पंचकोश जिज्ञासा समाधान (10-02-2025)
आज की कक्षा (10-02-2025) की चर्चा के मुख्य केंद्र बिंदु:-
कठोपनिषद् में आया है कि उदय और लय होते रहने के स्वभाव से युक्त अलग – अलग स्थान में स्थित अनेक रूप वाली इंद्रियों को जानने वाला ज्ञानी पुरुष कभी शोक नहीं करता इसमें उदय और लय का क्या अर्थ है
- यह इंद्रियों का स्वभाव ही है
- जैसे जब हम स्वादिष्ट भोजन करते हैं तो जिव्हा कुछ समय के लिए शांत हो जाएगी परन्तु फिर कुछ समय बाद फिर से मांग करने लगेगी
- जहा भी हमारा मन वातावरण देख ता है वहा वह नियंत्रण से बाहर हो जाता है, इसी को रस कहा गया है
- मन में एक लालसा बनी रहती है, विषय तो हटा सकते है परन्तु लालसा नहीं हटती
- आत्मज्ञान से वह लालसा भी हटती है
- वह साधक तत्वज्ञान से यह समझ जाता है तथा जीभ की लपलपाहट भी शांत होने लग्री है
- तब व्यक्ति उस भोजन के हानि व लाभ को देखकर ही खाता है जैसे वायु तत्व के लिए खट्टा खा लेता है
- इसलिए इसे उदय व अस्त होने के स्वभाव वाला कहा गया है
ब्रह्मविद्योपनिषद् में आया है कि साधक को सदा ही कुण्डलिनी के पूर्व में अधोलिंग का ध्यान करना चाहिए, शिखा स्थान पर पश्चिमलिंग का तथा भृकुटियों (ललाट) के मध्य में ज्योतिर्लिंग का ध्यान करना चाहिए, का क्या अर्थ है
- अधो = नीचे = मूलाधार की बनावट निभुजाकार की है, उसका नुकीला भाग नीचे है, इसका अर्थ है कि हमारी उर्जा नीचे पृथ्वी तत्व (भूलोक) से जुड़ी हुई है, इसी से अन्नमय कोश पुष्ट होगा, इस पर हमारी निर्भरता है
- इसे Potential Enery के रूप में ले तथा इसे भी अच्छा बनाया जाए
- साधक को इस पर भी ध्यान देना चाहिए जब तक जीवन है तथा खाना पीना व भोजन पर निर्भरता है
- ज्योर्तिलिंग आज्ञा चक्र में है तथा सहस्तार में पश्चिम लिंग
- पश्चिम का अर्थ उसके पीछे, हमें यहीं अन्त नही मान लेना चाहिए, सहस्तार तो एक माध्यम भर है, 7th Body [Causal Body] है तथा इससे भी परे की हमारी यात्रा है ना कि केवल इसमे फंसें रहना
बृहदआरण्यकोपनिषद् में आया है कि वह प्रजापति अमावस्या की रात्री में अपनी 16 कला के माध्यम से सबमें प्रविष्ठ होकर प्रातः काल में पुनः प्रकट होता है अस्तु अमावस्या की रात्री में किसी की हिंसा नही करनी चाहिए और देवता को बलि प्रदान करने के निमित भी किसी गिरगिट तक का वध नहीं कर सकते, का क्या अर्थ है
- पहले प्रचलन में ऐसा बलि प्रथा चलता होगा
- हमें केवल अपने ही नहीं अपितु अन्य जीवो के कल्याण के बारे में भी सोचना है, हम भी कभी अन्य जीवो की योनियो में रहकर ही यहा आए होगे सभी जीव हमारे मित्र है तथा अपने मित्रों को कोई कभी नुकसान नही पहुंचाता
- अमावस्या का अर्थ मूल प्रकृति है
- प्रकृति तम कहलाती है तथा ईश्वर सत कहलाता है
- ईश्वर (सत) व प्रकृति (तम) मिलते है तो आनन्द (रज) में की उत्पत्ति होती है
- ईश्वर सत चित्त आनन्द स्वरूप है
- तम का अर्थ जड भी है, जब तक जड में रोशनी नहीं देंगे, उसमें प्रकाश नहीं जाएगा, हम विज्ञान का दुर्पयोग न करे, विज्ञान आत्मा के कल्याण के लिए बनाया गया है
- शरीर तम है तथा आत्मा सत है, जहा तम का दुर्पयोग करेंगे तो ईश्वर शरीर ( तम / शक्ति ) हमसे छीन लेगा
- शक्ति तम कहलाती है व ज्ञान सत कहलाता है तो हम शक्तियों का misuse न करे
आनन्दमय कोश को पार करने के लिए क्या करें
- आनन्दमय कोश के पार जाने के लिए 4 साधनाएं है
-> नाद साधना, कला साधना, बिंदु साधना, तुरीया साधना
Radiation Science से DNA कैसे Change हो सकता है
- DNA, प्राण तत्व है, प्राण स्फुलिंग है
- DNA (Deoxy Ribo Nucleic Acid) एक chemical है, वह आत्मा नहीं है जिसे बदला ना जा सके
- डा० हमगोविंद खुराना ने कुछ DNA Pattern बनाए थे, उस आधार पर यदि वह DNA हम कुत्ते में भी डाल दे तो वह वैज्ञानिक की तरह व्यवहार करेगा, DNA (Chemical) में बदलाव किया जा सकता है
- जब हम meditation करते हैं तो उसमें Brain से अलग-अलग प्रकार की तरंगें (एल्फा – बीटा – गामा – डेल्टा) निकलती है, ये सब ऐसे Radiation है जो DNA तक को बदल सकते है
- इस में गुरुदेव ने भृंगी कीट का उदाहरण दिया है कि भृगी कीट केवल Male होते है, उसमें Female नहीं होते, तो वे बच्चा कहा से पैदा कर सकते हैं तो फिर वह झींगुर को ले आता है तथा Music सुनाता है और जब वह झींगुर उस संगीत में मग्न हो जाता है तो फिर वह झींगुर पूर्ण रूप से भृंगी बन जाता है, इससे झींगुर का DNA, Permanent बदल जाता है, जब कीट कर सकते हैं तो मनुष्य भी कर सकते है
- इसका एक अर्थ यह भी है कि जितने भी पदार्थ हैं वे सभी विचार की तरंगों से (उसके चुम्बकीय प्रभाव से) प्रभावित होते हैं
-> एक मंत्र शक्ति (Sound Energy) के द्वारा जिसमे देवी या देवता का ध्यान कर उनके गुणों का मनन चिंतन करे, जिससे वैसी संतति हो, पति पत्नी के चेहरे यदि शुरुवात में ना भी मिलते हो तो बाद में दोनो में प्रेम घनिष्ठ होने पर दोनो के चेहरे मिलने लगते हैं, इसका अर्थ यह है कि कोशिकाओं में बदलाव मेडिटेशन से आता रहता है
-> दूसरा Heat Energy से भी बदलाव आता है, कोयला भी ताप व दबाव से हीरा बन जाता है, इसी Heat का उपयोग Atom Bomb में भी किया गया - इस प्रकार दोनो तरह से ही परिवर्तन हो सकता है
आगम निगम का क्या अर्थ है
- निगम का अर्थ निदेशालय से आया है
- पूरे Universe का निदेशक ईश्वर है
- उस ईश्वर की बात को कहना या वेद की बात को कहना, जो की शाश्वत है तो उसे निदेश / निगम कहा जाएगा, जो कि ईश्वर के द्वारा प्रेक्षित है
- उस ईश्वरीय ज्ञान को समाज में बताना है तो यह आदेश हो जाएगा
- निदेश हमारे Boss का है, उसे हम बदल नहीं सकते
- उपनिषद् निदेश है जो नहीं मानेंगे वे नास्तिक है तथा ना मानने वाले घाटे में रहेंगे
गीता के सातवें अध्याय में आया है कि मेरे भक्त 4 प्रकार के है -> आर्थी – जिज्ञासु – ज्ञानी
- आर्थी = जो धन के लिए ईश्वर की पूजा करते हैं तथा जो आभावग्रस्त है, उसे सिर्फ धन मिलने से मतलब है, धन मिलने पर छोड भी सकते हैं
- आर्त = जो दुख कष्ट में ही ईश्वर को पुकारेंगे तभी वे प्राणायाम या आसन करने लगेगे -> यदि पहले करते तो दिक्कत ही नही होती
- जिज्ञासु = जो आत्मा को पाने की इच्छा रखते हैं
जरा व मरण का क्या अर्थ है
- बुढापा व मृत्यु
- मरने से अक्सर लोग डरते हैं
- युवा दिखने की उमंग दिखना अच्छा है परन्तु अपने भीतर आत्मा को जानने का महत्व भी समझे
- जिसे मृत्यु से डर लगता है वह आत्म साक्षात्कार से कोसों दूर है, जब आत्मा मरती ही नहीं तथा मै शरीर नहीं आत्मा हूँ तो हमारे भीतर किसी प्रकार का भय नहीं होना चाहिए, यदि यह भय है तो साधना करे, यही जीवन का लक्ष्य है
भावना के परिशोधन की सहज एवं सरल विधी क्या है, कृपया प्रकाश डाला जाए
- सामने वाले की भावनाओं की यदि हम कदर करते है तो हमारी भावनाएं शुद्ध हो जाती है
- दूसरो को Respect दे, दूसरो में अच्छाई देखने का अभ्यास किया जाए तो आसानी से अपनी भावनाएं शुद्ध हो जाती है
- दूसरों में दोष ढूंढे जाएंगे तो अपनी भावनाएं दूषित हो जाएगी
- हर चीज में हम केवल खूबियो को ही ढूढ़े तो अपनी भावनाए शुद्ध व उत्कृष्ट हो जाती है
- तत सवितुर्वरेण्यं -> सविता (उत्कृष्टता) को वरण करे, जैसे घास फूस के बीच कई दुलर्भ जड़ी बूटियां भी मिलती है जिनका उत्कृष्ट उपयोग किया जा सकता है
- हम संसार में खूबियां को तलाशते चलेंगे तो हर जगह ईश्वर को देख लेंगे, ईश्वर हर खूबियां के बीच में बैठा है तथा हम ईश्वर के उपासक हैं, ऐसा व्यक्ति दोषों से प्रभावित भी नहीं होगा और अच्छाइयों को लेकर आगे बढ़ जाएगा
मै गुप्त नवरात्री में ही जुडा हूँ, मुझे साधना में शुरुवात कहा से करनी चाहिए
- पहले अपनी दिनचर्या में बदलाव लाए इसमें सोना – जागना व आहार – विहार का नियंत्रण आ जाएगा
- सुर्योदय से पूर्व जगना, उषापान करना, शौच से निवृत होना, उपनिषद् का अध्यन अवश्य करें, उस विषय पर मनन चिंतन अवश्य करे
- पढ़ेंगे नहीं तो भावशून्य उपासना होने लगेगी, उपनिषद् का स्वाध्याय जरूरी है, उपनिषद् को पढ़ो नही बल्कि पीयो क्योंकि आत्मा को शांति उसी से मिलेगी
- फिर स्नान करके, APMB का अभ्यास करें
- फिर भोजन करे तथा यह देखें कि कौन सा भोजन हमारे फायदे का है
- भोजन केवल उतना ही ले जितना की पचा सकते हो
- परिश्रम की तथा मेहनत की कमाई ही खाए
- 8 घंटे की Duty करे तो उसे ईश्वर का कार्य मानकर ही करें
- अच्छे से आराम भी अवश्य करे, उसी से शरीर की बैटरी चार्ज होता है
- जब इतना तक ठीक हो जाए तब अन्नमय कोश की साधना उसके 4 क्रिया योग, आसन उपवास – तत्वशुद्धि – तपस्या से शुरू करे, फिर उसमे कही दिक्कत नहीं आएगी
- फिर अन्नमय कोश के साथ साथ प्राणमय कोश की भी साधना प्राणायम बंध व मुद्रा से शुरु करे, फिर उसमें मनोमय विज्ञानमय व आनन्दमय कोश को भी जोड दे
- यहा छोडना कुछ नहीं बल्कि जोड़ते जाना है
- पांचों कोशो को भेदकर फिर आत्मसाक्षात्कार होता है
- इनके क्रिया योग गायत्री महाविज्ञान में है
- इसके लिए दो भाग अवश्य पढ़ते हैं वांग्मय 13 (गांयत्री की पंचकोशीय साधना) और वांग्मय 15 (सावित्री कुण्डलिनी एवं तंत्र)
- तब पूरा का पूरा साधना पूर्ण होगा
- फिर अधिक गहराई के लिए
-> साधना से सिद्धि – 1
-> साधना से सिद्धि – 2
-> साधना पद्धतियों का ज्ञान विज्ञान
-> व्यक्तिगत विकास हेतु उच्च स्तरीय साधनाएं - ये सभी साधना से ही जुडे वांग्मय है
आपने कल यह बताया था कि अवतारों के बार-बार आने-जाने के बाद भी स्थितियां खराब हो जाती हैं बाद में उन अवतारों के जाने के बाद में या जब अवतारी सत्ता एक बार चार्ज करके चली जाती हैं तो वह फिर बाद में ठीक रेट कैसे हो जाती मतलब बाद में शिथिलता कैसे आती चली जाती है, पॉल्यूशन कैसे घुस जाता है
- यह अभ्यास बनाए रखना तथा वेद के बताए आदर्शो पर चलना
- बार बार हमे (अवतारी चेतना) ना खोजे
- अवतारों का उद्देश्य है कि वे हमें वेद के अनुकूल हमें चलना सिखाए
- गुरु जी ने भी जब वो आए तो वेदों का उद्धार किए तथा गांव गांव में वेदों को स्थापित किया
- वेद में कहीं भी हिंसा की बात नही कहीं गई
- वेद के सारे मंत्र सभी के लिए एक समान है
- साधना में प्रकैटिकल भी करना होता है
- कुछ समय बाद लोगों की साधना में प्रैक्टिकल कम हो गई
- प्रकृति गतिशील (परिवर्तनशील) है तथा यह प्रकृति हर पल हर क्षण वह Toxine छोड़ती रहती है
- साधना की कमी के चलते आलस्य प्रमाद भी घेर लेता है
- यही प्रकृति का शाश्वत वैज्ञानिक नियम है
दुर्लभ उपनिषद में आया है कि अनुष्टुप छंद से ही पूरी पृथ्वी बनी है तथा इसमें ही इसका संहार हो जाता है, का क्या अर्थ है
- अनुष्टुप सुगमता को कहा जाता है जो की सहज एवं साध्य है
- सारी श्रृष्टि इन्हीं छंद से बनी है
- पुरुष सूक्त भी अपने आप में अनुष्टुप है
- संहार का अर्थ है कि Nature से ही पैदा हुए तथा Nature में ही विलीन होंगे 🙏
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