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पंचकोश जिज्ञासा समाधान (08-11-2024)

पंचकोश जिज्ञासा समाधान (08-11-2024)

आज की कक्षा (08-11-2024) की चर्चा के मुख्य केंद्र बिंदु:-

मन क्यों नकारात्मक विचारों में ज्यादा रुचि लेता है कृपया स्पष्ट करे

  • पिछले जन्मों से लेकर अब तक हमारे मन को नकारात्मक विषयों में रुचि लेने की आदत पड़ी है तथा संस्कारो में पूर्वजन्म के साथ आया है, इसलिए ऐसा होता है
  • नकारात्मक विचारों को दूर करने के लिए सकारात्मक विचार जरूरी हैं
  • एक कारण यह भी है कि व्यक्ति पंचकोशो की साधना नहीं कर रहा है
  • कोशो के मल पतन की ओर ले जाते हैं
  • प्रेय की तरफ व्यक्ति इसलिए भी भागता है क्योंकि इंद्रियों के दरवाजा बर्हिमुखी है व बाहर संसार की तरफ है तथा मन के बाद जड़त्व शुरू हो जाता है
  • चित्त में जो संस्कार पडे रहते है वो संस्कार परिस्थितियों के गुलाम हो जाते है
  • बाहर की परिस्थितियां उसे बाध्य करती है तथा अपनी ओर खीच लेती है, सामान्य व्यक्ति परिस्थितयो का गुलाम होता है
  • साधना में प्राण आ जाए तो परिस्थितयां उसे छू नहीं पाएगी तथा वह परिस्थितियों पर नियंत्रण करेगा
  • मन में अपने मल को शुद्ध करना चाहिए
  • विज्ञानमय कोष में अधिक रहेंगे तो मनोमय कोष पर नियंत्रण आसान होगा
  • नीचे वाले कोशों को भी मजबूत करना है परन्तु उपर वाले कोशों पर Command करने से नियंत्रण आसान होगा, ऊंचा कक्षा वाला command अधिक अच्छे से करेगा

सभी जगह बह्म है परन्तु पढने में या व्यवहार में अच्छा – बुरा शुभ – अशुभ, बह्म के 2 रूप क्यों बताए जाते है

  • जैसे विद्या 2 प्रकार की होती है परा विद्या व अपरा विद्या, इसी प्रकार सत्य के 2 स्वरूप होते है सापेक्ष सत्य व निरपेक्ष सत्य
  • सापेक्ष सत्य = संसार मे जीना है, जीवन र्निवाह करना है तो अच्छे बुरे का ख्याल रखना पड़ेगा, जो क्रियाए संसार की गतिविधियो में रुकावट डालती है उन्हे खराब कहा गया
  • संसार को भी सुन्दर बनाना है तो संसार को सुन्दर बनाने में जो रुकावट है, उन्हे हटाना होगा
  • इसलिए अच्छा बुरा शुरु में बताना होगा कि क्या खाना चाहिए तथा क्या नही खाना चाहिए
  • किसी का स्तर आचार्य तक है तो आचरण तक ही बता पाएगा, यदि तपस्या नही किया है तो दूसरो को तपस्या नही बता पाएगा कि रुकावटो को तप से कैसे हटाए व आगे कैसे बढ़े
  • इसलिए वामाचार भी रखा गया है यदि आचार्य का स्तर यदि कमजोर है तो छात्र मैरिट में नही आता
  • नीचे की कक्षा में यह बताना जरूरी रहता है
  • भक्ष्य अभक्ष्य की जानकारी केवल अज्ञानियों के लिए है, ज्ञान के अभाव में कुछ भी गलत खाकर अपना नुकसान करेगा परन्तु जब Mature हो गए तो कुछ भी खाकर पचा सकते है, इसलिए दो सत्य बताए जाते हैं
  • शरुवात में निरपेक्ष सत्य को बालक नही समझ पाएंगे इसलिए सापेक्ष सत्य का भी ज्ञान दिया जाता है
  • सदन कसाई को भी बाद में समझा कर बताया गया तथा उसका पेशा छुडवा दिया गया
  • ढर्रा भी बहाव की तरफ ले जाता है, समाज में तपस्वियो का स्तर कम हुआ, शिक्षको का स्तर कम हुआ व शिक्षको का आभाव हो गया
  • गुरुदेव इस विषय को लेकर चिंतित थे कि शिक्षको का स्तर कम हो रहा है तथा सभी केवल प्रचारक बन रहे है, गुरुदेव चाहते थे कि कम से कम 4 % तो शिक्षक बने जो अपने व्यवहार से पढ़ाए
  • यदि 1 करोड़ भी साधना में लगे तो भी 1 % अवश्य सफल हो जाएंगे तो भी 10,000 तैयार हो जाएंगे

जब मूलबंध रुद्र ग्रंथि के लिए लगा लिया जालंधर बंध विष्णु ग्रंथि के लिए लगा लिया फिर ब्रह्मा ग्रंथि के लिए उड्डयन बंध कैसे  काम करेगा कृप्या स्पष्ट करे

  • उडडायान बंध प्राण को सुष्मना मार्ग में उपर उठाता है और बह्म का रास्ता सुष्मना मार्ग से है
  • रेचक से पहले और पूरक के बाद, भीतर प्राण भर लिया, इसे महामुद्रा में भी प्रयोग किया, जिनका उडडायन बंध कम भी लग रहा है तो भी महामुद्रा में प्राण भरकर जब करते हैं तो भी कुछ अधिक दबाव पड़ता है, उद्देश्य यह था कि Blood शरीर के प्रत्येक हिस्से में जाए
  • Blood के माध्यम से व आक्सीजन के माध्यम से भी प्राण जाता है
  • सुष्मना का मार्ग स्वादिष्ठान से होकर जाता है तथा मणीपुर के साथ मिलकर कंद बनाता है, मूलबंध इसलिए लगाया कि प्राण नीचे की तरफ नाडियो से ना भागे, इस प्रकार नीचे से दरवाजा बंद किए फिर उपर से दरवाजा (जालान्धर) बंद किए ताकि ज्ञानेदियों से प्राण का बहाव रुके
  • यह सब करने के बाद जब हम ध्यान में जा रहे  है तो अब उड्डायन ही प्राण को उपर उठाएगा, फिर प्राण सुष्मना मार्ग में प्रवेश करता है
  • सुष्मना में प्राण जब उपर उठता है तो इसका नाम उड्डयन रखा गया तथा नीचे की कक्षाओं में यहीं उडडायन आंतो को उपर उठाता है
  • एक Physical उड्डायन है व एक प्राणिक उड्डायन है ।

सत प्रयोजन के लिए प्रामाणिक व्यक्ति के हाथ में सौपे गए अनुदान असंख्य गुणा होकर देने वाले के पास लौटते है, क्या इसे प्राणायाम के लाभ ऐश्वर्य में गिना जाए

  • जी गिना जा सकता है, हम समाज के लिए बडा काम करे
  • जो भी हमें मिला है, समाज से ही मिला है तो उनका पैसा उनके हित में ही खर्च होना चाहिए
  • यदि बाह्मण निजी लाभ के लिए दान लेता है तो उसका तेज नष्ट होता जाता है तथा वाणी का प्रभाव भी कम होता जाता है
  • आध्यात्म को विक्रय केंद्र नही बनाया जाता है, जब से आध्यात्म विक्रय केंद्र बना तब से भारत का तेज नष्ट हुआ
  • शिष्य ने जब अपना दिया तो शिष्य का शिष्य को लौटाए जैसे वामन अवतार में राजा बलि ने तीनो लोक का सब कुछ दे दिया तथा फिर भगवान विष्णु ने पूरा पाताल वापस दे दिया तथा बाकी दो लोक देवताओं को दिया और कहा कि तुम देवताओं का सहयोग करो
  • भगवान राम ने सब विभिषण को लौटा दिए
  • गुरुदेव ने कहा कि जिन्होंने गुरुदेव को दिया, उनको गुरुदेव ने 100 गुणा दिया
  • साधको का दिया अनुदान उन्ही के निमित्त लौटना चाहिए
  • अपरिग्रह का कडाई से पालन करना होता है
  • साधक को अपरिग्रही होना पड़ता है

कृपया सहित कुंभक और केवल कुंभक को स्पष्ट कर दीजिए।

  • सहित -> जिसमें रेचक व पूरक प्राणायाम के लिए करना पड रहा हो
  • रेचक – पूरक करते करते जब नाड़ियां शुद्ध हो जाती है तो गहरे ध्यान में पता नही चलता है कि वह व्यक्ति सांस ले रहा है या छोड रहा है तथा नाक के पास रुई भी रखेंगे तो भी नही हिलेगा तथा फिर भी वह जीवित है तब उसके लिए पूरक कुंभक सिद्ध हो गया तथा नाड़ियां बिल्कुल शुद्ध हो गई
  • शरीर की सब नस नाड़ियां त्वचा / चमडे के बाहरी Layer पर खुलते है तब साधक अपनी बाहरी त्वचा पर खुलने वाली नस नाड़ियो से सीधे प्राण लेने लगता है, तब गहरे ध्यान में शरीर के सभी क्रिया कलाप शांत होने लगते है
  • केवली प्राणायाम ऋषि तब करते है जब वे 4 महीने फ्रिजीकरण में जाते है, चारो और बर्फ में दबे बिना रेचक व पूरक के चक्रो के माध्यम से, Thought के माध्यम से सास / प्राण लेते है
  • भूख प्यास को मिटाने के लिए सास ले रहे है और आकाश ही अपने शरीर को मान लिया जाए तो आकाश में हवा दौड ही रही है तथा धीरे धीरे चक्रो का जागरण करते करते ज्ञान भी बढ़ता है, नाड़ियां भी शुद्ध की गई है तो उस समय बिना रेचक, बिना पूरक व बिना कुंभक के प्राणायाम हो रहा है तथा यह एक सहज स्थिति है तथा साधक सोहम् भाव में आता है

केवली कुंभक में बिना रेचक, बिना पूरक तो ठीक है परन्तु कुभंक तो लगाना ही होगा

  • कुंभक में बल नहीं लगाना, केवल सोचने मात्र से ही कुभंक सहज ही हो जाएगा
  • सास खीचने के बाद, रोकने के लिए तथा सास छोड़ने के बाद, लेने के लिए बल लगाना पडता है, जब व्यक्ति खाएगा तभी विसर्जन करेगा जब खाएगा नही तो विसर्जन की भी आवश्यकता नहीं
  • जब हम 15 दिन जलाहार पर थे तो अचानक 6वे दिन आंतो में Heat पैदा करके मल निकला फिर आँतो में जब बिल्कुल सफाई हो गई तब उसके बाद कुछ नही निकला तब केवल जल के माध्यम से ही प्राण लेते रहते थे

चेतन, अचेतन व सुपरचेतन में से सुपरचेतन क्या है ?

  • सुपरचेतन को श्री अरविदों ने अतिमानस कहा है
  • विज्ञानमय कोश सुपरचेतन वाला हिस्सा है
  • आनन्दमय कोश, सुपरचेतन वाला साधना है
  • इस अवस्था में अहम जगतवा शकलम शून्यम की स्थिति में व्यक्ति आ जाता है
  • चेतन मन संसार के बारे में सोचेगा परन्तु जब ऋषियो ने यह साबित कर दिया कि संसार है ही नहीं तो जीवन भर की भौतिक कमाई सब भूसी के समान व्यर्थ थी
  • आत्मा सुपरचेतन है तथा इसके जागरण का प्रयास हमें करना चाहिए
  • यदि Brain में देखे तो Occipital Lobe व Parietal Lobe वाला Dark Area इस सुपरचेतन का आता है
  • अवचेतन पर भी नियंत्रण नहीं है जो Heart Beat या सांसो को चलाते रहते है
  • सुपरचेतन मन पर ईश्वर की सत्ता रहती है तथा वह अपने ढ़ंग से जब काम लेना होता तब हमसे करवा लेता है, वहा समर्पण केवल कार्य करता है, ईश्वर से तालमेल बढ़ता जाएगा तो हमारी शक्तियां भी बढ़ती जाएगी
  • उपासना समर्पण योग में यही काम आता है तथा यह सब हमें समर्पण से मिलता है

सुपरचेतन या फ्रिजिकरण शब्दों में आधी हिन्दी व आधी अंग्रेजी क्यों दी गई

  • फ्रिजीकरण = अपने शरीर की उम्र बढ़ाने के लिए किया जाता है
  • आधी हिन्दी व आधी अंग्रेजी = हिंगलिश है तथा अभी वर्तमान समय में यह हिन्दी का हिस्सा बन गया है, इन शब्दावलियो का उपयोग किया जाता है
  • फिजीकरण शब्द का गुरुदेव ने भी उपयोग किया
  • समय के साथ साथ कुछ अंग्रेजी के शब्द भी हिन्दी में दीक्षित हो गए

रावण बहुत ज्ञानी था परन्तु उसका दुर्गति हुआ क्योंकि वो ज्ञान को नही पचा पाया तो ज्ञान को कैसे पचाया जाए

  • ज्ञान को Practical से पचाया जाता है
  • पंचकोश साधना ही Practical है
  • रावण ने विज्ञानमय का Practical / साधना नहीं किया, वह केवल मूलाधार स्वादिष्ठान, मणीपुर तक रहता था, इसका संबंध स्थूल शरीर से है
  • मनोमय कोश में भी पकड बना लिया था तो विद्वान बन गया था, दस महाविद्यायों का धनी बन गया था,
  • विज्ञानमय, आनंदमय तक नहीं गया, विज्ञानमय में सहृदयता बढ़ती है, वहा तक जाता तो अपनी सोने की लंका भी बाट देता
  • पंचकोश की साधना में कुछ दूरी तक पहुंचा था तथा वहा तक बल बढ़ा लिया, ज्ञान बढ़ा लिया परन्तु भाव संवेदना नही बढ़ाया तथा उसकी साधना नहीं किया, उसकी माँ भी यह नहीं चाहती थी तथा चाहती थी कि वह असुरता ना छोड़ें

परन्तु रावण के पास अतिइंद्रिय क्षमता तो थी तथा अतिइंद्रिय क्षमता विज्ञानमय कोश में मिलती है

  • विज्ञानमय कोश की अतिइंद्रिय क्षमता अलग होती है, रावण की भौतिक जगत वाली अतिइंद्रिय क्षमता विकसित थी
  • विज्ञानमय कोश की अतिइंद्रिय क्षमता राम जी के पास थी
  • अतिइंद्रिय क्षमता भौतिक जगत व आध्यात्मिक जगत की अलग होती हैं
  • शरीर की / पदार्थ की अतिइंद्रिय अलग होती है जैसी विवेकानंद के पास थी, उन्होंने बताया था कि स्टील Plant के लिए कहा पर Raw Material की अधिकता है

क्या फ्रिजिकरण में नाड़ियां व Heart दोनो रुक जाते है

  • पूरा शरीर फ्रीज हो जाता है तथा प्राण केवल रहता है तो चक्र केवल काम करेगा
  • प्राण भी व्यान में जाकर Criniel Region में इक्कठा हो जाएगा तथा वह चक्रो के बीच में अपना काम करता रहेगा
  • फिर भी ऋषि जहा भी चाहे वहा पर अपने प्राण को इक्कठा रख सकता है
  • संत हरदास भी इसमें Expert थे, वे कभी भी अपनी Heart Beat रोक देते थे
  • परकाया गमन वाली विद्याए भी पहले कई लोग उपयोग करते थे, शंकराचार्य के गुरु ने भी उन्हें यह विद्या सीखाई
  • गुरु के उपर रहता है कि किस शिष्य को अपनी विद्या देनी है, वे सुपात्र की खोज करते है
  • देवता पितर ऋषि ये सभी विक्षिप्त घूम रहे है तला ये सभी हमसे अधिक लालायित है अपनी सिद्विया सुपात्र को देने के लिए
  • राक्षस भी इसी ताक में रहते है कि कब नकारात्मक विचार आए और वे अपना काम करा ले
  • यहा अंतरिक्ष में यह सब चल रहा है, मनुष्य तो भोला भाला है
  • विज्ञानमय में पहुंचने के बाद फिर लौटकर नहीं आते

नागा साधु, तांत्रिक साधना करते है या कुछ अलग साधना करते हैं

  • विशुद्ध तांत्रिक नागा साधु बहुत कम मिलेगे
  • असली नागा साधु, Rigid नही होते, वे वस्त्र के साथ या बिना वस्त्र के भी रह सकते हैं तथा जरूरी नही कि भस्म लपेटे
  • आज के नागा जो बिना वस्त्रों के तथा भस्म लगाकर रहते है, वे युग के अनुरूप नहीं है
  • हमारे गुरुदेव भी अवधूत तांत्रिक होते हुए भी सामान्य आदमी की तरह जीए 🙏

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