पंचकोश जिज्ञासा समाधान (17-12-2024)
आज की कक्षा (17-12-2024) की चर्चा के मुख्य केंद्र बिंदु:-
अमृतनादोपनिषद् में आया है कि प्राण वायु को आकाश में निकालकर हृदय को वायु से रहित एवं चिन्तन से रिक्त करते हुए शून्य भाव में मन को स्थिर करने की प्रक्रिया रेचक है, यही रेचक प्राणायाम का लक्षण है, का क्या अर्थ है
- आकाश में निकालना = Space में / बाहर में निकालना
- हृदय को खाली करना = फेफड़ों को खाली करना
- चिन्तन को रिक्त करना = बाहरी संसारी चिंतन से मुक्त हो, प्राणायाम पर चिंतन हो, जो क्रिया की जा रही है, उसके बारे में सोचा जाए, अभी जो काम कर रहे हैं केवल उसी पर फोकस करें यही है चिंतन को रिक्त करना
- जब हम वायु को बाहर छोड देंगे तब बाह्य कुम्भक में शरीर के भीतर की भूख बढ़ती है, फिर खीचा जाए तो सविता के दिव्य तेज का ध्यान किया जाए कि हम उनके भर्ग / शक्ति को खींच रहे है तथा अपने भीतर धारण कर रहे है
- दिव्य तेज को अपने भीतर भरे, वहा अधिक ले जाए जहा रोग दुखः है
- प्राण का पूरा समुद्र मिल गया तो प्रत्येक स्थान मे ले जाकर, प्रत्येक अंगो को भीतर तक प्राणों से लबालब भरा जाए, अब जबअंतः कुम्भक में रोके तो ऐसा महसूस करे कि वह दिव्य तेज हमारे भीतर घुल रहा है तथा शरीर के भीतर के Toxines को गला भी रहा है, फिर जब Breath Out करे तो काले धुए की तरह कचरा / Toxines बाहर निकल रहा है तथा उस दिव्य प्राण का Whiteness बचा रह गया
- इसी तरीके से 10-20-30 बार तक किया जाए तो अपनी चमक बढ़ती जाएगी
श्रीमद् भगवदगीता के 1.31 में आया है कि
दो प्रकार के मनुष्य परम शक्तिशाली तथा जाज्लयमान सुर्यमंडल में प्रवेश करने योग्य होते है, एक क्षत्रिय व दूसरा संन्यासी, क्या क्षत्रिय जो देश के लिए अपने प्राण न्यौछावर करते है क्या उन्हें सूर्यमंडल में जगह मिली होगी
- कभी भी कोई भी युग हो, युग से कोई लेना देना नहीं, एक अवस्था है जिसमें हम पहुचेंगे तो सत्य को पाएगे
- क्षत्रिय = जो भारतीय संस्कृति को क्षतिग्रस्त होने से रोकता है
- क्षत्रिय राष्ट्र की सुरक्षा करते हे
- पूरा देश ही नही अपितु पूरी पृथ्वी को ही अपना राष्ट्र माने, अब पूरी पृथ्वी ही क्यो अन्य पृथ्वियों को भी अपना माने
- अपने चिन्तन को विराट करे, Universe भी एक राष्ट्र है
- जो सबका संरक्षण करे तो ऐसा व्यक्ति ईश्वर का अत्यंत प्रिय है
- उसको ईश्वर भी मदद करता है
- ऐसे कार्य से प्राण शक्ति बढ़ती है, प्राण शक्ति बढ़ाने का अर्थ सुर्य लोक से है
जब कोई आत्मा को पा लेगा तभी तो वह सुर्य मंडल का अधिकारी होगा, राष्ट्र के लिए मरने वाला सुर्यमंडल का अधिकारी कैसे होगा
- संसार में भी ईश्वर घुला है
- सारा संसार उसका वस्त्र है, दिशाएँ भी वस्त्र है
- इनकी रक्षा कर रहे है तो समग्र की ही रक्षा कर रहे है, ईश्वर इनसे अलग नहीं है
- यहा राष्ट्र में सब जीव(जलचर थलचर नभचर) आते है तथा क्षत्रिय केवल राष्ट्र नहीं अपितु सारे लोगो की भाव सवेदनाओं को देख रहा है
- सारा संसार ईश्वर का विराट रूप है
- राष्ट की पूरी Ecology को देख रहा है, सारा संसार ईश्वर विराट रूप है तो वह ईश्वर के स्वरूपों की रक्षा कर रहा है
निर्वाणोपनिषद् में आया है कि मै परमहंस हूँ, मै वही बह्म हूँ, परिवाज्रक पश्चिम लिंग होते है, उनका आसन आश्रयरहित होता है, परमात्मा से साथ संयोग ही उनकी दीक्षा है, संसार से वियोग करना ही उनका उपदेश है, दीक्षा लेकर संतोष करना ही उनका पावन कर्म है तथा द्वादश आदित्यों का वे दर्शन करते हैं, का क्या अर्थ है
- पश्चिमलिंग = अन्तरमुखी
पूर्व = सामने तथा पश्चिम = पीछे / भीतर
अन्तरमुखी का अर्थ है कि अन्तरंग को ध्यान में रखते हुए मन को दुषित न करे - बर्हिमुखी = बाहर के कलेवर में फसे रहना
- अन्तरमुखी = भीतर की सत्ता को अधिक महत्व देना जैसे बाह्य क्लेवर से अधिक महत्व प्राण का है
- द्वादश आदित्य = इनके नाम भी पुराणो में आते है, ये सुर्य के नाम है, ये सभी प्रकाशक है, विभिन्न क्षेत्रो में प्रकाश देने वाले भी सुर्य कहलाते है, जैसे साहितकार, वैज्ञानिक, संगीतकार -> ये सभी संसार को प्रकाश दे रहे है, ये सभी मनुष्यो के रूप में सुर्य हुए
- द्वादश -> जैसे अनाहात चक्र में 12 पंखुडिया है, ये विभिन्न क्षेत्रों में अतरिक्ष में जाकर अपनी भाव सवेदनाओं को लाभ देती है, ये सभी द्वादश आदित्य में आते है, ज्योतिष विज्ञान में 12 मासो के सुर्य के Radiation अलग अलग तरह से प्रभावित करते हैं
वैशेषिक दर्शन में “प्रमेयों का ज्ञान” मुख्य है का क्या अर्थ है
- वैशेषिक में परमाणु विज्ञान आता है, यह दर्शन कणाद ने दिया था, वे Atomic Science के जनक थे
- न्याय में ज्ञान मुख्य है, हर तरह से उलट पुलट कर देखना चाहिए, किसी भी विषय / वस्तु को केवल आकर्षक की दृष्टि से ही ना देखें अपितु सत्य की दृष्टि से भी देखें, केवल Positive पक्ष ही न देखे अपितु उसमें Negativity को भी देखे, उस अवस्था में हमें यह पता चल जाएगा कि किस चीज से हमें बचाव करना है
- कहा अपना बचाव करना है तथा कहा इसका उपयोग करना है, दोनो तरफ से देखना है इसलिए जज को न्याय देने के लिए प्रमाणो की अधिक जरूरत पड़ती है
- प्रमेय = परिमाण / गुण कर्म स्वभाव से है
क्या हम न्याय दर्शन हमें बाहरी स्वरूप तथा वैशेषिक दर्शन हमें भीतर का स्वरूप दिख रहा है, क्या ऐसा मान सकते हैं
- योग व वेदांत दर्शन को छोड़कर के जितने भी दर्शन हैं उन सब में ईश्वर को अधिक महत्व दिया गया है
- बाकी सभी दर्शन, संसार के विषय में है तथा संसार से संबंधित है, संसार के भीतर क्या है, यह देखा है, इसी विषय में अपने तर्क दिए हैं
- बाकी सभी दर्शनो में भौतिक जगत की व्याख्याएं मिलती है
- जब अनेक दर्शन हो गए तब व्यास जी ने सभी दर्शनों का समापन कर दिया यह कहकर कि यहां एक बह्म के सिवा दो कि सत्ता है ही नहीं, प्रत्येक की मान्यताएं अलग है, तो जितने आदमी रहेंगे उतने दर्शन होते जाएंगे
- अन्त मैं वेदांत देकर दर्शनों का समापन कर दिया कि यहां दो कि सत्ता है ही नहीं है तथा सभी दर्शनो को एक भी कर दिया, एक ही तत्व से सभी बने है, इस दृष्टि से देखो तब अनेक तरह से व्याख्या करने से क्या फायदा
- हम सभी दर्शनों को अलग-अलग न माने तब बहस बंद हो गया
- यहा वेदान्त उपनिषद् को कहते हैं, वेदांत में जितने भी सूत्र लिए गए हैं सब उपनिषदों से ही लिए गए हैं
गहरी नींद नही आती, केवल 3-4 घंटे ही नींद आती है, तो गहरी नींद लाने के लिए क्या करें
- नींद के लिए, मन का व शरीर का Relax होना बहुत जरूरी है, उसी से नींद आती है, योग निंद्रा में भी Auto Suggestion दिए जाते है, मन को शांत किया जाता है
- रात को सोने से पहले, दिन भर के घटना कम्र को देख ले, आज के दिन हमसे जो कुछ भी अच्छा या बुरा हुआ वह सब हम ईश्वर को सौप दे, आज का दिन जो भी कार्य हमने किया अपना कर्तव्य समझकर किया, ऐसा कर के Free Mind हो जाए
- माँ की गोद में बच्चा सोता है, ऐसे ही ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण कर दें, इसी भाव को योग की भाषा में निदिध्यासन कहते है
- हर दिन नया जन्म व हर रात नई मौत समझे
- Routine ऐसा बनाए कि कम से कम 6 घंटा सोने को मिले
- यदि रात में नहीं सो पा रहे तो दिन में भी भोजन के बाद समय निकाले
- जितना नींद पूरा लेगे, Fresh अनुभव करेंगे
- योग निद्रा का अभ्यास बनाए रखे
- रात्री भोजन लेट न करे तथा हल्का भोजन ले
- भारी भोजन लेना भी है तो दिन में ले, रात्री में हल्का भोजन ही ले
योग वशिष्ठ में आया है कि सभी लोग निज संकल्प से तुच्छ व महान होते है, तुच्छ चित्त वाले तुच्छ पदार्थ की प्रार्थना करते हैं, यहा निज संकल्प व तुच्छ चित्त क्या है
- तुच्छ चित्त = छोटा / थोडे दायरे में सोचना / अपने ही स्वार्थ के बारे में सोचता दूसरो का भले ही नुकसान हो, ऐसा सोचना
- लघु चेतसाम को ही तुच्छ कहा गया
- चिंतन के दायरा को बढाए
- निज = स्वयं का =अपना संस्कार वश विचार का उठना निज कहलाएगा
- उपनिषद् पढ कर कोई विचार आ रहा है तो वह ईश्वरीय विचार है
- इसी प्रकार महापुरुषों के साहित्य जब हम पढ़ रहे हो तब उसी के अनुरूप जो विचार उठते हैं वह उन महापुरुषों के विचार हैं
- गुरुदेव में तुच्छ के स्थान से श्रुद्र / शुद्र शब्द का प्रयोग किया है
- कुण्डलिनी जागरण में भी आया है की शुद्रता का महानता में परिवर्तन करे
निज संकल्प से महान कैसे बनते हैं
- निज संकल्प में जब अपने दायरे या सोच को बढ़ाएंगे तो फायदा मिलने लगेगा
- भीतर से यदि हम किसी के लिए कुछ करे तथा बदले में कुछ चाहे नहीं तथा उसका अच्छा उपयोग भी हुआ हो तो भीतर से एक शांति परक आर्शीवाद मिलता है, भीतर से हमें बल मिलता है तथा श्रद्धा बढ़ती है तो उससे थोडा दायरा बढ़ता है तथा व्यक्ति बढ़ चढ़कर काम करता है
- निज के ही छोटे छोटे प्रयास से ही वह शक्ति बढ़ती जाती है, अणु व्रत से शुरुवात करे
- जब छोटे काम होने लगे तो फिर बड़े-बड़े काम भी अपने हाथ में लिए जाएं जो सामान्य आदमी नहीं कर सकता
- खुद के ही संकल्पो को स्वाध्याय करके और योग करके upgrade किया जाए
क्या सारा संसार जो हम देखते है क्या वह सब निज संकल्प से ही है
- सारे संकल्प बंधनकारी नहीं होते
- ऊंचा उठाने वाले संकल्प मोक्षदाई होते हैं
- यह हमारी मान्यता पर निर्भर करता है
- पदार्थ वादी संकल्प नीचे गिराता है, बंधन में डालता है
- आत्मवादी संकल्प उपर उठता है, मोक्षदायी है
- जिस संकल्प को बंधन कहा गया वह पदार्थ वादी है क्योंकि सभी पदार्थ एक निश्चित बाउंड्री / सीमा में घूम रहे हैं तथा उससे हम चिपक रहे हैं तो इससे हमारा विस्तार रुक जाएगा, आगे की प्रगति रुकेगी, यही बंधनकारी है, इसीलिए संकल्प को संकल्प से काटे, मन को मन से काटे, भाव को भावना से काटे
- अपनी आत्मा का उद्धार खुद करें
गांयत्री माता में 24 देवता व 24 शक्तिया कौन कौन सी है
- गायत्री महाविज्ञान में गायंत्री मत्रं के 24 अक्षरो के अनुसार दिया है, वहा पर इसका अच्छे से दिया गया है
- जैसे 1 – 1 अक्षर रूपी सरस्वती / महालक्ष्मी / भास्कराय, के रूप में ये सभी देवता है तथा उन देवताओं के साथ संपर्क जोड़ने के लिए उनकी गायंत्री भी है, ये उपनिषदिक मंत्र होते है
- सुर्योपनिषद् में गणेश व कार्तिज्ञ वाला गायंत्री मिलेगा, वहा से पढ़कर इसका अर्थ सरलता से समझ में आ जाएगा
कठोपनिषद् का सुत्र है कि आत्मप्रकाश में ही आत्मा अपना अनावरण करती है, का क्या अर्थ है
- आत्मा सर्वव्यापी है, जैसे जैसे उसकी Illuminacy बढेगी तो वो सभी दिशाओ में रोशनी देना शुरू कर देता है
- इसलिए आत्मज्ञान / ज्ञानाग्नि को निरन्तर ‘बढ़ाते रहना चाहिए
- ज्ञान चेतना की परते सभी चक्रो में है, एक एक चक्र को जागृत होने पर आप पाएंगे कि ज्ञान का स्तर भी बढ़ रहा है और सोचने के तरीके में भी एक नया आयाम मिल रहा है
- पहले हम केवल पदार्थवादी थे फिर विचारवादी होने के बाद विचारो व भावनाओं के चक्रवात से भी बाहर निकलेंगे, फिर भावातीत बनेगे, फिर मान्यताएं आएगी तथा फिर उससे उपर उठकर आत्मभाव में आ जाएंगे, इस प्रकार चेतना का विकास होता जाता है
- आत्मा का तेज / Illuminacy बढ़ती जाती है, तो जैसे जैने कालिमा हटती जाती है, वैसे वैसे Range बढ़ता जाता है
- वह आत्मा अपने को स्वयं प्रकट करती चली जाती है
- जो इसे वरण करता है / आत्म साधना में लगता है तो इस आत्म साधना में लगने से वह आत्मा स्वयं को प्रकट करती जाती है, वह आत्मा स्वयं से उसे साधक का वरण कर लेती है, जैसे जैसे कोशो का अनावरण होता जाएगा, भले ही वह दिखाई न भी दे, उसका भी लाभ हमें दिखाई देने लगता है
- जैसे यदि हमें अवचेतन मन पर नियंत्रण करना है तो नीचे से भी आग दे तथा उपर से सुपरचेतन मन से भी प्रहार करे तो हम पाएंगे कि अवचेतन मन के कचरे आसानी से साफ हो रहे है
नाडी शोधन करते समय में सर्दी लग गया, क्या करे
- नाडी शोधन को अब सुर्यभेदन के रूप में करे, दाहिने नाक से श्वास खीचे व कुम्भक करे
- कुम्भक करने से गर्मी पैदा होगी तथा तेजी से बाई नासिका से निकाले, आधे घंटे भी करेंगे तो सर्दी भाग जाएगा, तुरन्त लाभ मिलेगा, यह अपने में पूर्ण विज्ञान है
श्रीमद्भागवत कथा क्या है, इसे क्यों सुनना चाहिए
- कृष्ण जी को कहते हैं श्रीमद्भागवत
- विष्णु के सभी अवतार इसी में आते है
- इसे सुनने से श्रद्धा बढ़ती है, कथा में व्यक्तित्व की चर्चा होती है तो श्रद्धा बढेगी तथा उनके आचरण को व्यक्ति अपने में भी धारण करेगा
- गायंत्री मंत्र व चालीसा में यही अन्तर है
- गायंत्री मंत्र का अर्थ उसमें नही दिया
- गायंत्री चालीसा में सब व्याख्याए दी गई है, गाथा दी गई है, इससे श्रद्धा का विकास होता है
- जाने बिना ना होई प्रतीती तथा जानने पर खूब प्रीती होती है, प्रीती से ही भक्ति दृढ़ होती है, तो यह भक्ति को मजबूत करता है
- वांग्मय 31 संस्कृति संजीवनी एवं श्रीमद्भगवत गीता, इसमें सतनारायण व्रत कथा भी जोड़ दिया गया है, इसमे बताया गया है कि गीता पर प्रवचन कैसे दिए जाए, इस वांग्मय का अध्यन कर सकते है
- कथा सुनने से श्रद्धा बढ़ती है तथा श्रद्धा बढेगी तो सत्य को पा लेगे 🙏
No Comments