पंचकोश जिज्ञासा समाधान (08-08-2024)
आज की कक्षा (08-08-2024) की चर्चा के मुख्य केंद्र बिंदु:-
प्रश्नोपनिषद् में आया है कि जिस पुरुष में 16 कलाएं उत्पन्न होती है वह इस शरीर में ही विद्यमान है तो 16 कलाएं शरीर के भीतर कैसे विद्यमान है और इसे जागृत कैसे किया जाएं
- यत बहाणडे तत् पिण्डे
- जो भी बह्माण्ड में हम देख रहे है वह सब इस शरीर के भीतर भी है, Nano Chips में भी बड़ी बड़ी चीजे आ सकती है, आदमी के भीतर संसार की सारी चीजे है इसलिए ऋषि शरीर के भीतर प्रवेश करके बह्माण्ड के सब रहस्यो को जान गए
- बह्म को जब संसार की रचना करनी थी तथा उनके सिवा कोई और तत्व नही है, वो निराकार व आकाश की तरह है, आकाश ही उनका शरीर है, उसे हम चिदाकाश भी कहते है, उनके भीतर High Density है व अथाह ज्ञान है , वे अपने भीतर से ही सारे 16 तत्व निकाले
- एक किरण या एक परमाणु नही दिखेगा परन्तु जब वे एकत्रित हो जाएगे तब उनका स्वरूप दिखने लगेगा
- ईश्वर ने अपने भीतर से पहला तत्व प्राण निकाले, प्राण एक प्रकार का ऐसा Energy है जिसमें ज्ञान घुला है तो इसी First Phase के निर्माण को एक कला कह दिया गया, उसी को क्षीर सागर या हिरण्यगर्भ (प्रकाश) निकला भी कहा गया उस प्रकाश में ज्ञान(चेतना) घुला था उसे प्राण कहा गया
- फिर दूसरा तत्व श्रद्धा निकाला जो सभी तत्वों को आपस में जोडता है, यही दूसरी कला है
- फिर श्रद्धा से पांच महाभूत तत्व उत्पन्न किए
- इनसे फिर इंद्रिया बनाई तथा फिर इंद्रियों को Control करने के लिए मन बनाया, फिर मन को मजबूत करने के लिए अन्न बनाया फिर अन्न से वीर्य बनाया तथा वीर्य को पकाने के लिए तपस्या की जरूरत पडी फिर संसार को ध्वनियो से Control करने के लिए मंत्र बनाए, मंत्रो से वेद बनाए व फिर उनसे तरह तरह के लोक बनाए तथा फिर लोको के नामकरण रूप में जानवर पक्षी बनाए
- शरीर के भीतर यदि हम Refine कर लेगे तो बाहर की तरंगो का लाभ लेगे तथा बाहर की उर्जा से आदान प्रदान शुरू हो जाएगा
- बाहर से अच्छे प्रसारण आ रहे परन्तु TV Set ही खराब है तो बाहर के अच्छे प्रसारण का लाभ नही मिलेगा, इसलिए अपने शरीर के भीतर के System को ठीक करना होगा यदि बाहर के प्राण का / तरंगो का लाभ लेना है
- बाहर के देवता तभी मदद करेंगे जब भीतर का देवता जगा हुआ हो यानि Receiver ठीक हो
रुद्राक्षजाबालोपनिषद् में पूछा गया कि रुद्राक्ष की किस प्रकार से उत्पत्ति हुई तब उत्तर मिला की त्रिपुरासुर को मारने के लिए जब आंखे बंद की तो वे समाधिष्ठ हो गए तथा शिव जी की (उनकी) आँखो से आसू गिरे तो इस उपनिषद् का नाम रुद्राक्षजाबालोपनिषद् क्यों पड़ा तथा आँखो से आंसू गिरने का क्या अर्थ है
- जाबाल ऋषि को यह ज्ञान मिला तथा यह ज्ञान उन्होंने हमें / विश्व को दिया, जहा हम जाबल गए थे, वही उनका क्षेत्र था जहा उन्होंने तपस्या की थी, जो ज्ञान उन्हें मिला, वहीं उन्होंने आगे बढ़ाया और उसी को ही जाबालोपनिषद् कहते हैं
- शिवजी को आंसु इसलिए निकला क्योंकि जब ईश्वर कुछ बनाते है तो उसे अपना सहयोगी नियुक्त करते हैं तो शिवजी ने 3 शरीर के लिए 3 वैज्ञानिक पैदा किए
त्रिपुरासुर = स्थूल सूक्ष्म कारण शरीर
फिर यही तीनो अपनी शक्तियों का दुरुपयोग करने लगे तो शिवजी की आँखो से आंसू आ गए जैसे यदि बच्चे नालायक निकल जाएं तो माता-पिता रोते हैं इसी को आसू कहते है - शिव जी ने उन्हे Help करने के लिए बनाया था परन्तु वे लोभ मोह अहंकार रूपी राक्षस बनकर स्थूल सूक्ष्म कारण शरीर का दुरूपयोग करने लग गए तो शिव जी को आंसू आ गए
- इन दिनों भी लोभ मोह और अहंकार के राक्षस प्रत्येक के शरीर में घुस गए हैं
- मारने के लिए शिवजी ने त्रिशुल (गायंत्री) निकाला
- एक ही गायंत्री मंत्र तीनो शरीरो को शुद्ध कर देता है यह तब संभव हो पाएगा जब यदि गायंत्री का दर्शन समझा जाए व पंचकोशो का Practical किया जाए तो तीनो राक्षस मारा जाएगा
प्रज्ञोपनिषद् में आया है कि इन परबह्म के भय से अग्निदेव तपते है, इन्ही के भय से सुर्यदेव तपते है, इन्ही के भय से अग्नि, वायु व पांचवे मृत्यु देवता दौडते है तो यह किसके भय से हो रहा है
- परबहम की शक्ति से सारा संसार चल रहा है
- जिनकी उर्जा से सारा काम हो रहा है यह आत्मा का भी Refined State है
- यदि आत्मा को जगा लिया जाए / जागृत है तो इंद्रियों के बेकाबू होने का कोई खतरा नहीं होता
- बह्म कभी सोते नहीं तथा बह्म में ही ऐसी शक्ति है
- क्रिया की प्रतिक्रिया होती है इसी को भय कहते है
- जिस उद्देश्य के लिए हम पैदा हुए क्या वह कार्य हम कर रहे है अथवा नही
- इसी उर्जा पक्ष को महामाया कहा जाता है
- विज्ञान की अनन्त सीमा है
- आत्मा के अनुशासन में यदि इंद्रियां नहीं रहेगी तो वह शरीर छोड़ देगा
- परबह्म की शक्ति = भय = ईशानुशासन
कभी प्राणिक उर्जा अधिक खर्च हो जाए तो Regain कैसे करे
- शरीर एक mobile की तरह समझे उसकी प्राणिक Energy को Regain करने के लिए उसे Charger में लगा दे
- Charging का दो तरीका है ->
- Rest लेकर या योगनिद्रा से
- प्रकृति भी अपने से Recharge करती है
- यदि हम Rest mode में भी कुछ कुछ सोचते रहेगे तो charging में दिक्कत होती है
- Mobile की Fast Charging के लिए या तो Mobile को sleeping Mode मे डालकर या Switch Off करके चार्ज करने से जल्दी चार्ज होता है
- जब जब थकावट हो तब तक Rest लेकर charge कर ले, इंतजार न करे नही तो थकावट अधिक हो जाएगी
- इस प्रकार प्रकृति अपने से चार्ज करती रहती है
- दूसरा तरीका यह है कि पाँचो तत्वों में से जिसकी भी कमी हो वह तत्व उस शरीर को दे तो भी वह शरीर Charge हो जाएगा
- भोजन से, प्राणायाम से, Positive Thought से, योगा से, भावनाओं से, स्वाध्याय से Energy Regain होता है
- सीढ़ी पर चढते समय हाफने लगे तो बीच में Rest ले नही तो अधिक थक जाएगे व गिर भी सकते है, जब-जब थकावट हो तब तब आराम करके अपने आप को चार्ज कर ले
- मौन होकर आत्मा का ध्यान कर ले
- अपने को चार्ज करने के बहुत सारे Process है
श्राद्ध तर्पण का मुख्य उद्देश्य क्या श्रद्धा का विकास करना है या मृतात्मा के कल्याण के लिए है या दोनो के लिए है
- यह दोनो के लिए है
- वेदो में श्राद्ध की परिभाषा मिलती है कि श्राद्ध किसे कहते हैं -> जो दिवंगत (जो जीवामाए स्थूल शरीर में नही है, प्रकाश के शरीर में है) हो गए, अब उससे प्रत्यक्ष बात कैसे करे
- यर्जुवेद का 19 वा अध्याय में केवल पितरो से बातचीत करने वाले सारे मंत्र है, पिण्ड दान में भी उन्ही मंत्रो का प्रयोग किया जाता है
- उसके (दिवंगत) लिए श्रद्धा व सदभावना की अभिव्यक्ति को श्राद्ध कहते है
- श्रद्धा एक ऐसा तत्व / Radiation है जो दिवंगत किसी भी लोक में कही भी रहेगा तो श्रद्धा वहा पहुंच जाएगी -> प्रेम स्नेह भाव संवेदना करुणा, ये सब तरंगे है
- शरीर छूटने के बाद वह देखता है कि हम किन गलतियो से मरे है, तब होश आता है कि अब यदि यह शरीर मिलेगा तो इसका दुरुपयोग नही करेंगे
- तर्पण के बाद 5 प्रकार का यज्ञ किया जाता है
- बह्मयज्ञ -> इसमें .ईश्वर से प्रार्थना की जाती है कि उनकी आगे की यात्रा शानदार हो, उसके आभामंडल की काली किरणे प्रेत योनि में ले जाती है, गांयत्री मंत्र उन काली किरणो को समाप्त कर White Energy देता है -> यदि शमशान घाट पर ही हम गायंत्री मंत्र से आहुतिया दे दे तो मृतात्मा का प्रेतत्व वही छूट जाता है, इतना ताकतवर गायंत्री मंत्र है
- बुराइयो को छोड़कर अच्छाई ग्रहण करेंगे यह देवयज्ञ कहलाता है, आंखें नही है फिर भी देखेगा क्योंकि आत्मा के नेत्रों से वह देखता है, देखने की शक्ति (दृश्याग्नि) जीवात्मा में रहती है
- भूतयज्ञ भी होता है -> चीटी कीडे मकोडे पशु पक्षी के लिए भी कुछ दिया जाता है, हो सकता है कि हमारे कुछ पूर्वज भी इन्हीं योनियों में गए हो, तो उनके प्रति श्रद्धा भाव रखा जाता है, इन्हें भी हम रुष्ट न करे तथा करुणा संवेदना बढ़ाए
- फिर Ecology (पर्यावरण) के लिए भी एक यज्ञ किया जाता है
- मनुष्य यज्ञ भी किया जाता है जिसमें स्कुल – कालेज – हस्पताल – रोड इत्यादि बनवा दे
- पिण्डदान भी पितरों के लिए किया जाता है जिसमे जौ तिल व देसी गाय का दुध दही घी इत्यादि मिला हुआ, यह स्वधा संज्ञक कहलाता है, यह सेवन करेगा तो प्रेतयोनि में नही जाएगा
- उनके छोडे हुए धन का कुछ हिस्सा समाज के लिए लगाएं, यदि उनके निमित्त नही किए तो वंश उत्पन्न करना बंद कर देगा
श्रद्धा से पितरो को दिए श्राद्ध का उत्तर किस रूप में समझ सकते है
- हम पाएगें की कभी कभी अनायास भाव से ही Help मिल जाता है
- पितर लोग प्रेरणा दे कर किसी की बुद्धि में प्रवेश करके कार्य करा देगें, तब हम ईश्वर शब्द का उपयोग करते हैं कि ईश्वर ने हमारी मदद की
- प्रेत नुकसान कर सकता है परन्तु यदि पितर तृप्त हो तो वे सम्पूर्ण परिवार को संरक्षण प्रदान करते है तथा बराबर निगरानी रखते है कि इस परिवार को कोई क्षति ना पहुंचाए
- ज्ञान विज्ञान देकर आगे बढ़ाते है व अदृश्य रूप में वे हमारी Help करते रहते है, उनकी तरंगो से हमें मदद मिलता है, सारा संसार तरगों का ही खेल है
प्रज्ञोपनिषद में सृष्टि की संरचना दो परस्पर विरोधी तत्वो से हुई है, जब हम गुरु या ईश्वर के प्रति विश्वास करते है तो एक अविश्वास भी आता है, ऐसा क्यों होता है
- परस्पर विरोधी = जड़ व चेतन है, दोनों से मिलकर शरीर बना है इसीलिए दोनों को प्यार करें
- जड़ तत्व से बना यह शरीर इसे स्वस्थ बनाकर रखे व ईश्वर के काम में लगाते रहे तथा आत्मा को भी चमकाते रहे
- श्रद्धा और विश्वास किसी न किसी पर तो करना होगा तो गुरु पर श्रद्धा कर उन पर सर्मिपत हो जाएं
- कृष्ण ने जो विचार दिए वह विश्व के हर व्यक्ति पर एक समान लागु होता है, उनकी बात मानेंगे तो फायदे में रहेंगे
- श्रद्धा व विश्वास को ही शिव पार्वती कहते है
- प्रेम यदि आदर्शों से विचार से करेंगे तो उसे श्रद्धा कहा जाएगा
- यदि अच्छा लग रहा ह तो इसे अपने व्यवहार में लाईये
- यह विरोधाभास तब तक होता रहेगा जब तक पूर्ण रूप से आत्म साक्षात्कार न हो जाए
- साधना में जल्दी भागना नहीं चाहिए बल्कि 3 दिन तो क्या तीन जन्म तक साधना करके अपने सुधार करने का हिम्मत रखना चाहिए
टूटा शीशा नही देखा जाता व टूटी मूर्ति की पूजा नही की जाती है इसका विज्ञान क्या है
- अपना सुन्दर चेहरा कुछ का कुछ दिखाई देगा
- अपने उपास्य के प्रति श्रद्धा भाव बनी रहे वह अटूट रहे इसलिए टूटी मूर्ति नही रखी जाती
- मूर्तिया आदर्श की बनाई जाती है तथा अपने आदर्शों को खंडित ना होने दें
- हमारी तस्वीर जो समाज में बनी है, उसे तोडे मत बल्कि और सुधार कर उत्कृष्ट बनाए
- यहां दर्शन विज्ञान अधिक रहता है
यज्ञ को वेदो में काम रूप कहा गया है इस का क्या आशय है
- यज्ञ से सभी कामनाए पूर्ण होती है
- जहा ज्ञान व परिश्रम मिला देंगे तो सारी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाएगी
- जो जो हम जीवन में चाहते हैं उसके लिए अपनी जानकारी बढ़ाएं व उसे प्राप्त करने का प्रयास करें, इसी को यज्ञ भी कहते है 🙏
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