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पंचकोश जिज्ञासा समाधान (01-10-2024)

पंचकोश जिज्ञासा समाधान (01-10-2024)

आज की कक्षा (01-10-2024) की चर्चा के मुख्य केंद्र बिंदु:-

इस नवरात्री को मेरी जल उपवास करने की इच्छा है, क्या मेरे लिए यह ठीक रहेगा

  • अगर आप हमारे सामने करे तो जल उपवास के बीच आने वाली कठिनाइयों में मार्गदर्शन भी मिलता रहेगा
  • अक्सर साधक गांठ बना लेते है कि हमें यह करना ही है तथा अपने शरीर को नही देखते जिससे उन्हे Side Effect होता है
  • छट पूजा में भी जल उपवास किया जा सकता है
  • अभी आप इस नवरात्री पर फलाहार कर सकते है

वांग्मय को पढ़ने के बाद या आपसे बात करने के बाद किसी भी कोश की मानसिकता मन में रह नही पाती, क्या करे

  • यह निर्भर करता है कि आप साधना के प्रति कितने साधना निष्ठ है
  • साधना में प्राण आ जाए तो कमाल हो जाएं, गुरुदेव की यह Book अवश्य पढे, जितना पढेंगे तो उतना ही अपने भीतर का उत्साह / प्राण बढ़ेगा, साधना के प्रति साधक का रुझान बढ़ेगा
  • निष्प्राण साधना पूरा जीवन भी खपा देगा तथा कुछ विशेष लाभ भी नही मिलेगा, इसलिए साधना में प्राण डालना आवश्यक है
  • साधना में प्राण नहीं आ रहे तो गुरुदेव अपने को धर्मदण्ड देते थे क्योंकि आज के समय में अपने को दण्ड देने वाला कोई नहीं क्योंकि हम अपने को सदैव सही मानते है -> जब साधना न हो तो भोजन भी न करे
  • साधना नहीं तो भोजन नहीं
  • स्वयं को कठोर दण्ड देना पड़ता है जो अपने को दंड दे सकता हो वह सुधर जाएगा
  • उपवास में यदि दिक्कत हो तो फल के साथ उर्जा बढाने वाली Herbal medicine जैसे मुलेठी ग्रहण करे तथा फिर पानी पी ले तब Gastric की समस्या भी ठीक होगी
  • Urine ज्यादा बार होता है तो पानी कम पीजिए तथा सिप सिप करके पीजिए ताकि पेशाब ज्यादा न बने परन्तु उतना पानी अवश्य पीना होगा ताकि Acid न बने क्योंकि Acid बनेगा तो गैस भी बनेगा
  • मुंग की दाल में सब्जिया बनाकर खाईए यह भी गैस कम करने में मदद करेगा

कहा जाता है कि श्राद्ध तर्पण करने से पितरों को मोक्ष मिल जाता है मोक्ष का आशय क्या आत्मज्ञान से है कृप्या प्रकाश डाला जाय

  • जी इसका आशय आत्मज्ञान से ही है
  • मोक्ष जब भी मिलेगा तो ज्ञान से ही मिलेगा
  • हृदय की अज्ञान ग्रंथियों का समूल नष्ट हो जाना ही मोक्ष है
  • अज्ञानता से जीवन में कष्ट होता है
  • मोक्ष किसी ग्राम विशेष मे नही है तथा न ही कही आकाश में लटका हुआ है
  • पितरो को भी ज्ञान से हि मोक्ष मिलेगा
  • दूसरो के लिए जो हल्दी पिसेगा उसका हाथ अपने आप ही पीला हो जाएगा

जप करते समय मन में गलत धारणाए व गलत चीजे चलती रहती है, कैसे ठीक करे

  • साक्षी भाव से देखे
  • वो आपकी बाते नहीं है, आकाश में हर तरह के विचार दौडते है, आप उसे पकड़ लेते है तो आप उसे जाने दीजिए
  • मस्तिष्क के Neurones,  Receiver का काम करते है तथा उन विचारो को पकड लेते है
  • आकाश में अच्छे विचार भी है, बुरे विचार भी है, साक्षी भाव से देखेगे तो control हो जाएगा
  • एक अन्य तरीका है कि उस विचार को पकडे तथा देखे कि कहा जा रहा है, किसी वस्तु पर जा रहा है तो आँख न मूंदे तथा तत्व दृष्टि से समाधान खोजे, समाधान मिल जाएगा
  • इसलिए पहले बाहर की चीजो को ही देखे तथा उसका तत्वज्ञान से समाधान करे तथा फिर ध्यान मे प्राप्त की गई उर्जा का लाभ ले
  • पांच कोशो का Refinement व कुण्डलिनी जागरण का ध्यान कर चक्रो के माध्यम से उर्जा भर ले तथा उससे पूरे दिन का काम चलेगा

दादा गुरु कौन है, क्या वे शरीर में नही रहते

  • पिताजी के पिताजी दादा कहलाते है,  गुरू जी के गुरु जी, दादा गुरु कहलाते है
  • वे सूक्ष्म शरीर वाले हैं, कही भी आ जा सकते है, जब जरूरत पडती है या जिनसे काम लेना होता है तो उनके सामने प्रकट हो जाते है, जैसे दादा गुरु हमारे गुरु के सामने प्रकट हो गए थे
  • यह विद्या दादा गुरु ने हमारे गुरु (प० श्री राम शर्मा आचार्य जी) को भी सिखाई, गुरुदेव को भी जिनसे काम लेना होता है तो उनको अपने ढंग से Motivate कर लेते है
  • कुछ लोग उम्र के बंधन से परे होते है जैसे हमारे दादा गुरु, हजारो वर्ष उनकी आयु होती है
  • कुछ लोग मरते नहीं हैं, जो लोग सूक्ष्म शरीर की साधना कर लेते हैं वे जब तक चाहे तब तक सूक्ष्म शरीर में रह सकते हैं तथा जब चाहे स्थूल शरीर में भी आ सकते है, महाप्रलय में भी वे बने रहेंगे

बाह्य से अंतः की यात्रा में शून्य अवस्था तो केवल तभी आएगी जब कोई विचार ही उत्पन्न ना हो परन्तु विचार तो चलता ही रहता है, सांसारिक विचार भले ही ना हो, तो क्या यह शून्य अवस्था है ?

  • शून्य अवस्था साक्षी भाव को कहा जाता है, विचार आए पर आपको Disturb ना करे यानि विचार आने के बाद भी आप पर शून्य प्रभाव डाल रहे है
  • संसार के सारे वाण यदि हमें घायल न करे तो समझे कि हम जीवित निर्वाण प्राप्त कर लिए, उनका प्रभाव हम पर शून्य है
  • सारा संसार शून्य से विकसित हुआ है तो यह संसार शून्य ही है
  • ईश्वर शून्य है
  • शून्य = निराकार
  • गुरुदेव ने कहा -> मैं व्यक्ति नहीं विचार हूं तथा विचार आकाश में जाकर सर्वत्र घुल जाता है, विचार सर्वव्यापी है जो सर्वव्यापी है वह निराकार है
  • इस तथ्य को समझना तथा हृदयस्थ कर लेना शून्य अवस्था है
  • विचार केवल तरंगें हैं और आत्मा किसी भी प्रकार की तरंगों से घायल नहीं होता तो हम विचारो से तो खेले परन्तु वे विचार हमे कर्म फल के बंधनो में ना डाले, यही विचार शून्य अवस्था है

क्या आध्यात्मिक विचारो के रहते हुए विचार शून्यता पाई जा सकती है

  • रचा पचा होकर भी शून्य अवस्था पाई जा सकती है लेकिन वहा पर सोचे कि हम बह्म को खा रहे है
  • योग बुद्धि में रहकर कर्म करेंगे तो उसका प्रभाव अपने पर नहीं होगा, यही शून्य अवस्था है

भाव संस्थान के परिष्कार का क्या अर्थ है क्या जिस भाव से हम संसार में कुछ ग्रहण करते है तो क्या यही भाव संस्थान है

  • मन बुद्धि चित्त संस्कार को भाव संस्थान कहा जाता है
  • संस्थान = Institute, जिसमें एक से अधिक विषय लिए जाते हो वह संस्थान है

कौशितिकीबाह्मणोपनिषद् में आया है कि हे बाह्मण जो लोग अग्निहोत्र आदि कर्मो को करते है तो वे प्रमाण के बाद स्वर्ण लोक, बह्म लोक, चद्र लोक तक जाते है, जैसा वे सोचते हैं उसके अनुसार उन्हें पुनर्जन्म मिलता है, . . . 15 कलाएं क्या है

  • यह ईश्वर के गुणों (16 कला) की चर्चा है
  • वह कहेगा कि मै ईश्वर का अंश हूँ . . .

श्रीगायंत्रीपनिषद्  में आया है कि . . . जो गायंत्री की 24 मुद्राओं को नही जानता उसका जप निष्फल हो जाता है

  • गायंत्री महाविज्ञान में यह आया है
  • ईश्वर मौन है तो उसकी स्तुति भी मौन ही है
  • सेवा कर रहे है तो सेवा का भाव भी रहे, यहा कहने का यही मुख्य भाव है

शाण्डिल्योपनिषद् में अर्थवा ऋषि से पूछ रहे हैं कि तपस्या करने के पश्चात अतरि ऋषि ने पुत्र प्राप्ति की कामना की . . . दत्तात्रेय ने स्वयं को अतरि ऋषि के पुत्र के रूप में प्रस्तुत किए तथा अनसुया के गर्भ से 3 बच्चे जन्में तो ये जन्म कैसे लिए, इसका क्या विज्ञान है

  • उनके आर्शीवाद / तेज से पैदा हुए
  • यहा सब प्रकाश ही प्रकाश है तथा सब कुछ प्रकाश से ही बना है, यह विज्ञान वे जानते थे
  • एक ही ईश्वर सब पाठ कर रहा है
  • अनुसुया की तपस्या उत्कृष्ठ थी तथा उस ने तपस्या के बल पर यहा सब पाया तो यदि चित्त को शुद्ध कर लिया जाए तो यह संभव हो जाता है, ऐसा शुद्ध चित्त यदि किसी से कुछ कहे है तो जब चाहे तब वह कर सकता है।
  • जो दूसरे की चुगली ने करें उसे अनुसूया कहते हैं   🙏

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