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Panchkosh Yoga: A practical tool for "Self Awakening"

समसामयिक दिशा निर्देश: 4 – समीक्षा

समीक्षा ————- प्रथम सिमेस्टर की साधना में हमलोग तीन बिन्दु को लेकर चल रहे हैं —— 1. आत्म समीक्षा हेतु —– गायत्री स्मृति ( प्रति सप्ताह एक सूत्र की चलते-फिरते आत्म-समीक्षा —- इसके लिए सूत्र को रटकर याद कर लेना भी आवश्यक है ताकि चलते-फिरते भी मस्तिष्क में वह गूंजता रहे। अपनी समीक्षा होती रहे …

ईश्वर का स्वरूप एवं कार्य प्रणाली क्या हो सकता है

ईश्वर का स्वरूप एवं कार्य प्रणाली क्या हो सकता है? —- उत्तर स्वयं भगवान विष्णु द्वारा ~ प्रज्ञोपनिषद्(प्रथम मण्डल) ————————————————————————– ” निराकारत्व हेतोश्च प्रेरणा कर्तुमीश्वर: । शरीरिणश्च गृहणामि गति संचालने तत: ॥ — 1.31 (” निराकार होने के कारण मैं प्रेरणा ही भर सकता हूँ । गतिविधियों के लिए शरीरधारियों का आश्रय लेना पड़ता है, …

समसामयिक दिशा निर्देश: 3

अन्नमयकोश पर शोध हेतु प्रायोगिक विषय ~ ———————————————————- चूँकि 10 वर्षीय पंचकोशी-साधना अभियान में ~ प्रत्येक कोश पर शोध के लिए मात्र दो वर्ष ही मिल रहे हैं। अत: अच्छे परिणाम के लिए प्रायोगिक साधना को नियमबद्ध करना अनिवार्य है ~ * आज मकर संक्रान्ति है— उत्तरायण सूर्य का प्रस्थान बिन्दु है — तो चेतना …

अन्नमय कोश: ४ – अन्नमय कोश की शुद्धि के चार साधन – ३. तत्व-शुद्धि

गायत्री के पांच मुख पांच दिव्य कोश : अन्नमय कोश – ४ ( अन्नमय कोश की शुद्धि के चार साधन –३. तत्व-शुद्धि ) यह श्रृष्टि पंच तत्वों से बनी हुई है | प्राणियों के शरीर भी इन्ही तत्वों से बने हुए हैं | मिटटी , जल , वायु , अग्नि और आकाश इन् पांच तत्वों …

अन्नमय कोश: ३ – अन्नमय कोश की शुद्धि के चार साधन — २. आसन

गायत्री के पांच मुख पांच दिव्य कोश : अन्नमय कोश – ३ अन्नमय कोश की शुद्धि के चार साधन — २.आसन ऋषियों ने आसनों को योग साधना मे इसलिए प्रमुख स्थान दिया है क्योकि ये स्वस्थ्य रक्षा के लिए अतीव उपयोगी होने के अतिरिक्त मर्म स्थानों मे रहने वाली ‘ हव्य- वहा ‘ और ‘कव्य- …

अन्नमय कोश: २ – अन्नमय कोश की शुद्धि के चार साधन – १. उपवास

गायत्री के पांच मुख पांच दिव्य कोश : अन्नमय कोश – २ अन्नमय कोश की शुद्धि के चार साधन – १.उपवास अन्नमय कोश की अनेक सूक्ष्म विकृतियों का परिवर्तन करने मे उपवास वही काम करता है जो चिकित्सक के द्वारा चिकित्सा के पूर्व जुलाब देने से होता है | ( चिकित्सक इसलिए जुलाब आदि देते …

गायत्री के पांच मुख पांच दिव्य कोश : अन्नमय कोश -१

गायत्री के पांच मुखों मे आत्मा के पांच कोशों मे प्रथम कोश का नाम ‘ अन्नमय कोश’ है | अन्न का सात्विक अर्थ है ‘ पृथ्वी का रस ‘| पृथ्वी से जल , अनाज , फल , तरकारी , घास आदि पैदा होते है | उन्ही से दूध , घी , माँस आदि भी बनते …

अन्न्मय-कोष का प्रवेश द्वार – नाभि चक्र

गर्भाशय में भ्रूण का पोषण माता के शरीर की सामग्री से होता है। आरंभ में भ्रूण, मात्र एक बुलबुले की तरह होता है। तदुपरान्त वह तेजी से बढ़ना आरंभ करता है। इस अभिवृद्धि के लिए पोषण सामग्री चाहिए। उसे प्राप्त करने का उस कोंटर में और कोई आधार नहीं हैं । मात्र माता का शरीर …

अन्नमय कोश का प्रवेश द्वार : नाभिचक्र

गर्भाशय में भ्रूण का पोषण माता के शरीर की सामग्री से होता है। आरंभ में भ्रूण, मात्र एक बुलबुले की तरह होता है। तदुपरान्त वह तेजी से बढ़ना आरंभ करता है। इस अभिवृद्धि के लिए पोषण सामग्री चाहिए। उसे प्राप्त करने का उस कोंटर में और कोई आधार नहीं हैं । मात्र माता का शरीर …

व्याहृतियों में विराट का दर्शन

भूर्भुवः स्वस्त्रयो लोका व्याप्तमोम्ब्रह्म तेषुहि स एव तथ्यतो ज्ञानी यस्तद्वेत्ति विचक्षणः॥ -गायत्री स्मृति शास्त्रों का कथन है कि “भू, भुवः ओर स्वः ये तीन लोक हैं। इन तीनों लोकों में ॐ ब्रह्म व्याप्त है। जो बुद्धिमान उस व्यापकता को जानता है, वह ही वास्तव में ज्ञानी है।” यह विश्व तीन भागों में विभक्त है। प्रत्येक …