगा
  • श्रद्धा + प्रज्ञा जब व्यवहार बनकर समाज सेवा में उतरेगी तो निष्ठा कहलाएगी, सारा संसार ईश्वर का विराट रूप है तो हम अपने हृदय को संसार तक ही सीमित ना रखें पूरी विराटता से प्रेम करे
  • गुरुदेव कहते थे हम तुमसे बाह्मण व संत रूप में दो हाथ आगे है, तुम भी बन सकते हो
  • हम गुरुदेव से प्रवक्ता बनने का लिए नही जुड़े हम गुरुदेव के साथ जुड़े तो हम स्वयं में यह देखे कि हम संत बने या नहीं, ब्राह्मण बने या नहीं यह महत्वपूर्ण है
  • बाह्मण = जो अपने को निचोडे -> हद से अधिक त्यागी व्यक्ति हो तथा समाज के लिए अपना भी सुख छोड दे
  • हनुमान जी जैसे भक्त का जूनून देखे, इसी को तीव्र जिज्ञासा कहते है, इसी प्रकार हमारे भीतर भी इसी प्रकार की तीव्र जिज्ञासा बनी रहे
  • हर समय स्थूल शरीर ऐसा नहीं रहेगा तो फिर जाववंत की भूमिका में आएगा तथा दूसरों को Motivation देकर काम करवा लेगा, जैसे सुर्य / सविता दूर होते हुए भी हमें प्रेरणा देता है
  • मीरा की निष्ठा ने केवल भावनाओं से हिलाकर रख दिया तब लोग जाने कि Cosmic शरीर भी कुछ होता है, चैतन्य महाप्रभु को देखे -> इन सभी ने केवल भावनाओं से ही Cosmic Body से ही संसार को हिलाकर दिखा दिया
  • हमारे पांचो शरीर यदि भगवान के काम में लग रहें है तो हम निष्ठावान है
  • निष्ठा परमार्थ परायणता व लोकसेवा से जुडी हुई हैं

योग वशिष्ठ में आया है कि मन संकल्प मात्र है, मन ही संकल्प है, यह कैसे है, सारा जगत हमारे मन का भम्र है, वास्तव में यहा कुछ भी नहीं है, का क्या अर्थ है

  • क्या मन को / हवा को देखा है, हवा को हम नहीं देख पाते, इसी प्रकार तन्मांत्राए भी visible नहीं है, तन्मात्राओं से श्रेष्ठ इंद्रियां है तथा इंद्रियों को मन निंयत्रित करता है तो इंद्रियों से श्रेष्ठ मन है
  • मन यदि इंद्रियों का Boss है तो मन कैसा है
  • जब हम बैठे बैठे कुछ सोचते है तथा Plan बनाते है तो यह Planning कौन कर रहा है
  • जो भी यह कर रहा है उसे मन कहते है
  • ईश्वर का मन हुआ एक से अनेक बनने का, उसे समष्टि मन कहेंगे
  • विचार के प्रस्फुटीकरण / उदगम जहा से हुआ, उसे मन कहते हैं, यही से विचारो का वाष्पीकरण होता रहता है
  • मन को मारा नहीं जा सकता, इसे केवल दिशा दिया जा सकता है क्योंकि मन वह एक तत्व है उसी से संसार बना है
  • मन को मार दिया तो संसार समाप्त हो जाएगा, किसी भी तत्व को आप मार नहीं सकते, तत्व कभी नष्ट नहीं होता, पदार्थ यदि भाप भी बना तो भी नष्ट नहीं होता
  • किसी भी चीज का यहा नाश नही किया जा सकता, इसलिए ईश्वर कण कण में है, ईश्वर अविनाशी है तो प्रत्येक चीज अविनाशी है
  • इन अविनाशी तत्व में एक मन भी है, वह भी अविनाशी है, मन बहुत ताकतवर है
  • मन की गति प्रति सैकेंड 22 लाख 65 हजार Miles की गति से विचार निकाल रहा है
  • मन में नकारात्मक विचार आए तो धराशायी भी कर देता है, संकल्प का धनी व्यक्ति बहुत ताकतवर होता है
  • चेतना की Frequency बदली तो नाम बदल गया, चेतना के स्तर के अलग अलग नाम रख दिए गए है जबकि इसके पीछे ईश्वर रूपी एक ही तत्व है, कही कही ईश्वर को ही मन कह दिया, मन ही बह्म है

मन किस प्रकार बनता है

  • जैसे समुद्र में लौटा डूबा दिया तो बाहर भी वही पानी, लोटे के भीतर भी वही पानी, छोटे से लोटे की Boundary में हम यदि एक मन को मानते है तो वह लोटे का व्यष्टि व्यष्टि मन है तथा लोटे के बाहर के पानी को समष्टि मन मान सकते है
  • Boundary हमने बनाया तो इससे लगता है कि मै केवल शरीर हूँ
  • अपने मन (व्यष्टि मन) को समष्टि मन से जोड दे, इसी को Meditation कहते है
  • योग में यही किया जाता है अपने मन को ईश्वर के मन से जोड़ना तथा बीच में कोई Boundary न रखे, हम ताकतवर हो जाएंगे तथा हमारा Range बढ जाएगा

अन्नमय कोश में आया है कि रक्त संचार, श्वास प्रश्वास, आकुंचन प्रकुंचन, निमेष उन्मेष, स्वः संचालित रहने वाली क्रियाएं अवचेतन मन से ही संभव होती है, इनमें निमेष उन्मेष क्या है

  • हम जगे हुए है तो भी कुछ क्रियाए स्वतः ही चल रही है जैसे Heart Beat, फेफडे
  • ये सब अवचेतन मन से हो रहा है
  • सब मिलकर Autonomous Nervous System चलाते हैं तथा शरीर के क्रिया कलाप चलते रहते हैं
  • फैलाना सिकुड़ना ही निमेष उन्मेष है तथा यह सब अवचेतन मन से नियंत्रण होता है

साधना विज्ञान में हृदय गुफा में अगुष्ठ प्रमाण प्रकाश ज्योति का ध्यान करने का विधान है, यहा अगुष्ठ प्रमाण प्रकाश क्या है

  • अगुष्ठ = छोटा -> अपनी आत्मा को तेजस्वी छोटे सुर्य के रूप में ध्यान करे, अपनी आत्मा को छोटे से आकार में देखें
  • शरीर अपना 5 – 6 फीट का है तथा इसी में हमें सारा बह्माण्ड भी देखना है तो अपनी आत्मा को तेजस्वी छोटे सुर्य के रूप में देखे
  • यो सो आदित्य पुरुषा सो सो अहम्
  • बह्म का ध्यान कैसे करे -> बह्म सुर्य की ज्योति के समान है (बह्म समम सुर्य ज्योति)
  • अपने कल्पना लोक में आध्यात्मिक सुर्य का ध्यान करके उससे (बह्म से) समीपता पा ले
  • यह कल्पना करके रात को भी सुर्य/सविता का ध्यान कर सकते है, शुभ ज्योति के पुंज अनादि अनुपम, ऐसा ध्यान करना है

परिवार में सब लोग उल्टा सीधा चल रहे है तो उनके साथ रहने का मन नही करता तो कुछ रास्ता बताईए

  • आप हनुमान जी की तरह मजबूत योद्धा है, जब वे उल्टा-पुल्टा करना नही छोड रहे तो आप सीधा सीधा करना क्यो छोडते है, वे अपना आदत नहीं छोड़ते तो आप भी अपना आदत मत छोडिए, आप उनसे कमजोर नहीं है
  • आप सीधा सीधा मत छोड़े, देखते है कौन जीतता है, ऐसा भाव रखे
  • अपनी वृति आप ना छोड़े, जब चोर चोरी नहीं छोड़ रहा तो साधु सधुकडी क्यों छोड़े, वह उससे कमजोर नहीं है, यह शिक्षा लेना चाहिए

सर्वसारोपनिषद के 7 वें खण्ड में मन आदि (अन्त: चतुष्टय), प्राण आदि (चौदह प्राण ) का जिक्र आता है, यह चौदह प्राण कौन कौन है

  • 24 तत्व ही प्राण का स्वरूप है तो उनमें से 14 ले सकते है
  • मन बुद्धि चित्त अंहकार के साथ 5 ज्ञानेंद्रिया व 5 कर्मेद्रिया जोड सकते है
  • यदि 13 तत्व गिनवाने होते तो इनमें से चित्त को हटा दीजिए, मन + बुद्धि + अहंकार को ही चित्त कहते है, श्री कृष्ण ने भी चित्त शब्द का उपयोग नहीं किया
  • कर्मेद्रिया हमें लगता है कि हाथ पाव है परन्तु वास्तव में हाथ पाव है नहीं, ग्रहण की वृति को हाथ कहते हैं, हाथ नहीं भी रहेगा तो भी सपने ने आदमी कही कही जाकर खाता रहता है तो वहा किस हाथ से खा रहा है तो वही कर्मेदिया शरीर छोड़ने के बाद भी साथ जाती है
  • ग्रहण करने की जो वृति है, वही वृतिया ही इंद्रियां बनकर आ जाती है

अपना सुधार संसार की सबसे बड़ी सेवा है का आशय क्या अपने को आदर्श बनाकर लोगों को शिक्षा देना है कृप्या प्रकाश डाला जाय

  • जी यही करना है
  • सबसे बड़ी सेवा इसलिए है क्योंकि सारा बह्माण्ड इसी शरीर में है, शरीर को सुधारा यानि कि सारे बह्माण्ड को सुधारा
  • जो पूरे ब्रह्मांड को ही सुधारने में लग जाए तो देवता गण भी उसे माध्यम बना लेते हैं
  • ईश्वर उन्ही को माध्यम बनाता है जिनके कंधे मजबूत हो, जिन्होंने अपनी पात्रता का विकास किया हो, यदि दुख कष्ट भी मिले तो उसमें भी वह परेशान न हो, तब ईश्वर हमसे अधिक काम लेने लगता है

मन का मौन क्या है?

  • ईश्वर का एक नाम मौन है, ईश्वर कुछ करता नहीं अपितु प्रकृति करती है
  • ईश्वर के साथ जुड़ना ही मन का मौन है
  • परमेश्वरम् स्तुति मौनम्
  • दिन भर भी यदि हम आध्यात्मिक चर्चा करे तो कह सकते है कि दिन भर हम मौन थे
  • दिन भर मन ही मन विचार चल रहे है या किसी को गाली दे रहे है तो यह मौन नहीं कहलाएगा
  • वाणी के मौन को मौन नही कहा जाता
  • यदि हम वाणी से बोल भी रहे है तथा वह आत्मा के हित में है तो उसे मौन कहेंगे
  • ईश्वर के साथ अपने मन का Resonance स्थापित करना मौन है     🙏

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