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पंचकोश जिज्ञासा समाधान (11-02-2025)

पंचकोश जिज्ञासा समाधान (11-02-2025)

कक्षा (11-02-2025) की चर्चा के मुख्य केंद्र बिंदु:-

जैसे जैसे अन्नमय कोश शुद्ध होने लगता है तो आसन व प्राणायाम करने में काफी लंबा समय लग जाता है तो क्या सारे आसन प्राणायाम लेकर चलना है

  • उनमें से अपने उपयुक्त चुन लेना चाहिए
  • दो घंटे के समय में Theory व Practical अपने अनुरूप करना चाहिए
  • ऐसे उपनिषद् पढ़े जिनमें आत्म साधना या कुण्डलिनी जागरण के या अष्टांग योग के Practical दिये हो
  • ब्रह्मविद्या खण्ड के शाण्डलियोपनिषद् में, यौगिक क्रियाए दी गई है
  • महोपनिषद् या योग चूडामणी उपनिषद् या कुण्डलिनीपनिषद् की यौगिक क्रियाओं को पढ़ेंगे तो Practical पक्ष मिलेगा
  • शुरुवात में Joint movement तथा हल्का warmup कर ले
  • प्रतिदिन प्रज्ञायोग जरूरी है, इसका 3-4 Round करे तथा मन लगाकर करे तथा उसमें विचार के साथ गहराई भी दे
  • इसके बाद प्रभावी महाप्रभावी आसन तथा बाद में मुद्रा में महामुद्रा कर लेंगे तो अच्छा रहेगा
  • प्राणाकर्षण प्राणायाम Meditation के साथ जोड़े रहे, प्राणाकर्षण प्राणायाम भावना प्रधान है, Meditational है -> यह प्राणिक हीलिंग भी करता है
  • फिर आत्मानुभूति योग में प्रवेश कर जाना चाहिए कि मै शरीर नही, आत्मा हूँ
  • फिर बिन्दु साधना का भी अच्छा प्रभाव पडता है, ईश्वर को कण कण में महसूस करे
    -> इस प्रकार का रिहर्सल 1 घंटे में ही कर लेना चाहिए तथा अपने बाकी काम भी करना चाहिए
  • अपने अभ्यास के लिए अपना एक अलग पैकेज बनाना होगा क्योंकि class में एक Common Package सबके लिए होता है
  • प्रत्येक शिक्षक को अपनी जरूरत के हिसाब से अपना अलग Package बनाना होगा, तब समय अधिक नहीं लगेगा
  • पढ़ाने के लिए अलग Package रखें

वांग्मय 15 में आया है कि शास्त्रकारो के अनुसार सुर्योपासना का एक मंत्र सावित्री है, सप्त व्याहतिया लगने पर वह सावित्री कहलाती है तथा तीन व्याहतिया लगने पर उसे गायंत्री कहते है, यहा तीन या सात व्याहतियो से क्या तात्पर्य है

  • सात व्याहतिया भू भुवः स्वः महः जनः तपः सत्यम् -> ये सातो चक्रो से संबंधित है
  • पूरी प्रकृति सप्त आयामी ही है
  • Atomic configuration में भी हम देखते हैं कि Periodic Table के 118 Elements के भी 7 ही ग्रुप है तथा 8वा ग्रुप नहीं बन पा रहा है, पूरी प्रकृति सप्त आयामी है
  • ईश्वर ने प्रकृति को उत्पन्न करने की इच्छा की तो सबसे पहले ॐ की गुंजन 7 बार हुई तथा उसी के अनुरूप 7 Dimension बन गए, इसका अर्थ यह है कि अलग-अलग Frequencies पर ये 7 लोक काम करते हैं
  • गायंत्री के रूप में इन्हे स्थूल सूक्ष्म व कारण स्वरूप में रखा गया
  • दोनो का कुल मिलाकर 7×3 = 21 हो गया
  • इन orbits को ही व्याहतियां कहा जाता है
  • Atoms के orbits में उनके Electrons की संख्या अलग अलग रहती है
  • अपने शरीर में भी 7 शरीर है

क्या इन्हें लोक या स्थान मान सकते हैं

  • अलग अलग frequencies होने के कारण अलग अलग लोक मान सकते है
  • लोक = एक प्रकार का कार्यक्षेत्र है

क्या दिवंगत हो जाने के बाद भी विवेक की स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं होता है कृपया प्रकाश डाला जाय

  • दिवंगत होने पर एक Flat से दूसरे Flat में जब जा रहे है तो वह सूक्ष्म लोक है वहा सारा सामान नहीं लेकर जा सकते, स्थूल पदार्थ वहा नहीं जा सकते
  • वहा स्थूल कुछ नहीं जाएगा, Bioplasmic से नीचे वाला वहा नहीं जाएगा
  • Plasma के state में जा सकता है, अन्नमय कोश का छाया शरीर वहा जा सकता है
  • हमारे साथ जो ज्ञान पक्ष है, वह सूक्ष्म है, ज्ञान वहा जाएगा, जैसे हमारा हाथ नहीं जाएगा परन्तु हाथ की ग्रहण करने की वृति वहा चली जाएगी, यह ज्ञानात्मक है
  • उपयोग करने की विधा वहा जाएगी
  • ज्ञान प्राण में घुलेगा, प्राण मन में घुलेगा, मन बुद्धि में घुलेगा फिर आभामंडल के रूप में Light के रूप में जाएगा
  • विवेक के रूप में ज्ञान साथ में रहेगा
  • गुरुदेव जब मथुरा में थे तो प्रेत योनि में रहने वालो से बात किए थे
  • जिस Flat में वे रहते थे वह भूतहा Flat था
  • उस Flat में उपर की छत पर प्रेत कूदते थे, उनके पैर जमीन से कुछ फीट उपर थे तथा उन प्रेतो के पास भी ज्ञान था, गुरुदेव के कहने पर उन्हे सुनते व समझते थे
  • उन प्रेतो के पैर नहीं थे, पैर पूछ के जैसे थे
  • गुरुदेव ने प्रेतो से कहा कि आप साथ में रहिए तथा हम आपको Disturb नहीं करेंगे परन्तु आप उपर कूदिये मत, बच्चे डर जाते है
  • इस प्रकार उन प्रेतों ने गुरुदेव की बात मान ली तथा उनका काम भी करने लगे, उनके लिए प्रैस चला लेते थे तथा बहुत सा काम भी कर लेते थे
  • तुलसीदास जी भी प्रेतो से काम लेते थे
  • ज्ञान बढ़ता है, ज्ञान Travellar Cheque है

यदि किसी भी व्यक्ति  की हर समय याद आती है उन पर यदि त्राटक  किया जाय क्या प्रभाव पडेगा और त्राटक करने वाले पर क्या प्रभाव पडेगा?

  • उस व्यक्ति पर त्राटक करेंगे, जिनकी याद आती है, वे चाहे सपने में हो या ध्यान में तो आप उनसे वार्तालाप कर सकते है, आपके विचार उन तक जाएंगे तो वे प्रभावित होगें
  • आपके प्रश्नो के समाधान भी वे दे सकते हैं
  • Tuning कर के Telepathy से आपको सहयोग मिल जाएगा
  • उनके कहे हुए रास्ते पर चलने से लाभ मिलेगा
  • शरीर युवा ही रहेगा जैसा हमने उन्हें आखिरी बार देखा, वैसा शरीर नहीं रहेगा बल्कि उनका प्रकाश का शरीर होता है
  • प्रकाश का एक अलग शरीर होता है
  • अपने Tuning के आधार पर ही हमें लाभ मिलेगा, उनके व्यक्तित्व से लाभ ले सकते हैं
  • हमें गुरुदेव के चेहरे को देखकर खुश नहीं होना बल्कि गुरुदेव के व्यक्तित्व को देखना है
  • गुरुदेव जैसा चाहते थे वैसा हम बने या नहीं बने यह हमें देखना चाहिए और वैसा बनना भी चाहिए

ब्रहोपनिषद् में आया है कि जागृत अवस्था का वैश्वानर नाम से व्याप्त आत्मा चक्षु में प्रतिष्ठित रहता है, स्वप्नवस्था का तेजस नमक आत्मा कंठ में निवास करता है, सुषुप्तिवस्था का प्राज्ञ नामक आत्मा हृदय में स्थित रहता है और तुरीय अर्थात तीनों अवस्थाओं से परे चौथी अवस्था का आत्मा ब्रह्मारंध्र में प्रतिष्ठित रहता है, इस प्रकार एक बुद्विमान मनुष्य को जानना चाहिए, का क्या अर्थ है

  • संसार मैं रहकर जब हम कोई भी ड्यूटी कर रहे हैं तो इस वैश्वानर कह देते हैं -> यह जागृत अवस्था है इसलिए नेत्रों में कह दिया
  • स्वपन का फिर कंठ में कह दिया तो स्थूल के बाद सूक्ष्म (विचार) आता है -> यह आकाश तत्व है, इसे विचार से लेगे, विचार जगत में वह व्यक्ति रमण करता है तो विचारो को यदि दिशा देना सीख लिए तो कहा जाएगा कि तेजस बढ़ने लगा
  • क्रिया पक्ष = वैश्वानर, विचार पक्ष = तेजस
  • विचारो से पहले भावना था, पहले भावनाओं को भी शुद्ध करना चाहिए तथा धीरे धीरे भावातीत होना चाहिए
  • विचारो के बाद प्राज्ञ आता है
  • भावातीत होगे तो वह तुरीया कहलाएगा
  • तुरीया से भी परे जाएंगे तो वह तुरीयातीत अवस्था कहलाएगी तथा यहा परब्रह्म की प्राप्ति होगी तथा ब्रहरंध्र में रहने का अर्थ ईश्वर के साथ खेलना

आत्मा को नीचे की अग्नि और प्रणव को उपर की अग्नि मानकर मंथन कर रहे है, का क्या अर्थ है

  • उपर प्रणव = परमात्मा, हर जगह प्रणव को ॐ मत समझे
  • साधना कर रहे है तो अपने को ईश्वर / परमात्मा से जोड़ रहे हैं तो एक नीचे व एक उपर रहेगा, एक लेने वाला व एक देने वाला
  • छोटा (लेने वाला) नीचे रहता है
    तथा बडा (देने वाला) उपर रहता है
  • नीचे की अग्नि = जीवात्मा
  • उपर की अग्नि = परमात्मा
  • उपर – नीचे का अर्थ यही है कि आत्मा से श्रेष्ठ परमात्मा है

मन की स्थिति को हमेशा उत्कृष्ट रखने के लिए तथा कभी विषाद की स्थिति ना आए तथा इसे सदैव व्यवस्थित किया जा सके तो इसके लिए क्या कोई Formula है जिसे जब भी उपयोग किया जाए तो मन की स्थिति ठीक हो जाए

  • जैसे जैसे विज्ञानमय कोश clear होता जाता है वैसे वैसे मन नियंत्रित होता जाता है
  • तत्वदृष्टि के विकास से बंधन मुक्ति संभव है
  • तत्व दृष्टि के विकास से व्यक्ति के सोचने व देखने का तरीका बदलने लगता है तथा आत्मस्थिति जितनी अधिक होती जाएगी तो हर चीज को एक अलग ही ढंग से वह आदमी लेने व समझने लगता है
  • कल तक जो हमें दुराचारी / पापी लगता था वह भी हमें ईश्वर दिखने लगेगा, सारा दृष्टिकोण ही बदल जाएगा, अपना मकान व अपने रोज के आवागमन के रास्ते भी भिन्न प्रकार के दिखने लगते हैं
  • गुरुदेव के साहित्यो का अधिक से अधिक मनन चिंतन किया जाए, रात दिन उन्ही के साहित्यों का स्वाध्याय किया जाए
  • रात दिन हर समय हम सोहम् भाव में रहें तथा ईश्वर को सर्वव्यापी मानेंगे
  • यह बहुत महत्वपूर्ण मान्यता है -> ईश्वर को सर्वव्यापी मानकर उसके अनुशासन को स्वीकार करे, हम इसे हल्के में मानकर निकल जाते हैं
  • जब ईश्वर सर्वव्यापी है, शांतिमय है, आनन्दमय है तो हर चीज में वही व्यक्ति शांति व आनन्द ही खोजता है -> हमारे सामने जो भी व्यक्ति आया है / विषय या वस्तु आई है तो हमें शांति व आनन्द ही देने के लिए आई है
  • परन्तु हमें ही शांति व आनन्द लेने का अभ्यास नहीं है, गाय से दुध दुहने की कला हमारे पास नहीं तो हम कह देते हैं कि वह खराब आदमी या आ गया या खराब परिस्थितयां हमारे सामने आ गई
  • Adversities में हमें खासकर अधिक ध्यान देना होता है तो जब भी Adversities में अपने आप को Balance रखा जाएंगा तो उसे हम सत्संग कहेंगे
  • हम केवल कथा सुनने को ही सतसंग मान लेते है परन्तु इस प्रकार जब हम Adversities में अपने को Balance रखते है तो यह हमारा स्वयं के साथ ही सत्संग होगा कि उस अवस्था में भी हम अपने मन के साथ संतुलन बनाकर व परिस्थितियों से प्रभावित हुए बिना रह पा रहे हैं
  • प्रश्न यह आता है इसका अभ्यास कैसे करे तो हर स्थिति में समझदारी से काम करे
  • समझदारी -> विज्ञानमय कोश को कहते हैं
  • समझदारी से कार्य करने पर सफलता मिलती जाएगी
  • हमेशा अपने को याद रहै मै सो (ईश्वर) हूँ तो सोहम् भाव से जैसे जैसे अधिक समय तक रहते जाएंगे तो आत्मानुभूति योग पकता जाएगा तो परिस्थितयां सरल होता जाएगा
  • स्वाध्याय का Practical जब हम करने लगते है -> रात दिन उठते बैठते पढ़े हुए स्वाध्याय का मनन चिंतन करने लगते हैं तो हम हर समय प्राणायाम चाहे भले ही न कर रहे हो परन्तु हर समय हमारे दिमाग में कौन सी बात घूम रही है तथा हम किसका मनन चिंतन करते हैं -> वही अधिक महत्वपूर्ण होता है -> वही धारणा भी है

विपरित परिस्थितियों में संतुलन या संयम रखने का प्रयास एक प्रकार नाटक या अभिनय करने जैसा लगता है, क्योंकि अन्दर से हमारे मन में ईष्या – द्वेष – क्रोध के भाव रहते है तो क्या स्वाध्याय के मनन चिंतन से क्या यह स्थिति कम हो जाएगी परन्तु पहले तो शांत होने का नाटक ही करना पडता है

  • नाटक जब करना पड़ेगा जब तक तत्वदृष्टि विकसित नहीं होती, इसलिए विज्ञानमय कोश को साधे -> शुरू से ही पंचकोश साधना में यह बात आती है कि हम पांचो कोशो की साधना साथ लेकर चले तो परिणाम उत्कृष्ट होगा
  • विज्ञानमय कोश = तत्वज्ञान है
  • तत्वज्ञान से देखने पर नाटक नहीं लगेगा तथा अपने आप पर ही हंसी आएगी कि हम कितने दुष्ट है कि हम नाटक कर रहे हैं
  • अपने में ही भीतर वाला भीतर वाले को डांटेगा, उस हालत में नाटक करते हुए अपनी आत्मा ही कांप जाएगी कि ऐसा करके हम अपने को ही Cheat कर रहे हैं
  • इसे नाटक नहीं कहा जाए, इसे हम Due Respect देना कह सकते है
  • हमारे मन में यदि ऐसा भाव आ रहा है तथा सामने वाले को बोल देंगे तो उसे खराब लगेगा
  • उसे नाटक नहीं कहेंगे उसे हम Due Respect देंगे कि जितना वह पचा सकता है, उतना ही हमने उसके लिए बोला -> यह नाटक बढ़िया है तथा नटो मे श्रेष्ठ श्री कृष्ण है, शिवजी भी नटराज है, सारे संसार में नाटक ही चल रहा है, इस नाटक में अच्छा Role करेंगे तो सुकरात की तरह आत्मा को पा लेंगे
  • हमारा पूरा जीवन ही एक नाटक है तो उस नाटक में अपना बेहतरीन रोल निभाए तब दिक्कत नहीं आएगी
  • अपनी पहले की स्थिति जब गुरुदेव से नही जुडे थे तथा फिर गुरुदेव से जुडकर स्वाध्याय / साधना करने के बाद अभी की स्थिति में तुलना कर के देखा जाए तो जरूर कुछ बदलाव आए है और उन बदलाव से भले ही आप संतुष्ट (Satisfy) ना हो तो पूर्ण सन्तुष्ट न होना भी अच्छा है ताकि आगे की यात्रा में, अपने में सुधार का प्रयास जारी रहे

क्या ज्ञान ही आत्मा है ?

  •  यह एक शब्द में ना कहे
  • ज्ञान भी आत्मा है
  • जब आत्मा / ईश्वर सर्वव्यापी है तो हर चीज ईश्वर है, कण कण में ईश्वर है
  • जब ईश्वर के सिवा दूसरा कुछ है ही नहीं तो यहा हर चीज ईश्वर ही है
  • निरालम्बोपनिषद् जो परब्रह्म की व्याख्या बताता है, वह कहता है कि समस्त ज्ञान में ईश्वर है, सारे ज्ञानो में तथा सभी तरह कर्मो में ईश्वर ही है -> भले ही हम अपना मोहर मारते रहे कि किसी को खराब कर्म या सुकर्म कुकर्म दुष्कर्म कहे पर ईश्वर सर्वव्यापी है परन्तु उसे वहा पर किस तरह है, यह हम नहीं जानते हैं लेकिन उसके उसके स्वभाव से देखे तो वह अपनी mentality से अपने सुख के लिए कार्य कर रहा है, उस हालत को समझने वाला संत बुद्ध की तरह शांत होता है तथा ऐसा व्यक्ति बौधत्व को पा लेता है
  • सभी ज्ञानो में, सभी कर्म में, सभी अर्थ में, सभी संसाधनों में हम देखें कि एक डिवाइन लाइट के रूप में ईश्वर है, यहा एक प्रकाश के सिवा कुछ है ही नहीं और प्रकाश में खंड-खंड नहीं होता
  • प्रकाश का गुण ज्ञान(ब्रह्मा), गति(विष्णु) व उर्जा(महेश) के रूप में है तथा सारा ब्रह्माण्ड प्रकाश से ही बना है, जहा प्रकाश है वहा ब्रह्मा – विष्णु – महेश है, शांतिमय आनन्दमय प्रकाश के रूप में ईश्वर हर जगह है 🙏

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