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पंचकोश जिज्ञासा समाधान (07-08-2024)

पंचकोश जिज्ञासा समाधान (07-08-2024)

आज की कक्षा (07-08-2024) की चर्चा के मुख्य केंद्र बिंदु:-

योगशिखोपनिषद् में आया है कि ज्ञान के बिना योग कदापि सिद्ध नही होता और जन्म जन्म का ज्ञान संचित होने पर योग की प्राप्ति होती है तो यह कौन सा योग है

  • यह योग आत्मा व परमात्मा को जोड़ने वाला है
  • इसमें ज्ञान विज्ञान और ध्यान की जरूरत पड़ती है
  • पांचो कोशो के जो क्रिया योग बताए गए हैं वह इसी ज्ञान की प्राप्ति के लिए बताएं गए है
  • सभी प्रकार की योग साधनाओ का मुख्य लक्ष्य आत्म साक्षात्कार ही है
  • वहा न कोई भय है, न कोई रोग है, न कोई दुःख है, केवल शांति व आनन्द है, अन्य कुछ भी नहीं, उसी को परम सुख व परम आनंद भी कहते हैं
  • सारा कष्ट अज्ञान के चलते है, हम लोग सामान्य जानकारी को ही ज्ञान मान लेते है जबकि ऋषियो ने सामान्य जानकारी को ज्ञान नही कहा है
  • ज्ञान क्या है -> ऋषियों ने इसका उत्तर देते हुए बताया है कि संसार के प्रत्येक परिवर्तनशील वस्तु में एक अपरिवर्तनशील सत्ता / चेतना विद्यमान है उस अपरिवर्तनशील चेतना शक्ति के साथ Resonanace स्थापित करना ज्ञान कहलाता है, उस अवस्था में संसार में रहते हुए व्यक्ति स्वतंत्र रहेगा, निर्लिप्त रहेगा व मस्त रहेगा तथा उसने संसार मैं रहते हुए ईश्वर को पा लिया अब वह जीवन मुक्त कहलाएगा

साधना और उपासना मे क्या अंतर है

  • उपासाना (बह्म सायुज्यता) – ईश्वर से दोस्ती / अच्छाई से प्रेम
  • साधना (आत्मनियंत्रण) – ईश्वर के गुणों को अपने भीतर डालना तथा जैसे-जैसे ईश्वर के गुण हमारे भीतर बढ़ते जाएंगे तो यह साधना कहलाएगी

प्रश्नोपनिषद् में आया है कि आदित्य निश्चित रूप से बाहरी प्राण है, बाहरी प्राण का क्या अर्थ है

  • सूर्य जो बाहर दिख रहा है तो अपने पूरे सौर मंडल को वही प्राण दे रहा है
  • सुर्य प्राणों का फव्वारा बनकर प्रकट होता है, कल्पना करे कि सुर्य यदि Fuse हो जाए तो सारे के सारे ग्रह उपग्रह जो उसके चारो ओर घूम रहे थे वे सभी उस Black Hole रूपी सुर्य में प्रवेश कर जाएंगे व उनकी सत्ता नष्ट हो जाएगी
  • इसी प्रकार शरीर के भीतर के सूर्य को आत्मा कहते हैं
  • जगत के सभी प्राणियों के लिए आत्मा सुर्य ( आदित्य ) है
  • परमाणुओं के भीतर का सुर्य जो नाभी में स्थित है वहीं electrons को भी गति दे रहा है
  • प्राण का केंद्र मध्य में जो होता है उसी प्राण के केंद्र को सुर्य कहते है
  • जो सुर्य की आत्मा है वही हमारी भी आत्मा है, शरीर के भीतर 3 सुर्य होते है नाभी में (स्थूल शरीर का), हृदय में (सूक्ष्म शरीर का), बह्मरंध्र में (कारण शरीर का)
  • यह आदित्य रूपी बाहरी सूर्य तथा आत्मा रूपी अंतः सूर्य दोनों एक ही है, जो सुर्य की आत्मा है वही अपनी आत्मा है केवल Magnetic Field (Iohosphere) का अंतर भर है, गुण दोनो में एक ही है

प्रश्नोपनिषद् में फिर आया कि वह चाक्षुष प्राण को अनुग्रहीत करता हुआ उदित होता है, का क्या अर्थ है

  • चक्षु का अर्थ है कि उसमें Photo Receptor Cell लगे रहते है, आँखे खोलेंगे तभी बाहर रोशनी दिखाई देगा
  • नेत्रो से प्रकाश Receive होता है
  • बाहर के सूर्य और चंद्रमा के स्वरूप हमारे शरीर के भीतर हमारे दोनों चक्षु हैं

पृथ्वी का देवता प्राणी के अपान वायु को आकर्षित करता है, इन दोनो ध्रुवो के बीच का रिक्त स्थान आकाश ही समान वायु है, का क्या अर्थ है

  • पृथ्वी का देवता शरीर में मूलाधार चक्र है
  • शरीर में मूलाधार मे अपान का वास है
  • उपर में प्राण रूपी सुर्य से लेकर नीचे मूलाधार रूपी पृथ्वी के बीच में सब आकाश ही आकाश है
  • सुर्य की किरणो का Receiver, अपान (पृथ्वी तत्व) है

इन दोनों के बीच का रिक्त स्थान आकाश ही समान वायु है तो यहा आकाश को समान वायु क्यों कहा गया

  • क्योंकि यह हर जगह समान रूप से फैला हुआ है, परमाणुओं में भी आकाश है तभी तो उनके भीतर Electron व अन्य Particals भी दौड रहे है
  • कही भी रिक्त स्थान Solid रूप में नही है, सब जगह समान रूप से ही फैला है, बाहर के आकाश और भीतर के आकाश की कोई सीमा नहीं है, शरीर की आकृति देखकर हमें यह भम्र हो जाता है परन्तु यहा वास्तव में आकाश ही आकाश है

बाह्य वायु व्यापकता में समान होने से व्यान है का क्या अर्थ है

  • बाह्य वायु का अर्थ यहा प्राण से है
  • गतिशील प्राण भी हर जगह दौड रहा है उसे प्राण वायु भी कहा जाता है

यहा प्राण भी सब जगह है व्यान भी सब जगह है समान भी सब जगह है इसका निचोड क्या है

  • कहने का अर्थ है कि यहा कोई भी स्थान रिक्त नही है, यह आकाश खोखला नहीं है इसमें प्राणिक एनर्जी (Ether) भरी पड़ी है, इसी को प्राण कहते है
  • यहा उपनिषदो में जिस ऋषि ने जैसा देखा उसका वर्णन उसी रूप में अपनी शब्दावलियों में कर दिया

प्रश्नोपनिषद् में ॐकार के लिए आया है कि जो साधक ॐ कार वाले एक मात्रा का ध्यान करता है उसकी सहायता से वह अति शीघ्र इस जगत को प्राप्त कर लेता है, वह बह्मचर्य तप व श्रद्धा से सम्पन्न होकर महिमावान होता है, दो मात्रा का ध्यान करने वाला यर्जुवेद के सोमलोक में जाते है तथा तीन मात्रा का ध्यान करने के बाद ऋग्वेद के सुर्यलोक में जाया जाता है तो इसे यहा किस प्रकार समझा जाए

  • एक मात्रा = Physical Body (स्थूल शरीर)
  • दो मात्रा = (स्थूल + सूक्ष्म) शरीर -> केवल स्थूल शरीर का ही हम ध्यान न रखे अपितु मन को भी शानदार बनाए ताकि यह मन संसार के आकर्षण में बह ना जाएं / फंसे नहीं -> दोनो को मजबूत बनाए
  • तीन मात्रा = (स्थूल + सूक्ष्म + कारण) शरीर -> कारण शरीर आत्मा के लिए आया है -> तीनो शरीरों को चमकाना तीन मात्रा कहलाएगा
  • पृथ्वी पर सब जीव टहलने वाले चुम्बक है
  • सब मनुष्यो का Resultant Mag Field को ऋक कहते है

इतना समय से साधना चल रहा है परन्तु फिर भी कुछ महसूस नही हो रहा, क्या कारण हो सकता है

  • महसूस न होने का कारण होता है -> साधना को हम केवल अध्यन भर मान रहे है तथा Practical कम हो रहा है या Practical उथला हो रहा है ‘Practical गहराई चाहिए
  • पानी नीचे 150 feet पर है पर हम केवल 2 फीट की खुदाई अनेको जगह कर रहे है
  • एक बात यह भी देखे क़ि साधना में कम से कम घाटा नही गया है तो हमे खुश रहना चाहिए तथा गहराई तक जाने का प्रयास करते रहना चाहिए
  • 24 घंटे Top Priority पर अभी आत्मा नही है अनेक विषय मन में एक साथ चलने के कारण उर्जा का बहाव वहा भी अन्य विषयो की ओर चला जाता है तो वह उर्जा नहीं मिल पाती जिससे आत्मा को पाया जा सरे जबकि Retirement के बाद आत्मिकी में अधिक ध्यान देना चाहिए

बुद्धि व विवेक क्या अलग अलग है या एक ही है, इसे कैसे समझे

  • यदि ये दो शब्द एक साथ आया है तो इन्हे नामकरण विज्ञान के अनुसार समझना होगा
  • बुद्धि = सामान्य जानकारी
  • विवेक = दूरदर्शिता
  • जैसे कोई शराब / सिगरेट पी रहा है तो बुद्धि से उनमें से अपने पसन्द की ले रहा है परन्तु विवेक उसे यह बताएंगा कि हम शराब / सिगरेट का उसके शरीर मन आत्मा पर क्या प्रभाव पडेगा, तो विवेक उसे दूरदृष्टि प्रदान करेगा
  • एक (बुद्धि) पदार्थ विज्ञान को महत्व देगा, प्रेय को बुद्धि पसन्द करता है
  • दूसरा (विवेक) आत्मिकी को महत्व देगा, श्रेय को विवेक पसन्द करता है
  • संसार परिवर्तनशील है व आत्मा अपरिवर्तनशील है जो समझदार होगे वे दोनो का Balance रखेंगे
  • संसार में संसारिक कार्य बुद्धि से होगा परन्तु मौलिक उर्जा आत्मा से ही मिलता है

देखा जाता है की ऐश्वर्य की प्राप्ति व्यवहारिक प्राणायाम से जल्दी होता है कृप्या प्रकाश डाला जाय

  • ऐश्वर्य बाहर की उपलब्धि को ही कहा जाता है
  • बाहर की मिली उपलब्धि को पचाने के लिए आत्म साधना करनी पड़ती है
  • धन अधिक मिलने पर कितने पागल हो जाते है व अपना ही अहित कर डालते है
  • साधना से सिद्धि मिलने पर अपने मान सम्मान में फंसकर अपनी आगे की प्रगति को ही रोक देगा
  • संसारिक उपलब्धियों को पचाने के लिए आत्मसाधना किया जाता है
  • अधिक पढ लिख गये या कथावाचक बन गए तो अपने मान सम्मान की कामना करने लगे तब भी आगे की प्रगति रुक जाएंगी
  • प्राणायाम से जो बल मिला उसे आगे की यात्रा में मन को सुधारने में लगाए, फिर मानसिक स्तर मजबूत करने के बाद उस मन की शक्ति को विज्ञानमय कोश पार करने में लगाए
  • हर सांसारिक उपलब्धि / ऐश्वर्य के पीछे एक दुःख साथ सम्मिलित रहता ही है

ऐतरयोपनिषद् में आया है कि जिस प्रकार स्त्री के अपने ही शरीर के अंग होते है उसी प्रकार पुरुष द्वारा संचित वीर्य भी स्त्री से तादात्मय स्थापित कर लेता है, वह स्त्री को किसी प्रकार का कष्ट नही पहुंचाता, स्त्री अपने उदर में स्थापित पति की आत्मा का पोषण करती है, में आत्मा का क्या अर्थ है

  • यहा आत्मा जीवात्मा के लिए आया है
  • जीवात्मा, जिसे जन्म लेना है, शरीर छोड़ने पर जीवात्मा एक सूक्ष्म Partical के रूप में Bioplasmic Body के साथ रहता है तथा वह Deep Sleep में चला जाता है, अब जब उसे अपने कर्मफल के अनुसार नए शरीर में जन्म लेना है तो उससे पहले वह वर्षा के साथ पौधो में फिर पौधो से भोजन के रूप में मनुष्य के शरीर में तथा फिर शुक्र व रज के रूप में अंडाश्य में जाकर एक स्थूल शरीर का निर्माण करता है तब भी उस आत्मा को कभी कष्ट नही होता, जब Ovum में शुक्राणु Travel करता है तब दोनो का गुण आता है, मूलाधार चक्र भी साथ में काम करता है
  • स्थूल शरीर के Complete cell बनाने के लिए 23 – 23 क्रोमोसोम का जोडा मिलाकर कुल 46 चाहिए, यही आधा स्त्री आधा पुरुष का रूप है, अब जाकर शरीर का निर्माण होगा
  • मनुष्य शरीर को ध्यान से देखे तो लगता है कि किसी दो हिस्से को जोडकर एक बनाया गया हो जैसे दाल के दो हिस्से से चना बना हो

अपनी Energy को Cosmic Energy से Allign करने के लिए डर को प्यार में, Doubt को Trust में, Anger को Forgiveness में बदलते है तो इसे कैसे अपने जीवन में अपनाया जा सकता है

  • इसे खेलना कहेंगे, जैसे समुद्र में नहाते समय लहरे पर लहरे आती है जो लहरो से खेलना जानता है वह लहरो का आनन्द लेता है
  • अपने को मरने से [ संसार के थपेड़ो से ] बचाना है तो खेलने का तरीका आना चाहिए
  • आध्यात्मिक तरीका से अपने को बचाकर तथा -Ve प्रभाव से अपने को निष्प्रभावी बना सकते है
  • आत्म साधक आत्मा में स्थित हो जाता है तथा वहा से सारा काम संसार से प्रभावित हुए बिना कर पाता है, इन Vibration को झेलने की ताकत आत्मा में है
  • सारा संसार तरंग से बना है और मन से आप तरंग निकाल सकते है, तरंग को तरंग से काटना होता है
  • इसी तरंगो से खेलने की प्रक्रिया को गुरु बताते है
  • इसी आध्यात्मिक साधना की जानकारी नहीं है इसीलिए व्यक्ति इतना परेशान हो रहा है
  • लोभ मोह अहंकार के थपेडो में अपना अस्तित्व समाप्त हो जाता है, आत्मा में रहकर / आत्म साधना कर इन सब से प्रभावित हुए बिना रहा जा सकता है 🙏

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