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पंचकोश जिज्ञासा समाधान (12-11-2024)

पंचकोश जिज्ञासा समाधान (12-11-2024)

आज की कक्षा (12-11-2024) की चर्चा के मुख्य केंद्र बिंदु:-

सुंदरीतापनीपनिषद् में आया है कि तुरीय स्वर एकार को छोडकर सर्वप्रथम सुर्य चंद्र के साथ कामेश्वरी के लिए सप्तम धाम में अगस्ती संज्ञा से जानते है, इसी पूर्व कथित विद्या कमाध शक्ति बीज का वागभव आदि में स्थापन किया जाता है, यह वागभव शक्ति बीज है, वागभव वाद्य मादन काम कला के अर्थ में भावो को जोडकर . . . का क्या अर्थ है

  • वागभव = वाक शक्ति को कहते है
  • सारी सृष्टि Sound Energy से चल रहा है, ॐ ध्वनि से चल रहा है
  • ॐ ध्वनि को ही यहा वाक शक्ति कहा गया है
  • वाक शक्ति ही सारी सृष्टि को उत्पन्न करती है, यही दिव्य वाणी भी है
  • सातवे स्थान का अर्थ सहस्तार चक्र से है
  • ॐ बीज आज्ञा चक्र में होता है, वही से उसका उदभव है, प्रकृति बह्म जीव का मिलन वही ॐ पर होता है
  • इसी वाक शक्ति से सृष्टि की व प्रकाश (Light) की उत्पत्ति हुई
  • वैज्ञानिको का मत है कि सृष्टि की उत्पत्ति प्रकाश से हुई परन्तु ऋषियों का मत है कि ध्वनि विज्ञान से सृष्टि बनी, उससे पहले भी किसी की इच्छा हुई थी तब प्रकाश निकला

यदि कोई गुरु दीक्षा नही ले पाया परन्तु मन ही मन किसी को गुरु मानता है तो क्या मंत्र काम कर सकता है

  • कर सकता है परन्तु प्रत्यक्ष मार्गदर्शन में दिक्कत आएगी
  • मन कभी कभी परा वाणी को नही पकड पाता है तथा कभी पकड़ लेता है, प्रत्यक्ष मार्गदर्शन भी चाहिए
  • यदि सुर्य को गुरु माना तो उससे बातचीत भी कर सके
  • यदि मूर्ति को गुरु मान लिया तो मूर्ति से बातचीत करने का भी अभ्यास होना चाहिए, यदि जो प्रश्न आप यहा पूछ रहे है तो वहा पर मूर्ति के सामने पूछे तो वहा से भी उत्तर मिल जाना चाहिए, वही पर फिर दिक्कत आती है, इसलिए प्रत्यक्ष गुरु की तब तक जरूरत पड़ती है जब तक हम अन्तरात्मा की आवाज न सुनने लगे, जब हम अपनी आत्मा की आवाज सुनने लगेगे तब फिर बाहरी गुरु की आवश्यकता नहीं रह जाती तथा बाहरी गुरु की भूमिका खत्म हो जाती है

जब मूर्ति से उत्तर मिलने लगे तो क्या यह समझ सकते है कि मूर्ति से हमें अपनी आत्मा की आवाज ही सुनाई पड रही है

  • जैसे एकलव्य ने उसे पा लिया था तथा वह मूर्ति से लाभ ले लेता था, यह विद्या सभी (सामन्य साधक) को नहीं आती
  • उसके लिए काफी समर्पण व काफी श्रद्धा की जरूरत पडती है, वह रोएगा तो मूर्ति रोएगी
  • उस स्तर की श्रद्धा जब तक नही होगी तब तक बाहरी गुरु की आवश्यकता रहती है
  • गुरु शिष्य में श्रद्धा उत्पन्न करेगा तथा आत्मा की आवाज सुनने का तरीका बताएगा
  • फिर जब शिष्प आत्मा की आवाज सुनने लगेगा तो समझे कि वह शिष्य पास हो गया तथा गुरु का कार्य खत्म हो जाएगा, फिर गुरु अन्य शिष्य को बताएगा

जाबालोपनिषद् में बृहस्पति भगवान याज्ञवल्क से पूछते है कि प्राणों का कौन सा स्थान है, इंद्रियों के देव यजन का क्या अभिप्राय है एवं समस्त प्रणियों का बह्म सदन क्या है तब याज्ञवल्क जी उत्तर देते है कि अभिमुक्त ही प्राणो का क्षेत्र है, उसे ही इंद्रियो का यजन कहा जाता है और वही समस्त प्राणियों का बह्मसदन है, का क्या अर्थ है

  • सभी प्राणो को शरीर के भीतर ढूढ़ना है तो वह मस्तिष्क के मध्य में होता है, दसो प्राणों का नियंत्रण मस्तिष्क से होता है, व्यान से सब Control होता है, व्यान को श्री कृष्ण कहा गया
  • कर्मद्रियां भी व ज्ञानेद्रियां भी प्राण से बनी है, ये सब पांडव कहलाते है, धनंजय भी उनका अनुचर है, व्यान से सब Control होता है तथा व्यान को स्थान मस्तिष्क में सहस्तार चक्र में है
  • मस्तिक के मध्य में देखे तो Pineal को व्यान तथा Pitutary को धनंजय कह सकते है
  • एक Somatic Body / संसार से जुड़ा रहता है तथा मोहग्रस्त रहता है तथा दूसरा सुपर चेतन से जुड़ा रहता है, सुपरचेतन सत्ता ही सब Command करती है, आत्मा ही प्राण को उत्पन्न कर सकता है, बह्म सदन सब वही कहलाएगा, सारा प्राण उसी में विलीन होगा तथा उसी में से निकलेगा
  • जहा से (आत्मा से) उदगम हुआ है वही पर उसकी सत्ता विलीन होगी इसलिए आत्मा को जानने को ही एक गुरु / ऋषि अपने शिष्य को प्रेरित करता है

अभिमुक्त किसमें प्रतिष्ठित है वह वरणा और नासि के बीच में विराजमान है, यहा वरणा व नासि क्या है

  • वरणा व असि/नासि = ईडा व पिंगला को कहा जाता है तथा यह सुष्मना में स्थित है
  • उसका उपर त्रिकुटि में मिलन होता है तथा नीचे मूलाधार में मिलन होता है, शिव की नगरी वही त्रिकुटि है, वही ॐ है, वही काशी है

कठोपनिषद् में आया है कि सबका अन्तारात्मा अंगुष्ठ परिमाण वाला है जो परमपुरुष के रूप में सदैव सबके हृदय क्षेत्र में प्रतिष्ठित है जिस प्रकार मुंज से उसकी सींख अलग की जाती है, उसी प्रकार मनुष्य के लिए उचित है कि वह धैर्य पूर्वक से अपनी आत्मा को शरीर से पृथक करे, उसे अमृत रूप व शुक्र समझे, वह अमृत स्वरूप ही है, का क्या अर्थ है

  • जैसे आत्मानुभूति योग का अभ्यास गुरुदेव कराते है तो शरीर से बाहर आत्मा को निकाले तथा शरीर से बाहर निकलकर अपने को अलग व अपने शरीर को अलग देखो -> इसी को कहा गया है कि मुंज को चीरकर सीख को बाहर निकाल लेना
  • इसी के आधार पर कहा गया कि हे नचिकेता तुम शरीर नही हो, शरीर तुम्हारा रथ है, इंद्रिया उस रथ के घोड़े है, मन उसका लगाम है, बुद्धि को तु सारथी समझ व चिपकाव को हटाओ
  • इसे समझने के लिए आत्मानुभूति योग का लंबा अभ्यास करना होगा और जब आत्मा को अलग देख रहे हो अपने भीतर आत्मा के गुणो को देखना होगा कि मै अजर हूँ अमर हूँ पवित्र हूं दिव्य शक्तियों से युक्त हूँ शान्तिमय आनन्दमय हूँ आदि अन्त रहित हूँ अमरत्व से युक्त ईश्वर अंश अविनाशी आत्मा हूँ -> तदैव शुक्रम तदैव बह्म के रूप में देखना है
  • शुक्र = शुभ ज्योति के पुंज / अत्यंत तेजस्वी / जहा करोड़ों सुर्य तथा करोड़ो चंद्रमा एक जगह मिल जाए उसे शुक्र कहेंगे

सावित्री कुण्डलिनी एवं तंत्र में आया है कि मनुष्य के शरीर में अनेको ऐसे केंद्र है जिनमें जीवनी शक्ति व प्राण उर्जा की बहुलता/अधिकता होती है, उन्हें मर्म स्थानो की संज्ञा दी गई है तथा मर्म स्थानों की संख्या 700 है, मर्म स्थानो के अतिरिक्त शरीर में 7 ऐसे प्रमुख केंद्र है जिनमें प्राण शक्ति व अतिइंद्रिय क्षमता का अपार वभैव प्रसुप्त स्थिति में पडा हुआ है, जिसे जगाने की कला हमें सीखाई गई है, इन्हें चक्र या Plexus भी कहते हैं, स्थूल व सूक्ष्म शरीर के मिलन स्थान पर चक्रो की उपस्थिति बताई गई है, यह मिलन स्थान क्या है

  • मिलन स्थान = यही चक्रों का Position है
  • चिकित्सा विज्ञान के अनुसार इसे plexus कहा गया
  • स्थूल शरीर = Physical Body
  • जहा जहा पर यह बनावट पाई गई जैसे Criniel Region में या Cervical Region में Cervical Plexus के रूप में या Solar Plexus . . . -> यहा Nerves का एक जाल है, यहा पर यह पाया गया है कि यहा उर्जा कुछ अधिक है, यही स्थूल व सूक्ष्म का मिलन है
  • चक्र का मशीन एक जापानी वैज्ञानिक ने बनाया
  • पूज्य गुरुदेव ध्यान में कहते है कि अन्नमय कोश का प्रवेश द्वार नाभी को बताया तो यह ढोढ़ी वाला नाभी है, मणीपुर वाला नहीं है, इस नाभी में भी एक Brain है, यही 2nd Brain है
  • यहा से पूरे शरीर की कोशिकाओं का संबंध है जो पूरे शरीर में भोजन ले जाएगा
  • जैसे गर्भवस्था में शिशु माँ के गर्भाश्य की दीवारो से भोजन ले रहा होता है, जन्म के बाद Cord तो हमने काट दी परन्तु भीतर के रास्ते बने रहते है जो सुखकर पतले हो जाते है, यदि इन्हें हम महामुद्रा महाबंध महावेध की क्रिया से जगा ले तो हमारा शरीर सुर्य से सीधा भोजन ले सकता है और शरीर को Healthy बनाएगा
  • तो इस प्रकार जो हमारा शरीर पहले भोजन से उर्जा ले रहा था अब नाभी के माध्यम से सीधा सुर्य से खीचने लगेगा परन्तु अन्य लोग केवल प्रकाश के रूप में ही उर्जा लेगे

चक्रो की पखुडियों के विषय में गुरुदेव ने कहा बताया है

  • सब गुरुदेव लिख देंगे तो आप अपना क्या Research करेंगे
  • जब पूरा तंत्र महाविज्ञान पढ़ेंगे या जब
  • सभी 108 उपनिषदों का सांगोपांग अध्यन सभी विद्यार्थियो के लिए बहुत जरूरी है, उनमें इनका जानकारी मिल जाता है
  • जैसे एक जगह गुरुदेव ने जननेद्रियो को आनन्दमय कोश बताया व उपर अन्नमय कोश बताया तो हमें दोनो तरह से इसे समझना व जानना चाहिए

महोपनिषद् के द्वितीय खंड में आया है कि इस परम चिद् रूप अणु के अन्दर कोटि कोटि बहमाण्ड रूपी रेणुकाए शक्ति कम्रानुसार प्रकट एवं विलीन होती रहती है, यहा ये रेणुकाए क्या है व इनका कम्र क्या है तथा किस प्रकार ये शक्तिया प्रकट होकर विलीन होती है

  • पहले यह मान्यता थी कि सारे संसार में Atom एक Thoughtron से बने है
  • तरंग में कुछ तो दौड रहा है तो वहा उसे Partical के रूप मे देखा जा सकता है
  • तरंग भी एक उर्जा के समुद्र से निकला है
  • उस उर्जा के समुद्र को Quanta कहा गया तथा वह Dual Nature का है जो उर्जा के रूप में भी रह रहा है तथा तरंग भी निकाल रहा है Two form = Wave & Energy
  • प्राण / मन के दो स्वरूप है
  1. शांत -> ध्यान में हम मन को शांत करते हैं
  2. धावमान -> इस मन से चक्रो का ध्यान या विचार किए जा सकते है
  • यहा ध्यान करने में, गतिशील मन काम कर रहा है, ध्यान का अर्थ हमेशा आंख बंद करना नही है
  • समुद्र से तरंगे निकलना = यही रेणुकाए है
  • Quanta को ही प्राण कहते है तथा यह Dual Nature का है, यही ज्ञानयुक्त उर्जा है, उसमें ज्ञान ( शिव ) भी है और उर्जा ( शक्ति ) भी है, यही अर्धनारीश्वर है
  • यही प्राण ही जड चेतन का मिश्रण है
  • शांत चित्त के समुद्र से हम जो चाहे सब निकाल सकते है, स्तरो में अन्तर होता है
  • 24 तत्व निकालकर, Infnite बन सकता है
  • 7 रंगो से लाखो रंग बन सकते है

गुरुदेव द्वारा अन्नमयकोश के ध्यान में स्थूल नाभि का ध्यान करना है या मणिपुर चक्र का

  • स्थूल नाभी में प्रवेश करे
  • कितने लोगो को रोग होता है तो नाभी से इलाज करते है
  • Vegus Nerve Brain से चलकर वहा मणीपुर तक गया है
  • खाना खाने से जो सतुष्टि मिलती है तो लगता है कि इस मस्तिष्क को भी भोजन मिल गया तो इस प्रकार हम समझ सकते है कि यह मस्तिष्क हमारे मणीपुर वाले मस्तिष्क से भी जुड़ा है
  • मूलाधार वाला Area सबको जगाने जाता है
  • स्थूल शरीर का प्रवेश द्वार यही नाभी कदं है
  • अपने ज्ञान के आधार पर साधक को एक Theme बनाता होता है ताकि अधिक से अधिक लाभ ले सके

जब ये चक्र सूक्ष्म शरीर में है तो इनका स्थूल शरीर से इतना Tie up क्यो है

  • सूक्ष्म शरीर से पकडना है तो ईश्वर स्थूल में भी तथा सूक्ष्म में भी सब जगह है तो हम स्थूल को Ignore क्यों करे
  • ईश्वर सब जगह है तो हम स्थूल शरीर या पाच कोशों के माध्यम से ही ईश्वर को पकड पाएंगे
  • स्थूल शरीर में कही न कही तो माध्यम बनाएगा और जो माध्यम बनाया वह भी महत्व का होता है
  • जैसे मन सूक्ष्म है परन्तु मस्तिष्क के Neuron को माध्यम बनाता है तथा Neurons की सफाई के लिए प्राणायाम करना पड़ेगा
  • खराब Machine यदि किसी को दे दे तो कोई चला भी नही पाएगा
  • Physical Body भी Hormonal System को माध्यम बनाता है, जब हमें माध्यम पता चल गया तो इसलिए माध्यम को भी हमें सवारना पड़ता है तथा संस्कारित करना पडता है
  • हवन करना है तो शाकल्य को भी बह्म मानो, यदि ईश्वर निराकार है तो वही ईश्वर शाकल्य रूप में निराकार से साकार बना है, इसलिए इसे भी बह्म मानो, अग्नि को भी बह्म मानो
  • प्रत्येक माध्यम को बह्म ही मानो
  • इस प्रकार इसी भेद दृष्टि को हटाना है इसी को वामाचार कहते हैं

कभी कभी सहस्तार चक्र उपर व कभी कभी नीचे बता दिया जाता है तो यह भी समझ नही आता

  • गुरुदेव इसके लिए लिखते है कि इसके लिए कोई नियामवली नहीं लागु होती है
  • एक आदमी की आंखे चली गई थी तो उसकी अगुलियों में आंखे आ गई थी तथा वह छूकर भी पढ लेता था
  • मुक्त आत्माओं के लिए कोई नियामवली लागु नहीं होती, भगवान नरसिंह खभें में से आ गए थे, यहा कोई विज्ञान काम नही करता

परन्तु फिर भी मूलाधार में सहस्तार व सहस्तार में मूलाधार कैसे हो सकता है

  • North केवल North में ही नहीं, South में भी है, South Pole के पास से एक टुकड़ा काट लेगें तो उस टुकडे में North व South दोनो Pole बन जाएंगे
  • जननेद्रियो का विषय ही आनंद है, ईश्वर आनन्द के रूप में हर जगह है तो आनंदमय कोश भी हर जगह है तथा इसी प्रकार प्राणमय कोश भी सब जगह है
  • सातो लोक सब जगह विद्यमान होते है, बस अलग अलग Frequency है
  • अभी हमें और अधिक पढ़ना है, यदि एक ही वांग्मय में बात बन जाती तो गुरुदेव और वांग्मय क्यो लिखते

क्या इतने ज्ञान को पाए बिना भगवान को नही पाया जा सकता

  • पा सकते है पूर्ण समर्पण से क्षण भर में पलक झपकते ही पा सकते है, परन्तु हम पूर्ण समर्पण नही करते कुछ बचा कर रखते है तो वह ईश्वर भी बचा कर रखता है
  • जिस समय जिस क्षण पूर्ण समर्पण हो गया तो वह ईश्वर हमें तुरन्त मिल जाएगा   🙏

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