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पंचकोश जिज्ञासा समाधान (13-12-2024)

पंचकोश जिज्ञासा समाधान (13-12-2024)

कक्षा (13-12-2024) की चर्चा के मुख्य केंद्र बिंदु:-

किसी नए व्यक्ति को उपनिषद् पढ़ना हो तो कहा से शुरुवात करे

  • उपनिषद् के पढने के लिए किसी को सलाह देना कि उनको क्या पढ़ना चाहिए तो उनकी रुचि का जरूर ध्यान रखें कि वे किस Mentality के है
  • यदि वे Scientific या आध्यात्मिक Mentality के है तो वे ज्ञानखण्ड में ईशावास्योपनिषद् से शुरू करे, समझने में सुविधा होगी, यह उपनिषद् दोनो आध्यात्म व विज्ञान को जोडता है, जिनको पढने में मन नही लगता तथा वेद पढ़कर ऐसा लगता है कि सब प्रार्थना ही प्रार्थना दिया है तो कहा से शुरू करे तो उनके लिए यहा से शुरू करना उपयुक्त है
  • एक बार बिहार में संस्कृत के विद्वान 1975 में मिले जिन्हे पूज्य गुरुदेव का पूरा यर्जुवेद कंठस्थ था, उन्होंने सलाह दी कि आप यर्जुवेद का 40 वा अध्याय से शुरू करे, तब वहा से शुरू किया तो वेद समझ में आने लगा तथा मन लगने लगा
  • वही 40 वा अध्याय ज्ञानखण्ड के ईशावास्योपनिषद् में ज्यों का त्यों है
  • यदि किसी को आत्मिकी में अधिक रूची है तो उन्हे कठोपनिषद् पढ़ना चाहिए, यह Youth / युवाओं के लिए भी ठीक है
  • शंकराचार्य ने 10 महत्वपूर्ण उपनिषद् बताए है जैसे कठोपनिषद, मुण्डकोपनिषद (नयन आत्मा प्रवचने न लभ्यो) -> यहा से शुरू करे
  • साधना में यौगिक क्रियाओं में रुचि है तो योग चूडामणी से प्रवेश करे फिर योग कुण्डलिनी उपनिषद् तथा फिर योग राजोपनिषद् पढ़े
  • यदि साधना में रुचि नही है तथा old Age के कोई व्यक्ति है तो महोपनिषद् से शुरू करे, उसमें मनन चिंतन व Astral Body से कैसे आत्मा को पा ले, इस उपनिषद् में मनोमय से Refinement शुरू किया है
  • बह्मविद्याखण्ड में आत्मपूज्योपनिषद् से शुरू करे तथा फिर उनका मन लगने लगेगा, इसमें हम यह जानेंगे कि सीधे आत्मा की पूजा कैसे करें तथा इसमें किसी साधन की आवश्यकता नहीं है
  • प्रत्येक उपनिषद् में उनके रुचि के अनुसार Entry करे
  • शुरुवात में सन्यास वाला अभी ना पढ़े
  • एक यह भी सलाह दिया जाए कि यदि पढ़ने में मन न लगे तो वह वाक्य छोड़कर छलाग लगगकर आगे बढ़े तब धीरे धीरे मन लगने लगेगा, जो वाक्य हमें मिला तथा हमें अच्छा लगा केवल वही अपना है बाकी वाक्य दूसरों के लिए हैं
  • सारे मस्तिष्कों के लिए एक ही उपनिषद् नहीं है, कुछ ही अपने लिए मिलेगा
  • हर उपनिषद् अपने आप में एक बहुत विशाल Shopping Mall है, Shopping Mall की सारी चीजे अपने लिए नहीं रहती तो उसमें से केवल अपने काम का लिया और आगे बढ गए

ब्रह्म की स्फुरणा का सुक्ष्म प्रकृति पर निरन्तर आद्यात nirantar होता रहता है क्या यह सोहम् जैसा है कृप्या वैज्ञानिक शब्दों में स्पष्ट करे

  • सोहम् जैसा नहीं है,सोहम् जैसी बात तब आएगी जब संसार में रहते हुए निर्लिप्त जीवन जीना है, अनासक्त कर्म योग को अपने अभ्यास में ले आना, तब सोहम् बहुत कारगर है
  • शुरुवात में सोहम् साधना में मन नहीं लगेगा
  • फिर विपासना मे जाकर ध्यान लगाते है तो उन लोगों का इसलिए मन लग जाता है क्योंकि उन्होंने अपनी Life Style में अधिक परिवर्तन नही देखा
  • अपनी रूची को / सोहम् साधना को / साक्षी भाव को गहराई देते है तब Creative Mentality का व्यक्ति होता है तो जो Young Generation है या वैज्ञानिक Mentality वाले हैं, रचनात्मक जीवन शैली पर अधिक Focus होगा
  • एक से अनेक बने -> यह constructive work के लिए हुआ है, अभी सृजन का कम्र चल रहा है, पिछला सृजन बासी हो गया, कुछ नया करे, कुछ नया खोजें, कुछ नई कृति करे
  • प्रकृति में Nano Second में अनेको परिवर्तन हो रहे है, हर क्षण यह बदल रहा है तो हम समझ सकते हैं कि कितना Creative उसका mind है
  • जिनको साक्षी भाव में काम करना नहीं आ रहा विपासना के भाव से या सोहन साधना के भाव से काम करना नहीं आ रहा -> युद्ध भी कर और स्मरण भी कर -> ये स्थिति यदि नहीं मिल रही तो हर कार्य को ईश्वर का काम मानकर करने से वह कही फंसेगा नहीं, इसमें सामान्य आदमी भी सफल हो जाएंगे
  • यदि हम ईश्वर का काम मानकर सारी प्रतिभा उसमें झोंक दे तो इससे Production भी बढ़ेगा, रूची भी बढ़ जाएगी तथा अनासक्ति इसलिए हो जाएगी क्योंकि उसे ईश्वर का काम मानकर हम कर रहे है, ग्रहणशीलता बनी रहेगी थकावट भी नही आएगी, Tension Free भी काम करेगा -> गीता का यह दर्शन हमारे लिए व उनके लिए भी बहुत उपयोगी होगा जो भौतिक संसार में अधिक रुचि रखते हैं
  • यह तरीका बहुत सरल है तथा गृहस्थ जीवन में इसी का प्रयास करना होता है तब धरती स्वर्ग बन जाएगी और आत्मा को भी सुंदर बनाना है तो इस प्रयास में विज्ञानमय कोश भी विकसित हो जाता है
  • बार बार स्फुरणा (एको अहम बहुश्याम:) का होना में Echo हुआ, उसी से सातो आयाम बन गए, इसी लहर से फिर ऊँकार ध्वनि की उत्पत्ति होती है
  • जब नया स्फुरणा होगा तो हरेक Layer में जाएगा तो Refraction of Waves शुरू हो जाएगा, इसी Refraction में हरेक को ठेलता है
  • बीज मंत्रो में कं खं गं घं आता है परन्तु क ख ग घ नही आता -> यह इसलिए कि वह Firing कर रहा है तथा बीच में हलन्त, Breakage के लिए आता है -> यह अवस्था Alternating Current (AC) के निकालने जैसा है, इसे बार बार Projection करना पडता है
  • वैज्ञानिको ने एक शब्द Quanta उपयोग किया है, Quanta का एक अर्थ यह भी होता है कि वह Projection बार-बार निकल रहा है
  • परन्तु यह Projection कहां से निकल रहा है यहां पर विज्ञान हाथ खड़े कर देता है
  • कपिल का साख्य दर्शन वहा पर समझ में आने लगता है

 बीज मंत्र के उच्चारण में क ख ग घ, ना आकर कं खं गं घं आता है तो इसका क्या वैज्ञानिक कारण है

  • इसका अर्थ है कि बीज मंत्र में वहा ध्वनि का लगातार Linear Flow नहीं है
  • Continue Flow क का लंबा उच्चारण एक  साथ अनन्त / Infinite तक हो सकता है तथा उसका कोई अन्त नहीं है कि वह कहा तक जाएगा
  • कं के उच्चारण में क को Break कर दिया है, यहा हलन्त Breakage के लिए आता है, जैसे Alternating Current (AC) होता है
  • चक्रो से जो तरंगे निकलती है वे Continue Flow में नही आती, Break होकर आती है इसलिए चक्रों के बीज मंत्र कं खं गं का उपयोग होता है, यह Direct Current (DC) जैसा नहीं है, चक्रों के भीतर सभी चक्र AC Pattern में तरंगे उत्पन्न करते हैं
  • भीतर स्फुरणा बराबर उठती रहती है, मन भी स्थिर नहीं रहता है, उसका विषय बदल जाता है

भीतर जब स्फुरणा उठती है तो जब हम भावनाएं बदलते हैं तब सामान्य स्तर की अनुभूति से आनन्द के स्तर की अनुभूति होती है तो वहा स्फुरणा उठने का कारण हृदय क्षेत्र है या मन है

  • तीनो ही कारण है क्योंकि यहा त्रिआयामी (स्थूल सूक्ष्म कारण रूप) सृष्टि है इसलिए इसका प्रभाव क्रिया विचार भावनाओं तीनों में आएगा
  • भावनाए भी बदलती रहती है, जैसे शत्रु भाव, मित्र भाव, सोने का भाव
  • विचार भी बदलते रहते है
  • क्रियाएं भी बदलती रहती है
  • सृष्टि में हर जगह Alteration चल रही है
  • मूल आधार भावना ही है, भावना को ही कारण कहते है, आनन्द के लिए ही सब किया जा रहा है

छान्दोग्योपनिषद् में आया है कि जो साधक खाने और पीने की इच्छा तो करता है पर जो इसमें आसत्त नहीं होता है, यह उसकी दीक्षा है।

जो हंसता है, जो भक्षण करता है, जो मैथुन करता है, वह स्तुति के स्त्रोतों को प्राप्त करता है। जो तप दान सरल स्वभाव अहिंसा और सत्य वचन से यक्त होता है, वह उस साधक की दक्षिणा है, का क्या अर्थ है

  • इसे सत रज और तम की अवस्था कहते है
  • पहले तमोगुणी स्वभाव का व्यक्ति रहता है, फिर इच्छा जगती है तो व्यक्ति Rest Mode में जाता है, Rest Mode को तम कहते हैं
  • Rest Mode में प्रकृति ले जाती है क्योंकि उसे इस शरीर से काम लेना है, इसलिए प्रकृति Battery Charge के लिए जबरन नींद में ले जाती है, यह तम की अवस्था है
  • इसके बाद Creativity पैदा होगी तथा सुख के लिए संसार में निकल पड़ता है, सुखो को भोगने के लिए संसार के पदार्थो व अपने मन के अनुरुप किए गए कार्यो का आनन्द लेता है
  • अन्न वस्त्र आवास में सुखो को भोगना तम वाला Area है
  • इससे उपर उठने पर मन इसका Enjoy लेना चाहता है, घूमने फिरने में, कमाने के बाद भोग विलास में लगता है, इसे Emotional Need कहते है
  • जब इससे भी थकता है तब Spiritual Need जगती है, यह सत वाला Area है
  • यही कम्रशः विकास की अवस्थाएं है
  • संसार के सभी भोगों को भोगने के बाद जब तृप्ति नही मिलती, तब यह अवस्था आती है
  • ये सब चेतना की Refiement की अवस्था के विकास कम्र है

नारदपरिव्राजकोपनिषद् में बह्मा जी बता रहे है कि विश्व तेजस आदि के वाचक प्रणव की मात्राओं के कम्र का वर्णन किया जा रहा है

प्रणव की मात्राओ का वर्णन किया जा रहा है आत्मा के चार भेद = स्थूल – सूक्ष्म – कारण – तुरीया, पहला पाद जागृत अवस्था है,जागृत अवस्था में 8 लोक है 19 में से 5 ज्ञानेंद्रियां + 5 कर्मेद्रिया + 5 तन्मात्राए + मन बुद्धि चित्त अहंकार, इससे परे वैश्वानर पुरुष, तेजस पुरुष व प्राज्ञ पुरुष, यहा वैश्वानर तेजस प्राज्ञ पुरुष का क्या अर्थ है

  • यह भी चेतना के स्तर / Refined अवस्था को ही बता रहे है,
  • विश्व जगत में फैली हुई उर्जा = वैश्वानर कहते है, सूक्ष्म / विचार जगत में घुली हुई शक्ति को तेजस कह दिया, फिर थोडा और अधिक Refinement की अवस्था विज्ञानमय कोश में आने पर बुद्धि विकसित हो जाती है तथा जब अपने व संसार के बारे में सही जानकारी मिल जाती है तो एक निर्लिप्त अवस्था फिर उभर कर आती है, उसे प्राज्ञ स्थिति कहा गया
  • कारण शरीर को वर्चस कहते है तो यहा प्राज्ञ कहा है

ओत, अनुज्ञात, अनुज्ञा और अविकल्प, आत्मा के ये 4 मुख है

  • ये चारों जागृत, स्वपन, सुषुप्ति व तुरीया अवस्था ही है
  • सोया हूँ पर नहीं जानता कि मै कौन हूँ तो यह सुषुप्तावस्था है
  • एक अवस्था ऐसी है कि -> शरीर सो रहा है परन्तु चेतना जग रही है -> यह तुरीयावस्था है
  • जैसे योग निद्रा में अभ्यास कराया जाता है, उसमें बार बार यह ध्यान करना पड़ता है कि मै सो नहीं रहा हूँ Practical कर रहा हूँ
  • यदि अपनी Conciousness जागृत रहे तो वह तुरीयावस्था में ले जाएगा, इसी को अनुज्ञात ज्ञात करके इन्होंने समझाया है

उपनिषद् की शुरुवात सामान्य व्यक्ति के लिए क्या प्रज्ञोपनिषद् से कर सकते है

  • वह ठीक है इसमें युग की समस्याओं का समाधान है परन्तु यदि केवल प्रज्ञोपनिषद् से बात बन जाती तो गुरुदेव अन्य उपनिषदों का भाष्य नहीं करते
  • प्रज्ञोपनिषद् उन लोगो के लिए है जो संसार में रचे पचे है तथा उससे बाहर निकलने को भी अपना अपराध मानते हैं कि संसार भगवान ने दिया है तो इसका Enjoy लेगें व इसमें रहेंगे, समाज निर्माण व परिवार निर्माण इसमें आता है
  • संसार में रहते हुए मोक्ष कैसे पाए, यह इसमें आता है, गीता में परिवार निर्माण वाला अध्याय नहीं था
  • 80% समस्यायों का समाधान गीता ने कर लिया तो बाकी 20% समस्याए कैसे ठीक हो, यह प्रज्ञोपनिषद् में ले लिया गया है
  • शुरुवात में यदि लेना ही है तो पहले प्रज्ञोपनिषद् नही बल्कि प्रज्ञापुराण लीजिए उसमें अनेक कहानियां है, कथा कहानियां अधिक Motivational है तो इसमें दिए 4 भाग गृहस्थ जीवन के लिए बहुत शानदार है
  • जो आत्मा परमात्मा पर अधिक चर्चा करना चाह रहे है तो उन्हे विशुद्ध उपनिषद् में उतरना होगा जो गुरुदेव ने 3 खण्डो में भाष्य किया है
  • प्रज्ञोपनिषद् में परिवार समाज वाला अधिक है
  • 5 वे में आत्मपरिष्कार मिलता है, 6 वे में देवात्मा हिमालय है, अनेक ऋषि अपने शोध के लिए यहा चले गए, पूरी आत्म साधना इस 5वे अध्याय में दिया है
  • इसमें (प्रज्ञोपनिषद्) समग्रता है
  • जो संसार से बाहर निकलकर पूरे संसार को ही शून्य मान लिया हो उसके लिए उपनिषद् में कूदना पड़ेगा
  • कुण्डलिनी जागरण कराना है तो इस उद्देश्य से हमें प्रज्ञोपनिषद् में कुछ नहीं मिलेगा
  • जब जैसा जरूरत हो तब तैसा करना पड़ता है, इसलिए किसी को गौण न माना जाए, व्यक्ति विशेष के अनुरूप सबका अपना अपना महत्व है, अपनी अपनी जरूरत है

वांग्मय 22 में आया है कि उत्तेजना व मूड साथ साथ उत्पन्न होते है और समान रहकर कार्य करते हैं, दोनो का प्रार्दुभाव एक ही घटना से होता है, वे किसी ऐसी प्रक्रिया से निकाल करती है जो आवेग की निर्बलता के उपरान्त मूड जैसी स्थिति पैदा करती हो, मूड को वह एक अवशिष्ट अवस्था मानती है एक ऐसी सूक्ष्म अवस्था जो मनोवेग के आरम्भ से पृष्ठभूमि में रहती तो है पर तब तक स्वयं को अप्रकट स्तर का बनाए रहती है, जब तक आवेश एक दम क्षीण न हो जाए

  • इसमें यह दिया है कि आवेशग्रसतता का स्थिति जब आती है या जब मूड बदलता है
  • मूड वास्ता में अपनी मुठ्ठी में होना चाहिए
  • Army में दुश्मन ने आक्रमण कर दिया तथा कोई जवान ये कहे कि अभी मूड नहीं है तो अब मूड को भी यहा मारना पड़ेगा
  • आवेग का क्षीण होने का अर्थ है = मूड को श्रीण करके उस पर अपना Command करना होता है
  • विज्ञानमय कोश की साधनाए मूड पर Command कर लेती है, अपने बस में मूड आ जाता है
  • प्राण की निर्बलता भी मूड को प्रभावित करती है, शरीर कमजोर हो या जोश जूनून कम हो तो वह भी मूड को प्रभावित करेगा
  • पांचो कोशो में से कोई भी कोश कमजोर है तो वह मूड को प्रभावित करेगा, पांचो कोशो का आपस में Link है कोई भी कोश कमजोर है तो मूड पर Command नहीं आ पाएगा
  • शरीर स्वस्थ नही हैं तो भी मूड पर command नहीं आ पाएंगा, मूड रहते हुए भी शरीर रुकावट डालता है
  • पांचो कोश उसे (मूड को) प्रभावित करते हैं
  • मूड = अपनी इच्छा / will / भावनाएं
  • चाहना तो जीवात्मा का स्वभाव है, हममें अतृप्ति है, अतृप्ति को तृप्त करने के लिए ही जन्म लिया है, चाह तो बनी ही रहेगी तथा चाह तब तक बनी रहेगी जब तक संसार के स्वरूप को भली भांति समझ न ले और उसको Digest न कर ले
  • द्वैत भाव जब तक खत्म नहीं होगा तब तक यह चाह बनी रहेगी
  • भिन्नता जब तक दिखाई देगी तब तक मूड व इच्छा बनी रहेगी
  • पांच कोशो की साधना बहुत कारगर है, यह मूड पर पूरा नियंत्रण कर लेगी, तेजस्विता प्रखरता, Management, Tension -> ये सब अपनी मुट्ठी मे रहेगा
  • कभी Tension में नहीं आएंगे क्योंकि आत्मा का स्वभाव Tension में आना है ही नहीं
  • Tension में वही आते है जो Astral Body में रहते हैं तथा उपरी मंजिल (विज्ञानमय / आनन्दमय) में नहीं गए
  • विज्ञानमय में Tension शब्द ही उसकी Dictionary में नहीं है

खुले में हवन क्यों न करे, इसका विज्ञान क्या है तथा जहा व्यवस्था नही है तथा खुले में ही हवन करना पड़ें तो क्या करे

  • पक्षियों से हवन अपवित्र हो सकता है
  • अपनी सुरक्षा के लिए भी खुले में न करे
  • एक shed बना दिया जाता है वह ठीक है
  • खुले मे यज्ञ करना है तो -> Meditation कीजिए (मानसिक यज्ञ), ज्ञान यज्ञ करे या दीप यज्ञ करे, जप यज्ञ करे, यज्ञ का केवल एक अर्थ नहीं है
  • जहा सब योगी स्तर के है तो वहा किसी भी तरीके से करने में मनाही नही है

साधना के कम्र में मनोमय कोश जब तक पकता नही है कोई न कोई विद्यन बाधा पैदा करता है तो एक भाव आता है कि बाकी कोशो को साधने के लिए पहले मनोमय कोश को साधना जरूरी होता है, क्या करे

  • मनोमय कोश को साधना बहुत जरूरी है इसलिए गुरुदेव की किसी भी अखंड ज्योति में देख सकते है वे उपसंहार में मन पर लाकर छोड देते है
  • विचार क्रांति अभियान = मन की रगडाई का अभियान, इसमें बताया कि शरीर पर उतना ही ध्यान दे ताकि शरीर निरोग व उर्जावान बना रहे तथा पूरा जीवन इसी में न फंसे रहे
  • असली साधना मन से होती है
  • अराधना शरीर से होती है
  • जब भी साधना हो तो मन को साधा जाए
  • स्वाध्याय की नियमित आदत डाले तो यह सबसे बढ़िया तरीके से मन को नियंत्रण में करता है, चलते फिरते उठते बैठते किसी भी महापुरुषो के साहित्य को पढ़े
  • उसके विचारो के साथ अपने विचारो की दोस्ती की जाए, वो मन को हमेशा दिशा देता रहेगा    🙏

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