पंचकोश जिज्ञासा समाधान (21-01-2025)
आज की कक्षा (21-01-2025) की चर्चा के मुख्य केंद्र बिंदु:-
कठोपनिषद् में आया है कि हे नचिकेता आप आत्म तत्व को रथी (शरीर रूपी वाहन का स्वामी), शरीर को रथ (वाहन), बुद्धि को रथ संचालक सारथी तथा मन को (इंद्रियों रूपी अश्वो को वश में करने वाली) लगाम जानें, यहा बुद्धि व मन को कैसे अलग समझे
- नचिकेता को पंचांग्नि विद्या (पंचकोशो की साधना) बता रहे हैं
- शरीर एक रथ है इसमें जो जीव बैठा है, तुम इसे अपना मालिक मानो (पांचो कोशो का मालिक)
- 10 इंद्रियां = घोड़े
- मन को लगाम माने, मन ज्ञानेंद्रियों व कर्मेद्रियो पर Command करता है, 10 इंद्रियों को घोडा तथा मन उसका नियंत्रण करने वाला माने
- मनोमय कोश लगाम है तथा Decision विज्ञानमय कोश लेता है, विज्ञानमय कोश को सारथी मानो
- बुद्धि = प्रज्ञा
- संसार में दो रास्ते है -> श्रेय का रास्ता तथा प्रेय का रास्ता
- एक आत्मसाधना तथा दूसरा संसार की साधना
- एक नश्वर (क्षणिक) सुख तथा एक अनश्वर सुख (जिसका अंत न हो)
- आगे बढ़ाना है तो बुद्धि के अनुरूप कार्य करें
- आत्मा के जो हित में है वैसा ही सोचे, वैसा ही संसार में रहकर कार्य करे, इसी को यहा बता रहे है
- निर्णय लेने वाली शक्ति को बुद्धि कह देते है
- मन अपने से नीचे वालो पर लगाम / command लगा / दे सकता है, अपने Boss बुद्धि पर लगाम नहीं सकता
- मन अपने से नीचे के घोड़े (इंद्रियों) पर लगाम लगाता है
ब्रह्मविद्योपनिषद् में आया है कि अद्भूत और श्रेष्ठ कर्म करने वाले विष्णु रूप परब्रह्म की कृपा से योगाग्नि के स्वरूप वाली ब्रह्म विद्या का आरम्भ बताया जाता है, का क्या अर्थ है
- विष्णु यहा पर विशेषण के रूप में आया है -> जो (परब्रह्म) पूरे विश्व का पोषण करता है
- व्यास में एक मंत्र आता है -> व्यासाय विष्णु रूपाय -> उस व्यास को प्रणाम जो पूरे विश्व को संदेश देता हो
- यहा जो पूरे विश्व का ब्रह्म है, विष्णु रूप में आया है जिसने समस्त विश्व को उत्पन्न भी किया तथा पक्षी की भांति सेता है
- यह सेने का काम करता है इसलिए सविता नाम पड गया
- उसका एक सविता भी है, विष्णु भी है
- ध्रुवाग्नि = आत्माग्नि = ब्रह्माग्नि = जो सारे सृष्टि को चला रही है -> उसका कुण्डलिनी शक्ति भी एक नाम है
- उसी का उत्कृष्ट Refine नाम आत्माग्नि है, जो पूरे विश्व के व्यापार को चला रही है
बृहदआरण्यकपनिषद् में बृहद = विस्तृत, आरण्यक = बल, इसका यह नाम क्यो पड़ा
- आरण्यक को अक्सर हम केवल जंगल समझते हैं, अनेकार्थक शब्द की कमी है
- आरण्यक = ज्ञान का वन / जंगल -> सभी तरह के ज्ञान के वृक्ष व सभी तरह के फल फूल देने वाले वृक्ष इसमे मिलगें
- ज्ञान हमें सत्परिणाम देगा तथा संसार के दुखों को काट डालेगा, इस प्रकार ज्ञान ने हमें फल दिया तो ज्ञान को हम वृक्ष कह सकते है
- जहा पर सभी तरह के ज्ञानों का जंगल लगा हो वह आरण्यक है
- जहा ऋषि सभी प्रकार की समस्याओं का समाधान करते थे
वांग्मय 15 में आया है कि ध्यान में सर्वप्रथम छवि मात्र का आभास होता है किन्तु मनोयोग की गहनता में उसमें प्राण प्रतिष्ठा भी हो जाती है और वह छवि एक सजीव देव दानव की तरह निर्देश का पालन करने लगती है, यह योग मार्ग है, योग आदि शक्ति गायत्री का प्रथम पक्ष है एवं तंत्र सावित्री शक्ति का द्वितीय पक्ष, उच्च स्तरीय साधना अनुष्ठानों में सावित्री – गायंत्री महाशक्ति के इस विवेचन को ध्यान में रखकर ही साधना करनी चाहिए, इसमें यह जो योग आदि शक्ति का गायंत्री का प्रथम पक्ष और तंत्र सावित्री शक्ति का द्वितीय पक्ष और इस साधना विवेचन को ध्यान रखकर करे, इसे स्पष्ट करे
- यहा दो भाग में विद्या को समझाया है
- उपनिषद् का परामर्श है कि दो विद्याएं जानने योग्य है -> परा व अपरा
- परा = आध्यात्म विज्ञान = आत्मशक्ति = गायंत्री
- अपरा = पदार्थ विज्ञान = पदार्थ शक्ति = भौतिक विज्ञान = सावित्री
- भौतिक विज्ञान संसार की आवश्यकताओ की पूर्ति करने के लिए है, यह विज्ञान हमें संसार सागर / मृत्यु को पार करने के लिए यह विज्ञान हमें सुख सुविधाएं देगा
- वस्तुतः केवल संसार मे तैरने की कला जान लेना ही काफी नहीं है, मै कौन हूँ तथा मेरी सत्ता क्या है, यह भी हमें जानना है, इसी के लिए यहा गायंत्री शब्द का प्रयोग हुआ है व इसे जानने के लिए योग शब्द का प्रयोग किया
- आत्मा से परमात्मा को जोडना योग है, इसलिए योग के अन्तर्गत में अन्तिम उदेश्य यहीं होता है कि हम आत्म साक्षात्कार करें / ईश्वर साक्षात्कार करें
- तंत्र का उपयोग इसलिए कर रहे है कि इसके लिए इस आत्म साक्षात्कार के लिए Survival जरूरी है तथा संसार में रहकर ही करना है, संसार छोडकर नहीं कर सकते -> संसार छूटा तो समझे कि शरीर छूटा
- शरीर व संसार दोनों पंचतत्वों से मिलकर बने हैं, बाहर संसार में भी वही पंचतत्व है, भीतर भी वही पंचतत्व है, इसमें कुछ भेददृष्टि नहीं है
- इसलिए आत्म साक्षात्कार के लिए इस शरीर को तंत्र को माध्यम बनाया जाता है तो अपने माध्यमों पर भी अपना नियंत्रण हो’ इस विज्ञान को तंत्र विज्ञान कहा गया
- पदार्थ जगत पर आत्मा का नियंत्रण हो
साधना अभ्यास क्रम में समय समय पर emotional breakdown होते हैं। वह phase गुजर जाने पर पूरा शरीर (स्थूल, सूक्ष्म एवं कारण) एक नए तरीके से गठित हो जाता है, जिसमें पहले से ज्यादा positive energy होती है, इन सबके पीछे pineal gland की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका होती है, ये पूरा process stepwise कैसे होता है और pineal gland इसमें कैसे
role निभाता है? …. इसे जानने की बड़ी जिज्ञासा है। कृपया विस्तार से बताएँ।
- वह Phase गुजर जाने पर पूरा शरीर एक नए तरीके से गठित हो जाता है, जिसमें पहले से अधिक ऊर्जा होती है तो इसका अर्थ यह होता है कि Pineal Gland एक Regulator है व चेतना से जुडा है तो यह चेतन अवचेतन सुपरचेतन तीनो मनों को clean करता है तथा चमकाता है
- Pineal = Physco है
- Pineal से स्त्राव बंद हुआ तो आदमी मंदबुद्धि का होने लगता है, इसलिए यह सही काम करना चाहिए
- शरीर पर नियंत्रण Pitutary Gland करता है
- Thalmus के Back side में Pineal Gland है
- जब जब हम त्रिकुटि में ध्यान करते है तो Pineal Activate होता है, यदि वह सही से काम न करे तो भुल्लकडी आने लगता है या बुद्धि सठिया जाता है
- इसका अर्थ है कि यह व्यक्ति अपने Pineal Gland का Massage / Meditation नहीं कर रहा होगा, तब सजगता खत्म हो जाएगी
- जब भी वह Active होता है तब शरीर में एल्फा स्टेट ले आता है, तब Cerotonin, Oxitosin व Andorphins निकलने लगते है तथा शरीर मन आत्मा के सारे विकारो को हटाने लगता है तथा प्रसन्नता आने लगती है
- प्रसन्नता सबसे बडा पौष्टिक आहार है
- परन्तु यह उच्च स्तरीय Meditation से Activate होता है और APMB की शारिरिक यौगिक क्रियाओ से शारीरिक लाभ मिलने लगते हैं
- ध्यान की भी दो अवस्थाएं है
एक संसार का ध्यान
दूसरा आत्मा का ध्यान - आत्मा का ध्यान करने से Pineal Gland Activate होता है
क्या Pitutary Gland का संचालन Pineal Gland करता है या दोनो अलग अलग Independant काम करते हैं
- Independant भी काम कर सकते है तथा आपस में Related भी है
- जितने भी Hormones System है, वे Independent भी काम करेंगे तथा आपस में Linked भी है।
- सारे चक्र Inpependent भी है तथा मिलकर भी काम करते है
- यही system सारी सृष्टि में चलता है
- ईश्वर से सीधे भी भेंट कर सकते हैं या गुरुओं के माध्यम से भी ईश्वर के पास जा सकते हैं
- ऐसे बहुत से उदाहरण है जिन्होंने बिना गुरुओ के भी ईश्वर को पाया है
- ईश्वर से सबका संबंध है
क्या Pineal Gland, Superior है ऐसा मान सकते हैं
- जब Pineal व Pitutary दोनो एक साथ मिलकर काम करे तो आज्ञा चक्र कहलाता है, उसे Pshyco Somatic Diease (मनोरोग) नही होगे
- यदि दोनो बिना तालमेल के अलग काम कर रहे है तो मनोकायिक रोग होगें तथा दवाओं से भी ठीक नहीं होगे, दवाओं की Command से यह बाहर है, उसके लिए केवल यौगिक कियाएं ही काम करेगी
- Pineal कृष्ण है तथा Pitutary अर्जुन है जो संसार व शरीर के मोह में फंसा रहता है
- यदि अर्जुन कृष्ण के आदेश पर चलने लगेगा तो हर युद्ध में विजय पा लेगा
शिवजी का रंग गौरा है परन्तु मूर्ति में काला क्यों दिखाया जाता है
- काला = शिव शक्ति प्रधान है तथा शक्ति को तम कहते हैं
- सफेद = शिव ज्ञान प्रधान भी है हिमालयवासी है इसलिए यह रूप भी दिखाया जाता है
- वे शमशान मैं भी रहते हैं और कैलाश पर्वत पर भी रहते हैं
- मस्तिष्क में कैलाश पर्वत हिमालय क्षेत्र है जिसे कपूरगौरम कहा जाता है तथा वह भाव संवेदना का केंद्र है
- जब नीचे कार्यक्षेत्र में (शमशान में) उतरते हैं तो इसे तम के रूप में संसार में संहारक शक्ति के रूप में हम देखते हैं
- शिव ज्ञान व शक्ति दोनो के धनी हैं
- दक्षिण भारत में काले रंग के शिवजी मिलते हैं व कहीं-कहीं सफेद रंग के शिवजी भी मिलते हैं
- यहा पर सासाराम में सफेद रंग में मारबल के बने है तथा आज्ञा चक्र में स्थापित है, यहा कुण्डलिनी – ज्योर्तिलिंग का यह अदभूत रूप है
- यदि नीलकंठ रूप में उनका नीला शरीर कहा जाएगा तो आकाश के रूप में / चिदाकाश रूप में कहा जाएगा
डाक्टर तो ये कहते है कि Pineal तो बचपन में होती है तथा फिर वह दिखाई भी नहीं देती तथा यह बहुत छोटी होती है, Neuro Surgeon भी कहता है कि बचपन के बाद यह Calsified हो जाती है तथा इसका बाद में कोई रोल नहीं रहता, इस पर बड़ा संशय रहता है, इसे स्पष्ट करे
- Calcified होने का अर्थ है कि वह Hard हो गया परन्तु उसकी सत्ता खत्म नहीं होगी
- गुरुदेव लिखते है कि हमारे शरीर के सारे Hormonal System, 100 वर्ष तक काम करते है तथा एक दूसरे से संबंधित रहते है
- यदि Pineal का अस्तित्व समाप्त होता तो गुरुदेव के साथ इसके विपरित हुआ -> जैसे जैसे गुरुदेव की उम्र बढ़ती गयी तो उम्र के साथ-साथ उसकी Brilliancy भी बढ़ती गई
- वे तप साधना करते थे, हम भी देख रहे है कि तप साधना के साथ Memory पहले से बेहतर होता जा रहा है
- पहले ऋषियो का कार्य काल हजारो वर्ष रहता था फिर भी उनका Pineal Gland अच्छे से काम करता था
- ज्ञान के क्षेत्र में वे कार्य करते थे तथा अपनी दिव्यदृष्टि से देख लेते थे, इसी Third Eye को ही Pineal Gland कहा जाता है, Medical Science भी Third Eye उसी को कह रहा है
- वही त्रिकालदर्शी भी थे जो तृतीय नेत्र से देखते थे, यह दिव्य दृष्टि Pineal का ही काम है जो संजय को भी मिली थी
वांग्मय 15 में पेज 224 में आया है कि भक्ति की अपेक्षा ज्ञान अधिक होगा तो नास्तिकता बढ़ेगी, का क्या अर्थ है
- यह ज्ञान का अर्थ, पदार्थ विज्ञान के ज्ञान के संबंध में आया है
- यहा ज्ञान, आत्मज्ञान के लिए नहीं आया है
- भाव संवेदना कुचल दी जाती है क्योंकि वह तर्को से नहीं जाना जा सकता, यहा भाव संवेदना से श्रेष्ठ विवेक को माना है नही तो वह संसार के दुख कष्ट में भावुक हो जाएगा व आकर्षण में मोहित हो जाएगा
- दु:खो को केवल आत्मज्ञान काटेगा
- ज्ञान से जहा नास्तिकता के बढ़ने की बात की गई है वहा ज्ञान का अर्थ भौतिक ज्ञान / पदार्थ ज्ञान से लेंगे
- जहा ज्ञान से सभी कष्टो को दूर करने की बात आती है वहा ज्ञान का अर्थ आत्मज्ञान से लिया जाएगा
क्या बर्बरीक केवल ब्रह्म को देख रहे थे, तो क्या बर्बरीक के गले का कट जाना, शरीर भाव का मिट जाना समझा जा सकता है
- आत्मज्ञान ही सबका संचालन करता है, आत्मज्ञान में जब स्थित होगे तभी भेद दृष्टि नहीं रहेगा क्योंकि उसे दिखाई पड़ रहा था कि कृष्ण ही मर रहा है व कृष्ण ही मार रहा है, दो की सत्ता यहां नहीं है, वह भी दिव्य दृष्टि है
- यहा तीन प्रकार की दिव्य दृष्ट देखने को मिल रही है
- संजय को दूर का देखने भर के लिए व commentary सुनाने के लिए दिव्य दृष्टि मिला
- अर्जुन को अलग प्रकार की दिव्य दृष्टि मिली, उसी से वह कृष्ण को अलग रूप में देखने लगा परन्तु अभी भी अर्जुन में भेद दृष्टि था कि इसे मैने मारा या यह भीष्म मेरे पितामह है परन्तु अर्जुन को अद्वैत ब्रह्म दिखाई देने जैसा दिव्य दृष्टि नहीं मिला
- बर्बरीक की दिव्य दृष्टि कृष्ण ने ही उन्हे दी थी जिससे वह एक ही ब्रह्म सबमें देख पा रहा था
- यहा सभी दिव्य दृष्टियों में ज्ञान का अलग अलग स्तर था, किस प्रकार का ज्ञान हमें चाहिए->प्रायमरी स्कुल वाला / कालेज वाला/ऋषियों वाला ज्ञान -> यही चेतना के अलग अलग आयाम है
- जो पात्र जिसके लायक था उसे उसी प्रकार का ज्ञान दिया
- गुरुदेव ने एक बार कहा कि तुम कौन ऋषि हो, परन्तु हमें मालूम है तुम कौन ऋषि हो परन्तु हम बताएगे नहीं कि तुम कौन हो, यदि अभी बता दिए तो तुम सभी हिमालय पर भाग जाओगे तथा हमारा काम कोई नहीं करेगा
- जब किसी से कार्य लेना होता है तो उसे मोहित कर दिया जाता है जैसे अर्जुन को किया गया
- समय के अन्तराल में आकर चेतना फूटती है क्योंकि शरीर पर ईश्वर का हक है, ईशा वास्यम इदम् सर्वम
- जब तक उसकी कृपा नहीं होगी तब तक आत्मा / ईश्वर की प्राप्ति नहीं होगी
वर्तमान स्थिति में विद्या के शुभारंभ का सहज एवं सरल तरीका क्या है कृपया प्रकाश डाला जाय
- आओ गढ़े संस्कारवान पीढी -> यहा से शुरू होगा
- बच्चो को सीखने के लिए बाहर भेजना
- घर पर कम व बाहर से अधिक सीखेंगे
- हिंसक जंतुओं से पौधो का बचाव करना होता है
- माता पिता को वैज्ञानिक की तरह अपने आप को रखना होता है ताकि बच्चो का सही से पालन पोषण हो
- ऐसे गुरुकुल में बच्चों को पढ़ाया जाए जहां पर योग्यता भी दी जा रही हो तथा संस्कार भी दिए जा रहे हो
- या आज के समय में गुरुकुल का वातावरण घर में रखा जाए
- बच्चे, बड़ों से बहुत कुछ सीखते हैं
- ऋषि तो चैलेंज करते थे, जिसे जो चाहते थे वैसा उसे बना देते थे
घर में गुरुकुल का वातावरण बनाकर रखता कठिन है तथा बच्चे माता पिता की बात भी नहीं मानते, इसका समाधान कैसे करें
- बच्चों के मित्र बनकर रहेंगे तो बात मानेंगे तथा जब देखेंगे कि यही अधिक लाभ मिल जा रहा है तो फिर बात भी मानेंगे
- बच्चो को कहानियों से, प्रेरणा से, Motivation से सीखते हैं
- अभी परेशानी यही आ रही है कि हम बच्चों को वैसा वातावरण नहीं दे पा रहे व ना ही वैसा वातावरण बना पा रहे हैं
- हमारा काम यही है कि हम केवल Motivation कर सकते हैं
- स्कुलों में 1 घंटा तक आध्यात्म विज्ञान की कक्षा भी होनी चाहिए तथा योग कक्षा भी होनी चाहिए
- जिस कक्षा में Practical अधिक हो वहा बच्चा अधिक आगे बढ़ता है
- syllabus भी बदलने होंगे
- शिक्षक को भी अपना सुधार करना होगा तथा आत्म ज्ञान पाना होगा ।
- बच्चों से अपनी बात मनवाने के लिए शिक्षक को भी संस्कारी होना होगा 🙏
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