पंचकोश जिज्ञासा समाधान (02-12-2024)
कक्षा (02-12-2024) की चर्चा के मुख्य केंद्र बिंदु:-
छान्दग्योपनिषद् में आया है कि अपराहन के पश्चात और सुर्यास्त से पहले आदित्य का रूप उपद्रव है, सभी वन्य प्राणी उस रूप के अनुगामी है, अतः वे पुरुष को देखकर भय से युक्त होकर गुफा में चले जाते है, यहा पर उपद्रव शब्द का अर्थ व पुरुष को देखकर भय से युक्त वाक्य में पुरुष कौन है
- यदि हम सविता के तीन स्वरूपो को देखे
- सुबह का सविता जो कि स्वर्णिम होता है -> वह गायंत्री का चंचल स्वरूप बताया गया हैं तथा इसे बह्मी गायंत्री भी कहा जाता है
- उस समय साधक यदि साधना करता है तो उसे बह्य ज्ञान की प्राप्ति होती है
- जब दोपहर का सूर्य अपनी प्रखर अवस्था मे आता है तो यह शक्ति की तीक्ष्ण अवस्था होती है, जब शक्ति अपनी तीक्ष्ण अवस्था में आती है तो भय लगता है
- ईश्वर की बह्म की तीव्र शक्ति को ही पुरुष कहा गया है
- यहा सामान्य पुरुष न लेकर विराट पुरुष की शक्ति से लिया गया है
- प्राण सायः काल में अपनी परिपक्व अवस्था में आ जाता है -> ये सब प्राण की ही सुबह दोपहर व शाम के समय के अनुरूप अलग अलग अवस्थाएं है
- गायंत्री हृदयम में भी इसका वर्णन मिलता है
- जैसे अर्जुन श्री कृष्ण के विराट पुरुष वाले रूप को देखकर भय से कापने लगे तथा फिर अर्जुन के आग्रह करने पर कृष्ण के चर्तुभुज रूप को देखकर शांत हो गए
जब मृत्यु हो जाती है तब भी समय हमारा आँख काम करता है तभी वह आँख मरने से पूर्व निकालकर किसी अंधे व्यक्ति को भी लगाया जा सकता है, आँखो में गांधारी व हस्तजिवा नाडी की क्या भूमिका है
- यह एक Physical Replacement है
- जब हमारी मृत्यु होती है तो भी हमारे सभी अंग जैसे आँखे, kidney, Liver तत्क्षण ही Damage नहीं होते, धीरे धीरे होते है तथा मृत्यु के बाद भी इन्हें निकालकर इनका Transplant करके उपयोग किया जाता है
- धनंजय प्राण शरीर को मृत्यु के बाद में गलाने लगता है परन्तु इसमें भी समय लगता है, मृत्यु के बाद भी कुछ अंगो का उपयोग हो सकता है
- यह भी सत्य है कि मृत्यु के कुछ समय पूर्व बाह्य इंद्रियां काम करना बंद कर देती है
स्वाध्याय में प्रमाद न किया जाए क्या इसका आशय अपने विचारों को सदैव परिष्कृत करे, कृप्या प्रकाश डाला जाए
- अपने विचारो को पढ़ा भी जाए व परिष्कृत भी किया जाए
- अपनी स्थिति के अनुसार विचारो को देखा जाए कि हमारी स्थिति क्या है
- हमारे विचारो की तुलना कैसे करे इसके लिए आप्त ग्रंथों का सहारा लेना होता है क्योंकि हमारे विचार में तो हमें स्वयं के विचार बहुत बढ़िया लगते हैं, चोर भी कहता है कि मै भी अच्छा काम कर रहा हूँ
- वेद उपनिषद गुरुदेव के साहित्य -> इन सभी के परिपेक्ष में जब हम अपनी तुलना करते हैं तब हमें पता चलता है कि हमारी स्थिति कहा पर है, स्थिति के अनुसार हम विचार करते हैं और उन विचारो को परिष्कृत करने का विचार करते हैं
- जैसे मुंह की सफाई, आंखो की सफाई जरूरी है जब तक साधक (Iron) पूर्ण स्तर का योगी (Magnet) न बन जाए तब तक झाडू सफाई की तरह स्वाध्याय करना भी जरूरी है पडता है
- जब वैसा बन जाता है तो फिर ये आवश्यक नहीं, तब निदिध्यानासन की भी आवश्यकता नही पड़ेगी परन्तु इससे पहले ये प्रतिकूल विचार मन को प्रभावित करते हैं इसलिए हर हर स्वाध्याय / रात दिन स्वाध्याय करने के लिए गुरुदेव ने हमें कहा
- शैवाल की भाति साधक को भी अपने दोष दुर्गुणों की प्रवृत्ति को हटाना पड़ता है
- इसलिए सोहम् वृति को अखंड रूप मे बनी रहे, यह बात कही गई है, इसलिए प्रमाद न करे
त्रिकुटि एवं आज्ञाचक्र तथा बह्मरंध्र एवं सहस्तार चक्र का Location किस Anatomical Region में है
- त्रिकुटि = जहा तीनों का प्रकृति, जीव एवं बह्म मिलन हो वह त्रिकुटि है तथा वह स्थान Mid Brain है
- Brain stem में एक हिस्सा है Mid brain
- Mid Brain में यदि हम आत्मा का ध्यान करें तो केंद्र में पीनियल व पिट्यूटरी पड़ता है
- Pineal व Pitutary दोनों मिलकर एक Cycle/चक्र बनाते हैं जिसे आज्ञा चक्र कहते हैं
- Pineal व Pitutary के बीच कानो के मध्य से एक काल्पनिक रेखा खीचा जाए तथा भूमध्य से भी एक रेखा खीची जाए तो वे दो रेखाएं Mid Brain में मिलती है -> आज्ञा चक्र का ध्यान यही Mid Brain में करना है
- योगराजोपनिषद् के अनुसार सांसारिक व आध्यात्मिक दोनो लाभ लेना है, दोनो का लाभ लेना है तो कम्रश: Pitutary व Pineal के मध्य Mid Brain में आज्ञा चक्र का ध्यान करे
बह्मरंध्र व सहस्तार का Location कहा है
- सहस्तार का स्थान वहा है जहा हम चोटी रखते हैं तो वहा Parietal व Occipital Lobe का जो मिलन है वहा पर बनता है तथा आगे, जहा Frontal व Parietal Lobe का मिलन होता है, वहा भी बनता है
- बह्मरंध्र का स्थान = Third Ventrical, मस्तिष्क का Anatomy देखेगे, वहा जब बीच में देखेगे तो हल्का सा छेद दिखाई पडता है, जैसे Central Canal रीढ की हड्डी में मिलता है, उसी को कहते है कि क्षीर सागर में नारायण सोए हुए हैं
- छाता का डंढल में डंढल से ही छाता शुरू हो गया, इसी सहस्तार का उत्पादन केंद्र आज्ञा चक्र माना जाता है, इसका अर्थ यह हुआ कि वही Brain Stem से फव्वारा निकला तथा पुरे Cerrebrum Area में गया
- हमें अलग अलग स्थान पर ध्यान देना है
- आज्ञा चक्र का ध्यान Brain Stem में Third Ventrical की सीध में
- यदि किसान भाई या अन्य व्यक्ति जो पढ़े नही है तो ऐसे में अपने मस्तिष्क को नीला आकाश मान ले
- नीले आकाश में आध्यात्मिक सुर्य के रूप में अपनी आत्मा को चमकते हुए देखें तो इस प्रकार उसका प्रभाव पूरे चित्ताकाश में जाएगा जहा अपनी आत्म चेतना है, वही से पूरे मस्तिष्क व शरीर को लाभ मिलता महसूस करे
- यदि एक ही जगह मस्तिष्क मेंध्यान करना है तो त्रिकुटि वाले स्थान पर (Mid Brain) में ध्यान करें
गुरुदेव ने कहा है कि इसके (मणीपुर चक्र) जागरण से शरीर की तीनों अग्नियां जागृत होती है व उधर्व गमन मे सहायक होती है, यहा ये तीन अग्नि कौन कौन सी है
- ये तीन अग्नियां ओजस तेजस वर्चस है
- अग्नि तत्व तीनों शरीरो में है, ओजस व तेजस मिलाकर एक अग्नि तत्व हो गया जो कि अन्नमय व प्राणमय कोश में है
- शरीर में चमक (प्राण) बढ़ाता है तथा मन को भी यही प्रकाश देता है
- मणिपुर चक्र में जो अग्नि तत्व है, इसी से ज्ञानेंद्रियां भी बनी है
- दर्शनाग्नि, श्रोताग्नि का भी प्रयोग हुआ है
- सूक्ष्म शरीर को भी यही अग्नि प्रकाशित करता है
- स्थूल सूक्ष्म व कारण तीनो शरीरो को यही अग्नि (मणीपुर चक्र) आधार प्रदान करता है
- यज्ञ की भाषा में इसे आहवानीय, ग्राहपत्य व दक्षिणाग्नि भी कहा जाता है
- यही अग्नि तीनो शरीरो को चमकाता है तथा उधर्वगामी दिशा में ले जाएगा
श्रीमद्भगवदगीता में तत्वविद् शब्द का अर्थ क्या सत रज तम से है
- इस तत्वविद् में जड़ व चेतन दोनों ही है, जो तत्वज्ञाता होगा तो वह सारे तत्वों का ज्ञाता होगा, वह चेतन व जड दोनो को जानेगा
- तत्वज्ञान से चेतना को देखने की बात आती है, तत्वज्ञान का अर्थ यही है कि जो हमें स्थूल दिख रहा है उसमें भी हम चेतना को देखे
- किसी को कोई व्यक्ति सुन्दर या कुरुप लग रहा है तो उसे यदि तत्व से देखा जाए तो दोनो के भीतर cell स्तर पर एक ही दिखेगा
- मौलिक रूप से देखा जाए तो ना सुन्दरता है तथा ना ही कुरूपता है
- तत्वज्ञान के आभाव में / माया के प्रभाव में ही कुछ का कुछ दिखता है, तत्वज्ञान मिलने पर वह वास्तविकता को देखने लगता है,
- सत तत्व ही ज्ञानात्मक चेतन तत्व है, जड तत्व ही तम तत्व है तथा सत + तम दोनो के मिश्रण को रज कहा जाता है
- जड़ प्रकृति व चेतन प्रकृति मिलती है तो जीव प्रकृति बनती है
- तत्व का एक अर्थ Element भी है, किसी भी तत्व के Elementary रूप को देख लिया जाए तो भम्र समाप्त हो जाता है
- शुरुवात में हमें स्थूल अवलंबन का सहारा लेना होता है, धीरे धीरे जब आकाश तत्व शुद्ध हो जाता है तो फिर स्थूल की इतनी आवश्यकता नहीं रह जाती, शुरू में बैखरी तथाबाद में परा व पश्यन्ति वांणिया भी सक्रिय हो जाती है
- साधक का व्यष्टि मन समष्टि मन से जुड़ा रहता है तथा समष्टि कुछ न कुछ हमें पढ़ाती ही रहती है, यही परब्रह्म की शक्ति है
- इसी में सारे वेदो का ज्ञान छुपा रहता है
मोक्ष और ईश्वर प्राप्ति में क्या अंतर है अगर दोनों अलग-अलग है किसको महत्व दिया जाये
- दोनों एक ही है, मोक्ष को ही ईश्वर साक्षात्कार कहते हैं
- बंधन से छूटकर ही ईश्वर की प्राप्ति होती है या मोक्ष मिलता है
- जब तक सारे बंधन को न काट डाले तब तक ईश्वर दर्शन संभव नहीं 🙏
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