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पंचकोश जिज्ञासा समाधान (21-10-2024)

पंचकोश जिज्ञासा समाधान (21-10-2024)

आज की कक्षा (21-10-2024) की चर्चा के मुख्य केंद्र बिंदु:-

सर्वोपनिष्टसारोपनिषद् में आया है कि

आकाश से वायु, वायु से तेज, तेज से जल , जल से पृथ्वी उत्पन्न हुआ है का क्या अर्थ है

  • तेज = अग्नि
  • जब परमाणु गतिशील होते है तो वायु कहलाते है, तरगें जब Condense होती है तो Leptones में बदल जाती है और वो गतिशील होते है
  • गतिशील इसलिए होते है क्योंकि वो एक से अनेक बनने की किसी की इच्छा से उत्पन्न हुए है, तो उनको गतिमान होना है तथा गतिमान को वायु कह देते है
  • जहा भी विभिन्न दिशाओं में गति होगा तो वहा घर्षण के कारण आग उत्पन्न होगा तथा उसी आग को यहा तेज कह दिया गया है
  • अग्नि ही ठंडा होकर जल बन गया तथा जल ही ठंडा होकर पृथ्वी बन गया तथा उसमें से ढेर सारी फसले निकलने लगी

कौशितिकीबाह्मणोपनिषद् में प्राण और प्रज्ञा के विषय में आया है कि प्रज्ञा ही प्राण है तथा प्राण ही प्रज्ञा है, का क्या अर्थ है

  • प्रज्ञा = ज्ञान की शुद्धतम अवस्था है
  • साधना से प्रज्ञा मिलती है, तो एक ऐसे ज्ञान के आयाम में प्रवेश कर जाएगा तथा यह जान जाएगा कि यहा एक ईश्वर के सिवा कुछ नही, एक ज्ञानयुक्त उर्जा सब जगह घुली हुई है, उसी को प्रज्ञा कहा जाता है, इसी में अथाह चैतन्यता अथाह शान्ति, अथाह आनन्द होता है
  • प्राण में जड़ (उर्जा) व चेतन (ज्ञान) दोनो तत्व रहता है, इसे ज्ञानयुक्त उर्जा भी कहते है
  • प्राण को ही अर्धनारीश्वर कहते हैं
  • यहा हर जगह प्राण ही प्राण है
  • ज्ञान की शुद्धतम अवस्था (जब सभी तत्व एक दूसरे में समेटते जाएगे तो कोई एक तत्व बचेगा, जिसमें सब शामिल हो), इसी को कहते है कि ज्ञान के समान पवित्र करने वाली दूसरी कोई वस्तु इस संसार में नहीं
  • प्राणो भवेत परबह्म -> यही प्राण जब बह्म में लीन हो जाएगा तो परबह्म कहलाएगा

ईश्वालोपनिषद् में आया है कि सबको आज्ञा देने वाला अन्नमय भूतो की आत्मा, प्राणमय इंद्रियों की आत्मा, मनोमय संकल्प स्वरूप, विज्ञानमय कालस्वरूप तथा आनन्दमय लयात्मक है, वह न अंतःप्रज्ञ है और ना ही बाह्यप्रज्ञ है, यहा संकल्पस्वरूप व कालस्वरूप का क्या अर्थ है

  • संकलप को मन कहते है
  • मन का काम Planning करते रहना है या संकल्प निकालते रहना है
  • तत्व दृष्टि से जब देखने पर सारा तत्व ज्ञान उसमें विलीन हो जाता है, जो भी हमें अलग अलग दिख रहा है उसमें एक तत्व ही दिखता है
  • पेड को देखने पर जड़ – तना – पत्ते – फूल – फल -> सब अलग अलग स्वभाव के निकले
  • जड़ सब में एक है तथा सब जड़ से ही उत्पन्न हुआ है
  • तत्वदृष्टि से देखेगे तो सब एक है अलग है ही नही तो क्या घटना घटेगी, जहा कोई घटना ही नहीं घट रही, उसी को काल कहते है
  • विभिन्नता में एकता को देखना
  • विज्ञान की दृष्ट से देखने पर कोई घटना ही नही घट रही तथा यहा सब प्रकाश स्वरूप है, सब शून्य है, सब तरगं है तथा सब उर्जा का ही रूप है, सृष्टि में कोई घटना ही नही घटती, यहा सब शून्य है, सब आकाश ही आकाश है
  • उस अवस्था को पा लेने में अथाह शांति है

यर्जुवेद में 32 वे अध्याय के पहले मंत्र में आया है कि . . . क्या शुक्र का अर्थ दिप्ती मान शुद्ध मन के लिए कहा गया है, क्या अपने मन को दिप्तिमान व शुद्ध बनाना है

  • शुक्र = तेजस्वी = आकाश के चमकीले पिण्ड
  • सबसे पहले आकाश में तेज / सुर्य उत्पन्न हुआ होगा प्रकाश रूप में
  • आत्मा का ध्यान भी तेजस्वी आध्यात्मिक सुर्य के रूप में करे -> बह्म समम सुर्यो जयोति
  • तदैव शुक्रम = प्रसवन की प्रणाली में जो भी
  • तदैव बह्म = प्रतिप्रसवन की प्रणाली में
    इसी को गाय की पूछ पकड़ना कहते है
  • आत्मज्ञान व आत्मा की प्राप्ति का यही तरीका सही है
  • Meditation में प्रतिदिन यह एक ही प्रक्रिया होनी चाहिए तो मानो पर गया

यर्जुवेद के 34 वे अध्याय में आया है कि शरीर में सप्तऋषि निरन्तर  प्रमाद रहित होकर इस शरीर को संरक्षित करते हैं तथा सुप्त अवस्था में . . . ये सातो ऋषि सुप्त अवस्था में क्यों प्रमाद रहित रहते है, जागृत अवस्था में प्रमाद रहित क्यों नही रहते क्योंकि जो भी कार्य हो रहा है वह तो जागृत अवस्था में ही हो रहा है, ये सातों ऋषि सुषुप्ति अवस्था में विज्ञान, आत्मा को प्राप्त होते है, जागृत अवस्था में नहीं करते, का क्या अर्थ है

  • यह समष्टि चेतना की ऐसी व्यवस्था है कि जागृत अवस्था गतिशीलता को कहते हैं
  • प्राण के दो रूप = एक गतिमान ( K. E. ) एक शांत ( P. E. )(सुषुप्ति)
  • काम करते करते शरीर थकान के कारण Inertia आने से Sleeping Mode में Recycling के लिए जाने लगता है तथा Charge होकर Fresh होकर फिर से आता है
  • सारी प्रकृति में यही प्रक्रिया काम कर रही है
  • निद्रा अवस्था भी चित्त की एक वृति है
  • सुषुप्ति अवस्था में सोने पर आभास नही होता कि हम कहा है, वहा उस समय ज्ञान का आभाव है -> इसलिए कहा जाता है कि सुषुप्ति अवस्था में साधक आत्म भाव में चला जाता है
  • प्राण हमेशा जगता रहता है व काम करता रहता है, पांच प्राण ही सातो चक्रो से जुड़े रहते है तथा सातो शरीर भी इसी से जुड़कर काम करते है
  • प्राणो का संपदन सब जगह काम करता है
  • विज्ञानमय में बुद्धि तक काम करेगा, आनन्दमय में साधक अपनी सारी सीमा रेखाओं को भूल जाता है, उसको Bodyless Body कह दिया जाता है
  • मनन चिंतन से समझ में आने लगेगा

अस्वाद तप विचार परिवर्तन में किस प्रकार सहायक है

  • भोजन जो भी हम लेते है स्वाद रहेगा ही रहेगा नमक / चीनी डाले या ना डाले
  • पानी में भी मीठापन खारापन ( एक स्वाद ) होता ही है
  • नींबू के खट्टेपन में वायु तत्व होता है
  • हर भोजन का अपना प्राकृतिक स्वभाव होता ही होता है जो मन को प्रभावित करता है
  • भोजन / अन्न का स्थूल सूक्ष्म व कारण तीनों गुण होता है -> स्थूल शरीर में वजन व स्वाद रहता ह, सूक्ष्म में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेड, वसा इत्यादि होता है, भोजन का कारण स्वरूप मन पर प्रभाव डालता है
  • क्योंकि विचार तरंगें ही condense होकर पदार्थ में बदली है, सतोगुणी भोजन मन पर सत्विक प्रभाव डालेगा, रजोगुणी भोजन मन को चंचल बना देगा, जैसे नमक चीनी – > मन को चंचल बनाता है तथा तामसिक भोजन – > क्रोध व उत्तेजना को बढ़ाता है
  • 15 साल नमक छोडने पर मन की चंचलता कम हो गई तथा शरीर में स्फूर्ति आ गई Low BP भी नही हुआ तथा बिच्छु का डकं प्रभावित नही होता था व रोग से लडने की क्षमता बढ़ गई
  • शराब पीने के बाद सब हिलने लगता है, शराब या पदार्थ एक chemical है तथा उसका मन पर प्रभाव पड़ता है, प्रत्येक भोजन का मन पर प्रभाव पडता ही पडता है
  • यहा अस्वाद में, स्वाद का अर्थ है तो Extra नमक चीनी न डाले या खजूर गुड छुआरा ले ले – अस्वाद में चटपटा छोड दे जिससे शरीर को हानि भी नहीं होगी
  • चटपटा के कारण अक्सर व्यक्ति OverDiet खा लेता है
  • स्वादिष्ट न हो तो Extra खा ही नही सकते तो यदि अवस्वाद भी स्वादिष्ट लगने लगे तो बदल देना चाहिए ताकि Overdiet ना हो

साहस और पराक्रम ही अध्यात्म का पहला पाठ है कृपया प्रकाश डाला जाय

  • प्रत्येक कार्य के लिए Struggle करना पडता है, मां के गर्भ से ही बाहर निकलने के लिए struggle करना पड़ता है
  • जीवन के क्षेत्र में आगे बढने के लिए पराकर्म की जरूरत पड़ती है
  • सज्जनता + विनम्रता + शालीनता -> ये गुण अनिवार्य है
  • सज्जनता देवताओ का गुण है
  • केवल शालीनता व सज्जनता रहेगा तो दुर्जन उत्पात मचा देंगे, कायरता आ सकती है क्योंकि दुर्जन अपने से कमजोर को ही सताते है
  • सज्जन यदि कुछ काम नही कर रहे तो भी किसी काम का नहीं तो कुछ काम भी करना चाहिए
  • सज्जन + कर्मठ मिलेगा, तब वह पराकर्मी कहलाएगा अन्यथा उदण्ड कहलाएगा
  • वेद का सुत्र है कि बलवान तो बनो परन्तु उदण्ड नहीं
  • आध्यात्म का पहला पाठ है कि अपने शरीर से कुछ न कुछ करे चाहे शुरू में स्वंय की देखभाल करे तथा फिर मन को भी शुद्ध करे
  • फिर आत्म सुधार को सबसे बडा़ कहा है
  • शुरू में संकल्प वह ले जो हमें नुकसान कर रहा हो तथा फिर धीरे धीरे बढ़ा सकती है

दो साल का पोता है, उसके पेट में दर्द होता है, दवा दी गई है पर लाभ बिल्कुल नही मिल रहा, अल्ट्रासाऊंड में गांठ निकली है, तो क्या किया जाए

  • डाक्टर ही सही बताएंगे कि गांठ का स्वरूप कैसा है तथा क्या Treatment करे
  • छोटी उम्र में यौगिक क्रियाए नहीं कर सकते
  • पत्थरचूर का भी प्रयोग परामर्श से किया जा सकता है
  • अन्यथा प्राणाकर्षण से भी लेटे लेटे भी वह अपने रोगो को गला / हटा सकता है
  • अभी बच्चे का मस्तिष्क विकसित नहीं है तो अभी चिकित्सक ही काम आते हैं
  • महामुद्रा + महाबंध + महावेध की क्रिया से भी गांठ गल जाती है     🙏

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