पंचकोश जिज्ञासा समाधान (09-08-2024)
आज की कक्षा (09-08-2024) की चर्चा के मुख्य केंद्र बिंदु:-
योगशिखोपनिषद् में योगी जन योगाभ्यास के द्वारा परम मंगलकारी द्वितिय सुष्मना द्वार का भेदन करते है व फिर सूक्ष्म को समर्पित हो जाते है, का क्या अर्थ है
- सुष्मना कंठ में व पूरे शरीर में व्याप्त है
- यदि हम मणीपुर से उपर उठ जाएगे तो पदार्थ की Gravity से उपर उठ जाएगे
- दूसरा चरण पार कर लेगे तो सांसारिकता से उपर उठ जाएगे
- जो विशुद्धि से उपर उठ जाते है वहा ज्ञान का क्षेत्र है, अलग अलग ऋषियो ने इसे भिन्न भिन्न रूपो में साक्षात्कार किया किन्तु ज्ञान तो केवल एक शाश्वत ही है
योगवशिष्ठ से तत्व का गहन अभ्यास , प्राण का निरोध व मन का निगृह क्या है
- तत्व को गहन अभ्यास -> अभी तक हमारी सामान्य स्थिति में तत्व केवल उतना ही काम करते है जितना प्रवृति के द्वारा उनको खोला गया
- तत्व का गहन अभ्यास = पंचमहाभूतो से इसका अर्थ लिया गया, यह जड़ तत्वो के विषय में आया है
- पंच तत्व ही पंचकोश भी है जहा हम अन्नमय कोश की साधना करते है तब हम इनकी सूक्ष्म शक्तियों को जागृत करते है
- शरीर की अग्नि से स्थूल विकारो को तथा फिर सूक्ष्म विकारो को नष्ट होने करती है तथा फिर यह उपत्तिकाओ की सफाई भी करती है
- इस प्रकार ये तत्व एक विशेष स्थिति में पहुंच जाते हैं इसी को ही तत्वों का जागरण कहते हैं
- प्राण का निरोध = प्राणायाम से वायु निरुद्ध होती है, प्राण के साथ ही बाहर से संकल्प विकल्प भी प्रवेश करते हैं
- यदि मन को कुछ विचार लगतार चल रहे हो और संतुलन में न आ रहा हो तो गहरा लंबा सास लेकर कुंभक लगा ले तो विचार रुक जाते हैं / विचार शांत होने लगते है, साक्षी भाव मे प्राणो का निरोध आवश्यक है तब यदि कोई कुविचार भीतर घुस भी जाता है तो भी उसे अन्तः कुम्भक में नष्ट कर देते है
- मनोमय कोश की साधना से मन का निग्रह हो जाता है
- जिसने अपने प्राण पर नियंत्रण कर लिया वह अपने मन का निग्रह भी कर पाएगा
- प्रणमन व्यक्ति ही मन को वश में कर पता है
प्रश्नोपनिषद् में आया है कि यह ॐकार ही निश्चित रूप से परब्रह्म वह अपरब्रह्म है तो यहा अपरब्रह्म क्या है
- परबह्म = परा प्रकृति = गायंत्री = ज्ञानात्मक उर्जा
- अपरबह्म =अपरा प्रकृति = सावित्री = पदार्थ उर्जा
- Nucleus के चारों ओर इलेक्ट्रॉन इस प्रकार घूम रहे हैं जैसे सूर्य के चारों तरफ ग्रह वह उपग्रह घूम रहे हैं
- जड का program बदला नही जा सकता
- चेतनान्तमक शक्ति प्रेरणा देकर आगे बढ़ाती है
रुद्राक्षजाबालोपनिषद् में 4 वर्णो के लिए 4 प्रकार का रुद्राक्ष बताया है जैसे बाह्मण के लिए श्वेत वर्ण का रुद्राक्ष पहनना चाहिए, क्षत्रियो को लाल वर्ण का, वैश्यो को पीले वर्ण का तथा शुद्र को काले वर्ण का रुद्राक्ष पहनना चाहिए, क्या 4 वर्ण के रुद्राक्ष होते है तथा 4 अलग वर्णो के रुद्राक्ष का क्या अर्थ है
- रुद्राक्ष एक विशेष शक्ति को ग्रहण करता है तथा प्रत्येक पदार्थ का अपना गुण धर्म स्वभाव होता है तथा सत रज तम की शक्तियों को उसी परिमाण में ग्रहण करता है
- श्वेत वर्ण -> ज्ञानात्मक है सतोगुणी है तथा यह उस प्रकार की शक्तियो खीचेंगा
- कृष्ण वर्ण = शुद्र कै लिए तमोगुणी रुद्राक्ष है क्योकी उसे शारीरिक श्रम करने के लिए शक्ति अधिक चाहिए , उसकी अपनी कोई इच्छा आकांशा नहीं है
- इनके गुणो के आधार पर ही इनका वास्तविक प्रयोजन होता है
- तीन प्रकार की साधना में अलग अलग तरह के पदार्थ का उपयोग करने के लिए कहा है
- जैसे सतोगुणी साधना के लिए तुलसी की माला , रजोगुणी साधना के लिए लाल चंदन की माला व तमोगुणी साधना के लिए रुद्राक्ष की माला से जप करना चाहिए
- अलग अलग माला की तरह लकड़ी भी अलग अलग उपयोग की जाती है जैसे सतोगुणी के लिए पीपल, रजोगुणी के लिए आम की, तमोगुणी के लिए पलाश की लकड़ी उपयोग की जाती है
- ऋषि पदार्थो की सूक्ष्म शक्ति से वे परिचित थे तो अपनी तपस्या में यदि अपनी प्राण शक्ति के साथ, पदार्थ शक्ति भी सम्मिलित कर ले तो तपस्या / साधना में सहायता मिल जाती है
कठोपनिषद् में आया है कि व्यक्ति के हृदय में अनेक प्रकार की सांसारिक कामनाएं रहती है जब इनका समूल विनाश हो जाता है तब मनुष्य यही ईश्वर का साक्षात्कार कर देता है और अमर हो जाता है तो जो कामनाएं या Basic Need होती है वे एक ही है या इनमें कोई अंतर है क्योंकि कुछ आवश्यकताए जीवन में रहती ही हैं तथा हमें ईश्वर को पाना ही है तो क्या प्रत्येक कामना का हमें त्याग करना होगा
- इसके लिए आप 2 विषयो को जाने जिसमें कर्म के स्वरूप का वर्णन मिलता है
- हृदय मे कामनाएं = सांसारिक कामनाओं के विषय में आया है
- सांसारिक कामना को समझने मे लिए यह समझे कि भोजन हम शरीर की आवश्यकता के अनुरूप या स्वाद के वशीभूत करते है, सांसारिक भावनाओं से आवृत व्यक्ति स्वाद के वशीभूत भोजन करते हैं तथा उन्हे अपनी वास्तविक भूख की पहचान भी नहीं होती
- योगी स्वाद के वशीभूत Overeating नही करेगा
- पहले लोग खेतो में अधिक मेहनत करते थे तब जो भोजन मिलता वह अमृततुल्य प्रतीत होता था तथा नींद भी गहरी आती थी
- दो अध्याय अवश्य पढ़े
- गायंत्री महाविज्ञान में निष्काम कर्म योग का तत्व ज्ञान
- स्थूल शरीर का का परिष्कार कर्म योग से
रजो गुण और तमो गुण में क्या अंतर है
- जब सृष्टि का निर्माण हुआ तब केवल केवल दो ही गुण थे सतोगुण तथा तमोगुण, इससे भी पहले केवल ज्ञान (सतोगुण) था, बह्म सबसे पहले ज्ञान के रूप में थे
- ज्ञान के बाद स्थूल जगत से काम लेने के लिए संसार पदार्थ / वस्तुओ की आवश्यकता पडी
- तमोगुण = पदार्थ की शक्ति
- सतोगुण = ज्ञान की शक्ति
- जब सतोगुण व तमोगुण को मिलाया गया तो दोनो को मिलाने पर आनन्दमय जीव की सत्ता का निर्माण हुआ
- सतोगुण की विकृति से व्यक्ति अज्ञान में फंस जाता है, तमोगुण की विकृति से आलस्य और प्रमाद बढ़ने लगता है
यज्ञ करते समय मन में कुछ और चल रहा है और शब्द मंत्र कुछ और बोला जा रहा है तो परिणाम क्या होगा कृपया स्पष्ट करे
- परिणाम यह होगा कि उतना लाभ नही मिलेगा
- मंत्र के साथ श्रद्धा व भाव भी जुड़े तो उसका प्रभाव अनन्त होता है तथा वह देव शक्तियों को भाव से खीचने लगता है क्योंकि देवता केवल भाव समझते है
- मन मैं जिस तरह के भाव होंगे उसका प्रभाव भी वैसा होने लगता है
- यज्ञ विचारों व भावनाओं का भी होता है स्थूल क्रिया का प्रभाव अधिक दूर तक नही होता 🙏
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