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पंचकोश जिज्ञासा समाधान (22-11-2024)

पंचकोश जिज्ञासा समाधान (22-11-2024)

कक्षा (22-11-2024) की चर्चा के मुख्य केंद्र बिंदु:-

सुन्दरीतापिन्युपनिषद् में आया है कि योगी को स्वर के साथ अपने मनोभाव को लीन कर देना चाहिए, स्वर के साथ संयुक्त करने से परम भाव की प्राप्ति होती है, स्वर से भिन्न भाव से ईष्ठ भाव की प्राप्ति नहीं होती, वह ईष्ट भाव ही निष्कल्प, र्निविकल्प, निरंजन बह्म है, वह बह्म मै ही हूँ, ऐसा ज्ञान हो जाने पर कम्रशः जीवात्मा बह्म हो जाता है, . . . अनन्त आदि बह्म को जान कर बुद्ध होकर मुक्त हो जाता है, का क्या अर्थ है

  • दोनों स्वरों को जोडकर एक समान कर दे, जब ईडा पिंगला एक समान हो जाए तो सुष्मना चलने लगता है और सुष्मना में ही बह्म नाड़ी है, उसी में सब चक्र है
  • जब दोनो स्वर बराबर हो जाते है तो कहते है कि स्वर संयुक्त हो गया, जैसे ठंडा पानी वह गर्म पानी दोनों को मिला दे तो सुषुम हो गया, उसी प्रकार दोनो स्वर को सम करने से सुष्मना बनता हैं
  • सुष्मना शांत है, ना positive ना Negative = Neutral Minded = उदासीन भाव = समत्व भाव = किसी का पक्षपात नहीं = सबमें ईश्वर है
  • संयुक्त करके बराबर करे क्योंकि ईश्वर सब जगह समत्व भाव में है
  • भेददृष्टि का समाप्त होना ही स्वर संयम है
  • शिव व शक्ति दोनो को मिला देगें तो हमें परमतत्व मिल जाएगा
  • हम अक्सर एक तरफा हो जाते है तथा बीच में नहीं चल पाते, बीच में रोड पर चलता पड़ता है नही तो Accident होगा

द्धयोपनिषद् में आया है कि अब श्री मत द्वैत की उत्पत्ति विवेचित की जाती है, द्वितिय वाक्य है, षडपद अथवा 10 संख्या वाले हैं, इसमें 25 अक्षर है, 15 अक्षर पहले व 10 अक्षर बाद में आते है, पूर्व में नारायण को अनादि कहा गया है, . . . प्रथम पद अक्ष का क्या अर्थ है

  • पद = Post = अवस्था
  • 25 अक्षर = 24 तत्व + 1 आत्मा
  • सत्य एक है. तो सभी ऋषि एक ही बात कहेंगे
  • 25 तत्वों में 24 तत्व महर्षि कपिल के अनुसार + 1 आत्मा = पंच महाभूत + पंच सूक्ष्मभूत + पांच ज्ञानेद्रिया + पांच कमेद्रिया + मन + बुद्धि + चित्त + अहंकार + आत्मा
  • षटचक्र, षटभाव, षटउर्मिया -> यह देखें कि 6 की गणना कहा कहा पर आती है
  • एक बनाने वाला दूसरा सीखाने वाला
  • बनाने वाला ईश्वर, सीखाने वाला गुरु
  • शरीर बना दिया तो उसका उपयोग भी सीखाना होगा, सीखाना ही मुख्य है
  • यही Art of Living भी है

गायंत्री महाविज्ञान भाग 2 में आया है कि यह हमें ध्यान रखना चाहिए कि देवता कोई स्वतंत्र सत्ता नहीं है, एक ही परमात्मा की विविध शक्तियों का नाम ही देवता है, जैसे सुर्य की विविध गुणों वाली किरणें UV, Visible, IR आदि अनेक नामों से पुकारी जाती है, इसी प्रकार ईश्वरीय शक्तियां भी देव नामक गुणों से पुकारी जाती है, जैसे सुर्य की प्रात कालीन, मध्य कालीन व संध्या कालीन किरणों के गुण भिन्न भिन्न है तथा इसी प्रकार सुर्य एक ही है परन्तु प्रदेश, ऋतु व काल से उसका गुण भिन्न भिन्न हो जाता है, इस पर प्रकाश डाले

  • सुबह के समय सुर्य अधिक दूर है तो सुर्य से आने वाली किरणें (Angle of Inclination) पृथ्वी पर soft आती है, सुबह से शाम तक सुर्य से पृथ्वी की दूरी बदलने से सुर्य की गर्मी में अंतर पडता है
  • सुबह व शाम में भी सुर्य की किरणों में अंतर है
  • सुबह के समय सुर्य की किरणो में ताजगी अधिक रहती है तथा शाम में सुर्य का तीखापन कम होते होते उर्जा कम होता जाता है
  • रात्री भर में बैटरी चार्ज होता है तो उसमें प्राण अधिक रहता है, शाम तक आते आते बैटरी Discharge होगी तो सुबह से शाम तक में सुर्य व पृथ्वी में अंतर आ जाएगा
  • जैसे दिन में खा रहे है तो पच रहा है परन्तु रात्री में उसी प्रकार का भोजन पचेगा नहीं
  • सुर्य की ही किरणें हर जगह जाती है, रात्री में भी Cosmic किरणे रहती है, उन किरणों की Frequency इतनी अधिक है कि हम रात्री में सुर्य की सभी किरणें हम नहीं देख पाते, जैसे X-Ray को कहा देख पाते है परन्तु X-Ray फोटो ले रहा है
  • उल्लु को रात भी दोपहर दिखाई देता है, यह तो आंखो की बनावट है
  • यहा सब जगह किरणों के अलावा कुछ नहीं है
  • पृथ्वी गोल है परन्तु पूर्व व पश्चिम में सुर्य का पृथ्वी के अक्ष दिशान्तर के आधार पर अंतर पडता है
  • अपने को देखा जाता है कि हम पृथ्वी के किस अक्षांश दिशान्तर पर है, इसी के अनुसार राशिया बनाई गई, इन राशियों पर अलग प्रभाव पड़ेगा, चंद्रमा पर वही किरणे कितने डिग्री पर पड़ी, उसी चंद्रमा से पौधो में औषधिय गुण कम या अधिक होगा
  • ऋतुओं के आधार पर औषधियों में भी गुण कम या अधिक हो जाता है, इसलिए कहा जाता है कि विभिन्न ऋतुओ में यह खाओ या वह मत खाओ
  • Degree / Angle व Distance ही महत्वपूर्ण है, हम सुर्य से कितने Degree पर है तथा कितना दूरी पर है, उसी से किरणों के प्रभाव में अंतर आएगा
  • जैसे शब्द एक ही रहेगा परन्तु उतार चढ़ाव के आधार पर अलग अलग प्रभाव उत्पन्न करेगा
  • सीधा गायंत्री मंत्र बोलेगा तो शांति आएगा
  • उलटा गायत्री मंत्र बोलेगा तो शरीर में आग लग जाएगा, यहा सारा तरंगो का खेल है

मै स्वयं को बदलने की कौशिश कर रहा है, हमारे भीतर अच्छाईया व बुराईया आती रही, हम अपने आप को इस उम्र में कैसे बदले

  • जैसे हमारे जीवन की यात्रा में दो ट्रेन जाती है एक Upward (आत्मिकी की ओर) तथा दूसरी Downward (भौतिकता की ओर)
  • इसी को प्रेय व श्रेय की यात्रा भी कहते है
  • भौतिकता की तरफ जाना या आत्मा की तरफ जाना तो यहा वो शहर नही आएगा जो भौतिकता की यात्रा में आएगा
  • आत्मा पर आश्रित होने को स्वावलंभी कहते है ना कि धन पर आश्रित होने को (स्व=आत्मा)
  • गुण ही गुण में बदलते हैं
  • आत्मा जन्म नहीं लेती, हमने केवल शरीर उनको दिया है परन्तु वे स्वतंत्र होती है, उस आत्मा ने आपके घर का चयन किया है तो वहा खराब या अच्छी किसी की प्रकार की आत्मा आ सकती है
  • जैसे हिरण्यकश्यप के घर प्रहलाद आ गया, आत्माए स्वतंत्र है, हम कुछ नहीं कर सकते
  • वे अपने व्यवहार के आधार पर ही जीएंगे
  • आत्मसुधार संसार की सबसे बड़ी सेवा है
  • Einestein को Research के अलावा कुछ भी फुर्सत नही था, खाने तक की भी फुर्सत नहीं थी
  • यदि शरीर के निर्वाह भर सम्पत्ति है तो सारा जीवन आत्मा को पाने में झोक दो, यह गुरु का कहना है
  • आत्मिक प्रगति का सोच रहे है तो साथ में संसार से छीटें भी मिलते रहेंगे, परन्तु आत्मा पर उसका कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा
  • भौतिक जगत में संतुष्टि व आत्मिकी जगत में प्रगति -> यही महत्वपूर्ण है
  • हम ईश्वर को बाध्य नहीं कर सकते कि वह हमारे जप के अनुसार हमें अभी फल दे, लगे रहने से ही आता है

योग वशिष्ठ में आया है कि अस्थि एवं मास से निर्मित उपर एवं नीचे की और जाने वाली नाड़ी समेत कोमल पखुड़ियों वाले कमल पुष्प के जोडे के सदृश्य तीन यंत्र देह के उपरी हिस्से में व्यवस्थित है, इन यंत्र के पत्र वायु में प्रवेश से वायु में संव्याप्त होने पर शैनः शैनः वे हिलते है और ये पत्ते हिलने से वायु की वृद्धि होती है तो यहा उपरी तीन अंग कौन से है।

  • पूरे univesse में यह नियम लागु होता है
  • गायंत्री हृदयम में इसका विज्ञान दिया है कि कैसे इस संसार का प्रसवन हुआ, पहले उन्होंने आनन्दरूपी एक समुद्र बना लिया
  • आनन्द को ही कारण / कारण शरीर कहते है
  • उसी आनंद को ही जल कह दिया
  • इसी से फैन बुलबुला अण्डात् व फिर अण्डात् आत्मनो भवति में आत्मा की उत्पत्ति हुई
  • तरंगों को बाधकर orbit में डाल दिया तो Atom कहलाने लगा
  • उसके भीतर की उर्जा अलग हो जाएगी तो अवस्था बदल जाएंगी तो कहेंगे कि एक देवता नया आ गया
  • पहले आकाश था, आकाश में से तरंगे निकाला तो कहेगें कि अनुभूति किया, तरगों से गतिशीलता होने लगी, इसी गतिशीलता को हवा कहा है और जहा गति होगी वही कंपन होगा, पूरे बह्माण्ड में यही नियम चल रहा है
  • स्थूल सूक्ष्म व कारण ही तीन यंत्र है
  • भूः भुवः स्वः या सत रज तम को ही तीन यंत्र कहा गया है
  • प्राण को ही हवा कहते है
  • हवा शांत = विचार शांत = मन शांत
  • मन चंचल होगा तो हवा बहने लगेगी

गायत्री महाशक्ति अपने बह्म उदगम् पहले से निकल कर दो भागों में विभक्त होती है एक ज्ञान धारा व दूसरी शक्ति धारा, है इन्हीं को इड़ा और पिंगला के बीच में सुष्मना है अगर गुरुदेव के इस प्रतिपादन को लेते हैं तो ज्ञान धारा और शक्ति धारा के बीच की अनुभवपरक स्थिति होगी तथा इन दोनो के बीच की अनुभव परक स्थिति जब होगी तो क्या इन से ही चक्रों का संबंध है

  • सत् ज्ञान को कह जाता है
  • चिद् शक्ति को कहा जाता है
  • सत् + चिद् के मिलने से = आनन्द होगा
  • आनन्द को रज कह दिया जाता है
  • गंगा = ईडा व यमुना = पिंगला -> इन्हीं के मिलने से सरस्वती बनी
  • सरस्वती ही सुष्मना है, सरस्वती नाम की कोई नदी ही नही है अपितु यह दो का समिश्रण है, समत्व है, इसी समत्व के भाव में चलने को कृष्ण व बुद्ध ने भी कहा है
  • ईश्वर सम है वह हर जगह एक समान है, र्निलिप्तता तभी रहेगी जब हम किसी में लिप्त ना हो, निलिप्तता सम है
  • सारे शक्ति केंद्र इसी सुष्मना में स्थित है, दोनो के समन्वय से ये जागृत होगे
  • हम व्यवहारिक जीवन में देखे कि जब तक ठंडा व गर्म तार नहीं जुड़ेंगे नहीं तब तक बल्फ कैसे जलेगा
  • जड़ व चेतन नही मिलेंगे तो संसार में जीव ही उत्पन्न नही होगा
  • आनन्द तभी आएगा जब दोनो जुडेंगे, हम लोगों का शिव शक्ति अलग-अलग भाग रहा है मूलाधार अलग दौड़ रहा है सहस्रार अलग दौड़ रहा है, जीवन का अंधेरा इसलिए पड़ा हुआ है क्योंकि हम दोनों को जोड़ते नहीं है
  • कृष्ण ने कहा है कि समासो में मैं द्वंद समास हूं तथा दोनों के बीच स्थित रहता हूं

श्वेताश्वरोपनिषद् में आया है कि जब अज्ञान का तमस नहीं रहता, ज्ञान का प्रकाश उदभूत हो जाता है तब न दिन रहता है ना रात रहता है, न सत रहता है ना ही असत, केवल एक कल्याणकारी देव शिव रहता है वह सदा अनश्वर है, वह सविता देव का भी उपास्य है तथा उसी से पुरातन प्रकृष्ट ज्ञान निसृत हुआ है, यहा केवल शिव ही रहता है का क्या अर्थ है

  • शिव और बह्म यहा एक ही है
  • त्रिपादस्यम् अमृतम देही -> इस सविता को विराट कहा जाता है
  • प्रसवंन की प्रक्रिया में यह बह्म शामिल है

हवा में ऑक्सीजन को प्राण कहा जाएगा या प्राण अलग है क्योंकि ऑक्सीजन से ही हम ज़िंदा हैं ।

  • आक्सीजन से नही, प्राण से जिंदा है
  • हस्पताल में आक्सीजन यदि मिलता भी रहे तो भी मृत्यु हो जाती है तो इसका अर्थ है कि हम प्राण के रहते जीवित थे
  • यह केवल आक्सीजन नही, अपितु हमारे शरीर में फेफडो की बनावट ही ऐसी है कि वह आक्सीजन से प्राण खींच लेते है
  • मछलिया पानी में से गलफडो से प्राण खीचती है
  • तिलचट्टा आकाश से भी प्राण खीच सकता है तथा उसे फेफडो की भी आवश्यकता नहीं है
  • हमें प्राण से जीवित रहना है, आक्सीजन से नहीं
  • ऋषि लोग बर्फ में चार महीने दबे रहने पर भी प्राण खींच कर जीवित रहते है
  • प्राण हर जगह है तथा प्राण शून्य में भी है
  • पौधे Co2 में से भी प्राण को खीच लेते है
  • हमारे चक्रो की बनावट भी ऐसी है ये भी बाहर से प्राण खीचते रहते है      🙏

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