Pragyakunj, Sasaram, BR-821113, India
panchkosh.yoga[At]gmail.com

पंचकोश जिज्ञासा समाधान (09-12-2024)

पंचकोश जिज्ञासा समाधान (09-12-2024)

कक्षा (09-12-2024) की चर्चा के मुख्य केंद्र बिंदु:-

जब हम ज्योतिष विज्ञान का अपने जीवन में उपयोग अपने दुखों को कम करने के लिए करते हैं तथा कर्म फल के विज्ञान को काटने के लिए करते हैं तो क्या हम कर्म फल के Reaction को क्षीण करते है या आगे के लिए टाल देते है

  • ज्योतिष विज्ञान आपस में चमकते हुए ग्रह नक्षत्रो का विज्ञान है, वे सभी Magnet है तथा आदमी भी एक चलता फिरता Magnet है तो इन ग्रह नक्षत्रो का चुम्बकीय प्रभाव इस शरीर पर पड़ता है
  • आत्मा में इतनी सामथर्य है कि वह संसार के सभी प्रभाव को निष्प्रभावी कर सकता है, यह पांचो तत्वो से आहत नहीं होता है, सृष्टि के किसी भी तत्व से यह आहत नहीं होगा
  • ज्योतिष विज्ञान का प्रभाव केवल पदार्थ तक ही सीमित है
  • पदार्थ की उत्पत्ति Thoughtron से हुई
  • Thoughtron की उत्पत्ति मन से हुई
  • ये सारे ग्रह नक्षत्र मन तक ही प्रभावित करते हैं, मन से आगे इनकी पहुंच नही है यदि हम मन से आगे की कक्षा में चले जाए तो हमारे सोचने मात्र से ग्रह अपनी दिशा बदल देंगे
  • कश्यप ऋषि चलते थे तो ग्रह नक्षत्र भी अपना रास्ता बदल देते थे तथा श्री कृष्ण के कहने मात्र से सुर्य छिपकर फिर निकल आते थे
  • जिनका Magnetic Field कमजोर है वे
  • ज्योतिष विज्ञान का सहारा लेकर कर्म फल को आगे के लिए टाल भी सकते है
  • शनि तो कोई व्यक्ति नहीं है, उससे आने वाली किरणे तीक्ष्ण होती है
  • जो तप तितिक्षा नही किए रहते उनको कष्ट होता है, वास्तव में शनि हम पर कुपित नही है अपितु अपने में तपस्या की कमी है, दुःख व कष्ट तो हर एक के जीवन में आते हैं
  • राम जी व कृष्ण जी पर भी कितने कष्ट आए
  • सारे ग्रह नक्षत्र उन पर दया नही किए, वास्तव में ये खुद के ही व्यक्तित्व से असर पड़ता है
  • शनि ग्रह को काटने का उपाय -> शनि ग्रह का मंत्र उच्चारण करे परन्तु उससे तो केवल अपना Ionosphere ही बदलेगा, जब Ionosphere बदलेगा / बढेगा तो झटको को सहने की क्षमता बढ़ेगी
  • इस प्रकार व्यक्ति केवल अपने आभामंडल को बदलता है तथा इससे अधिक कुछ नही कर सकते
  • ग्रहों के प्रभाव को काटने के लिए वेद मंत्र बताए जाते हैं तथा वेद मंत्रो के साथ जप व मनन चिंतन करने से आत्मज्ञान मिलेगा
  • हम अपने आप को केवल मजबूत बना सकते है जिससे हमारी सहने की शक्ति बढ़ जाएगी, ज्ञान से सहा जाता है (ज्ञान से सहने की शक्ति मिलेगी), क्रिया की प्रतिक्रिया तो होती ही रहेगी

आत्म स्थिति में रहते हुए कभी कभी अचानक सांसें उपर नीचे अधिक हो जाती है तथा हम उसे Balance करना चाहते है तो क्या करे, Meditation में अचानक से जोर का झटका लगता है तो लगता है कि खाली हो गए, इसका क्या अर्थ है

  • प्राणायाम पर अधिक काम करना है क्योंकि सांसो का संबंध प्राणायाम से है
  • यौगिक क्रियाओं में नाडी शोधन व प्राणाकर्षण प्राणायाम पर अधिक बल दीजिए तथा साथ में भावना भी करनी होगी
  • क्रिया के साथ में भावना करे कि ईश्वर की शक्ति हमारे भीतर जा रही है तथा ईश्वर शांत है, जब यही उर्जा नाडियों की सफाई करेगी तब सांसे उपर नीचे नहीं होंगी
  • स्वाध्याय भी करे, इससे ज्ञान बढ़ेगा व Practical भी करे
  • दोनो(Theory [ज्ञान] +Practical) को साथ लेकर चलने से समझदारी बढ़ेगी
  • तब कुछ समय के बाद स्वभाव भी बदलेगा, स्वभाव बदलने में थोडा समय लेता है
  • अपनी जीवन शैली को इस रास्ते पर लंबे समय तक चलना पड़ता है
  • पांचो कोशो की सफाई करते रहेंगे तो ऐसी समस्या नहीं आएगी

यदि हम नाडी शोधन प्राणायाम न करे तथा केवल स्वाध्याय ही करे तो क्या सांसे स्थिर हो जांएगी

  • नहीं होगा Practical तो करना ही होगा
  • नाड़ियों में Blockage रहेगा तो सुख दुखः असर करेगा केवल स्वाध्याय से थोडा लाभ ही मिलेगा, रोग दुःख असर करेगा तथा खांसी जुकाम भी होने लगेगा यदि Blockage रहा
  • इसलिए क्रिया योग बहुत जरूरी है, 25% क्रिया योग भी बहुत चमत्कारी होता है
  • Practical में पास करना भी अनिवार्य है, Practical में फेल तो फेल समझें फिर Theory में 75% लेकर भी पास नहीं हो सकते क्योंकि नीचे कुण्डलिनी शक्ति है, कुण्डलिनी शक्ति में वो आग है कि यह रोग दुखो को हटाएगा इसलिए क्रिया भी करनी पड़ेगी, ज्ञान से केवल थोडा सा दिमाग बढ़ेगा
  • केवल ज्ञान के साथ क्रिया योग के बिना किया गया ध्यान फिल्म देखना भर होगा वह अधिक असर नहीं करेगा, व्यवहार में नहीं उतरेगा

कहा जाता है की जीवन सांसो के साथ गिनती के रूप में मिलता है क्या इसे संयम से बढ़ाया जा सकता है कृपया प्रकाश डाला जाय

  • बढ़ाया जा सकता है
  • जैसे 1 करोड़ सास मिल गया तो कर्म के अनरूप हमें सांस मिला तो ये अपने उपर है कि हम जल्दी खर्च करे या देर से खर्च करे
  • 15 बार सास 1 मिनट में ले तो 100 वर्ष आयु मानी जाती है, यदि 1 मिनट में 15 से कम बार सास ले तो उम्र बढ़ जाएगी
  • यदि एक दिन का 1000 रुपये हमने मजदूरी से कमाया तो यह अपने उपर है कि इसे शराब में उडाए तो शरीर भी खराब होग और पैसा भी नहीं बचेगा या उसका सदुपयोग करें तो बचत भी बढ़ता जाएगा और शरीर भी स्वस्थ होगा
  • दूसरा यदि हम ईश्वर का काम करेंगे तो भी मजदूरी मिलने का कम्र जारी रहेगा, पिछली कमाई पर कितने दिन जीवित रह सकते हैं, एक दिन तो पिछली कमाई का Balance खत्म हो ही जाएगा
  • परन्तु यदि हर दिन सास को कमाया जाए तो आदमी स्वेच्छा जीवी भी हो सकता है
  • हमें 1987 में मर जाना था परन्तु यदि हम अपने को ईश्वर के काम के लिए बनाए रखे तो अपने काम लेने के लिए हमारी सांसो की गिनती को बढ़ा सकते है तथा हमारी उम्र बढ़ा भी सकते है
  • जिनके पास संजीवनी विद्या है, तथा आत्मा मरती नही व जिनका चेतना के Particle व पदार्थ पर नियंत्रण है वह व्यक्ति भी संजीवनी विद्या का उपयोग करके किसी की उम्र को बढ़ा सकते है या Misuse करने पर पहले भी समाप्त कर सकता है
  • Superconciousness वाला Brain का हिस्सा सदैव ईश्वर के पास रहता है तथा वह उसे Control करता है
  • आत्मा को मारा नहीं जा सकता

नारदपरिव्राजकोपनिषद् में परिवाज्रक व संन्यासी में क्या भिन्नता है, क्या संन्यासी को परिव्राजक कह सकते हैं

  • परिवाज्रक को संन्यासी नहीं कह सकते
  • वानप्रस्थ प्रवज्या वाला आश्रम है तो वो धर्म कार्य के लिए अपना समय देते है
  • धर्म कार्य में बहुत तरह के कार्य आते है जैसे लोकसेवा, वृक्षारोपण, पीड़ा निवारण . . .
  • आत्मानुसंधान में लगेगे तभी संन्यासी कहलाएंगे
  • नारद जी आत्मज्ञान नही अपितु सलाह देते चलते थे तथा पीडा निवारण का कार्य करते थे, परामर्श देते चलते थे, संसार को संवारना भी एक Duty है
  • संन्यासी संसार को ही समाप्त कर देता है, संन्यासी के लिए संसार है ही नहीं, तो जो है उसके बारे में सोचे

परिवाज्रक भी आसती रहित और अल्पाहारी होकर के जीवन यापन करता है, जो इन तीन वाणी मौन और कर्म रूपी दण्डो को अपने नियंत्रण मे रखे, वास्तव में वही परिवाज्रक है

  • परिवाज्रक का चरित्र चिंतन व व्यवहार भी प्रखर होना चाहिए नहीं तो आपको सम्मान नहीं मिलेगा, यही स्थूल सूक्ष्म और कारण शरीर की तीन वाणियां है
  • बैखरी स्थूल शरीर में
  • मध्यमा में भाव भंगिमाए आती है, मन पश्यन्ति हो जाता है, जैसा हम सोचते है वही हमारी पश्यन्ति वाणी बन जाती है
  • परिवाज्रको के लिए गुरुदेव ने एक पुस्तक लिखा = लोक सेवियो की आचार संहिता
  • परिवाज्रक के रूप में जब हम बाहर निकलेंगे तो समाज में लोग उनकी आचार संहिता देखेंगे अधिक खाने वाले साधु को लोभी समझेगे

आत्मबोधत्व बना रहे इसके लिए गायत्री मंत्र का मानसिक जप या सोहम् साधना हमेशा करना क्या उचित रहेगा ?

  • बिल्कुल उचित रहेगा
  • सोहमस्मि इति वृत्ति अखंडा। दीप सिखा सोइ परम प्रचंडा
  • वेद का आदेश है कि रात दिन स्वाध्याय करो और वेद का आदेश ईश्वरीय आदेश है, वेद ईश्वरीय वाणी है तथा जब यह ईश्वर का आदेश है तो पालन करना ही करना है
  • स्वाध्याय में वह आग है कि हठीले कुसंस्कारों को भी जला देता है, संत्संग ने कितनो का जीवन बदल दिया है
  • जब भी हम स्वाध्याय करते हैं तो उन ऋषियों की चेतना हमसे बातचीत कर रही होती है
  • भले ही वे ऋषि, वे महामानव अभी स्थूल रूप में नहीं है परन्तु उनके विचार तो है
  • विचार सेअपने विचार को तालबद्ध करेंगे तो तेजी से प्राण प्रत्यावर्तन होता रहता है
  • सोहम भाव से व्यक्ति हमेशा आत्म समीक्षा में रहता है, यदि क्रोध आ भी जाए तो तुरन्त ध्यान आता है कि मै आत्मा हूँ और आत्मा क्रोधित नहीं होता है, इस ज्ञान से हम अपने क्रोध वाले भूत को शांत करते हैं

कुछ कर्म गलत हो जाते है तथा तुरन्त इसका ज्ञान भी हो जाता है तो यह दिक्कत कहां से होता है

  • अभ्यास के कारण कुछ पहले वाली आदतें है जो भीतर रहती है परन्तु समाप्त नहीं होती तो जब भी परिस्थितियां आती है तो अचानक से बाहर निकलती हैं
  • जागृत मन देखता है, जागृत मन लगातार देखता है तो समीक्षा कर लेता है कि क्या गलत हुआ तो अगली बार गलती कम होता है
  • सभलते सभलते धीरे धीरे स्थिति में सुधार आता जाएगा तो फिर बाद में धीरे धीरे अभ्यास करते करते गलतिया कम होकर समाप्त हो जाएगी, इसलिए घबराना नहीं और अगली बार संभले व ध्यान रखे कि गलती न हो
  • आत्म साधना इतना सरल है तथा आत्मसाधना में बहुत आनन्द है
  • केवल स्थूल शरीर से ही इतना आनन्द मिलता है तो सोचे कि पांचो शरीर स्वस्थ है तो कितना आनन्द मिलेगा
  • भीतर ही आनन्द की वर्षा होती रहती है, बाहर का आनन्द उसके (भीतर के) आनन्द की तुलना में तुच्छ (घास फूस जैसा) प्रतीत होता है

रूद्राक्ष को कब पहनना चाहिए और कब नहीं पहनना चाहिए

  • रात को सोते समय खुरदरा होने के कारण चुभेगा तथा नहाते समय भी निकाल दे, जब अटपटा लगे तब उतार ले
  • जडी बूटी के रूप में पहने रख सकते है
  • सदा के लिए बांध लिया तो सहने की आदत हो जाती है तथा सहते सहते उसे सामान्य लगने लगता है

रुदाक्ष के पहनने से क्या होता है

  • वह रुद्राक्ष एक जडी बूटी है तो इसे छूने से स्पर्श से उसका लाभ मिलता है
  • एक जडी बूटी चिडचिडी (अपामार्ग) है, जिसे प्रसव वेदना हो तो कमर पर बांधने से जल्दी प्रसव हो जाता है
  • एक अन्य जड़ी बूटी, बिच्छु का डंक उस एक जडी बुटी से कुछ दूरी पर mm रखने मात्र से ही खीचा जाता है
  • चितकी हरड को हाथ में रखने मात्र से दस्त शुरू हो जाता है, खाने पर और अधिक प्रभावशाली है
  • हर जडी बूटी या हर पौधो में अपना Bio Plasma होता है जो Radiation निकालता रहता है, यह कल्याणकारी है तथा रोग निवारक भी है
  • आत्मा को जगा लिए तो किसी रुद्राक्ष की आवश्यकता नहीं
  • आत्मा को पा लिए तो बहुत आनन्द मिलता है तथा व्यक्ति बहुत ताकतवर हो जाता है
  • संसार की क्रियायो से अंतिम कल्याण नहीं है, आत्मा को जानने से ही अंतिम कल्याण मिलता है,आत्म सुधार संसार की सबसे बड़ी सेवा है

शमशान में जाते समय या प्रसव के समय में रुद्राक्ष क्यों नहीं पहना जाता है

  • वहा शमशान में कीटाणु उडते रहते तो Infection होने का डर रहता है
  • ताबीज के रूप में पहना है तो नहीं निकाल सकते

मन की पांच अवस्थाएं क्षिप्त विश्रिप्त मूढ एकाग्र निरुद्ध तथा चित्त की पांच अवस्थाएं यही बताई है क्या दोनो एक ही है

  • मन की चंचलता धीरे धीरे शांत होती जा रही हैं इस आधार पर बाटकर नाम रख दिया गया तथा अब मन अपने control में अधिक आता जा रहा है तथा अन्त में पूरी तरह मन अपने control में जब आ गया तो निरोधित (निरुद्ध) अवस्था कहलाती है
  • पांचों शरीरो से जुडा हुआ चित्त है तो गुरुदेव ने इन्हे पांचो मनोभूमिया कह दिया
  • इसलिए ये पांच मनोभूमिया बताई जा रही है जिनमें हम अपने आप को क्या मानकर चल रहे है -> शरीर मान रहे हैं, प्राण मान रहे हैं, मन मान रहे हैं, बुद्धि मान रहे है, आत्मा मान रहे हैं
  • गुरुदेव ने पांचो के लिए मनोभूमि शब्द का प्रयोग किया है
  • हर ऋषि चित्त की इन अवस्थाओ को अपने काल में अपने ढ़ग से पढ़ाता है
  • जब विज्ञानमय कोश में अपनी मनोभूमि को यह मान लेता है कि मै शरीर नहीं आत्मा हूँ तो वह एक निरोधित मन की अवस्था में चला जाता है      🙏

No Comments

Add your comment