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पंचकोश जिज्ञासा समाधान (18-11-2024)

पंचकोश जिज्ञासा समाधान (18-11-2024)

आज की कक्षा (18-11-2024) की चर्चा के मुख्य केंद्र बिंदु:-

सुन्दरीतापिन्युपनिषद् में ॐ नमः (तीन अक्षर), भगवते (चार अक्षर), वासुदेवाय (पाच अक्षर), यह भगवान विष्णु का द्वादाक्षर मंत्र है, इस मंत्र का उपासना करने वाला सब उपद्रवो से बच जाता है, वह पूर्ण आयु प्राप्त कर लेता है, श्रेष्ठ संतान का पिता हो जाता है, धन वैभव की वृद्धि होती है तथा पशुधन का भी स्वामित्व प्राप्त करता है, अकार, उकार, मकार – इन तीन वर्णो से युक्त प्रणव ॐ कार ही प्रत्यगानन्द ब्रह्मपुरुष है, का क्या अर्थ है

  • प्रत्यगानन्द = प्रत्यज्ञ + आनन्द = रितम्बरा प्रज्ञा के अवतरण पर यह आता है
  • प्रतज्ञ = आत्मज्ञान के रूप में आता है
  • गुरु हमें श्रदा के आधार पर ज्ञान देते हैं
  • कुछ लोग मानस या भागवत प्रेमी होते है, इसलिए उन्हे बताया गया है कि जिसमें उनकी रुचि है, उनके माध्यम से ब्रह्म को कैसे पाए
  • जिन्होने पूर्ण बह्म की साधना की है, बह्म का साक्षात्कार प्रत्येक दृष्टि से किया हो वो साधक को उसकी मनोभूमि के अनुसार बह्म दिखाने में सक्षम है, इसलिए उपनिषद् का स्वाध्याय करना चाहिए

गायंत्रयुपनिषद् में बह्म के साथ आकाश प्राप्त ग्रसित एवं परानिष्ट है आकाश के साथ वायु प्राप्त एवं परानिष्ट है . . . ज्योति . . .जल . . . पृथ्वी . . . अन्न . . . प्राण . . . मन . . . इनमें 12 महाभूत प्रतिष्ठित होते है . . . 12 महाभूतो में यज्ञ ही सर्वश्रेष्ठ है तो यह कौन सा यज्ञ है, जो विद्वान यज्ञ जानते है, वे परानिष्ट है . . . यज्ञ वेदो में तथा वेद वाणी में प्रतिष्ठित है, का क्या अर्थ है

  • यहा एक के बाद दूसरे तत्व व आगे के तत्वों की उत्पत्ति का वर्णन किया है
  • चेतना के Infinite स्तरो में हर जगह अनन्ता है, ईश्वर हर जगह है तथा उसका एक नाम अनन्त है
  • यज्ञ का अर्थ जोडना होता है
  • इसलिए कहा है कि अग्नि ही ज्योति है, ज्योति ही अग्नि है, इनमें भिन्नता न रखे
  • अन्न ही प्राण है, प्राण ही अन्न है
  • अन्न का अर्थ जीवनी शक्ति है केवल ठोस भोजन नहीं या केवल अन्न मात्र नहीं है, जल भी, वायु भी सब अन्न है
  • इसलिए यज्ञ श्रेष्ठ है, अभेदत्व का ज्ञान यज्ञ है
  • जो एकत्व के ज्ञान को जानता है, वही सही जानता है
  • कई तरह के यज्ञ हो सकते है, जैसे सेवा यज्ञ, ज्ञानात्मक यज्ञ भी होता है जिसमें हवन सामग्री व स्वाहा कहने की आवश्यकता नहीं होती, इस प्रकार का यज्ञ अग्निहोत्र यज्ञ होता है
  • जो इनमें एकत्व नहीं देखता वह अज्ञानी है

जाबालिपनिषद् में आया है कि जाबालि ऋषि कह रहे है कि मंत्र अ उ म में त्रिपुण्ड धारण करना चाहिए, एक त्रिपुण्ड में ललाट के मध्य में, दोनो भौहो के मध्य में, आँख के मध्य में -> त्रिपुण्ड धारण करना चाहिए ->>

  1. प्रथम पुण्ड में प्रथम रेखा ग्राहपत्य अग्नि, रजोगुण, अकार भूलोक अपनी आत्मा की क्रियाशक्ति है, ऋग्वेद रूप प्रातः सम है, इसके देवता प्रजापति बह्मा जी है
  2. दूसरी रेखा में दक्षिणाग्नि, तत्पुरुष, उकार युक्त, अंतरिक्ष लोक अपनी अन्तरात्मा की ईच्छाशक्ति, यर्जुवेद . . . इसके देवता विष्णु है
  3. तृतीय रेखा आहवाहनीय अग्नि, मकार युक्त, तमोगुण, द्युलोक, परमात्मा की ज्ञान शक्ति, सामवेद रूप, इसके देवता महादेव है, परमात्मा की क्रिया शक्ति, इच्छा शक्ति व ज्ञान शक्ति का क्या अर्थ है
  • उन दिनो ऐसे शब्दों का उपयोग होता था, आज के समय में ग्राहपत्य अग्नि का अर्थ उनसे है जो व्यक्ति गृहस्थ जीवन से जुड़े हैं उन्हे ग्राहपत्य कह दिया, रजोगुण गृहस्त जीवन में होता है तथा जो कुछ भी हम आनन्द के लिए भौतिक जीवन में करते हैं, मनुष्यों से मिलते जुलते जो magnetici field है उन्हें हम ऋग कहते है, बिना ज्ञान के कुछ संभव नही
  • ज्ञान हर जगह घुला हुआ है
  • कुछ तरंगे हम नही देख सकते परन्तु वैज्ञानिक देखकर लाभ ले पा रहे है
  • सत रूप = सात्विकता से जुड़ा ज्ञान है जो विश्व कल्याण, लोक कल्याण व आत्म कल्याण से जुडा है
  • श्रेय भावना भी सत्य है, श्री पति विष्णु है तो श्रेय से श्री बना, श्रेय भावना से जुडा विष्णु रूप
  • कृष्ण ने कहा कि मै अव्यक्तो का अव्यक्त हूँ
  • तम का अर्थ ईश्वर / आत्मा की शक्ति से है
  • यह कुण्डलिनी शक्ति का स्वरूप भी है
  • तम = शक्ति/बल, एक शब्द के अनेक अर्थ है

गीता में संजय दिव्य दृष्टि से देखकर घृतराष्ट्र को बताते हैं कि युद्ध में सभी अपने अपने शंख बजाते हैं, भगवान श्री कृष्ण ने पंच जन्य नामक शंख बजाया, अर्जुन ने देवदत्त नामक शंख बजाया, भीम ने प्रोण्ड्र नामक शंख, युठिष्टर ने अनन्त विजय, सहदेव व नकुल ने सुघोष व मणीपुष्पक नामक शंख बनाया, इन अलग अलग नाम के शंखों का दर्शन पक्ष क्या है

  • ये सभी शंख के गुण बोधक नाम है
  • सुघोष व मणी पुष्पक शंख सहदेव व नकुल के अत्यंत उत्कृष्ट शंख है
  • दुर्योधन पक्ष के लोग चाहते थे कि अनीति पूर्वक ही सब चले
  • स्वार्थपरक साम्राज्य को कुद्योष कहेंगे तो इसका उलटा सुघोष (शंख) कहलाएगा
  • घोष का अर्थ = Sound / ध्वनि / वैचारिक जगत
  • सारे संसार में कुविचार भी एक sound है
  • संसार में फैली नकारात्मक आवाज को सकारात्मक आवाज ही काटेगा, Neutralize करेगा तथा उसे एक नए रूप में ढाल देगा
  • गायंत्री मंत्र को सुघोष कहते है,
  • पांचो पांडवो ने गायंत्री मंत्र को ही अलग अलग Frequency पर बजाया है
  • अनन्त विजय = ईश्वर की विजय क्योंकि अनन्त ईश्वर का ही एक नाम है, उस भाव से इस मंत्र को बजाया
  • पंचजन्य पुरोहिता = पंच कोशो में कोई भी कचरे न रहे = पंचंधा पकृति
  • अग्नि ऋषि हैं तथा यह पांचो कोशो मे प्रभावित करता है तो हय इन्ही की शरण में जाते हैं
  • भीम के पास विज्ञानमय को हिलाने की शक्ति थी, इस तरह से इन्होंने गुणबोधक नाम, नामकरण के साथ उपयोग किया है
  • गुण बोधक शब्द का अर्थ है कि इन सभी लोगो ने इन गुणबोधक ध्वनियो का इन्होने दिमाग से उपयोग किया व शंख बजाया
  • यदि गायंत्री मंत्र का उपयोग भी किया तो भी वह साधक की मनोभूमि के अनुरूप फल देगा
  • मंत्र एक ही रहे परन्तु साधक के भाव के अनुरूप ही फल मिलेगा

षटचक्र एक प्रकार के 6 बिजली घर है, जिनके केन्द्रो से विभिन्न प्रकार के आकर्षण और विकर्षण शक्ति कंपन निस्तेत होते है, यहा आकर्षण व विकर्षण का क्या अर्थ है

  • चक्र में Magnetic Strom / विधुत चुम्बकीय प्रवाह उत्पन्न होता है, चुम्बक है तो अपने जैसे सहधर्मी विचारो को खीचेगा
  • चक्रो का संबंध लोको से भी है
  • जैसे जैसे साधक नीचे से उपर उठता जाता है तथा चक्रो का चक्रवात बढ़ता जाएगा तो उतना ही वह अपने जैसे सहधर्मी विचारो को खींचकर भीतर लाएगा तो कचरो को बाहर फैकेगा
  • अग्नि पृथ्वी व आकाश में रोग दुख नही होता
  • जल और वायु से ही रोग शरीर के भीतर प्रवेश करते हैं
  • जहा Divine Energy हम भीतर लेकर आते है वहा Negative Energy बाहर अवश्य निकलेगा, चक्र यही सब काम करते हैं

क्या तपोयोग गलाई व ढलाई की प्रक्रिया करता है

  • इसे वेद में यविष्ठा कहते है
  • घृत श्रद्धा विज्ञान को कहते हैं, श्रद्धा की अग्नि जितना तेजी से चक्रो में जगाई जाए तो यह बृहत चक्रवात में बदल जाएंगा तथा फिर संश्लेषण व विश्लेषण क्रिया शुरू हो जाती है
  • बाहर के चक्रवात अंधड तूफान के रूप में केवल हानि करते हैं जबकि अन्दर के चक्रो का चक्रवात हमें लाभ देता है

यदि चक्रों का गुण आकर्षण व विकर्षण करना है तो अगर किसी एक गुण को वो आकर्षित करता है तो क्या उसके विपरित गुणों को वह बाहर भी निकालेगा

  • बिल्कुल निकालेगा, यदि हम अपने भीतर सतगुणो को बढ़ाते है तो भीतर के दुर्गुण स्वयं ही कम होने लगते है, अच्छाईयां बढ़ाते जाए तो बुराईया स्वयं ही कम होने लगती है

क्या चक्रो के प्रभाव से यदि कोई बुराईया अपने भीतर बढ़ाते जाए तो उसकी अच्छाईया कम होने लगेगी

  • एक गुण Dominant हो जाएगा तो दूसरा Recessive हो जाएगा, अच्छाई रहेगा तो भी  दबा रहेगा, कही सभा में बोल नहीं पाएगा जैसे भीष्म पितामह में अच्छाईया तो थी परन्तु तमोगुणी दुर्याधन का प्रभाव भारी पड़ रहा था तथा सर लटकाए हुए अच्छाई बैठी हुई थी
  • इसी प्रकार प्राण में दोनों पोजिटिव व नेगेटिव दोनो रहेगा कोई एक Dominant रहेगा तो दूसरा Recessive (दबा हुआ)
  • प्रकृति का नियम है कि जो गति में रहेगा तो उसकी बात नीचे वाले को भी मानना होगा
  • यदि सतोगुण प्रधान है तो रज और तम उसके सेवक / नौकर हो जाएंगे

ईश्वर का दुलार और रोष क्रिया कृत्यों पर ही निर्भर करता है इस मान्यता की पुष्टि अनन्त जीवन के विश्वास से ही होती है, कृपया प्रकाश डाला जाय

  • शिवजी को भोला भी कहते है तथा थोडे से पूजा से ही उनका दुलार मिल जाता है
  • उनमें चरम सीमा का क्रोध (कामदेव को भस्म करना) व चरम सीमा का प्यार भी करते है
  • दुलार और सुधार की प्रक्रिया साथ साथ चलती है
  • क्रोध या दुलार मिलना, यह हमारे क्रिया कृत्यों पर निर्भर करता है, यदि क्रिया क्लाप वैदिक है तो दुलार मिलता तथा यदि हमारे क्रिया क्लाप अवैदिक है तो भस्म कर देगे
  • वैदिक = पूरे विश्व के कल्याण के लिए जो क्रिया कलाप है उसे वेद / वैदिक कहते है
  • वेद विरुद्ध का अर्थ वे लोग है जो प्रकृति के नियमों के विरूद्ध चलते हैं, उन्हे वे निरन्तर भस्म करते रहते है
  • कर्ज लेकर घी पीने वाले लोग भी हैं
  • जो कुछ भी संसार में मिलता है, अपनी क्रिया के अनुरूप ही मिलता है
  • सारा संसार क्रिया की प्रतिक्रिया पर चलता है
  • सत्कर्म और सद्ज्ञान यदि साथ में रहे तो उसके लिए अनुकूलता मिलती है

शक्तिपात मुझे समझ में नहीं आया है। शक्तिपात कैसे होता हैं, कृप्या बताया जाए

  • पात = अनुदान = गिरना = मिलना = शक्ति का अनुदान
  • जैसे परीक्षा देने पर Result मिला तो Result को यहा शक्ति पात कहेंगे
  • साधना की तथा गर्मी आ गई व शक्ति आ गई, रुग्णता को ज्ञानता में बदला तो कोई तो शक्ति का आगमन हुआ होगा, यहा शक्ति का आगमन शक्तिपात कहलाएगा
  • भस्मासुर की शक्ति के प्रभाव से शिवजी भी भाग रहे थे
  • शक्तिपात अनुदान को ही कहा जाता है
  • साधना में भीतर से शक्ति निकली वह भी शक्तिपात है
  • Bonus मिलने की प्रक्रिया शक्तिपात कहलाएंगी       🙏

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