पंचकोश जिज्ञासा समाधान (12-02-2025)
कक्षा (12-02-2025) की चर्चा के मुख्य केंद्र बिंदु:-
बृहदआरण्यकोपनिषद् में आया है कि इस मधु विद्या को अर्थवण ने अश्वनी कुमारो को प्रदान किया था, मंत्र दृष्टा ऋषि बोले कि हे अश्वनी कुमारो आप आर्थवण के निमित्त अश्व का मस्तक लाए, सत्य की रक्षा करते हुए तत्वोपदेश किया, वह ज्ञान गोपनीय था, अश्व का मस्तक लाने का क्या अर्थ है
- आथर्वण = अथर्वा के वंशज
- अथर्वण = स्वयं अथर्व
- शब्द में अ के स्थान पर आ लग जाने से वंशज हो गए, यह उसका विशेषण है
- अश्वनी कुमार यहा मुख्य है
- अश्वो का सिर -> अश्व = यज्ञ, संसार के सभी रोगो को जो हटाए
- EM Radiation को अश्वनी कुमार कहते है
- वेदों में दिए ये नाम (अश्वनी कुमार) गुण बोधक है
- परमात्मा का एक नाम अश्वनी कुमार है
- अश्वनी केवल ऋषि नहीं अपितु देवता भी है
- आरोग्यता को अश्वनी कुमार कहा जाता है
- मधु विद्या = वह विद्या बताने की बात हो रही है जिससे हमें कोई रोग ना हो
- यहा अश्वनी कुमार ही उत्तर देने वाले हैं, अश्वनी कुमार को ज्ञान मिल गया, डाक्टर बन गए तो अब वे संसार का दुखः दुर करते हैं, यहा दधंग्य अर्थवण यहा गौण हो गए
- यहा मंत्र दृष्टा ऋषि बोल रहे है कि हे अश्वनी कुमारो कि आप जो मधु विद्या प्राप्त किए है, वह हमें प्रदान करे
- अश्वो का सिर लाए = EM Radiation के Process को हमे बताए / प्राणिक हीलिंग जिससे किया जाता है, साधारण प्राण नही अपितु उसमें EM Radiation जब डाल देंगे तब वह रोग हटाएंगा
- प्राणिक हिलिंग में प्राण के साथ उसका चुम्बकत्व भी गया तभी रोग भागता है तथा Magneto Therapy से ठीक कर देता है
- गोपनीय विद्या = गूढ़ विद्या है, सब नहीं जान सकते
- मधु विद्या = जो जीवन को मिठास से भर दे
अश्वनी कुमार ऋषि भी थे तथा देवता भी थे, क्या देवता के रूप में उन्हें गुण बोधक विराट दायरे के रूप में मान सकते हैं
- नहीं, ऋषि देवताओ को पैदा कर सकता है
जैसे ऋषि विश्वामित्र ने राम को पैदा किया - पहले वे दशरथ कुमार थे परन्तु 12 कलाओं का अवतार किसने बनाया = ऋषि विश्वामित्र ने
- देव ऋषि नारद देवताओं को Guide करते थे
- ऋषि ही बडा है तो जब कुछ भी नहीं था तो क्या था, तब वेद का कहना है कि उस समय केवल ऋषि थे
- प्राण तत्व को ऋषि कहा जाता है, केवल आदमी को ही ऋषि नो माने
- आँख में प्राण के रूप में जमदग्नि ऋषि व विश्वामित्र ऋषि रहते है
- गौतम व भारद्वाज ऋषि कान में रहते हैं
- नाक मे ईडा व पिंगला में वशिष्ठ व कश्यप ऋषि रहते है
- मुख में अतरि ऋषि रहते है
- यह सातो ऋषि ही 7 प्राण है, प्राण ही सारी सृष्टि को चला रहा है, सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को ऋषि गण (प्राण) ही चला रहे हैं
- इसलिए यहा प्राण ही बड़ा हो गया
- देवत्व = देने की शक्ति जब आ गई तो कुछ मनुष्यों में देवत्व का उदय हो गया
- जब महाप्राण से जुड़ गया तो देवता बन गया
- ऋषि बहुत बड़ी चीज है जैसे युगऋषि हमारे गुरुदेव -> इनकी जन्म कुंडली में था कि ब्रह्मा विष्णु व महेश की संपूर्ण शक्तियां, इस जातक के चरणों में धुली के समान हैं
क्या हम लोग ऋषि पद्धति अपनाकर देव तुल्य ऋषि संतान उत्पन्न कर सकते हैं
- जी कर सकते हैं
- तभी राम को पैदा किया गया कि राम ही चाहिए, श्रृंगी ऋषि ने मंत्र को ऐसे पढ़ा कि खीर के भीतर Heritable Character आ गए
- बृहदआरण्यकपनिषद् के प्रजनन विज्ञान में इसका वर्णन दिया गया है -> सिर्फ पढ़ना समझना व Practical करने की जरूरत है
- आज थोडे स्वार्थ के लिए हम दौड़ते है परन्तु एक अथाह सुख भी है
- संसार के सारे सुख अस्थाई है
वांग्मय 15 में आया है कि गायंत्री महाविज्ञान वास्तव में सुर्य का ही विवेचन है, जिसे आधिदैविक, आधिभौतिक और आध्यात्मिक लाभ प्राप्त होने की जो बाते कहीं गई है, वह वस्तुतः सुर्य की ही दृश्य अदृश्य शक्तियों की ही वैज्ञानिक शोध हो रही है, प्रयोगो का तरीका भिन्न है, मानसिकता भिन्न है पर उसकी वैज्ञानिकता में बिल्कुल संदेह नहीं है, आज के वैज्ञानिको ने जो शोध की है, वे इन बातों को अक्षरतः पुष्ट करती है, कृपया इसे स्पष्ट करे
- सविता / सुर्य विज्ञान जितना खोजा है, वह बहुत ही कम है, अभी अधिक जानकारिया लेना बाकी है
- सुर्य सम्पूर्ण सृष्टि का प्राण बनकर उदय होता है, सारे ग्रह नक्षत्र को वह चला रहा है तथा पृथ्वी पर खनिजो के निर्माण का कारण भी वह सूर्य ही है, सुर्य से ही सोने का निर्माण होता है तथा यदि व्यक्ति इस सुर्य विद्या को जान जाए कि सुर्य की सुन्हरी किरणों को लक्ष्मी कहा जाता है, यदि किसी Process से वे सुनहरी किरणें इक्कठा हो सके तो वह सोना बन जाता है, पहले के ऋषि इस विद्या को जानते थे तभी हमारा देश सोने की चिड़िया कहलाता था
- गोबर में किसी क्रिया से किरणो को अमलगम बनाकर तैयार कर सोना बना लेते थे, इसलिए कहा जाता है कि गौबर में लक्ष्मी का वास है, इसलिए बहुत कुछ खोजना अभी बाकी है
- विज्ञान अभी अपनी स्वार्थ के लिए उपयोग हो रहा है तथा आत्मा में कोई प्रवेश ही नहीं कर रहा है, सभी केवल पदार्थ का ही खोज कर रहा है परन्तु पदार्थ के साथ उसमें आत्मा भी घुला है, यही गुरुदेव का कहना है
अच्छी महान संतान उत्पन्न करने के लिए हमेशा उदाहरण श्रृंगी ऋषि या मदालसा का ही दिया जाता है, क्या वर्तमान में भी इसके कुछ उदाहरण मिल सकते हैं ताकि प्रभाव थोड़ा अधिक पड़े
- वर्तमान में सारे उदाहरणों के आदर्श परम पूज्य गुरुदेव है जिनके पास सारी विद्याएं थी, वे मुर्दो को भी जीवित किए थे
- विजय शर्मा जी की माता जी मर गई थी तो गुरुदेव ने इन्हे छूकर जीवित कर उम्र को 40 से दुगना कर दिया
- आज के युग में भी ऐसे संत है तो धरती बांझ कभी नहीं रही
- अच्छी संतान की भूमिका में यह बात भी देखनी होती है कि माता पिता ने अच्छी संतान पाने के लिए कितनी साधना की
- 1987 में गुरुदेव ने कुण्डलिनी जागरण का कार्य पूरा कर लिया था
- जीवात्माए भी स्वतंत्र रूप से आती है इसलिए उसमें ऋषि अपने मन से कोई छेड़छाड नहीं करता है
- यहा बेकार आत्मा कोई नहीं है, हर किसी का यह विशेषाधिकार है तथा वह अपने ढंग से ही जीता व मरता है
पारिवारिक स्तर पर सौजन्य और पराकर्म के निर्वाह करने का सहज व सरल तरीका क्या है
- प्रज्ञोपनिषद् में सबसे सरल व सहज तरीका दिया है, उसमें पूज्य गरुदेव ने प्रथम खण्ड के पांचवें अध्याय में बताया है
- उदार भक्ति भावना = सौजन्यता है
- गायंत्री महामंत्र में आया है कि हम असहिष्णु किसी के प्रति भी न हो = इतने कठोर नई बन जाए की उदारता का दरवाजा ही बंद कर लें, फिर अपना ही संत मर जाएगा, दूसरो को घाटा हो या ना हो पर हम इससे हम अपनी ही हत्या कर डालते है
- हम चाहे कितने भी कठोर हो परंतु हमें उदारता का दरवाजा सदैव खुला रखना चाहिए, उसी के माध्यम से ईश्वर आएगा
- इसके प्रति हम इतने कठोर बनते हैं तो यह आश्चर्य है कि ईश्वर उसके हृदय में बैठा हुआ है तथा हम केवल सज्जनों के हृदय में घूमते हैं
- फिर शत्रु वह मित्र को एक समान कैसे मानेंगे यह हमारे जीवन में कभी प्रूफ नहीं हो पाएगा
- यहा प्रश्न आता है कि उग्रवादी को क्या गले लगा ले तो यदि हमें operation भी करना है तो माँ की तरह करना चाहिए
- रोग भागे रोगी बच जाए -> यह पराकर्म कहलाता है = सौजन्य पराकर्म = शल्य चिकित्सा
- अक्सर हम डाक्टर की तरह चिकित्सा ना करके जल्लाद की तरह करते है, थोडी सी गलती का अधिक बड़ा दण्ड देते हैं -> तो जो अधिक दण्ड हमने दिया अब वही हमें परेशान करेगा
- इसलिए जज को सही Judgement देने में समय लगता है, वह हर परिस्थिति को जानता है, देखता है, सुनता है तथा समझकर निर्णय देता है
- अवांछनीयताओं को किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं करना भी पराक्रम है तथा समाज में कुछ बड़े रचनात्मक काम करके दिखाया जाए, यह भी पराक्रम में आता है, भारतीय संस्कृति को अक्क्षुण बनाने के लिए कितने बडे हौसले, कितने बडे त्याग का परिचय दिया गया, यह भी पराक्रम में आता है
- अपने आप को शानदार बनाने के लिए, अपनी बुराइयों, अपने दोस्तों अपने दुर्गुणों को अपने को संस्कारों को दूर करने में युद्ध करके हमने कितनी सफलता पाई यह भी पराक्रम है
- असली पराक्रम भीतर के राक्षसो व बुराईयो से लड़ने में है, बाहर से लड़ने में कोई विशेष पराक्रम नहीं
- जो अपने पर अपने पर नियंत्रण करता है, वह पराक्रमी व्यक्ति होता है तथा वह उसका लाभ लेता है व अपने को ईश्वर के काम में लगाता है
- सबसे बड़ा दीन दुर्बल वह है जिसे अपने ऊपर नियंत्रण नहीं, अपने ऊपर नियंत्रण करना बहुत बड़ा पराक्रम है तथा यह घर के हर सदस्य पर लागू होगा
सौजन्यता भी एक गुण होता है Cooperative mind का होना तथा संयमी होना भी सौजन्यता है - Dutyfulllness = पराक्रम है
- धर्म के लक्षण जो बताए गए है उसमे पहले भाग वाला सौजन्य तथा दूसरा भाग पराक्रम है जैसे सहकार और परमार्थ
- सहकार = सौजन्यता है तथा
- परमार्थ = पराकर्म है
- केवल सज्जन रहेंगे तो कायर बन जाएंगे तथा केवल पराक्रमी रहेंगे तो उदण्ड बन जाएंगे -> दोनो का संतुलन जीवन में आवश्यक है जैसे राम या हनुमान को हम देखे इनमें सज्जनता व पराक्रम दोनो गुण थे
- मनन चिंतन करने से यह बात समझ आ जाती है कि दोनो गुणों में से किसका कितना उपयोग करें
आज की परिस्थितयों में मन का संयम कैसे बनाकर रखा जाए तथा जैसे अन्य देशो मे जो स्थिति चल रही है तो वहा का आध्यात्म से क्या समाधान हो सकता है तथा हमारी संवेदनशीलता कैसे उन्हे लाभ पहुंचा सकती है
- जो गलतिया उन्होंने की वो गलती हम ना करे
- वहा आग लगी तो यहा अपने भीतर में वह भाव न आए
- दया का भाव अपने हृदय में उदय होना यह एक अच्छा भाव है, यह आना चाहिए
- भारत का जो दर्शन है वह युद्ध नहीं शांति है
- दो राष्टो के झगड़े है, एक राष्ट्र जब कुछ ना कर सके तो
- ऐसी अवस्था में Prayer ही एक मार्ग बचता है जो सबको Control करता है वह ईश्वर, उससे गुहार लगाई जाए कि जब सारे देश मिलकर भी समाधान न निकाल पा रहे हो तो वह हम सभी को सदबुद्धि दे तथा वैज्ञानिक ढंग से या गीता में यह आया है कि यहा कोई नहीं मरता परन्तु एक रूपांतरण भर हो रहा है, इस ढंग से देखने में निष्ठुरता भी नहीं है
- विष्णु ने भी मधु व कटैभ से 10 हजार वर्षो तक युद्ध किया था तो भगवान जो सारी सृष्टि को चला रहे है, को भी इतना समय लग गया
- अपने को बचाए व गलतिया ना दोहराए
- हमें अपना Growth भी करना है तथा दूसरो को Disturb भी नहीं करना
- हम आत्मिक ढ़ंग से देखे तो कोई नहीं मरा
- महाभारत में भीष्म पितामह के मरने पर आसु बहाए या क्या करे जो रोज 10,000 लोगो की हत्या करते थे, यह भी कितना क्रुर कर्म था परन्तु धर्मयुद्ध में यह सब चल रहा था
- हम यह कोशिश करें कि युद्ध से बचें, युद्ध आपात की स्थिति होती है तथा अंतिम विकल्प होता है, ईश्वर से प्रार्थना हम कर सकते है
साल में 4 नवरात्र होते है, चैत्र में राम जी का उपासना होता है, आश्विन में दुर्गा जी का, माद्य में सरस्वती जी का तथा आषाढ़ मास में किस शक्ति का पूजा होता है
- आषाढ़ मास में गुरु जी का होता है, गुरु पूर्णिमा पर्व पर
- आषाढ मास से चार महीने तक कल्प साधना करवाते हैं
- इन चारो महीने (मई – जून – जुलाई – अगस्त) (सावन – भादो – क्वार[आश्विन] – कार्तिक) में देवता सोए रहते हैं, देवोत्थान पर्व पर विष्णु जगते है तो सोने का अर्थ है कि यह समय आत्म साधना के लिए उपयुक्त है, इसमें बाहर की गतिविधिओं को हम कम करे, भारत कृषि प्रधान देश था तो यह समय आत्म साधना के लिए उपयुक्त है तो अधिकतर पर्व त्यौहार जैसे दुर्गा नवरात्री, जन्माष्टमी, गुरु पूर्णिमा वैसाखी, श्रावणी पर्व इसी समय में आते हैं
हम गांयत्री मंत्र का जप तो करते हैं परन्तु गायंत्री मंत्र का नाम जप कैसे करेंगे जैसे राम व कृष्ण के नाम से उनका जप होता है
- गायंत्री मंत्र का भी अखंड जप होता है
- गायंत्री मंत्र अपने आप में नाम है, इसमें सभी देवता आ जाएंगे
- 33 करोड़ देवता है तथा हमारा इतना जीवन ही नहीं कि सभी देवताओं को मनाया जा सके तो ऋषिओं ने खोजा कि गायंत्री मंत्र जप में 33 करोड़ देवताओं का नाम जप एक साथ हो गया 🙏
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