पंचकोश जिज्ञासा समाधान (23-10-2024)
कक्षा (23-10-2024) की चर्चा के मुख्य केंद्र बिंदु:-
स ह वै उपनिषद् में लौकिक ऋण व देव ऋण का क्या अर्थ है
- लौकिक ऋण = पितृ ऋण = का कर्ज समाज सेवा से चुकता है, हमें लोक सेवा में अपनी भूमिका सदा रखनी चाहिए, केवल समाज का लाभ ही नही लेते रहना चाहिए अपितु हमें भी समाज का ऋण सामाजिक कार्य करके चुकाते रहना चाहिए
- समाज में कुछ अच्छा कार्य जैसे वृक्षारोपण, साफ सफाई, स्कुल कालेज निर्माण . . . करते रहना चाहिए तथा समाज में कुछ अच्छा कार्य करके ही शरीर छोड़े
- देव ऋण = मनुष्य में देवत्व का उदय ही देव ऋण चुकाना है, अपने चरित्र चिंतन व्यवहार को ऊंचा उठाए ताकि देवताओं के गुण हमारे शरीर में भी दिखने लगे, इसी के लिए धरती पर जन्म लेना पड़ा
- देवताओं का शरीर कभी बुढा नही होता तथा उनका शरीर पूरे अंतरिक्ष में घुला रहता है
- वैश्वानार अग्नि = अपने शरीर के भीतर व्यष्टि कुण्डलिनी = बाहर की समष्टि कुण्डलिनी, यही वैश्वानार अग्नि है, इसी को अपने भीतर जागृत करना होता है
. . . अष्टांग योग में धारणा को ही विशेष महत्व दिया है और धारणा से ही सारी सिद्धियां मिल जाएगी तथा परमात्म से सम्बन्ध जुड जाएगा, वहा पर कटि प्रदेश में ईडा, पिंगला सहित दस नाडियों में सुष्मना नाम की बह्म नाड़ी स्थित है, वहा पर भी अनेक नाड़ियां है, जो अत्यन्त सूक्ष्म व लाल पीली काली ताबे के रंग की है, वहा पर भी जो नाडी अति सूक्ष्म व पतली है . . . का क्या अर्थ है
- नाभी से अधिकतर नाड़ियां निकली है इसलिए इसे नाभी कंद कहते है जैसे जिमीकंद शक्करकंद, जिसकी जड़ नीचे मूल आधार है
- लाल पीली रंग की नाडियों का अर्थ अलग अलग Frequencies से है, अलग रंग की नाड़ियां, वहा से प्रसारित होने वाली तरंगे है
- पूरे शरीर में 72000 नाड़ियां है तथा 33 vertibra column है तथा उसी में 2 छोर है
- चुम्बक के दो छोर की भांति मूलाधार व सहस्तार चक्र है
- मूलाधार जड को कहते है तथा वहा पर प्राण का वास है एवं प्राण से ही सृष्टि बनी है तथा ज्ञान सब चला रहा है -> वह सहस्तार है
- बाहर Ganglions का सीरीज बना है जो सभी उपत्तिकाओं का Office वही है
- जहा जहा नाडी गुच्छक इक्कठे होकर मिलते है, वे सभी Junction Box / उपत्तिकाएं है
- लाल पीले का अर्थ है कि अलग अलग Frequency की तरंगे जा रही है
- श्वेत रंग = आध्यात्म / आध्यात्म का रास्ता है
जिस काल में न तो इंद्रियों के भोगो में और ने कर्मो में ही आसत्ती होती है, उस काल में सर्व संकल्पो का त्यागी पुरुष योगाकूल कहा जाता है, तब जिस काल में हमारे पास संकल्प नहीं है तब हमने संकल्प का भी त्याग कर दिया, तब उस पुरुष को योगारूढ़ कहा जाएगा तो क्या जब मनुष्य पुरुष कर्म नही करता तथा संकल्प विहीन हो जाते है तब योगारूढ़ कहलाएगें
- जब हम जगें रहते है तो कुछ न कुछ सोचेंगे तो सोचने की क्रिया संसार की तरफ होती है
- उपनिषदो का कहना है कि संसार है ही नहीं तो ईश्वर के लिए सोचने का मौका ही नहीं मिला तो सांसारिक चिंतन से विराम देना ही संकल्पो से विहीन होना है
- संसार को विराम देने पर भी कुछ तो शेष बचेगा तो शेष कौन है? शेष पर विष्णु रहते है
- शेष = ईश्वर ही है, उस ईश्वर के साथ जुड़ेंगे तो योगारूढ़ कहलाएंगे
सुभालोपनिषद् में आया है कि आत्मा का उत्कर्मण कैसे होता है, चार नाड़ियों के बारे में आया है -> अरमा – रमा – पुर्ननवा – इच्छा, इनमें से प्रत्येक नाडी अलग अलग लोको में जाती है, जब मृत्यु होती है तो 9 दरवाजो की बात आती है तथा इनके माध्यम से प्राण का उत्कर्मण होता है तथा आत्मा शरीर से निकल जाती है, यहा पाप – पुण्य लोको का क्या अर्थ है
- मस्तिष्क वाले Area में ही उधर्व लोक होता है
- कूहू और शाखिनीं नाडी, नीचे की ओर है तथा इन्हें गृहित कहा गया है, यहा से व्यक्ति, मनुष्य से नीचे वाली योनियों में भी जा सकता है
- बाकी के 7 दरवाजे हृदय से उपर है तथा 10वा दरवाजा बह्मरंध्र का दरवाजा है
- यह कोई आवश्यक नहीं है कि वहा से फाड कर ही जाए, आत्मा इतना सूक्ष्म है कि वहा से बिना फटे भी जा सकता है, यह भी हमारा भम्र है कि हम यह देखते है कि शरीर का वह हिस्सा फटा या नही फटा जहा से आत्मा गया
- आत्मा कही से भी जा सकता है
- अधिकतर व्यक्तियो की तृप्ति नहीं होती है तो वह अन्य लोको में जाकर अपनी तृप्तियों को पूरा करता रहता है
- उधर्वगामी का अर्थ मनुष्य व उपर की योनिया है, मनुष्य से नीचे वाली योनियों में न जाए
- जो जिस भाव को लेकर शरीर छोड़ता है वह उस लोक में ही जाता है, यह भावनाओं की दिशा के अनुरूप होता है, नाडी का अर्थ यहा आवश्यक नही कि तार या पतला रास्ता Tunnel जैसा कुछ होगा जहा से सब गुजर कर जा रहा है
- वास्तव में ऐसा कुछ नहीं है, नाड़ियां भावनाओं की तरंगें है
- यहा भाव को ही नाड़ियां कहा गया
कुछ को शरीर छोड़ने पर मृत्यु आने पर कष्ट होता है या हुआ होगा, क्या यह सत्य है
- यह कल्पना भर है कि प्रत्येक को शरीर छोडते समय कष्ट हुआ होगा, प्रत्येक के साथ ऐसा नहीं होता तथा वह फूल माला के उतारने जितना आनन्द लेता है, जैसे सुकरात भी कह रहे थे कि मेरे घुटने मर गए है परन्तु मै स्वस्थ हूँ
- हमारे शरीर से भी पहली बार प्राण निकला तो पता नही चल पाया कि वह कहा से निकला तथा फिर शरीर में पुनः वापस प्राण कैसे आ गया, इसका रास्ता हम नहीं देख पाए, तो एक यह भ्रम हटा कि प्राण को निकलने के लिए किसी रास्ते की आवश्यकता नहीं है
- जैसे प्रेत कही से भी आ जाता है तथा वह सुक्ष्म है आकाश से आ जाता है
- जब प्राण निकला तब आकाश ही मेरा शरीर बन गया परन्तु जब अस्पताल में धीरे धीरे शरीर मरने लगा तो हम महसूस कर रहे थे कि हमारा पैर मर गया लेकिन हमें सुई चुभने जितना दर्द नही था परन्तु जब Heart रुकने लगा तब हमने कहा कि अब हम बोल नही सकते, मौन हो रहे है
- क्योंकि हमें प्राण की गति को देखना था कि प्राण की गति किधर है
- फिर Heart से उपर विशुद्धि चक्र में आकर प्राण रुका रहा, तब शरीर के भीतर का प्राण सिमट रहा था क्योंकि शरीर में अब रक्त भी नहीं था तो शरीर के भीतर प्राण शक्ति निकलना शुरू कर दी परन्तु फिर देखा कि विशुद्धि चक्र में रुका हुआ प्राण फिर से शरीर में लौटने लगा तब हम बोल सकते थे
- इस सब अनुभव में शरीर में कष्ट नही था
- कष्ट भावनाओं को होता है
- शरीर में चिपकाव होगा तथा अपने को यदि शरीर मानेगें तभी बिच्छुओं के काटने जैसा दर्द व छटपटाहट रहती है अन्यथा दर्द होता ही नहीं
- भीष्म पितामह भी कहा छटपटा रहे थे
- जो तन्मात्रा साधना नहीं किए उन्हें कष्ट होगा
- यदि तन्मात्रा साधना कर लिए तो तलवार से काटा भी जाएगा तो भी दर्द नहीं होगा, मरने की तो बात ही छोड दे, यही स्पर्श तन्मात्रा है, इसे सिद्ध करना पड़ता है इसलिए मनोमय कोश में समय अधिक लगता है
जागृत अवस्था में भान नहीं रहता परन्तु हमें मुसीबत से बचाकर निकाल ले जाता है तो वो कौन सा प्राण है जो उस समय जागृत रहता है
- मुख्य व्यान प्राण जागृत रहता है
- हम जीव भाव में धनंजय के रूप में रहते हैं
- अपना ही शरीर न माने यह ईश्वर का घर भी है
- अपने शरीर में दोहरी सत्ता हमेशा काम करती है तथा हम चाह कर भी इसे समाप्त / नष्ट नहीं कर सकते, कोई और भी इसे Handle करता रहता है, इसी प्राण को ही व्यान कहते है
यह व्यान प्राण किस साधना से जागृत हो रहा है तथा वह मेरी रक्षा क्यों कर रहा है
- क्योंकि आपका ईश्वर के प्रति समर्पण (Godliness) है तथा Dutyfullness भी है
- यही ईश्वर को पकड़ने का दो पूजा है
- यदि ये दो गुण हमारे भीतर होगे तो वही हमारी Help करता है
- यही दो गुण, यदि हम अनासक्त समर्पण भाव से अपना कर्तव्य करेंगे तो और जल्दी काम / मदद करता है
Period काल में योग व्यायाम प्राणायाम करना चाहिए या नहीं करना चाहिए
- Period समय मे प्रज्ञा योग करे वह हानिकारक नही है
- पैर उपर करने वाले आसन नहीं कर सकते जैसे सर्वांगसान / शीर्षासन तथा अश्वसंचालन की भी आवश्यकता नहीं
- Meditation भी करते रहे / जप तप करते रहे, शरीर हमेशा शुद्ध रहता है
महर्षि विश्वामित्र जी को समर्थ होते हुए भी अपने यज्ञ की रक्षा के लिए राम और लक्ष्मण की आवश्यकता क्यों पड़ी कृप्या प्रकाश डाला जाए
- वेद का आदेश है कि हम संविधान का पालन करे, सृष्टि संचालन की एक व्यवस्था बनाई गई रहती है तथा विश्वामित्र जी Research Cell में थे, यज्ञ की रक्षा करना न्यायपालिका का काम होता है तथा न्यायपालिका उनके हाथ में नहीं था वह राजाओं का काम होता है
- यदि ऋषि विश्वामित्र अपनी शक्ति राक्षसों से लड़ने में लगा देते तो Research कार्य अधूरा रह जाता, इसलिए उन्होंने दशरथ से कहा कि यह सब राक्षस Disturb कर रहे है तो अब तुम देखो तथा इसे रोकना तुम्हारा काम है
- न्याय पालिका क्षत्रियों के पास रहता था
- ऋषि विश्वामित्र इतनी शक्तिशाली थे कि वह क्षण भर में राक्षसों का विनाश कर सकते थे परंतु उन्होंने कहा कि हमारी ऊर्जा रिसर्च वर्क के लिए है तथा वह काम दूसरे लोग नहीं कर सकते जो हम कर रहें है
- राक्षसों के विनाश तुम्हारा पुत्र राम कर सकता है, क्योंकि तुम नही जानते परन्तु हम जानते है वह कौन है
- यदि योग्यता नहीं भी है तो भी हम योग्यता बढ़ा देंगे तथा ज्ञान व योग्यता देना तो उन ऋषि का Duty था
- गुरू को सत्पात्रों की तलाश रहती है कि जब सतपात्र मिल जाए तो उसे अपनी सारी विद्या दे दे ताकि वह विद्या न मरे
- जो आत्मिकी में Reseach कर रहे है वे कानून को अपने हाथ में नहीं लेते तथा अभी भी यह नियम चलता है
- यदि किसी ने गाली भी दिया तो भी ऐसा न करे कि उसे जान से मार दे बल्कि न्यायपालिका में Complain करे या बडे लोगों से कहे, बचाव में लेना का भी एक तरीका है अन्यथा कानून हाथ में लेने का उल्टा सजा हो जाएगा
- समाज को श्रेष्टता में ले जाने के लिए जो नियामावलिया बनाई गई है उसकी अवहेलना ना करना
- उस समय भी यह नियम चलता था
- ऋषि विश्वामित्र शस्त्र चलाने का ज्ञान दे सकते थे परन्तु सीधे युद्ध के लिए नहीं गए
- पहले वे ( ऋषि विश्वामित्र) राजा थे तो वह अपने नियमों का पालन करते थे 🙏
No Comments