Naad Sadhna (Anhad Om)
PANCHKOSH SADHNA – Online Global Class – 02 May 2021 (5:00 am to 06:30 am) – Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्|
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sᴜʙᴊᴇᴄᴛ: नाद साधना (अनहद ॐ)
Broadcasting: आ॰ अंकुर जी
श्रद्धेय लाल बिहारी बाबूजी
तीन शरीर “स्थूल, सुक्ष्म व कारण”:-
१. स्थूल शरीर – अन्नमय व प्राणमय कोश।
२. सुक्ष्म शरीर – मनोमय व विज्ञानमय कोश।
३. कारण शरीर – आनन्दमय कोश।
इन तीनों शरीरों को संभालने/ संवारने/ उज्जवल/ परिष्कृत करने का उद्यम/ पुरूषार्थ ही साधना/ पंचकोशी साधना @ आत्मसाधना है।
हमारे हर एक स्थूल व सुक्ष्म कार्य के मूल में उद्देश्य रूपेण ‘आनन्द’ है। प्राथमिकता ‘विषयानंद’/ खण्डानंद को अथवा ‘आत्मानंद’/ अखण्डानन्द को दें!? इस चुनाव का अधिकार ‘ईश्वर’ ने ‘जीव’ को प्रदान किया है।
अथाह शांति अथाह आनन्द @ peace and bliss जो स्वयं (self) के भीतर है उससे resonance (तादात्म्य) कैसे स्थापित करें @ आत्मानंद। उदाहरणार्थ मृग के नाभि में ‘कस्तूरी’ होता है जिसमें मनमोहक खुशबू की धारा बहती है, जिसका भान मृग को नहीं होता है और वह खुशबू कहीं और से आ रही है ऐसा समझ भटकता रहता है।
सुनहु तात यह अकथ कहानी। समुझत बनइ न जाइ बखानी॥ ईश्वर अंश जीव अविनाशी। चेतन, अमल सहज सुख राशी॥
‘आनन्द’ एक आकाश (space) है जो सर्वत्र व्याप्त है। गायत्री पंचाग्नि विद्या/ पंचांग योग/ पंचकोशी साधना अन्तर्गत क्रमशः उस सर्वव्यापी आकाश में सच्चिदानन्द स्वरूप आत्म – परमात्म साक्षात्कार किया जा सकता है। जिसे तपसा (तप के द्वारा) वरूण जी के पुत्र भृगु जी ने बोधत्व किया:-
१. अन्नमय जगत में, अन्न एव ब्रह्म। अन्न-ब्रह्म।
२. प्राणमय जगत में प्राण-ब्रह्म।
३. मनोमय जगत में मन-ब्रह्म।
४. विज्ञानमय जगत में विज्ञान-ब्रह्म।
५. आनन्दमय जगत में आनन्द-ब्रह्म।
‘शब्द’ ब्रह्म। सृष्टि की उत्पत्ति का प्रारंभ शब्द से। पंच तत्त्वों में सबसे पहले आकाश बना, आकाश की तन्मात्रा शब्द है। शब्द के दो प्रकार – विचार और नाद।
शब्द ब्रह्म का दूसरा रूप जो ‘विचार’ सन्देश की अपेक्षा कुछ सुक्ष्म है वह ‘नाद’ है। प्रकृति के अन्तराल में एक ध्वनि प्रतिक्षण उठती रहती है जिसकी प्रेरणा से आघातों द्वारा परमाणुओं में गति उत्पन्न होती है, उससे सृष्टि का समस्त क्रियाकलाप चलता है। यह प्रारंभिक शब्द ‘ॐ’ है, यह ‘ॐ’ ध्वनि जैसे जैसे अन्य तत्त्वों के क्षेत्र में होकर गुजरती है, वैसे वैसे ही उसकी ध्वनि में अंतर आता है। उदाहरणार्थ, बंशी के छिद्रों में हवा फेंकते हैं, तो उसमें से एक ध्वनि उत्पन्न होती है। पर आगे के छिद्रों से जिस छिद्र से जितनी हवा निकाली जाती है, उसी के अनुसार भिन्न भिन्न स्वरों की ध्वनियां उत्पन्न होती है। इसी प्रकार ‘ॐ’ ध्वनि भी विभिन्न तत्त्वों के संपर्क में आकर विविध प्रकार की स्वर लहरियों में परिणत हो जाती हैं। इन स्वर लहरियों को सुनना ही ‘नाद योग’ है।
‘गायत्री’ महामंत्र, प्राण का मंत्र है। यह सृष्टि की मूल में है अर्थात् सृष्टि के उत्पत्ति के ज्ञान विज्ञान को समाहित कर रखा है। सृष्टि में यह सुक्ष्मातिसुक्ष्म स्वर लहरियों के रूप में समाविष्ट हैं इनसे resonance (तादात्म्य) बिठाना ‘नाद योग’ है।
‘वाणी’ के आकाश तत्त्व से टकराने अथवा किन्हीं दो वस्तुओं के टकराने वाले शब्द ‘आहत’ कहे जाते हैं।
बिना किसी आघात के दिव्य प्रकृति के अन्तराल से जो ध्वनियां उत्पन्न होती हैं, उन्हें “अनाहत या अनहद” कहते हैं।
नाद योग साधना के लाभ:-
१. दिव्य संगीत को सुनने में अतुलनीय अवर्णनीय आनन्द आता है।
२. नाद श्रवण से मानसिक तन्तुओं प्रस्फुटन होता है अर्थात् अनेक गुप्त मानसिक शक्तियां विकसित होती हैं, इस प्रकार भौतिक और आत्मिक दोनों दिशाओं में प्रगति होती है।
३. एकाग्रता।
४. आत्म-परमात्म साक्षात्कार।
नाद योगाभ्यास:-
शांत व एकांत स्थान
ब्रह्ममुहुर्त उत्तम (तीक्ष्ण प्रकाश बाधक)
ऐसे posture में बैठा जाए जिसमें आराम मिले। धीरे धीरे शरीर को ढीला छोड़ दिया जाए।
भावना करें शरीर बिल्कुल रूई की तरह हल्का है और मैं इसे पूरी तरह स्वतंत्र छोड़ रहा हूं। पीछे support (आराम कुर्सी, दीवार मसनद आदि) का शरीर ठीक प्रकार से अपने स्थान पर बना रहेगा अन्यथा इधर उधर ढुलने लगेगा।
कान में साफ रूई की दो डाटें बनाकर/ यंत्र कान में लगा ली जाए so that बाहर की कोई आवाज भीतर प्रवेश ना कर सके।
सभी ओर से ध्यान हटाकर मूर्धा स्थान पर ले जाकर जो शब्द हो रहे हैं, उन्हें ध्यान पूर्वक सुनने का प्रयत्न करें।
अलग-अलग शब्दों को सुनने के बाद परिपक्वता स्थिति में ओंकार ध्वनि ‘ॐ’ सुनाई पड़ती है।
तुरीयावस्था।
अनाहत या अनहद शब्द प्रमुखतः दस होते हैं – १. संहारक (पायजेब की झंकार की), २. पालक (सागर की लहर की), ३. सृजक (मृदंग की), ४. सहस्रदल (शंख की), ५. आनन्द मण्डल (तुरही की), ६. चिदानन्द (मुरही की), ७. सच्चिदानन्द (बीन सी), ८. अखण्ड (सिंह गर्जन की), ९. अगम (नफीरी की) व १०. अलख (बुलबूल की सी होती) हैं।
जिज्ञासा समाधान
हम कोई भी ‘कार्य’ (duty) करते हैं उनमें ‘पंचकोश’ involve रहता है। श्रम, शक्ति, बुद्धि, ईमानदारी व श्रद्धा की आवश्यकता/ अनिवार्यता हर एक कार्य क्रियान्वयन में होती है। ‘आत्मा’ लिप्त/ आसक्त नहीं होती है वो ‘मुक्त’ है; अतः अनासक्त कर्म योग के माध्यम से dutifulness बंधन कारी नहीं प्रत्युत् मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करेंगे।
प्रारंभिक शब्द ‘ॐ’ है, यह ‘ॐ’ ध्वनि जैसे जैसे अन्य तत्त्वों के क्षेत्र में होकर गुजरती है, वैसे वैसे ही उसकी ध्वनि में अंतर आता है। एक ही ‘शब्द’ भाव मिश्रित होकर ‘अर्थ’ में अंतर कर जाते हैं। एकाग्रता ~ भावातीतं, त्रिगुणरहितं, सर्वधासाक्षीभूतं …. चिंतन – मनन व निदिध्यासन से ‘बोधत्व’ की जा सकती है।
जो भी living things हैं उनके ‘born’ के उपरांत ‘die’ होना निश्चित हो जाता है। ‘grow’ @ प्रगति में पुरूषार्थ (साधना) नियोजित किया जाता है। कब मरेंगे? कितना जीयेंगे? इस ऊहापोह में ना पड़े प्रत्युत् जितने दिन की ज़िंदगी (growing period) है कुछ ऐसे जियें की मिसाल बन जाए।
गुरूदेव कहते हैं कि “मैं व्यक्ति नहीं विचार हूं”। उन विचारों/ सिद्धांतों के शोधार्थी गुरूदेव के शिष्य/ मानस पूत्र हैं। हम plantation करते हैं और माता-पिता की तरह caring करते हैं और वे plants निःस्वार्थ भाव से विश्व वसुंधरा/ मानवता को serve करते हैं।
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः।।
Writer: Vishnu Anand
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