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पंचकोश जिज्ञासा समाधान (14-02-2025)

पंचकोश जिज्ञासा समाधान (14-02-2025)

कक्षा (14-02-2025) की चर्चा के मुख्य केंद्र बिंदु:-

केनोपनिषद् में आया है कि जो वाणी के द्वारा वर्णित नहीं किया जा सकता अपितु वाणी ही जिनकी महिमा से प्रकट होती है, उसे ही तुम ब्रह्म समझो, वाणी द्वारा निरूपित तत्व की जो उपासना करते है वो ब्रह्म नहीं है, सभी अंगो के बारे में ऐसा दिया है, इसे कैसे समझे

  • इसे ऐसे समझे जो सामने हम हलचल देखते है, बोलने चालने खेलने कुदने या काम करने के रूप में तो हलचल करना शरीर के बस की बात नहीं, शरीर एक System / उपकरण भर है, यह तभी काम करेगा जब इसमें बिजली हो तो हमें बिजली को महत्व अधिक देना चाहिए, उसके बिना सारा system ठप्प पड जाता है
  • सारा संसार पदार्थ जगत से बना है, वह सम्पूर्ण जगत उसके भीतर दौडने वाले प्राणों से हलचल करता है, वही सारी सृष्टि को चला रहा है, केनोपनिषद् में यही आया है कि किसके द्वारा संसार चलाया जा रहा है, किसके द्वारा पलक झपकते है -> सब प्राण से हो रहा है
  • प्राण को भी ब्रह्म कहा है
  • प्राण निकलने पर मुर्दा हो जाता है क्योंकि वह जो निकल गया वह सत्य था, अभी तक हम इस शरीर को ही सत्य मान रहे थे

क्या विवाह में दो आत्माओं के मिलन का पूर्वजन्म से संबंध रहता है?

  • संबंध सभी का सभी से है, इस ब्रह्मांड में दो कि सत्ता नहीं है
  • फूल में माला को देखे तो माला में लग रहा है कि फूल अलग अलग है परन्तु सुत्र को देखे तो सब एक है, इसी प्रकार हम सभी एक है
  • हम सभी एक ही ईश्वर की संतान है, स्त्री – पुरुष, जड चेतन या जात पात इन सबसे क्या अंतर पड़ सकता है, सब का सबसे संबंध है
  • किसको अधिक महत्व दे, जिसको महत्व देंगे वह संस्कार में आ गया और वो कुछ दूर आगे तक जाता है
  • एक और भी तरीका है कि क्रिया की प्रतिक्रिया भी होती है, जिनको हम Torcher करते रहते है तो वह Balance करने के लिए फिर जन्म लेगा तथा यह इसी प्रकार चलता रहेगा, कसाई और बकरे का इसी प्रकार चक्र चलता है तथा एक दूसरे को अनन्त तक काटते रहेंगे
  • इसी तरीके से प्रेम स्नेह भी साथ में काम करता है, उसे Valance Electron कहेंगे
  • जिनसे स्नेह प्रेम करेंगे उनका साथ आपको लबें समय तक मिलेगा यदि इस जीवन में छूट भी गए तो आत्मा तो मरती नहीं, फिर से नए वस्त्र पहनकर फिर मिलेगे

बृहदआरण्यकोपनिषद् में याज्ञवल्क्य ऋषि जब राजा जनक यज्ञ कर रहे है तो 100 गायो को दान करने की बात जब आई है तो कहा कि जो सबसे ज्ञानी हो वो गौ को हाक कर ले जाए तो सब कोई चुप है तब याजवल्क ऋषि अपने शिष्यों को आदेश देते है कि गौ को हाक कर ले जाए, उसमे अन्य विद्वजनो को प्रतिस्पर्धा महसूस होती है कि ये सबसे ज्ञानी कैसे हैं, उस समय भी ऐसी प्रतिस्पर्धा ऋषि मुनियों मै क्यों थी

  • आज के समय या उस समय या अनंत काल पहले जब तक से पूर्ण आत्मा का बौधतव नही होगा तब तक प्रतिस्पर्धा बनी रहेगी, वह चाहे इंद्र हो या कोई भी हो, इंद्र भी एक पद है तथा वह भी आत्मबोध की यात्रा के बीच की एक स्थिति / अवस्था है
  • प्रतिस्पर्धा भी Toxine है वो बना रहेगा
  • याज्ञवल्क जी ने कहा कि हम यहा शास्त्रार्थ करने यहा नहीं आए है, हमें गायों की जरूरत थी तथा यहा सब मूक दर्शक बने है तो हम ले जा रहे हैं फिर भी यदि आपको हमारी पात्रता की जांच करनी है तो कर लिजिए तब उन्होंने सभी के प्रश्नो का उत्तर दे दिया तथा सभी का मस्तक गिर गया
  • मस्तक गिरना = हार स्वीकार करना

आप हमे आत्मा के विषय में स्पष्ट रूप से बताए फिर याज्ञवल्क ने कहा कि . . . तुम्हारी यह आत्मा ही सर्वान्तक है, बाकी सब नाश्वान है, यह सुनने के पश्चात सब मौन हो गए तो यहा याज्ञवल्क्य जी ने बताया कि जो तुम्हारे भीतर है वही आत्मा है पर यह भी आया है कि उसे मन बुद्धि इद्रियों आदि के द्वारा उसे जाना भी नहीं जा सकता, इसका क्या अर्थ है

  • असंभव इस अर्थ में कहा गया है कि तुम अभी Lower प्राइमरी कक्षा के छात्र हो और यह पढ़ाई ग्रेजुएशन के बाद का है परन्तु धीरे धीरे Exam Pass करते जाओंगे तथा योग्यता बढ़ती जाएगी तो College के स्तर का समझ जाओगे
  • परन्तु जिस तरह का तुम्हारा प्रश्न है, अभी यह नहीं समझ सकते, याज्ञवल्क को यह बाल बुद्धि का प्रश्न लग रहा था, इसीलिए कहा कि तुम्हारे लिए अभी बहुत सारे Layers पास करना है

मैत्रायिणीपनिषद् में आता है कि तपश्चर्या बिना आत्मा में ध्यान नहीं लगता ना कर्म शुद्धि होती है, तप से सत्व (ज्ञान) प्राप्त होता है तथा तप से मन का निग्रह होता है, मन स्थिर होने पर आत्मा की प्राप्ति होती है और बंधन छूट जाते है, यहा प्रश्न यह है कि देवता या राक्षस दोनों ही संकल्प लेकर ही तपस्या करते है तथा उन्हें वह प्राप्ति भी होती है, आर्शीवाद भी मिलता है तो बंधन छूट जाने का यहा क्या अर्थ है

  • यहा महत्वपूर्ण यह है कि संकल्प पदार्थ जगत का हो रहा है या आत्मा का हो रहा है
  • जो जो शरण तुम्हारी अवे सो सो मनोवांछित फल पावे
  • आर्त अर्थी चिंतिंत भोगी तथा ऋषि मुनि तपस्वी योगी दोनो ही आत्म साधना करते हैं
  • जो रोग दुख हटाने के लिए साधना करते हैं या आत्मा को पाने के लिए साधना करते हैं उसी के अनुरूप वे फल को पाते हैं
  • ऋषि अपने-अपने विषय के रिसर्च स्कॉलर हैं तो सभी ने अपना विशिष्ट पद पा लिया
  • विषय के आधार पर होता है, पंचकोशीय साधना यदि बंधन मुक्ति के लिए करेंगे तो आत्मा को पा लेगे, खेती बाडी की साधना करेंगे तो खेती बाड़ी ही मिलेगा . . .
  • लक्ष्य देखा जाता है कि किस उददेश्य को लेकर वह तप किया गया
  • तप का अर्थ कि हमारे लक्ष्य के मार्ग में आने वाले कष्टो को झेलना व अपना जोश उत्साह उमंग उस लक्ष्य को पाने के लिए बनाए रखना

क्या वर्तमान स्थिति में भी कुंभ स्नान आदि को उपयोगी बनाया जा सकता है कृपया प्रकाश डाला जाए

  • यह भी संभव है पर उस स्तर की ताकत हमें झोकनी पड़ेगी
  • ईश्वर ने जब सारी शक्तियां ही मनुष्य को जब दे दी तो मनुष्य क्या नहीं कर सकता
  • जब हम अपने भीतर ईश्वरत्व की ताकत (पात्रता) पैदा करेंगे तो हम सभी सिस्टम को बदल सकते हैं
  • पूज्य गुरुदेव ने जितना बन पडा वह किया, जब उन्होंने देखा कि अन्य लोग साथ नहीं दे रहे तो उन्होंने अंतरिक्ष को साफ कर दिया, जो उनके बलबूते था
  • आज हमें कुंभ जैसे पर्व पर क्या करना है तो पहले यह देखे कि हम पहले क्या थे अब क्या हो गए -> आज यदि पहले जैसा कुंभ नहीं रहा तो भी कुंभ को हटा नहीं सकते, अपनी संस्कृति को नष्ट नहीं कर सकते
  • अब लोगो को नया तरीका बताया जाए व उददेश्य देखा जाए
  • हय पहले क्या थे, ऋषियों के समय में कुंभ कैसा होता था और अब क्या हो गया
  • पहले कल्प साधना होता था परन्तु अब केवल डुबकी लगाकर उछलते कूदते वापस घर आ जाते हैं तो हमारा उद्देश तो पूर्ण नहीं हुआ तथा हमारा व्यक्तित्व भी नहीं बदला
  • हमारा व्यक्तित्व यह यदि नहीं बदला तो समझे कि लाभ भी नहीं मिला, कबीरदास ने इसका विरोध किया
  • घड़े में यदि शराब भरा हो तथा उस घड़े को कितनी भी डुबकी लगाई परंतु उसके भीतर टॉक्सिन रहने के कारण वह कभी शुद्ध नहीं होगा -> एक ही उपाय है कि भीतर से उसे साफ करना है
  • पहले कुंभ में अंतकरण की साधना एक महीने तक करवाते थे, वह भारद्वाज ऋषि का क्षेत्र है
  • वे एक महीना जब रवि माघ में प्रवेश करते थे, तब वे सभी से एक महीने की कल्प साधना करवाते थे, वहा रुकना व उनके बने भोजन को खाना, कक्षाएं लेना तथा सभी प्रकार के
    12 तप वे करवाते थे तथा पांचो कोशों को Refined करवाते थे
  • तो चान्द्रायण तप यदि कोई एक महीना कर ले तो कायाकल्प होगा ही होगा
  • तो उसके लिए ऋषि की कक्षाए वहा पर होनी चाहिए
  • पहले एक ऋषि/Professor, 10 व्यक्तियों को अधिक से अधिक पढाते थे तथा भारतीय संस्कृति का ज्ञान पढाना जरूरी है फालतु का अन्य कुछ नहीं पढ़ा सकते, हमें Absolute Truth बताना पड़ेगा जो कि उपनिषदों का सार तत्व है, उपनिषद् आत्मिकी है -> इन दिनो अधिक लोगो को भी पढ़ना है तो मीडिया का उपयोग भी कर सकते हैं तथा Display या PPT के माध्यम से भी पढ़ा सकते हैं
  • एक समय में इतने लोगो के लिए असुविधा हो तो उसे Shift Wise या सालों भर या हर महीने भी किया जा सकता है, प्रयाग एक तीर्थ स्थान है तथा तीर्थ, सिद्ध पीठ होता है, वहा पर मूहूर्त का Condition नहीं होता
  • जो पढ़े-लिखे संत थे तो जब मौनी अमावस्या पर दुर्घटना घटी तो उन्होंने वह स्नान Cancel कर दिया, वे किसी बंधन में नहीं रहते
  • आम आदमी ही बंधनो में पड जाता है तो यहां आचार्य की भी भूमिका रहती है कि वह किसी एक विशेष मुहूर्त को इतना Highlight क्यों कर दिए
  • तीर्थ क्षेत्रों में मूहूर्त नहीं देखा जाता वहा सालो भर सत्र चलता है, वह सिद्ध पीठ है -> वहा 9 – 9 दिन का भी सत्र चलाया जा सकता है
  • गुरुदेव ने एक पुस्तक लिखी कि तीर्थ क्या थे क्या हो गए और क्या होने चाहिए यह पुस्तक पढ़ेंगे तो बहुत कुछ clear हो जाएगा, तीर्थो का उद्देश्य कल्प साधना में है कि आदमी की Personality को Change किया जाए
  • हम कल्प Shift wise चलाए, 9 दिन नहीं हो पाए तो 5 दिन चलाएं
  • ऐसा ही आज के समय में किया जाना चाहिए इसी प्रकार की कल्प साधना की जरूरत है ताकि Personality Refinement हो सके
  • इन दिनों Personality Refinement के कोर्स होने चाहिए = महामानव पैदा करने के लिए -> यह संभव भी है, सालो भर चल सकता है तथा किसी पर भार भी नहीं होगा, साधना सत्र भी होते रहेंगे
  • इस प्रकार सालो भर साधना करने के बाद भी संगम का क्षेत्र भी खाली रहेगा
  • गुरुदेव इस प्रकार की आगे की योजना, आने वाली पीढ़ी के लिए छोड़ कर गए हैं

गीता के नौवे अध्याय का दसवा श्लोक है जिसमें आया है कि हे अर्जुन मेरी अध्यक्षता में अर्थात मेरी उपस्थिति में सर्वत्र व्याप्त मेरे अध्यस्थ यह माया जो चर अचर जगत को रचती है, जो शुद्र कल्प है तथा इसी कारण से हम इस संसार में आवागमन के चक्र में घूमते रहते है, प्रकृति का यह शुद्र कल्प जिसमें काल का परिवर्तन है, मेरे आध्यात्म से प्रकृति ही करती है, मै नहीं करता किन्तु सातवे श्लोक में निर्दिष्ठ कल्प अराधना का संचार व गति पर्यन्त आया है कि निर्दिष्ठ कल्प अराधना का संचार मार्गदर्शन वाला कल्प महापुरश्चरण करते हैं, एक स्थान पर वह स्वयं कर्ता है जहा वे विशेष रूप से सृजन करते हैं, यहा कर्ता केवल प्रकृति है जो केवल मेरे अध्यस्थ यह क्षणिक परिवर्तन करती है, जिसमें शरीरों का परिवर्तन, काल का परिवर्तन, युग का परिवर्तन इत्यादि आते है, ऐसा व्याप्त होने पर भी मूढ लोग मुझे नहीं जानते का क्या अर्थ है

  • मै करता नहीं, प्रकृति करती है लेकिन अध्यक्षता बिना प्रकृति भी हलचल नहीं कर सकती
  • ईश्वर ने पूरे संसार रूपी गाड़ी को व अपनी सुविधा के लिए बनाया तथा स्वंय ड्राईवर बनकर उसमें बैठ गए
  • रथ गाडी को control वहीं करेगा
  • अगुलियों से मंथन कर दिए तो यही ईश्वर की इच्छा हो गई
  • गाडी जब यदि नहीं भी है तो भी पैदल जाते थे तो प्रकृति साथ में रहती है, तो प्रकृति ही सब करती है
  • आध्यात्म से सरल विषय इस ब्रह्मांड में नहीं है तथा इससे अधिक आनन्द और किसी खेल में भी नहीं

दुलर्भ उपनिषद् में आया है कि ओकार वाच्य जामवान संज्ञक है, उ उपेन्द्र स्वरूप हरि है और मकार शिव रूप हनुमान है और बिंदु शत्रुघन है, नाद भरत, कला लक्षमण तथ कलातीत सीता है, क्या यहा ॐ का व्याख्या बनाया गया है,क्या यहा बिंदु ॐ के उपर का बिंदु है तथा यहा कलातीत क्या है

  • इसमें Professor ऐसे छात्रों की कक्षा में पहुंच गये है जो राम जी के भक्त थे, रामलीला मानस यही उनके मस्तिष्क में घूम रहा था
  • जो शिव भक्त होगे तो उनके मस्तिष्क में शिव की ही लीलाएं चलेगी
  • ईश्वर मनुष्य बनाते है और मनुष्य भगवान बनाते हैं, भगवान को मनुष्य पैदा करता है, जिसका जितना खोपडी उतना ही वे बना लेते हैं
  • ऐसे लोगो को सत्य का दर्शन तो करवाना ही करवाना है, ऐसे भक्तो / शिष्यो को पढ़ाने में प्रोफेसर की माथापच्ची बढ़ जाती हैं
  • कृष्ण ने कहा कि जो ॐ ॐ कहकर शरीर छोडता है वह सीधा ब्रह्म में जाकर मिलता है
  • वेद का भी यही कहना है, यह सारा उपनिषद् का ही सार है, ॐ में सभी 33 करोड़ देवी देवता सभी आ जाएंगे तो इन्हें ॐ के माध्यम से इनके इष्ट के प्रति श्रद्धा रखते हुए पढ़ाना है
  • ॐ को चार भागों में बाटकर पढ़ाया कि हनुमान जी को, राम सीता जी को, लक्ष्मण, शत्रुघ्न, भरत सभी को ॐ में देखो
  • सभी को ॐ में देखने लगेंगे तो दोनो ( ॐ तथा देवता) जुड़ जाऐगें, दोनो को जोड़ने भर की शैली यहा बताई जा रही है
  • ॐ ही सारे कलाएं करता है
  • ॐ ही बिंदु है, अपने में विलीन करता है
  • ॐ ही प्रसंवित करता है
  • नाद भी यही है, नाद से प्रसंवन होता है, Sound Energy से प्रकट होता है
  • बिंदु Omnipresent है तो इसलिए बिंदु कहला गया
  • कला जितनी भी तरह की हम देखते है, उसमें परिवर्तन होता है तथा चित्र विचित्र आकृतियां, ये सब कलाएं है
  • ये सब ॐ ही से निकला है तथा ईश्वर इन सबसे परे है
  • ईश्वर ने मदारी की तरह ॐ का एक खिलौना उत्पन्न कर लिया, इसी ॐ से सारे संसार का मदारी चल रहा है

अक्षर मंत्र के अनुसरण से गायंत्री के एक लाख मंत्र जप का लाभ मिलता है, इससे 10 पीढ़ी बाद व 10 पीढ़ी पहले का भी पवित्र हो जाता है, का क्या अर्थ है

  • ऋषि जिस मंत्र से साधना करते है, उस मंत्र से जोड़ना चाहते है कि ब्रह्म हर जगह है तो उसे ब्रह्म से जोड़ो
  • उपनिषदो की यही विशेषता है, कृष्ण के लिए कृष्णोपनिषद् दे दिया तथा राम के लिए रामपूर्वतापनीपनिषद् दे दिया, शिव के लिए शिवसंकल्पोनिषद् दे दिया
  • बहुत से उपनिषद् देवताओं के नाम से भी जुड़े हुए हैं, उनमें ब्रह्म को झलकाने का ऋषियों ने एक प्रयास किया है
  • यह एक लाख गायंत्री मत्र जपने का लाभ बताया है तो गायंत्री हृदयम को पचा लेंगे तो 60 लाख गायंत्री मंत्र जपने जितना लाभ बताया है, – इतना जप करने में पूरा जीवन ही खप जाएगा
  • इसलिए हमने जप से अधिक स्वाध्याय को महत्व दिया जिसका इतना लाभ बताया गया है
  • अच्छा Businessman फायदे वाला Business करता है

ऐसा प्रसंग मिलता है कि अवचेतन मन का संबंध ब्रह्मांडीय चेतना से जुड़ी होती है तथा चेतन मन द्वारा जैसा चिंतन उसमें संप्रेषित किया जाता है वैसी ही परिस्थितियाँ मनुष्य के जीवन में घटित होने लगती हैं तो क्या हमारी वर्तमान और भविष्य के दशा और परिस्थितियों  का मुख्य वजह यही है ?

  • जी यही वजह है, यहा जागृत मन की भूमिका रहती है
  • अवचेतन मन universe से जुड़ा है
  • जैसे पहले बर्तन की गलाई ढलाई होती है फिर Shape देने की बारी जब आती है तो यह अवस्था जागृत मन के कार्य करने के समतुल्य ही होती है, इसी तरीके से आदमी की प्रगति चलती है
  • मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता खुद है, भाग्य ऐसे ही बनता है
  • केवल ज्ञान सुनने भर से बात नहीं बनती
  • मन की भूमिका महत्वपूर्ण है तो जहा भी मन जुड़ेगा तो वहा चमत्कार करेगा    🙏

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