पंचकोश जिज्ञासा समाधान (04-11-2024)
आज की कक्षा (04-11-2024) की चर्चा के मुख्य केंद्र बिंदु:-
जाबालदर्शनोपनिषद् में क्या प्राणकर्षण प्राणायाम के विषय में आया है तथा घ्राणेद्रिय के अग्र भाग में धारण करने से प्राण वायु पर विजय प्राप्त हो जाती है, नाभी में जब स्थापित करते हैं तो यहा अग्नि तत्व के चलते रोगों का शमन होता है तथा जब पैर के अंगुठे में जब ध्यान करते है तो शरीर में हलकापन महसूस होत है, का क्या अर्थ है
- हल्कापन तब महसूस होगा जब शरीर में आकाश तत्व का ध्यान करेंगे तब लगेगा कि शरीर हवा में उपर उठ रहा है
- तथा भारी तब होगा जब पृथ्वी से अपने को जोड लेगे तब अपने को जमीन में धंसते हुए अनुभव करने लगेगे
- इस प्रकार की सजगता तत्वों पर नियंत्रण करेगा
- इसी के आधार पर गरिमा अणिमा लघिमा महिमा सिद्धिया (भारी होना / हल्का होना) प्राप्त की जाती है
- साधक इसी को सिद्ध कर लेते थे, जैसे अंगद ने अपने को पृथ्वी के साथ तालबद्ध कर लिया कि पृथ्वी को उठाओ तभी हम उठेंगे
- व्यान प्रत्येक जोडो पर रहता है तथा इसका स्थान जालान्धर में है जहा से Nerve 16 स्थानो (जोडों) तक जाती है
- बुखार होने पर यदि जोड़ों पर कचरा फंसा है तो दर्द होगा अगर कचरा नहीं है तो कमजोरी भर होगा परन्तु दर्द नहीं होगा
- जब हमारा कोई Accident नहीं हुआ था तब बद्धपदमासन आधा घंटा तक करते थे
- नासिका पर त्राटक करने से पृथ्वी तत्व (गंध) पर नियंत्रण हो जाएगा, घृणा समाप्त हो जाएगी, तब मन पर भी नियंत्रण होने लगता है
- नासिकाग्र पर त्राटक करने से पृथ्वी तत्व पर नियंत्रण होने लगता है, सहिष्णुता (पृथ्वी का गुण) बढने लगता है
- हम दूसरो के Disturb करते रहने से भी प्रभावित नहीं होंगे, क्षमाशीलता बढ़ती है, यह भी पृथ्वी का गुण है, Shock Absorber बन जाते है
- सभी का नियंत्रण Brain से ही होता है
ऐतरेयोपनिषद् में आया है कि उस विराट पुरुष को देखकर ईश्वर ने संकल्प पूर्वक तप किया, उस तप के प्रभाव से पुरुष के शरीर में सर्वप्रथम एक अंडे की भांति मुख्य छिद्र प्रकट हुआ, मुख से वाक इंद्रिय और वाक से अग्नि प्रकट हुई, नाक के छिद्र प्रकट हुए, नाक के छिद्रों से प्राण और प्राणों से वायु उत्पन्न हुई, नेत्र उत्पन्न हुए, नेत्रो में चक्षु , चक्षु से आदित्य प्रकट हुआ, कान प्रकट हुए, कानो से श्रोत प्रकट हुए और श्रोत से दिशाओं का प्रादुर्भूत हुआ . . . जननेद्रिय से वीर्य और वीर्य से आप: की उत्पत्ति हुई, ईश्वर विराट भी है तथा विराट ही ईश्वर है तो विराट ने ईश्वर को पैदा किया . . . यहा आपः को किस अर्थ में लिया जाएगा
- आपः का स्थूल में अर्थ जल तत्व
- सूक्ष्म में यही आपः (वीर्य) ज्ञान में बदल जाएगा तथा फिर यही आपः -> भाव संवेदना आत्मज्ञान में बदल गया तो कारण शरीर का आपः हो गया
- प्रत्येक की सत्ता तीन स्तर स्थूल सूक्ष्म और कारण रूप में विद्यमान है क्योंकि ईश्वर सब में विद्यमान है तथा ईश्वर सर्वव्यापी भी है
- अपना विवेक बुद्धि हर समय उपयोग करना चाहिए क्योंकि प्रत्येक शब्द के अनन्त अर्थ होते है, हमें समय व परिस्थिति के अनुरूप सही अर्थ उपयोग करना चाहिए
- हर शब्द में ईश्वर है और ईश्वर का एक नाम अनन्त है
- कमल = ज्ञान
- ज्ञान की वर्षा से मोह रूपी शरीर गलता है
- ईश्वर ही विराट व विराट ही ईश्वर है -> एक से अनेक बन गए, फिर समेटने के समय अनेक से एक हो गए
- यहा कोई नही लड़ रहा, ईश्वर ही ईश्वर से खेल रहा है, यही आनन्दमय कोश है, इसे जगाना है
पृथ्वी तत्व स्थिर तत्व है तो क्या यह कह सकते है कि आलस्य के आने से पृथ्वी तत्व बढ गया है
- कहा जा सकता है
- पृथ्वी में जड़त्व होता है, शरीर में पांचो तत्व गतिशील रहते है व उपर नीचे होते रहते है
- अपने पर नियंत्रण करने का अर्थ है कि हम अपनी इच्छा से तत्वो को घटा या बढ़ा सकते है
- आलस्य आ रहा है तो अग्नि तत्व बढ़ा दे, तो आलस्य भाग जाएगा, इसी प्रकार अन्य तत्वों पर नियंत्रण कर सकते है
योगवशिष्ठ में आया है कि इस जगत में साध्य वस्तु तीन तरह की होती है -> उपादेश, हेय तथा उपेक्षा, जो वस्तु परम्परा से सुखदायक होती है, वह उपादेश होती है, का क्या अर्थ है तथा इनमें से कौन सी भौतिक है व कौन सी आधात्यत्मिक है
- कुछ ऋषि अपनी भाषा में बात करते थे
- पिछला पीढी से कुछ आता है, सब कुछ अपने काम का नहीं है, तो अपनी विवेक बुद्धि से कुछ अपना ले तथा कुछ छोड दे -> यही उपादेश है
- नई पीढी की सारी बाते अनसुनी न करे, पुराना कुछ छोड़ना है तथा नया कुछ ग्रहण करना है
गायंत्री महाविज्ञान में आया है कि चतुरता – मुर्खता, सदाचार – दुराचार, नीचता – महानता तीव्र बुद्धि – मंद बुद्धि, सनक – दुरदर्शिता, खिन्नता – प्रसन्नता -> ये आकाश तत्व की स्थिति पर निर्भर करता है तथा व्यान प्राण आकाश तत्व प्रधान है, व्यान के प्रबुद्ध होने से रितम्बरा प्रज्ञा जगती है, मन की नोक पर प्राण चलता है, सभी इंद्रिया आकाश तत्व से प्रभावित होती है, जो जीवन हम जीते है, अपने जीवन में Routine में क्या ध्यान रखा जाए जिससे व्यान प्रबुद्ध होता रहे
- Routine में यह किया जा सकता है कि जो भी हम काम करे, उसमें समझदारी / दूरदर्शीता का उपयोग करें तो व्यान जगेगा
- दुरदर्शी विवेकशीलता को ज्ञान कहते है
दो Variety का मन होता है - शुद्ध मन – आत्मिक भाव में रहेगा, इसे व्यान / कृष्ण कहेंगे
- अशुद्ध मन = शरीर भाव में रहेगा, इसे धनंजय / अर्जुन कहेंगे
- एक वेद (लोकाचार) है, एक उपनिषद् (आत्माचार) है
- दोनो का ज्ञान रखना जरूरी है
- केवल जान पक्ष नहीं अपितु कुण्डलिनी को भी जगाना होगा, केवल शिव नहीं शक्ति को भी जगाना होगा
- शक्ति के बिना शिव, शव है
व्यान अन्य 4 प्राणों को नियंत्रित करता है तो कभी कभी अन्य प्राण इसके अधीन कार्य क्यों नही करते
- इसका अर्थ है कि व्यान पर काम नहीं किया गया, अर्जुन भी कृष्ण की बात हर समय नही मानता था
नेति नेति क्या है
- एक नेति नाक में पानी बहना होता है परन्तु यहा इसका अलग अर्थ है
- ना + इति = जितना हम बोल रहे है, ईश्वर इससे कही अधिक है तथा इतना हम नहीं बोल पा रहे है
कनाडा Movie में संस्कार का बहुत प्रभाव पडता हैं, संस्कारों पर प्रकाश डाले
- संस्कार, उत्कृष्टता के क्षेत्र में लिया जाता है
- किसी भी साधन को उत्कृष्ट करना संस्कार कहलाएगा
- खेत को घास फूस निकालकर तथा उर्वरक डालकर संस्कारित करना होता है
- पुरानी आदतो से छुटकारा पाने के लिए भी संस्कार किया जाता दे
- चेतना को परिष्कृत के लिए भी संस्कारित किया जाता है तथा इसलिए ऋषियों ने संस्कार का एक विज्ञान दिया तथा कुछ सकंल्प लिया और कुछ सुत्रों का अभ्यास करवाया
- किसी भी क्रिया को बार बार Interest लेकर करेंगे तो उसकी जड़े अवचेतन मन में चली जाएंगी तथा अपने control से बाहर हो जाती है तथा contol करना मुश्किल हो जात है
- इसलिए पातंजलि ने कटा है कि चित्त को वृत मत बनने दो, आदत न बनने दे
जो कार्य हम रस लेकर करते हैं तो वही हमारे संस्कार बनते हैं और वह गहराई में अवचेतन मन में चला जाता है तो यदि कोई व्यक्ति रस लेकर कार्य (शराब पीना) नहीं कर रहा तो क्या वह उसके संस्कार नहीं जाएगा
- नहीं जाएगा तथा वह बंधन में भी नही फंसेगा
- जैसे कृष्ण ने कहा कि हम हथियार नहीं उठाएंगे परन्तु उठा लिए तो वे किसी बंधन में नही पड़ते तथा आदर्श की रक्षा के लिए जिसमें सबका कल्याण छिपा हो, वही कार्य करते हैं
- वे आत्मा का हित्त देखते है कि आत्मा का किसमे हित्त किसमें है, तो हमें Rigid नही रहना चाहिए
- दुश्मन ने कैसे प्रहार किया तो उसी के अनुरूप उसको उत्तर देना चाहिए
- पाप पुण्य की रेखा देखी जाती है कि वह आत्मा के हित में है या नहीं 🙏
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