
Yogtatvopnishad – 1
(गुप्त नवरात्रि साधना) _ Aatmanusandhan – Online Global Class – 03 July 2022 (5:00 am to 06:30 am) – Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।
SUBJECT: योगतत्त्वोपनिषद् (मंत्र संख्यां 81-90 ~ ‘मूलाधार – स्वाधिष्ठान’ @ रूद्र ग्रन्थि)
Broadcasting: आ॰ अंकूर जी/ आ॰ अमन जी/ आ॰ नितिन जी
शिक्षक: श्रद्धेय श्री लाल बिहारी सिंह @ बाबूजी (प्रज्ञाकुंज, सासाराम, बिहार)
मनुष्य एक चलता फिरता चुंबक । अपने magnetism को बढ़ाकर वह देवमानव (ओजस्वी + तेजस्वी+ वर्चस्वी) बन सकता है अथवा घटाकर नरपशु नरपिशाच नरकीटक में भी परिणत हो सकता है ।
स्वाधिष्ठान चक्र:-
वर्ण – सिंदुर
लोक – भुवः
दलों के अक्षर – बं, भं, मं, यं, रं, लं
तत्त्व – जल
बीज – वं
वाहन – मगर
गुण – रस
देवशक्ति – डाकिनी
यन्त्र – चन्द्राकार
ज्ञानेन्द्रिय – रसना (जीभ)
कर्मेंद्रिय – लिंग
देव – विष्णु
ध्यान का फल – अहंकारादि विकारों का नाश, श्रेष्ठ, मोह निवृत्ति, रचना शक्ति आदि ।
राग-द्वेष से निवृत्ति (साक्षी/ द्रष्टा भाव) – घटावस्था ।
सुषुम्ना में प्रवेश करने के बाद पंचमहाभूत साधक के मित्र बन जाते हैं ।
मूलाधार चक्र (बीज – लं, चतुर्मुख ब्रह्मा) का ध्यान करने से साधक पृथ्वी तत्त्व पर नियंत्रण कर सकते हैं ।
स्वाधिष्ठान चक्र (बीज – वं, श्री नारायण विष्णु) का ध्यान करने से जल तत्त्व मित्र बन जाते हैं और सभी पापों से छुटकारा मिल जाता है ।
Practical Session (Demonstration) –
प्राणाकर्षण प्राणायाम,
प्राणन – अपानन (आकुंचन प्रकुंचन / cleaning and healing)
पंचकोश – cleaning and healing,
षट्चक्र बेधन – अवरोहण (उपर से नीचे) cleaning and healing & आरोहण (समर्पण – विलयन – विसर्जन @ रूपांतरण).
स्वाधिष्ठान चक्र प्रधान ध्यान
ऋषियों के आश्रम में सज्जनता सहृदयता सहिष्णुता सहकारिता भाव की बहुलता रहती है ।
जिज्ञासा समाधान
जिस चक्र का जागरण (cleaning & healing) करना हो वहां आकुंचन प्रकुंचन किया जाता है । संकल्प शक्ति/ भाव शक्ति की जितनी विशालता होगी, लाभ में उतनी ही अभिवृद्धि होती है । ‘ज्ञान + ऊर्जा’ की जुगलबंदी है ।
उपर जीभ व नीचे जननांग इन्हें मित्र/ संयमित बनाया जाए । क्योंकि सबसे अधिक प्राण का क्षरण यहीं से होता है । सदुपयोग (good use) से बात बनती है और दुरूपयोग (misuse/ overuse) से बात बिगड़ती है ।
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः।।
Writer: Vishnu Anand
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