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पंचकोश जिज्ञासा समाधान (25-11-2024)

पंचकोश जिज्ञासा समाधान (25-11-2024)

कक्षा (25-11-2024) की चर्चा के मुख्य केंद्र बिंदु:-

सुन्दरीतापिन्युपनिषद् में आया है कि उस मुक्तात्मा के लिए ना कोई निरोध है ना ही उसकी उत्पत्ति होती है, ना वो बंधन में है, ना ही वह मुक्ति चाहता है (मोक्ष का इच्छुक भी नहीं है), इस अवस्था को ही परमार्थता कहते है, यहा परमार्थता को कैसे समझेंगे

  • परमार्थता एक शब्द भौतिक जगत में दूसरो को सुख देने के लिए स्वयं दुखः सहे
  • एक शब्द के अनेक अर्थ होते हैं
  • यहा योग की भाषा इसका आध्यात्मिक अर्थ भी लिया गया है, इसका अर्थ है कि जब कोई मुक्त आत्मा (विदेह मुक्त) हो गया [यहा मुक्त आत्मा का अर्थ जीवन मुक्त नहीं अपितु विदेह मुक्त से है], पांचो कोशो की परत को जो हटा दिया
  • जीवन मुक्त = संसार में रहते हुए, संसार के बंधनो में नहीं फंसना या यदि पितर योनि में भी गए तब भी यदि स्थूल शरीर रहे या सूक्ष्म शरीर का परत रहे, कोई भी परत शेष है तो उसे जीवन मुक्त कहेंगे -> शरीरी हो या अशरीरी
  • पांचो सूक्ष्म परत भी जब हट गया तथा कोई भी देह उसका ना हो, कोई भी कोश उसका ना हो तो उसके लिए पूरा Universe ही उसका शरीर हो जाता है, उसे Bodyless Body कहेंगे, आत्मा कभी नहीं मरती तो उसका तो बौधत्व रहता ही है, तब वह देखता है कि उसके लिए बंधन कही है ही नहीं
  • उस स्थिति को यहा परमार्थ कहा है, वह परम अर्थ में जी रहा है, अन्ततः उसी अवस्था में ही पहुंचना है
  • धान का छिलका हट गया तो चावल नहीं जन्मेगा, छिलका ही गलकर खाद बनते है तथा उसमें अंकुरण होता है, छिलका ही भोजन है, छिलका रह गया तो वह जन्म लेगा
  • परम का एक अर्थ ईश्वर भी होता है जैसा आरती (यं ब्रह्म वेदान्त विदो वदन्ति, परम् प्रधानम् पुरुषम् तथान्ये . . .) में भी ईश्वर के अनेक नामों में परम नाम से भी ईश्वर को पुकारा जाता है

नारदपरिव्राजकोपनिषद् में आया है कि नारद जी भिन्न भिन्न स्थलो का भम्रण करने के बाद नैमिषारण में आते है, . . . यह नैमिषारण कहा है

  • नारद परम्परा में चलने को परिवाज्रक कहते है, नारद किसी के बंधन में नहीं रहते, वे जहा चाहते है वहा आ जा सकते है, यही परिवाज्रक का असली अर्थ है
  • नैमिषारण = ऋषिकेश को कहते हैं
  • यह हरिद्वार से थोडा दूर है तथा वहा गंगा नदी के किनारे रहने की सुविधा है, ऋषियों के समय में वह सारा क्षेत्र नैमिषारण कहलाता था

नैमिषारण में शोनक आदि ऋषियों का संगम था, वे नारद जी से पूछते है कि संसार के बंधनो से मुक्ति का क्या उपाय है तब नारद जी मुक्ति का उपाय बताते हैं कि श्रेष्ठ कुल में प्रार्दुभूत पुरुष यदि उपनयन संस्कार में संकलित न हुआ हो, तो सर्वप्रथम उसका विधिवत उपनयन संस्कार सम्पन्न कराएं, तदन्तर 44 संस्कारो से सम्पन्न हो, यहा 44 संस्कार क्या है?

  • हमारा 16 संस्कार होता है, उसी में विभिन्न Variety के उप संस्कार भी जोड़ दिए जाते है
  • विद्याम्भ के साथ वेदाम्भ संस्कार भी जोडा, जबकि वेद भी विद्या है

4 प्रकार के आश्रम है ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ व संन्यास -> इसमें 4 प्रकार का बह्मचर्य व 6 प्रकार का ग्राहपत्य तथा वानप्रस्थ 4 प्रकार का बताया है का क्या तात्पर्य है

  • संन्यास या वानप्रस्थ -> अपने गांव में ही कुटिया बनाकर रह रहे हैं परन्तु अलग रह रहे हैं
  • किसी के सहारे रह रहा है तथा पूरी तरह से आत्मावालंभी नहीं बना तो इसी के आधार पर बांट दिया

स्थावरजंगम क्या है

  • जंगम = चलने फिरने वाले साधु संत जो घूम घूम कर ज्ञान बाटते है
  • स्थावर = जो गुफा में रहते है तो पता ही नहीं चलता कि कौन ऋषि अन्दर तप कर रहा है या जैसे पेड पौधे भी स्थावर कहलाते है

गायंत्री महाविज्ञान भाग – 2 में 24 मुद्राए बताई गई है, . . . मुद्राएं एकान्त में दिखाई जाती है, किन्ही के सामने इनका प्रदर्शन नही किया जाता, इन मुद्राओं को न जानने वालो की गांयत्री निष्फल हो जाती है, का क्या अर्थ है

  • मुद्रा को भी जानना होगा तथा इसे करने से सामने वाले पर क्या प्रभाव पड़ा तथा सामने वाले को प्रसन्नता मिलती है तभी मुद्रा कहलाती है, यदि सामने वाले पर खराब असर पड़ा तो मुद्राओं में नही आएगा
  • मुद्द = प्रसन्नता
    जो देवताओं को प्रसन्न करे,वह मुद्रा कहलाएगी
  • भाव भंगिमाओं से देवताओं को अपनी बात कहना या प्रसन्न करना, अपनी भावनाओं को भी क्रियाओं में जोडना चाहिए
  • यदि क्रियाओं में भावनाए नहीं जुडेगी तो गायंत्री निष्प्राण हो गई या कह सकते है कि गांयत्री निष्फल हो गई
  • कहने का अर्थ यह है कि केवल बैखरी को ही न जाने अपितु मध्यमा वाणी को भी जाने
  • भाव भंगिमाओ को नहीं जानेंगे तो भी परेशान ही करेंगे तो इसलिए भाव भगिमाओं को भी जाने, भाव भगिंमाओ में भी प्राण है तथा बैखरी से अधिक शक्तिशाली होता है
  • यहा कहने का अर्थ इतना है कि हमें केवल बैखरी वाणी ही नही अपितु उपर की वाणियों को भी जानना / समझना चाहिए
  • कमर सीधा करके नहीं बैठेगे तो प्राण का क्षरण होगा व कमर दर्द होगा -> यह सब भाव भगिमाओं में आता है
  • अगर कुछ अपने पास रखना है तो उसे अच्छे से उपयोग करे

उपवास इस कम्र को यदि हम चालु रखते है और हमें कोई भी समस्या नहीं है तो भी क्या हमें उपवास करते रहना चाहिए

  • यदि भोजन ले रहे है तो उपवास कम्र जीवन भर चालु रखे क्योंकि हो सकता है भोजन में हम Toxines खा गए या overdiet खा लिया हो तो उपवास हमें उस नुकसान से बचाएगा
  • अब यह प्रश्न है कि कौन सा वाला उपवास प्रत्येक दिन कर सकते है तो पाचक उपवास जीवन भर व प्रतिदिन चल सकता है
  • दो बार भोजन ले, दूसरा भोजन तब ले जब पहला पच जाए, बीच में भूख लग भी जाए तो फलाहार या रसाहार ले, यह भी उपवास ही है
  • स्वाध्याय भी उपवास में आता है, यह जीवन भर कर सकते है, यह विचारो वाला / आकाश तत्व वाला भोजन है, यह भी जीवन भर चलेगा

गायंत्री महाविज्ञान के तृतीय भाग में आया है कि आत्मा अमर है शरीर से भिन्न है, ईश्वर का अंश है, सद्चितादानंद है परन्तु इसकी अनुभूति भूमिका में नहीं होती, भौतिक जगत में रहकर यह महसूस ही नही होता कि हम ईश्वर की सन्तान है, तो कैसे महसूस करे कि हम ईश्वर के अंश है

  • सुख में व्यक्ति अक्सर भूल जाता है
  • आनन्दमग्न में भुल्लकडी आ जाती है, इसे कहते है आनन्द में बेहोश होना
  • गायंत्री मंत्र कहता है कि मेरी एक बात ध्यान देकर सुनो तुम बराबर जागते रहो
  • प्रमाद मनुष्यो का दुश्मन है, वह निश्चित रूप से आक्रमण करेगा, संसार की बनावट ही ऐसी है कि जहा भी भुल्लकडी आई तो आक्रमण हो जाता है तथा हम फंस जाते है
  • भौतिक जगत को असुर कहा जाता है तथा चेतना को सुर कहते हैं
  • भौतिकता में खो गए तो अपनी आत्म भुल्लकडी आएगी ही आएगी, देवता मग्न हुए तो महिषासुर तबाही करने पहुच जाएगा
  • विज्ञानमय कोश के 4 क्रिया योगो का अभ्यास करें सोहम साधना, आत्मानुभूति योग, ग्रथि भेदन, स्वर संयम
  • अभ्यास करते करते पक जाता है
  • घटनाओं से भावनात्मक संबंध बनाकर सोचता चाहिए कि ईश्वर ही हर हाल में संभाल कर रखे हुए है
  • उपनिषद् का स्वाध्याय हम एक दिन भी न छोडे, उपनिषद् ही आत्म बोध करवाता है

नैमिषारण के बारे में आता है कि यह वो स्थान है जहा वेद लिखे गए, क्या ये नैमिषारण पहले से भिन्न स्थान है

  • एक नाम के अनेक स्थान या नाम हो सकते है
  • एक से अधिक Nomenclature हो सकता है, इसलिए यह भी संभावना है कि वहा भी था
  • लक्ष्मण जी का शक्ति वाण से First Aid वाला उपचार सुषैन वैद्य ने किया परन्तु उनका Permanet Cure पिपलाद ऋषि ने किया पिपल के पत्ते खिलाकर धीरे-धीरे विष तत्व को बाहर निकालकर किया

  नारी को देवी की उपमा और प्रधानता दी गयीं है देवता उसके अनुचर है, का आशय क्या देवत्व जगाने की शक्ति से है कृप्या प्रकाश डाला जाय

  • नारी शब्द Softness के लिए आता है
  • आत्मा न नर है ना नारी है
  • आत्मा का लिंग नहीं होता
  • नारी का अर्थ = शिवजी को अर्धनारीश्वर कहा गया, आदमी के भीतर भाव संवेदना की मात्रा अधिक रहनी चाहिए, यदि भाव संवेदना कम रही व ज्ञान बढ़ा ले तो वह नास्तिक हो जाता है तथा हर चीज में तर्क करने लगेगा
  • भगवान भाव सवेदनाओं के भूखे है, इसलिए भावनाशील व्यक्ति ईश्वर को पा लेता है
  • प्रेमत्व की प्रगाढ़ता को लेकर इसे श्रेष्ठ कहा गया है, ममत्व से माँ शब्द बना है
  • करुणा आप की सब पर रहे, यह इसलिए कहा गया ताकि हमारी भाव संवेदना अधिक रहे, चाहे ज्ञान भले ही कम रहे
  • Softness / उदार हृदय बहुत जरूरी है
  • ईश्वर इतना Soft है कि कीडे मकौडो में भी प्रेम भाव से रहता है परन्तु हम मनुष्य होकर आपस में ही घृणा व द्वेष के भाव रखते है

ग्रार्हपत्य अग्नि, आवहनीय अग्नि और दक्षिणाग्नि क्या है

  • आहवाहन – उपासना -> ईश्वर के साथ बह्म सायुज्यता को आहवाहनीय कहते है
  • ग्राहपत्य – साधना -> अपने भीतर ग्रहण कर रहे है तो ग्राहपत्य हो गया
  • दक्षिणाग्नि = उपलब्धि = अराधना = Approach
  • नचिकेता की तीन अग्नियां भी यही है
  • गुरुदेव ने इसी को उपासना – साधना – अराधना, ओजस – तेजस – वर्चस या स्थूल – सूक्ष्म – कारण भी कहा गया है, इन्हीं को यहा साधना के अर्थ लिया गया है
  • तीन प्रकार की अग्निया इस प्रकार भी ले सकते है
  1. भोजन पकाने वाला
  2. लाश जलाने वाला
  3. यज्ञ करने वाला / देवत्व बढ़ाने वाला     🙏

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