Pragyakunj, Sasaram, BR-821113, India
panchkosh.yoga[At]gmail.com

Category: Pt. Shree Ram Sharma “Acharya”

Panchkosh Yoga: A practical tool for "Self Awakening"

प्राणमय कोश की साधना – 2

प्राणायाम (Pranayam) श्वास को खींचने उसे अंदर रोके रखने और बाहर निकालने की एक विशेष क्रियापद्धति है , इस विधान के अनुसार प्राण को उसी प्रकार अंदर भरा जाता है जैसे साईकिल के पम्प से ट्यूब में हवा भरी जाती है। यह पम्प इस प्रकार का बना होता है कि हवा को भरता है पर …

प्राणमय कोश की साधना – 1

प्राणशक्ति का महत्व ‘प्राण’ शक्ति एवँ सामर्थ्य का प्रतीक है | मानव शरीर के बीच जो अंतर् पाया जाता है , वह बहुत साधारण है | एक मनुष्य जितना लंबा मोटा , भारी है दूसरा भी उससे थोड़ा-बहुत ही न्यूनाधिक होगा परन्तु मनुष्य की सामाजिक शक्ति के बीच जो ज़मीन आसमान का अंतर् पाया जाता …

गायत्री के पांच मुख पांच दिव्य कोश : अन्नमय कोश – ४

अन्नमय कोश की शुद्धि के चार साधन –३. तत्व-शुद्धि    यह श्रृष्टि पंच तत्वों से बनी हुई है | प्राणियों के शरीर भी इन्ही तत्वों से बने हुए हैं | मिटटी , जल , वायु , अग्नि और आकाश इन् पांच तत्वों का यह सबकुछ संप्रसार है | जितनी वस्तुवें दृष्टिगोचर होती हैं या इन्द्रियों …

गायत्री के पांच मुख पांच दिव्य कोश : अन्नमय कोश – ३

अन्नमय कोश की शुद्धि के चार साधन — २. आसन ऋषियों ने आसनों को योग साधना मे इसलिए प्रमुख स्थान दिया है क्योकि ये स्वस्थ्य रक्षा के लिए अतीव उपयोगी होने के अतिरिक्त मर्म स्थानों मे रहने वाली ‘ हव्य- वहा ‘ और ‘कव्य- वहा ‘ तडित शक्ति को क्रियाशील रखते हैं| मर्म स्थल वे …

गायत्री के पांच मुख पांच दिव्य कोश : अन्नमय कोश – २

अन्नमय कोश की शुद्धि के चार साधन –  १. उपवास अन्नमय कोश की अनेक सूक्ष्म विकृतियों का परिवर्तन करने मे उपवास वही काम करता है जो चिकित्सक के द्वारा चिकित्सा के पूर्व जुलाब देने से होता है | ( चिकित्सक इसलिए जुलाब आदि देते हैं क्योकि दस्त होने से पेट साफ़ हो और औषधि अपना …

गायत्री के पांच मुख पांच दिव्य कोश : अन्नमय कोश -१

गायत्री के पांच मुखों मे आत्मा के पांच कोशों मे प्रथम कोश का नाम ‘ अन्नमय कोश’ है | अन्न का सात्विक अर्थ है ‘ पृथ्वी का रस ‘| पृथ्वी से जल , अनाज , फल , तरकारी , घास आदि पैदा होते है | उन्ही से दूध , घी , माँस आदि भी बनते …

पञ्चकोश-साधना (Panchkosh Sadhna)

पाँच तत्वों से बने इस शरीर में उसके सत्व गुण चेतना के पाँच उभारों के रूप में दृष्टिगोचर होते हैं (१) मन, माइण्ड (२) बुद्धि, इण्टिलैक्ट (३) इच्छा, विल (४) चित्त, माइण्ड स्टफ (५) अहंकार, ईगो पाँच तत्वों (फाइव ऐलीमेण्ट्स) के राजस तत्व से पाँच प्राण (वाइटल फोर्सेज) उत्पन्न होते हैं। पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ उन्हीं के …

अन्न्मय-कोष का प्रवेश द्वार – नाभि चक्र

गर्भाशय में भ्रूण का पोषण माता के शरीर की सामग्री से होता है। आरंभ में भ्रूण, मात्र एक बुलबुले की तरह होता है। तदुपरान्त वह तेजी से बढ़ना आरंभ करता है। इस अभिवृद्धि के लिए पोषण सामग्री चाहिए। उसे प्राप्त करने का उस कोंटर में और कोई आधार नहीं हैं । मात्र माता का शरीर …