
Kala and Turiya Sadhna
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PANCHKOSH SADHNA – Online Global Class – 25 फरवरी 2023 (5:00 am to 06:30 am) – Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।
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Broadcasting: आ॰ अमन जी/ आ॰ अंकुर जी/ आ॰ नितिन जी
शिक्षक बैंच:
1. आ॰ किरण चावला जी (Ohio, USA)
2. आ॰ सुशील त्यागी जी (गाजियाबाद, उ॰ प्र॰)
विषय: कला एवं तुरीय साधना
जीव व सृष्टि की उत्पत्ति का मूल आनंद है उस सत्य का साक्षात्कार – आनंदमयकोश अनावरण है । आनंदमयकोश की 3 उपलब्धियां हैं:-
1. समाधि
2. स्वर्ग
3. मुक्ति
अनासक्त/ निष्काम/ निःस्वार्थ प्रेम @ आत्मीयता @ आत्मवत् सर्वभूतेषु + वसुधैवकुटुम्बकम की स्थिति को जीने वाला साधक तुरीयातीत अवस्था में है ।
‘कला‘ अर्थात किरण । इसका कार्य रूप को प्रकाशमान बनाकर प्रकट करना है ।
कला दो प्रकार की होती है:-
1. आप्ति किरणें प्रकृति के अणुओं से प्रस्फुटित होती हैं (तत्त्वबोध) ।
2. व्याप्ति किरणें मनुष्य के अंतःकरण से प्रस्फुटित होती हैं (आत्मबोध) ।
आत्मदर्शी व तत्त्वदर्शी व्यक्तित्व – व्यक्ति या वस्तु की आंतरिक स्थिति का पता उनके Aura, colour, रूप, चमक व Consciousness को देखकर पता कर लेते हैं ।
षट् चक्र बेधन की कला में हर एक चक्र के तत्त्व के रंग उनके बीज मंत्र के प्रकाश किरणों संग आनंदमयकोश की यात्रा को पूर्ण किया जा सकता है ।
कलाविज्ञान:-
1. व्यक्तित्व तथा वस्तुओं की आंतरिक स्थिति का बोध
2. प्रेरणास्रोत @ आत्मपरिष्कार (शारीरिक, मानसिक व भावनात्मक संतुलन)
3. प्रेरणा प्रसार (संत/ सुधारक/ शहीद की भूमिका)
4. तत्त्वज्ञान
5. तत्त्वबोध
आत्मिककला तीन प्रकार की होती हैं – सत, रज व तम । जिसकी साधना ग्रन्थि भेद द्वारा होती है ।
कला ही सामर्थ्य है; जो जितने ही कलाओं के धारक होते हैं वो उतने ही सामर्थ्यवान होते हैं ।
जिज्ञासा समाधान (आ॰ शिक्षक बैंच व श्री लाल बिहारी सिंह ‘बाबूजी’)
आ॰ किरण दीदी व आ॰ सुशील भैया जी के अनुभवजन्य शिक्षण हेतु नमन व आभार ।
संसारिक ज्ञान विज्ञान सापेक्ष सिद्धांत पर आधारित हैं । आत्मिकी/ आत्मज्ञान/ आत्मदर्शन निरपेक्ष सार्वभौम सनातन सत्य है । अतः मुक्ति/ मोक्ष हेतु गायत्री व सावित्री विद्या को हमें approach, digest & application में लाना होता है जिस हेतु हमें
1. गायत्री पंचकोश साधना
2. कुण्डलिनी जागरण
को युगऋषि ने वशिष्ठ व विश्वामित्र स्तर का तप कर सर्वसुलभ व सर्वग्राह्य बनाया है ।
सर्वप्रथम तपोयोग द्वारा स्वयं को शानदार बनाए तदुपरांत अन्य व्यक्तित्व को शानदार बनाए ।
वस्तु जगत के ज्ञान विज्ञान के धारक बनें व धरा को स्वर्ग बनाए ।
सूर्यभेदन प्राणायाम ।
आनंद हर जगह घुला है …. बस लेने की कला आनी चाहिए।
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः ।।
सार-संक्षेपक: विष्णु आनन्द
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