पंचकोश जिज्ञासा समाधान (20-11-2024)
आज की कक्षा (20-11-2024) की चर्चा के मुख्य केंद्र बिंदु:-
सुन्दरीतापिन्युपनिषद् में आया है कि गांयत्री – सावित्री – सरस्वती, ये सब मिलकर अजपा मातृका का स्वरूप बनाती है, उस मातृका से ही सम्पूर्ण विश्व व्याप्त है, ऐं वागीश्वरी को हम जाने, क्लीं कामेश्वरी शक्ति को हृदय में धारण करें, वह सौं शक्ति हमें प्रेरित करे । प्रातः गायंत्री, मध्याह्न में सावित्री, सायं में सरस्वती, इस प्रकार निरन्तर अजपा गायंत्री जातत्य है, हंसः यही मातृका है, यह मातृका अकारादि क्षकारान्त पश्चशद् वर्णो सें बने विग्रह वाली है, भगवती मातृका से तीनों भुवन, समस्त शास्त्र, समस्त छन्द व्याप्त है का क्या अर्थ है
- अक्षरो की संख्या 50 है तथा वहा अ से शुरू हुआ, वे 16 है
- पंचाशद् (50) वर्णो से बने विग्रह वाली है
- विग्रह = आकृति / आकार [ बीज मंत्रों की एक आकृति होती है, ये मात्रिकाएं है
- मात्रिकाएं शब्द है, सभी अक्षर उनमें आते हैं, इन्हीं अक्षरो से सभी वेद मंत्र व वाक्य बने हैं
- जैसे सुर्य के 3 समय में 3 अलग अलग रूप है
- प्रातः में गायंत्री = बाल रूप
- मध्यान में सावित्री = जवानी में
- सांय में सरस्वती = बुढ़ापे की अवस्था, अधिक क्रिया की आवश्यकता नही पड़ती, सरसता से भरी, यहां कोई देवी देवता नहीं माने
- विज्ञान एक ही है, हम इसे किन्ही भी शब्दों से समझ सकते है
- एक ही सत्य को जो अनेक तरीके से बोले उसे विप्र कहते है यही अच्छे प्रोफेसर की पहचान है वह प्रत्येक को उसकी भाषा में समझा सकते है
- आध्यात्म से सरल सृष्टि में कोई भी विषय नहीं
छान्दग्योपनिषद् में आया है कि व्यान नामक सर्वत्र प्राण के रूप में उदगीथ की उपासना करनी चाहिए, मनुष्य जो भीतर की वायु बाहर निकालता है वह प्राण है तथा
बाहर की वायु भीतर खीचता है तो वह अपान है, जो प्राण व अपान की सन्धि है वह व्यान है, यह कुछ उलटा लग रहा है
- यहा प्राण व अपान का दूसरा अर्थ है
- Up Train को प्राण कहते है
- Down Train को अपान कहेंगे
- जो उपर उठाए वह प्राण है, जो नीचे लाए वह अपान है
- विज्ञान नहीं बदलेगा परन्तु यहा दूसरे अर्थो में आया है, पूरा संसार एक शरीर है तो जो नीचे की तरफ आता है वह अपान है तथा उपर गया है तो प्राण कहेगें
- इस संसार में कुछ भी दुषित नहीं है क्योंकि कण कण में ईश्वर है
- Co2 भी पौधो का प्राण है तभी तो पौधा हमे फल फूल दे रहा है
- उपयोगिता व अनुपयोगिता के आधार पर हमने अच्छा व खराब कह दिया परन्तु यहा खराब कुछ भी नहीं है, हमारे लिए जो अनुपयोगी है हमने उसे खराब मान लिया है
- हर जगह वह है तो अनन्त उसका नाम ही है, हर जगह वह अनन्त विद्यमान है
- जब ये मान लेगें कि मै जान गया तो अपनी प्रगति रूक गई, निरन्तर आगे बढ़ने में हमारी प्रगति है
- गतिशीलता ही जीवन है, गतिशीलता है तो प्रगति भी बनी हुई
गायंत्रयुपनिषद् में आया है कि जब यह विश्वास हो जाए कि सत्य परोपकार संयम ईमानदारी आदि गुण सब दृष्टियो से श्रेष्ठ है तो उनके सिद्धान्त का जीवन में आचरण होना चाहिए, सदज्ञान का श्रद्धा भाव में परिपक्व होना, यही ईश्वर की प्राप्ति का प्रधान उपाय है, बिना सिद्धान्तो को जाने अनुभव निर्बल है तथा बिना अनुभव का ज्ञान निष्फल है, जब मनुष्य का सद्ज्ञान श्रद्धा में परिपक्व हो जाता है तब वह सन्मार्ग पर चलकर कपट धूर्तता के मार्ग को छोड़कर एक ही जात की श्रद्धा स्थापित हो जाती है, का क्या अर्थ है
- बिना सिद्धान्तो को जाने अनुभव निर्बल है = यदि गाड़ी चलाने का अनुभव हो गया परन्तु गाडी यदि रास्ते में खराब हो जाए तो गाडी का ज्ञान न होने से ठीक करने में दिक्कत आएगी इसलिए केवल ड्राईविंग जान लेना काफी नहीं
- तथा तेजस्वी संतान के लिए तपस्वी बनना अपना गुण कर्म स्वभाव बदलना होता है
- DNA = गुण कर्म स्वभाव को DNA कहेंगे तथा यह तपस्या व अभ्यास से बदला जा सकता है
- यदि पेट में गैस बन रहा तो खट्टा दे दिए तो गैस अधिक बढ़ जाएगा या कोई कफ (ठंडें) प्रकृति के व्यक्ति को दही दे दिया तो समस्या बढ़ जाएगा तो हमें किसी व्यक्ति की प्रकृति का गुण कर्म स्वभाव जानना होता है, इसके लिए सिद्धान्त / नियामवली जानना होता है
- सिद्धान्त युक्त अनुभव पका हुआ होता है, उससे Error की संभावना कम होती है तथा उससे Accident कम होते हैं
जैसे नदियों के प्रवास में जल की लहरों पर वायु के आद्यात होने के कारण कल कल की ध्वनियां उठा करती है, वैसे ही सूक्ष्म प्रकृति की शक्ति धाराओं से तीन प्रकार की शब्द ध्वनिया उठती है, सत् रज व तम प्रवाह में हीं श्रीं व क्लीं, इन सबका अनुभव हम कब करते हैं, हमें इसका कुछ पता नही रहता है
- इसका अनुभव हमें होता है, हम उस पर मोहर नहीं लगाते तथा ऐसा नहीं कहते कि हुआ है
- जैसे जब खा पीने लेने के बाद तथा यदि थकावट भी रहती है तो नींद की इच्छा होती है तथा नींद आता है, नींद आने की प्रक्रिया को क्लीं कहते है
- सुबह के समय स्वाध्याय को हीं कहते है
- कुछ काम करने को, चलने फिरने को श्रीं कह देते है, यह केवल भाषा भर है
- ये सभी मनोभूमिया / Mental States है
क्या विवाह मे साथ फेरे ही होते है क्यो आर्य समाज और पौराणिक पद्दति मे चार फेरो की बात करते है पुछने पर वे धर्म, अर्थ, काम, ओर मोक्ष का उदाहरण देते है मार्गदर्शन करें
- सात या चार फेरो का अर्थ केवल इतना है कि जीवन में पति पत्नी का जीवन एक सहचरत्व / Best Friend की तरह हो तथा हम आगे बढ़ते चले
- कितनी बार घूमना है यहा घूमने का अर्थ एक Philosphy से जोड दिया गया
- सात फेरो का अर्थ सप्तधा प्रकृति से जोड़ दिया गया, अर्थवर्वेद के पहले मंत्र के आधार पर 7 रखा गया है, सप्त लोक / सात ऋषि या मैंडलिफ अपनी Periodici Table में सात ग्रुप ही लिया है
- रीढ की हडडी में 7 चक्र होते है तो हमें गृहस्थ आश्रम में रहते हुए अपने सभी 7 चक्रो का जागरण करके कुण्डलिनी जागरण करना है व पूर्ण हो जाना है, इसी आधार पर 7 लिया गया तथा महिला को श्रेष्ठ मानते हुए उनके 4 चक्र रख दिए तथा 3 पुरुष के रख दिए
- जहा सात रखा जाता है वहां धर्म अर्थ काम व मोक्ष के आधार पर नहीं लिया गया
- इस शपश समारोह में हो सकता है कि कोई एक बार भी न घूमे, यहा यह शपथ लिया जाता है कि हम दो शरीर एक प्राण बनकर रहेंगे, यहा अग्नि को साक्षी मानकर भीतर से commitment किया जा रहा है
त्रिपुरातंत्र में अलंकारिक विवरण में गुरुदेव कुण्डलिनी की महिमा को बता रहे है कि जो देवता भोग देते है, वे मोक्ष नहीं देते, जो मोक्ष देते है वे भोग नहीं देते परन्तु कुण्डलिनी दोनों प्रदान करती है, का क्या अर्थ है
- कुण्डलिनी में दोनो को एक साथ बांध देते हैं तथा गांठ लगा दिए, यह एक तरफा नहीं है
- आज के समय में Business भी करना व सुबह में Meditation भी करना है तो दोनो को लेकर चलना है, यह वैदिक पद्धति है जहा विद्याम् च, अविद्याम् च का भाव रखकर एक साथ आगे बढ़ना है
- शरीर व आत्मा दोनो का ख्याल रखना है, यही कुण्डलिनी है
- आत्म भौतिकी ही सावित्री है, सावित्री मंत्र ही गायंत्री मंत्र है
कृपणो का वैभव जहा ठहरता है, तेज अम्ल की तरह गला जला कर समाप्त कर देता है क्या यह उसमें निहित नकारात्मक चेतना का प्रभाव है कृप्या प्रकाश डाला जाय
- कृपण = अत्याधिक कंजूस
- ईश्वर ने जो धन हमें दिया उसका 75 % दान करे व 25 % अपने लिए उपयोग करे
- कृपणो का वैभव जहा ठहरता है, वह अम्ल बहुत तेज है, गला देता है
- गाय को चूहा खा गया (गाय के लिए जमा किए पैसो को चूहा खा गया)
- पैसे को / शक्तियों को Rotate करना चाहिए
- पानी को बांध के रखने से वह सड़ जाता है
- गंगा जी दौड़ती रहती है तो प्राणवान रहती है
- धावमान व्यक्ति में sharpness रहता है
- अपने ज्ञान को (जो स्वाध्याय किया), उसे बाटिए, ज्ञान memory में तभी जाएगा जब बाटेगें, नही बाटेंगे तो भूल जाएंगे, बाटने से वह सीधा अवचेतन मन में चला जाता है
शक्तिपात की वैज्ञानिक प्रक्रिया में एक शब्द सदयात्मक पदार्थ होने के कारण मल की उपमा आँखो की जाली से दी गई है तो यहा सदयात्मक पदार्थ क्या है
- सदयात्मक = सत्य + आत्मक
- 24 तत्वों में मन शक्तिशाली तत्व है, यह चेतना का केन्द्र है
- प्रकृति के तत्वों को पदार्थ कहते है
- प्रकृति के भीतर जो प्राण है, उसे पुरुष कह देते है
- मन को और भी Refine कर दे तो ईश्वर मिल जाएगा
- मन यदि जड़ तत्व में लग गया तो आत्मज्ञान धूमिल होगा
- भौतिकवादी मन को बटोर कर बांध कर नहीं रख सकते क्योंकि वह गतिशील है तथा संसार परिवर्तनशील है, वह बुलबुला है, उसे बांध कर नहीं रख सकते
पूरे उतर भारत में वातावरण प्रदूषित है तो ऐसे में यज्ञ से AQI बढ़ेगा या कम हो जाएगा
- ऐसे में यज्ञ बंद नही कर सकते, यज्ञ नहीं करने वाले का तेज नष्ट होता है तथा पहले भी ऐसी परिस्थिति में पौधे लगाए जाते थे, वह भी वातावरण शुद्ध करने का उपाय था
- यज्ञ तप दान कभी बंद नहीं किए जाते
- अभी के समय में यज्ञ का स्वरूप बदल दे
- जप यज्ञ सबसे श्रेष्ठ है
- दीप यज्ञ भी किया जा सकता है
- अगले दिन दीपक भी फेल करेगा तब आप: दीपो भवः का भाव रखें
- सुर्य / आत्मा के साथ जप ध्यान किया जा सकता है, हम सभी भारतीय सुर्य उपासक है, आत्मा को जगाना था
- Mental जप तप ध्यान अधिक करे
- प्रदूषण को दूर करने के लिए हर व्यक्ति कम से कम 6 पौधे लगाएं तब कुछ प्रदुषण कम होगा 🙏
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