पंचकोश जिज्ञासा समाधान (25-10-2024)
आज की कक्षा (25-10-2024) की चर्चा के मुख्य केंद्र बिंदु:-
स्वःसंवेदोपनिषद् में तत्वज्ञान को गुहा में प्रविष्ठ कहा गया है अज्ञानी द्वारा किए गए अपराध को श्रेष्ठ कहा गया है क्योंकि वे पूरे अभिमान के साथ उस मार्ग पर चलते है, वे पुष्पित वचनो के द्वारा मोहित हो जाते है . . . अज्ञानी ज्ञानवान से बढ़िया कैसे है तथा शास्त्र को जानने वालो को तथा भक्तो को भी अज्ञानी कहा है, यहा क्या सत्य है
- उपनिषदो का उददेश्य अभेद दर्शन है
- उपनिषद हमें यह बताता है कि यह बह्म के सिवा कोई दूसरा तत्व नहीं
- ईश्वर सत् है, चित् है, आनन्द है -> ये उसकी महत्वपूर्ण पहचान है
- उर्जा / पदार्थ को नष्ट नही किया जा सकता
- यहा का हर तत्व अविनाशी है (ईश्वर हर जगह है), सृष्टि में चैतन्यता है, आनन्द सृष्टि के कण कण में घुला है
- हमने अपने को सत् / रज / तम का Patient बना लिया
- अभिमानी मानना = अपने को शरीर मानना
- केवल वेद पढने के माध्यम से बता रहा है कि हमें स्वर्ग मिलेगा तो देव लोक तथा ब्रह्म लोक तक भी पुनरावर्ती है -> इसलिए अज्ञानी है तथा अनन्त तक की उनकी यात्रा नहीं है
- यदि आत्मसालात्कार करके ज्ञानी हो जाएंगा तो क्रिया की प्रतिक्रिया नहीं होगी
- परमात्मा के दो रूप है, एक दिखने वाला तथा एक नहीं दिखने वाला
- जब सब जगह वही है तो दोनो रूपो में वही है
- जहा अज्ञान से प्रकाश की बात मिल रही है तो समझे कि इसके शरीर को किसी ने इस्तेमाल कर लिया
- आंखो में अज्ञानता का कचरा है कि पानी अलग दिख रहा है बर्फ अलग दिख रहा है
- ईश्वर ही फंसाने वाला गुरु / गुरु घंटाल / शिकारी बनकर भी परीक्षा लेने आते है
- यह भी एक प्रकार का Test है
जाबालदर्शनोपनिषद् में दत्तात्रेय सांस्कृत को अष्टांग योग के विषय में बता रहे है कि अहिंसा -> वेद में वर्णित विधी के अतिरिक्त मन, वाणी व शरीर के द्वारा यदि किसी को किसी तरह से विपरित किया जाता है अथवा उसके प्राणों को शरीर से अलग किया जाता है . . . यहा वेद में वर्णित विधी क्या है
- विनाशाय च दुष्कृताम -> यदि जो दुष्ट प्रवृति /वेद विरुद्ध आचरण करते है तो उसे मारने / समाप्त करने में पुण्य मिलता है
- यहा मरता कोई है ही नहीं
- धृति = धारणशीलता को कहते है
- जैसे ईश्वर के गुणों को धारण करना
- प्राणायाम में कुंभक करके धारण करना पड़ता है तो प्राणायाम का असली लाभ कुंभक ही है
तन्मात्रा साधना के अभ्यास हेतु – कौन कौन से साहित्य का स्वाध्याय करना है ?
- गायंत्री महाविज्ञान का तृतीय भाग में मनोमय कोश जागरण में तन्मात्रा साधना आता है
- वांग्मय 13 में भी तन्मात्रा का दिया है
- यहा उदाहरण दिया है तथा स्वाद मे खो जाए तथा अवचेतन मन की गहराई में जाए तथा उसे याद करते रहे लंबे समय तक, तब उस समय तक तो कुछ खाने का मन नहीं करेगा
- यदि मुंह में लेकर लंबे समय तक भोजन चबाता रहे तो कम भोजन में ही पेट भर जाएगा
- गुरुदेव कुछ तुलसी के पत्ते ही उनके लिए पर्याप्त थे, वे भोजन के अणु परमाणु को तोड रहे होते थे, उन्होंने अपनी जठारग्नि को बढ़ा लिया था
- हमें हमारी ललक किस वस्तु के प्रति अधिक है वह देखना है तथा फिर उस भोजन को लबें समय तक चबाकर खाना है, इस प्रकार उस भोजन की यात्रा को लंबा किया जाता है
- आकाश में भी सब घुला हुआ है तो जब जब हम उसे याद करेंगे तो आकाश से ही शरीर में खीच लेगे तथा उससे नुकसान भी नहीं होगा
- सुर्य से ही सब बना है तो उससे भी या आकाश से भी सब खींचा जा सकता है
- तन्मात्रा सिद्ध होने पर जैसे पहले बिना पदार्थ के मन नही मानता था परन्तु अब मन तृप्त हो जाता है या तो आकाश तत्व से वह पदार्थ खीचकर या उसके जैसा अधिक गुणों वाला दूसरा भोजन करके तथा फिर हमारा मन खास वस्तु के बंधन में नहीं रहेगा
- तन्मात्रा साधना से यह बुद्धि विकसित हो जाती है कि तन्मात्राओं का कोई अस्तित्व ही नही है
- क्योंकि स्वाद की अपनी सत्ता नहीं, यदि भूख नहीं है या सम्मान नहीं मिला तो भी स्वाद नहीं मिलेगा या खट्टे में मीठा डाल दिया तो भी भोजन में स्वाद नहीं लगेगा
- समझ में आने लगता है कि हम वही खाएंगे जो हमारे शरीर के लिए फायदेमंद हो
- यह बहुत जरूरी साधना है
- यदि स्वाद को याद करके मन न भरे तथा तैलंग स्वामी जैसी शक्ति आकाश से खीचने की नही हैं तो उस भोजन को भरपेट लीजिए जो शरीर मन आत्मा के लिए फायदेमंद है तथा उस बढ़ी हुई उर्जा का लाभ ले
- जो भोजन स्वास्थय के लिए हानिकारक है तो मन को समझाने पर मान जाएगा, मन नौकर है तथा नौकर को सर पर चढ़ा कर न रखे
गुरुदेव के एक विडियो में बताया है कि हमारी 4 वाणी है परा, पश्यन्ति, मध्यमा, बैखरी तथा हमारे साथ बोला गया एक मंत्र, एक हजार मंत्र के समान है तो जब हम गुरुदेव की वाणी के साथ जाप करते हैं तो हमें अधिक प्रभावशाली लगता है परंतु जब हम स्वयं से माला जप करते हैं तो अधिक प्रभाव नहीं लगता तो इन दोनों में से कौन सा तरीका उचित है
- जिसमें फायदा अधिक मिलता हो, वह करना चाहिए -> जहा शरीर मन व आत्मा को अधिक लाभ मिले
- संसार में सब व्यापार पर चलता है, जिसमें अधिक लाभ मिले, वह कीजिए
उगते हुए सूर्य पर त्राटक करते समय मन में क्या भाव लाना है मन को कहा लेकर जाना है
- सभी तरह की साधनाओं का उदेश्य आत्म साक्षात्कार करना है वह साधना / त्राटक उसमें useful है
- त्राटक में हमें ईश्वर को देखना है, सुर्य को नहीं
- महाप्रलय में सुर्य भी समाप्त हो जाता है
- सुर्य पर त्राटक तब तक करे जब तक सुर्य की आत्मा न दिखने लगे
- यर्जुवेद के 40 वे अध्याय का अंतिम मंत्र = यो सो आदित्य पुरुषा सो सो अहम्
- यहां पूरे यर्जुवेद का उद्देश्य बताया गया कि सृष्टि में जो भी दिखाई देता है उसकी मूल आत्मा जो है वह बह्म है और वही मै हूं, उस अवस्था में सूर्य प्रिय लगने लगेंगे, यहां त्राटक में भेद दृष्टि को समाप्त करने का प्रयास करना है
- कोई व्यक्ति बोलकर चला गया तथा बाद में हम उस की बोली हुई बातों पर स्मरण, मनन चिंतन कर रहे है तो यह concept त्राटक कहा जाएगा, जो पढ़ा गया उसके बारे में दिन-रात सोचा कॉन्सेप्ट त्राटक ही है
- जो बोला गया तो उसके बोलने का भाव क्या था, यदि भावनाओं में जा रहे है तो हमने उनके शब्दों को हटा दिया तथा हम अपनी भावनाओं में गहराई ला रहे है, त्राटक हमें उसके केन्द्र बिंदु में ले जाता है तथा एकाग्रता ले आता है
- Concentration को ही त्राटक कहते है, त्राटक हमें आत्मा से साक्षात्कार करने में सहयोग करता है
- आत्मसंयम में, आत्मा में धारणा – ध्यान – समाधि तीनो को इक्कठा करना है, मैं कौन हूँ -> यदि मैं बह्म हूं तो वह गुण मुझमें आना भी चाहिए, इसी प्रकार अभ्यास करने से त्राटक सिद्ध होता है
क्या समय दान और गृहस्थ योग एक दूसरे के पूरक हैं कृपया प्रकाश डाला जाय
- यदि एक दूसरे के पूरक नही भी है तो हमें बनाना चाहिए
- यदि समय देने की पात्रता नहीं है तो कोई लाभ नही मिलेगा
- समाज को कुछ देना है तो प्रतिभा भी चाहिए
- पहले अपने घर के लिए ही समय दे, परिवार में सुसंस्कारिता का समावेश / विकास करे
- घर में मरीज की सेवा करे या अन्यों की मदद करे या छोटे बच्चो को मदद करे
- गृहस्थ योग बहुत महत्वपूर्ण है तथा हमारा कर्तव्य भी है
गाव में सूतक पडा है तो दीपावली में देवताओं का पूजन करना चाहिए या नही
- खूब करना चाहिए, घर मन्दिर है तथा उसमें देवता हैं
- देवताओ पर सूतक नही लगता, कोई मर जाए तो भी मन्दिर में सूतक नही लगेगा -> आरती, पूजा पाठ चलता रहेगा
- संसार में प्रलय हो जाने पर भी यज्ञ तप दान पूजा कभी भी बंद नही होता
- शमशान घाट पर भी वेद मंत्र बोले जा रहे है, यज्ञ किया जा रहा है, सम्पूर्ण जीवन ही यज्ञमय है
- सूतक में तो और भी अधिक दीपक जलाया जाता है, 9 दिन तक अखंड दीपक जलाते है
- आत्मा मरती नही तथा शरीर के मरने पर स्वर्ग में जाने पर शोक किसके लिए मना रहे हैं
- यज्ञ तप दान बंद नही किए जाए, इससे उस आत्मा को शांति मिलती है जो शरीर छोडा है
- गुरुदेव ने जब शरीर छोडा तो कोई भी सूतक नही लगा
- सूतक एक मानसिक अपरिपक्वता है, मौन रहते हुए सभी काम करे 🙏
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