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पंचकोश जिज्ञासा समाधान (22-10-2024)

पंचकोश जिज्ञासा समाधान (22-10-2024)

कक्षा (22-10-2024) की चर्चा के मुख्य केंद्र बिंदु:-

सर्वोपनिषत्सारोपनिषद् में आया है कि ना मै देह हूँ, देह मेरा नही है, मै केवल सनातन हूँ, बह्म एक ही सनातन है, यहा नानत्व किन्चित भी नहीं है, का क्या अर्थ है

  • नानत्व का अर्थ है कि जो यहा अलग-अलग वस्तुएं दिख रही है यह सब एक ही तत्व से बना है, मिट्टी के बने सभी खिलौनो की तरह, यहा सब कुछ बह्म से ही बना है, यह एक ज्ञानात्मक उर्जा है जिससे सब बना है, यहां अनेक दिखते हुए भी एक ही तत्व है
  • यह ननत्व में एकत्व देखना बह्म है
  • मै शरीर नही सनातन हूँ = कभी मरने वाला व जन्म लेने वाला नहीं, आत्मा हूँ -> इस भाव में रहेंगे तो सनातन कहलाएंगे
  • शरीर भाव में रहने पर ही सभी प्रकार के दुख कष्ट होते हैं इसलिए सनातन(आत्म) भाव में रहे

कौशितिकीबाह्मणोपनिषद् में बह्मज्ञान की शिक्षा देने के कम्र में आया है कि . . . आप हमें बह्म ज्ञान की शिक्षा में तथा हम सहस्त्र गाय देंगे, सुर्य मंडल में भी परमात्मा बसे है . . . हिता नाम से प्रसिद्ध बहुत सी नाड़ियां है जो हृदय से निकलती है, इसी में परमेश्वर है, का क्या अर्थ है

  • माण्डक्योपनिषद् में जीव / जीवत्मा की 4 अवस्थाएं होती है-जागृत स्वपन सुषुप्ति तुरीया
  • सुषुप्ति अवस्था मैं अपना बोध नहीं रहता कि वह कहां हूं इसका अर्थ यह है कि वह जीव अपने से ऊपर वाली कक्षा (एक ऐसा आयाम / Dimension) में कहीं गया है जहा उसे अपना बोध नही रहता
  • यहां यत बता रहे है कि वह शरीर से बाहर निकलकर कहीं नही गया तथा वह शरीर के भीतर ही 72000 नाड़ियों में ही था, उन्ही में वह रमण कर रहा था
  • शरीर के भीतर पूरा ब्रह्मांड है, एक बाल के भीतर भी हजारों नाड़ियां दौड़ती हैं
  • इन नाडियों में कफ भरा रहता है, हमें नाड़ी शोधन से सारे काफों को निकालना होता है, यह कफ Negative Thought के रूप में भी रहता है, वही नांडिया है, सब विचार तरंगें है
  • सुषुप्ता निद्रा की अवस्था में हिता नामक नाड़ी है, कपिला नाड़ी में जाने पर डरावने स्वपन देखता है, पुषा नाडी में जाने पर काम वासना के स्वपन देखने लगता है, स्वपन में इन्ही की साफ सफाई चलती रहती है
  • स्वपन में आंखें बंद करके भी हम शरीर में हैं परंतु मन की आंखों से देख रहे हैं परन्तु सुषुप्तावस्था में हमें नही पता चलता कि मै कहा हूँ, आत्मावस्था की स्थिति आती है
  • एक तुरीयावस्था में संसार से अलग आनन्द की अनुभूति होती है तथा एक जागृत तुरीया अवस्था भी होती है तथा संसार को अन्य लोगों की तरह ना देखकर ज्ञान की दृष्टि से देखता है, वस्तु में भी शून्यता को देखता है तथा शून्य से वस्तु में परिवर्तन को भी देखता है, पांचों कोशो को एक साथ देखता है, यहा तृतीय नेत्र को विकसित करने की बात यहा की जा रही है

क्या कपिला नाडी की सफाई के बाद डरावने स्वपन आते है या नहीं

  • डरावने स्वपन नहीं आएंगे
  • जब यह पता चल जाएगा कि यहा एक बह्म के सिवा कोई दूसरा नहीं तो भी डर नहीं लगता
  • ज्ञान व प्राणायाम के माध्यम से भी नाडियों की सफाई होती है
  • अज्ञानता के कफ को प्राणायाम साफ करता है

गीता में 6वे अध्याय में आया है कि भगवान को लेकर जो पुरुष कर्म फल का आश्रय न लेकर, करने योग्य कर्म करता है वह संन्यासी तथा योगी है, का क्या अर्थ है

और जो केवल अग्नि का त्याग करता है वह संन्यासी नही है तथा जो केवल क्रियाओं का त्याग करता है, वह भी सन्यासी योगी नहीं है, अग्नि का त्याग का क्या अर्थ है

  • अग्निहोत्र एक क्रिया है, इसका उददेश्य वातावरण शुद्धि व अपनी भीतर की अग्नि प्रज्जवलित करना है
  • बाहर वाला अग्निहोत्र नही किया परन्तु भीतर वाला कर लिया तो भी संन्यासी है
  • परमदृष्टा का अर्थ क्रियाभाव से नहीं, आत्मज्ञान के द्वारा छोड़ना है
  • कर्तव्य भाव से कर्म को करे
  • अपने सभी कोशों का ठीक से देखभाल करने पर भी रोग कर्म फल की व्यवस्थता के अनुरूप भी आ सकता है
  • तेजस्वी संतान उत्पन्न करने के लिए बहदारण्यक उपनिषद् पढेंगे व उसके अनुरूप खान पान व व्यवहार में उसका पालन करेंगे
  • इतना करने पर भी किसी नालायक ने जन्म ले लिया तो भी चिंता न करें, आत्माएं स्वतंत्र होती है तथा वह हमें सीखाने के लिए भी आती है
  • पुलस्त के घर में रावण आ सकता है
  • यमाचार्य विदुर बनकर आ गए
  • हमारा काम यह है कि हम हर परिस्थिति को स्वीकार करे तथा प्रत्येक कार्य, ईश्वर का काम, अपनी Duty मानकर करे
  • अपनी योग्यता के कारण अपना पूरा सामर्थ्य उसमें लगा दे तथा फल की इच्छा न करे

सुभालोपनिषद् में जो चित्त को पाप्त कर लेता है, वह चित्त में ही विलीन हो जाता है, वह चित्त चिंतन को पा लेता है, वह इसका चिंतन करने में ही लय हो जाता है, यह चिंतन करने योग्य क्षेत्रज्ञ को प्राप्त कर लेता है, इसके कारण इसका विलय क्षेत्रज्ञ में ही होता है, यह क्षेत्रज्ञ भासमती नाडी में गमन कर भासमती नाड़ी में ही विलीन हो जाता है, यह भास्मती नाड़ी नागवायु में जाती है तथा इस कारण यह नागवायुमें ही अस्त हो जाती है तथा यह विज्ञान में जाकर विज्ञान में ही विलीन हो जाती है . . . यहा भासमति नाडी व नागवायु क्या है

  • नागवायु = कुण्डलिनी है
  • वायु = प्राण, कुण्डलिनी एक शक्ति है जो नाडियों में दौडती है
  • भासमती = जो आत्मा को प्रकाशित करें, शब्दो का खेल है, नाड़ीया एक विचार है
  • अभी बैटरी है, charger नही बना है तथा हमे बैटरी charger बनना है

क्या तन्मात्रा साधना का अभाव परिवार टूटने का महत्वपूर्ण कारण है कृपया प्रकाश डाला जाय

  • केवल परिवार ही नही अपितु स्वयं भी टूट जाएगा
  • ज्ञानेद्रिया / इद्रिया व मन सब आपस में सहयोग नहीं करेंगे
  • अपने भीतर में पहले नियंत्रण करना पड़ता है
  • अपने भीतर परिवरर्तन करना है
  • घर परिवार में जो होते है वे सहिष्णु होते है
  • सहिष्णुता एक बहुत बड़ा तप है
  • अपने घर से ही शुरुवात करे तथा छोटी छोटी बात का बुरा न माने
  • शालीन व्यवहार रखे
  • अन्त में आत्मीयता ही साथ जाएगी
  • घरवालो की बात भी सुन ले परन्तु मानने या न मानने के बधन मैं न पड़े
  • परिवार में रहकर बहुत अच्छी साधना होती है परन्तु जंगल में रहकर साधना इतनी अच्छी नही हो पाती . . .       🙏

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