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पंचकोश जिज्ञासा समाधान (25-12-2024)

पंचकोश जिज्ञासा समाधान (25-12-2024)

आज की कक्षा (25-12-2024) की चर्चा के मुख्य केंद्र बिंदु:-

ईशावास्योपनिषद् में आया है कि अविचल वह ईश एक ही है, जो मन से भी अधिक वेगवान् है, वह सबसे पुरातन एवं स्फूर्तिवान् है, उसे देवगण (देवता अथवा इंद्रिय समूह) प्राप्त नहीं कर पाते, वह स्थिर रहते हुए भी दौड़कर अन्य (गतिशीलों) से आगे निकल जाता है, उसके अंतर्गत (अनुशासन में रहकर) गतिशील वायु – अप् (सृष्टि के मूल घटक) को धारण किए रहता है, का क्या अर्थ है

  • अप् = सृष्टि का मूल प्रवाह = जो मूल प्रकृति जिसे अव्यक्त कहते हैं, इससे वह प्रवाहित होता है = मौलिक उर्जा जिसमें सब विलीन होते है = जिसे ईश्वर ने सबसे पहले उत्पन्न किया = आनन्द ही अप् है = वह शांति और आनंद के रूप में चिदाकाश रूप में हर जगह है
  • देवगण प्राप्त नही कर पाते = देवता एक विषय को कहते हैं ( विषय जैसे Art Science Commerce), वह सारे विषयों में भी है और विषयों से परे भी है इसलिए देवता गण उसे प्राप्त नहीं कर पाते
  • देवताओं की एक Limit है इसलिए Limited लोग, Unlimited को नहीं पाएंगे

महोपनिषद् में आया है कि वासना रूपी जल से युक्त संसार जल में जो सद्ज्ञान रूपी नौका पर आरूढ़ है, वे ज्ञानी जन इससे पार हो गए, सांसारिक प्रपंच के जानकार पुरुष सासांरिक व्यवहार का ना तो परित्याग करते है तथा ना ही वे उसकी कामना करते है, अपितु वे उन के प्रति अनासत्ती का व्यवहार करते है, ज्ञानियों ने संकल्प का अंकुरित होना ही अनन्त आत्म स्वरूप आत्म चेतना का विषयासत्त होना माना है, वही संकल्प अल्प मात्रा में स्थान प्राप्त करके वे धीरे धीरे सघन होते है तत्पश्चात वे मेघ के समान सुदृढ होकर चित्ताकाश को ढककर जड़त्व भाव का संचार करते है, इसे समझकर आगे कैसे बढ़ा जाए

  • जो हमने पढ़ा उसके मनन चिंतन से पहले एक Paragraph को समझकर ही आगे बढ़े, चाहे उसमें कितना भी समय लगे
  • यदि बहुत लाईनें है तो उसमें से केवल एक लाईन को समझे तो दूसरे के लिए रास्ता खुलेगा
  • जैसे पहली लाईन में आया है कि यदि संसार हमारे चित्त को चंचल न बना पाए, संसार की कोई हलचल या क्रियाकलाप हमें प्रभावित न कर पाए तो कहेंगे कि हम पार हो गए, यहा कोई नदी नहीं है जिसे हमें पार करना है
  • किसी विषय या वस्तु की जानकारी मिलने पर हमारा उसके प्रति आकर्षण समाप्त हो जाता है
  • तालाब का भरना व सुखना, यह प्रकृति का नियम है, इस तरह संसार को जान लेने पर व्यक्ति सुख व दुःख में अपने मन को प्रभावित नहीं होने देगा तथा चित्त शान्त होगा, ज्ञान पाकर अब हमारा मन / चित्त निष्प्रभावी हो गया -> यही पार होना कहलाता है
  • अब यह हमारे चित्त को चंचल नहीं बनाता / उदास निराश नही रहते है अपितु हर हाल मस्त रहते है -> इसी को पार होना कहते है
  • पहले तला हुआ या स्वादिष्ठ भोजन देखकर मन करता था कि और खाए, परन्तु उसके हानि व नुकसान जान लेने से कि वह कितना नुक़सान करता है तो इस प्रकार की जानकारी / ज्ञान मिलने से उसके प्रति आकर्षण खत्म हो जाता है, अब जिन्हे इसकी जानकारी नहीं वे भले ही इसे खाए -> इसी को कहते है कि पार हो गया

फिर आगे बात आती है कि ज्ञानियों के संकल्प का अंकुरित होता ही अनन्त आत्मतत्व तुल्य स्वरूप चैतन्य का विषयासत्त होना है, का क्या अर्थ है

  • मान लीजिए कि यदि हमें जानकारी थी परन्तु फिर भी विचार उठा तो इसका अर्थ यह है कि अभी हमें उससे पूरी तरह से वैराग्य नहीं हुआ है, अभी हम पूरी तरह से निष्प्रभावी नहीं हुए है
  • विचार वास्तव में मस्तिष्क (दिमाग) से निकलने वाली विद्युत चुम्बकीय तरंग है, दिमाग एक BroadCasting स्टेशन है, जैसे हमारा आकाशवाणी वाला स्टेशन होता है, इसी प्रकार प्रत्येक व्यक्ति अपना एक आकाशवाणी वाला स्टेशन लेकर घूम रहा है
  • जो भी हमारा प्रसारण दिमाग से निकल रहा है तो तरंगें आकाश में जाकर हलचले करेगी
  • विचारों में एक चुंबकीय गुण होता है वह अपने जैसे विचारों को इकट्ठा करके फिर लौट कर आएगा
  • जब हम किसी चीज की खोज करने का संकल्प नहीं उभारते तो फिर वह विचार लौट कर भी नहीं आता, निराश होगे तो फिर निराशा वाले विचारो को ही इक्कठा करके हमारे पास आएगा व हमें और अधिक निराश बनाएगा, तभी हम Depression में जाएंगे
  • इसलिए यदि ज्ञानी जन या जानकर लोग ऐसा करते है तो उन्हें यह विचार और भी अधिक प्रभावित करता है, कोई भी ज्ञानी है तो वह अधिक संवेदनशील है, अज्ञानी को अधिक ज्ञान या चिन्ता नहीं रहती तो वह अधिक प्रभावित भी नही होता
  • इसी प्रकार समझे कि ईश्वर तो महाज्ञानी है तथा उसके स्मरण मात्र से प्रकृति बन जा रही है, उसके भाव बहुत तेज है, इसलिए यहा ज्ञानी शब्द का इस्तेमाल कर लिया
  • किसी विचार का फायरिंग किया तथा यदि चित्त भी शुद्ध रहा तो वह आपको अवश्य लाभ देगा
  • शुद्ध चित्त वाले साधक को यहा ज्ञानी कहा है तथा उसका विचार कही पर भी उतना ही तेजी से जाएंगा, क्योंकि यहा सारा संसार आकाश की भाति शून्य है, विचारो के लिए यहा कोई दीवार व कोई रुकावट नहीं है
  • आध्यात्म / आत्म साक्षात्कार के मार्ग पर दिशा मिलने मात्र से ही खुश हो जाना है कि हमें एक मार्ग तो मिला फिर यदि आगे फिर दरवाजा या रुकावट आएगी तो फिर आगे भी समाधान मिलता चला जाएगा

छान्दग्योपनिषद् मे आया है कि उस ब्रह्म लोक में जो भी मनुष्य ब्रह्मचर्य के माध्यम से अर तथा णय नामक दोनो समुद्रों को पार करते है, उन्ही को ही इस ब्रह्म लोक की प्राप्ति होती है, उन मनुष्यों की समस्त लोको में इच्छानुसार गति हो जाती है, का क्या अर्थ है

  • ब्रह्मचर्य के माध्यम से अर तथा णय ( लौकिक व पारलौकिक) दोनों बाते आई है, इसी को आरण्यक कह दिया जाता है, इसमें केवल आध्यात्मिक ही नहीं अपितु संसार का भौतिक ज्ञान भी रहता है
  • संसार का ज्ञान यह रहता है कि यह संसार कैसे बना है, कैसे अलग अलग तत्वों से मिलकर पदार्थ बनते है, कैसे बिछुडते है, इसकी भी जानकारी होगी तो इसे भी पार करेगा तथा आध्यात्मिक तत्व श्रद्धा, प्रज्ञा, निष्ठा, संकल्प, विकल्प, चित्त, बुद्धि, मन को भी अपने नियंत्रण में ले लेगा तथा ये सभी उसके द्वारा (ब्रह्मचर्य के द्वारा) पार पाएंगें
  • ब्रह्मचर्य का अर्थ केवल वीर्य से ही नहीं अपितु ब्रह्म को चरा जाए, तथा उस जैसा बन जाए, इसी को ब्रह्मचर्य कहेंगे, यही आत्मज्ञान है
  • उपनिषद् को चरना, उपनिषद् ब्रह्म का घास है, ब्रह्म की खेती है, इसे चरा जाए, खाया जाए तो ब्रह्म जैसा बनेंगे
  • ब्रह्मचर्य का अर्थ -> बह्म में एक विशेष प्रकार की मनोभूमि रखी जाए तब वह संसार में रहकर भी संसार को पार कर लेगा
  • ईश्वर सर्वव्यापी है तो हमें भी सर्वव्यापकता मिल जाएंगी, हम ही अपने को एकांगी कर लिए है तथा अपने को एक कोने में डाल दिए हैं तथा फिर कहते है कि भगवान नहीं मिल रहा है
  • अपने हृदय को थोडा विशाल करे तो हर जगह भगवान मिलेगा

वांग्मय 22 में आया है कि भूमंडल बहुत तेज गति से अपनी धुरी पर, सुर्य की परिकम्रा अपनी कक्षा पर, सौरमंडल से महासूर्य की परिकम्रा के पथ पर, घूमता हुआ लट्टू जिस तरह इधर उधर लहकता रहता है, लहकते रहने के कम्र पर, ब्रह्माण्ड के फलते फूलते जाने की प्रक्रिया के कारण अपने यर्थात आकाश के स्थान को छोड़कर

घूम रहा है, यहा 5 गति बनाई गई है, ये गतियां कौन-कौन सी है

  • यहा पर इन पांच गतियों का वर्णन है
  1. पृथ्वी 24 घंटे में एक बार अपने अक्ष पर घूम रही है
  2. लट्टू की तरह घूम रही है
  3. सुर्य की परिक्रमा कर रही है
  4. सुर्य कृतिका नामक नक्षत्र अतिसूर्य की परिक्रमा कर रहा है
  5. सारे तारे मिलकर ध्रुव तारे की परिक्रमा कर रहे है
  • हर क्षण परिवर्तनशील है, जो क्षण बीत गया वह पुनः लौटकर नहीं आएंगा

यदि हम पृथ्वी पर रह है तो हमारी पांच गतिया है परन्तु जो अन्य ग्रह पर जैसे चंद्रमा पर रह रहा होगा तो क्या उसके लिए वह छटी गति होगी

  • इसमें यह देखा जाता है कि हम किस plateform पर है
  • यदि हम चंद्रमा पर रहेंगे तो उसके साथ पृथ्वी का गति भी रहेगा
  • पूरी प्रकृति को पंचधा करके यहा दिखाया है
  • यदि हम परमाणु में घुस जाएंगे तो गति की संख्या अधिक हो जाएगी
  • परमाणु में यदि Electron में है या फिर Nucleus में है तो गतियों की संख्या बढ़ते बढ़ते अनन्त हो जाएंगी
  • कहा से हम Count कर रहे है, यह इस पर निर्भर करता है कि अभी ऋषि किसके सापेक्ष में उसे देख रहे हैं

गायंत्री तंत्र में आया है कि कंठ पर्यन्त जल में खड़ा होकर जप करने से प्राणों के नाश होने का भय नहीं रहता, इसलिए सब प्रकार की शांति प्राप्त करने के लिए जल में प्रविष्ठ होकर जप करना श्रेष्ठ है, जल का सूक्ष्म व कारण स्वरूप क्या है तथा सभी प्रकार की शांति का क्या अर्थ है

  • कंठ आकाश तत्व है, पांच तत्वो में कंठ (आकाश) अन्तिम वाला तत्व है इसके बाद महतत्व शुरू हो जाता है, नीचे मूलाधार पृथ्वी है, वहां पृथ्वी हर क्षण गल रही है, वहा प्राणों का अधिक भय है, जल तत्व में अपेक्षाकृत प्राणों का कुछ कम भय है, अग्नितत्व में थोड़ा और कम हो रहा है
  • सोम उपर की तरफ उठ रहा है तथा उठते उठते बिन्दु (आकाश) में मिल रहा है, फिर वहा पर भय नहीं रहेगा
  • यहा सिंधु आकाश को कहा है तथा आकाश को यहा कंठ माना है
  • ठीक इसी तरह से हमारे ज्ञान भी अपरिमेय को प्राप्त करें, परिमिती से अपरिमिती को जाए क्योंकि आकाश अपरिमेय है

तृप्ति तुष्टि शान्ति, आत्मिक उपलब्धियों को कैसे प्राप्त किया जाय क्या ये सब मन की दशाए है कृपया प्रकाश डाला जाय

  • तृप्ति तुष्टि शान्ति, ये सभी मन की दशाएं है लेकिन मन की कौन सी दशा तृप्ति को प्राप्त कही जाएगी
  • तृप्ति = स्थूल इंद्रियों से जुडा रहता है जैसे स्वादिष्ट भोजन के मिलने से इंद्रियों की तृप्ति हो जाती है, यहा जीभ की तृप्ति हो रही है, इस प्रकार का स्वादिष्ट भोजन खाना, यह मन का एक लगाव इंद्रियों के प्रति था
  • तुष्टि = का संबंध मन से रहता है = स्थूल शरीर में कम्रेदियां है तथा इसी से तृप्त होता है, फिर मन में लोभ मोह अंहकार होता है तथा ये सब मन के विषय होते है
  • मन से जो संबंध होता है वह भी तुष्ट होता है, इसे ही हाह / तुष्टि / तृष्णा कहते है
  • तृष्णा में -> लोकेषणा – वित्तेषणा – पुत्रेषणा आता है, कुछ काल के बाद में पुत्रेषणा भी खत्म हो जाती है, संसार में किसी को भी अपना शिष्य बनाकर लाभ दे सकते हैं, वह भी अपने पुत्र से अधिक काम करेगा, तब भी तृष्णा शांत होती है
  • धन इतना बढ़ा लिये कि अब संभल नहीं रहा तो यह वितेषणा है तथा यह भी परेशानी का कारण बनता है
  • फिर इसमे सभी एष्णाओं की शान्ति होती है
  • एक संत के लिए बहुत Freedom है वह जब जहा जैसे चाहे वैसे रह सकता है
  • ये सभी मनोभूमियां है उसी के लिए तृप्ति तुष्टि शान्ति शब्द का प्रयोग पूज्य गुरुदेव ने किया है
  • शान्ति = अपनी मान्यताओं को कहा जाता है, जब तक अपनी आत्मस्थिति के अलावा कुछ और मान्यता बनाएंगे तो सब Limited / सीमित / Boundary में है
  • पहले जितना मोह संसार से था यदि ईश्वर से जुड़ेगा तो संसार भी अच्छा लगने लगेगा, ऐसा नहीं है कि संसार छूटेगा बल्कि वही संसार पहले से भी अच्छा प्यारा लगने लगता है, ईश्वर का ही साम्राज्य हर जगह है
  • ये सभी मन की ही दशाएं है इन्हे कैसे पाया जाए इसी के लिए साधना है
  • मनोमय और विज्ञानमय मिलकर तुष्टि को भी शांत कर देते हैं तथा जब आनन्दमय को पार किया जाता है तो अथाह शांति व आनंद की प्राप्ति होती है
  • पाच कोशो को तीन में बाट दे तो भी यही साथना आएंगी

क्या मानसिक प्राणायाम, यौगिक प्राणायाम से ज्यादा प्रभावकारी है कृपया प्रकाश डाला जाय

  • यौगिक प्राणायाम भी चाहिए
  • केवल मानसिक प्राणायाम करेंगे तो वह कम प्रभावी होगा
  • यौगिक में मानसिक भी जुडा हुआ है
  • योग शब्द में मन शब्द भी जुड़ा हुआ है
  • Deep Breathing Exercise को भी प्राणायाम कहा जाता है
  • यौगिक शब्द जोडने के साथ Mental State भी जुड़ा हुआ है व ईश्वरीय भाव भी जुड़ा है, यौगिक प्राणायाम में मानसिक प्राणायाम भी शामिल हैं

परबह्मोपनिषद् में पिपलाद ऋषि कह रहे हैं कि ब्रह्म को चार अवस्थाओं में प्राप्त किया जा सकता है -> जागृत – स्वपन – सुषुप्ति – तुरीया, जागृत अवस्था में ब्रह्मा स्वप्न अवस्था में विष्ण , सुषुप्तावस्था में रुद्र एवं तुरीयावस्था में अक्षर चिदरूप ब्रह्म ज्ञातव्य है, इसका क्या तात्पर्य है

  • तीन ही देवता है, जहा त्रिदेव की बात आएंगी तो वह ब्रह्मा विष्णु व महेश है
  • उत्पत्ति / सृजन, पोषण, परिवर्तन -> यही सृष्टि कम्र चल रहा है
  • जागृत अवस्था में उत्पत्ति को ब्रह्मा से जोड दिया, स्वपनावस्था में उसे विष्णु से जोड दिया, विष्णु क्षीर सागर में सोकर सपना देखते रहते है
  • इस प्रकार लगातार Creation चलता रहता है, इसलिए संसार शून्य है कह दिया जाता है कि यह सारा संसार किसी का सपना है
  • संसार को कितना भी बढ़ा ले, अन्त में मर गए तो सपना कहा का कहा रह गया
  • सुर्य भी एक दिन Fuse होकर, Black Hole बनकर शून्य में विलीन हो जाएगा, यहा शाश्वत कुछ भी नहीं है,
  • शिवजी के समेटने को / संहार को परिवर्तन कहेंगे
  • तुरीयावस्था में आ गया कि तीनो कहा से निकला था, महासमुद्र जो है उसे तुरीया कहेंगे, तीनो जहा से निकला तथा जो तीनो से परे है, वही तुरीया है 🙏

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