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Panchkosh Yoga: A practical tool for "Self Awakening"

प्राणमय कोश की साधना – 2

प्राणायाम (Pranayam) श्वास को खींचने उसे अंदर रोके रखने और बाहर निकालने की एक विशेष क्रियापद्धति है , इस विधान के अनुसार प्राण को उसी प्रकार अंदर भरा जाता है जैसे साईकिल के पम्प से ट्यूब में हवा भरी जाती है। यह पम्प इस प्रकार का बना होता है कि हवा को भरता है पर …

प्राणमय कोश की साधना – 1

प्राणशक्ति का महत्व ‘प्राण’ शक्ति एवँ सामर्थ्य का प्रतीक है | मानव शरीर के बीच जो अंतर् पाया जाता है , वह बहुत साधारण है | एक मनुष्य जितना लंबा मोटा , भारी है दूसरा भी उससे थोड़ा-बहुत ही न्यूनाधिक होगा परन्तु मनुष्य की सामाजिक शक्ति के बीच जो ज़मीन आसमान का अंतर् पाया जाता …

गायत्री के पांच मुख पांच दिव्य कोश : अन्नमय कोश – ४

अन्नमय कोश की शुद्धि के चार साधन –३. तत्व-शुद्धि    यह श्रृष्टि पंच तत्वों से बनी हुई है | प्राणियों के शरीर भी इन्ही तत्वों से बने हुए हैं | मिटटी , जल , वायु , अग्नि और आकाश इन् पांच तत्वों का यह सबकुछ संप्रसार है | जितनी वस्तुवें दृष्टिगोचर होती हैं या इन्द्रियों …

गायत्री के पांच मुख पांच दिव्य कोश : अन्नमय कोश – ३

अन्नमय कोश की शुद्धि के चार साधन — २. आसन ऋषियों ने आसनों को योग साधना मे इसलिए प्रमुख स्थान दिया है क्योकि ये स्वस्थ्य रक्षा के लिए अतीव उपयोगी होने के अतिरिक्त मर्म स्थानों मे रहने वाली ‘ हव्य- वहा ‘ और ‘कव्य- वहा ‘ तडित शक्ति को क्रियाशील रखते हैं| मर्म स्थल वे …

गायत्री के पांच मुख पांच दिव्य कोश : अन्नमय कोश – २

अन्नमय कोश की शुद्धि के चार साधन –  १. उपवास अन्नमय कोश की अनेक सूक्ष्म विकृतियों का परिवर्तन करने मे उपवास वही काम करता है जो चिकित्सक के द्वारा चिकित्सा के पूर्व जुलाब देने से होता है | ( चिकित्सक इसलिए जुलाब आदि देते हैं क्योकि दस्त होने से पेट साफ़ हो और औषधि अपना …

गायत्री के पांच मुख पांच दिव्य कोश : अन्नमय कोश -१

गायत्री के पांच मुखों मे आत्मा के पांच कोशों मे प्रथम कोश का नाम ‘ अन्नमय कोश’ है | अन्न का सात्विक अर्थ है ‘ पृथ्वी का रस ‘| पृथ्वी से जल , अनाज , फल , तरकारी , घास आदि पैदा होते है | उन्ही से दूध , घी , माँस आदि भी बनते …

पञ्चकोश-साधना (Panchkosh Sadhna)

पाँच तत्वों से बने इस शरीर में उसके सत्व गुण चेतना के पाँच उभारों के रूप में दृष्टिगोचर होते हैं (१) मन, माइण्ड (२) बुद्धि, इण्टिलैक्ट (३) इच्छा, विल (४) चित्त, माइण्ड स्टफ (५) अहंकार, ईगो पाँच तत्वों (फाइव ऐलीमेण्ट्स) के राजस तत्व से पाँच प्राण (वाइटल फोर्सेज) उत्पन्न होते हैं। पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ उन्हीं के …

प्राणाकर्षण प्राणायाम

(1) प्रातःकाल नित्यकर्म से निवृत्त होकर पूर्वाभिमुख, पालथी मार कर आसन पर बैठिए । दोनों हाथों को घुटनों पर रखिए। मेरुदण्ड, सीधा रखिए। नेत्र बन्द कर लीजिए। ध्यान कीजिए कि अखिल आकाश में तेज और शक्ति से ओत-प्रोत प्राण-तत्त्व व्याप्त हो रहा हैं। गरम भाप के, सूर्य प्रकाश में चमकते हुए, बादलों जैसी शकल के …

साधना की सफलता के रहस्य

साधना की सफलता के रहस्य गोपथ ब्राह्मण में अच्छी तरह समझायें गये हैं ।। इसके अन्तर्गत मौदगल्य और मैत्रेयी संवाद में गायत्री तत्त्वदर्शन पर 33- 35 कण्डिकाओं में विस्तृत प्रकाश डाला गया है ।। मैत्रेयी पूछते हैं- ” सवितुर्वरेण्यम् भर्गोदेवस्य, कवयः किश्चित आहुः” अर्थात् हे भगवान्! यह बताइये कि ”सवितुर्वरेण्यम् भर्गोदेवस्य” इसका अर्थ सूक्ष्मदर्शी विद्वान …

एकता अनुभव करने का अभ्यास (मैं क्या हूँ से उदधृत )

ध्यानास्थित होकर भौतिक जीवन प्रवाह पर चित्त जमाओ । अनुभव करो कि समस्त ब्रहृमाण्डों में एक ही चेतना शक्ति लहरा रही है, उसी के समस्त विकार भेद से पंचतत्व निर्मित हुए हैं । इन्द्रियों द्वारा जो विभिन्न प्रकार के सुख-दुखमय अनुभव होते हैं, वह तत्वों की विभिन्न रासायनिक प्रक्रिया हैं, जो इन्द्रियों के तारों से …