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पंचकोश जिज्ञासा समाधान (24-02-2025)

पंचकोश जिज्ञासा समाधान (24-02-2025)

कक्षा (24-02-2025) की चर्चा के मुख्य केंद्र बिंदु:-

छान्दयोपनिषद् में आया है कि प्रजापति की दोनो संताने देव गण व असुर गण परस्पर युद्ध करने लगें तो देवो ने विचार किया कि हम उदगीथ की उपासना करके असुरों का पराभव करेंगे, इसका Practical क्या कर सकते हैं

  • उदगीथ का अर्थ -> अपनी चेतना या अहसास जब पदार्थ जगत से चिपके रहते है तो उस समय हम असुर कहलाते हैं इस सृष्टि में दो की कोई सत्ता नहीं तथा जब हमारा चिपकाव आत्मजगत से होता है तो देवता कहलाते हैं
  • नर पिशाच, मानव, महामानव, देवमानव -> यह सब आदमी के साथ ही जुडा है
  • उदगीथ का अर्थ है कि शरीर का जो पदार्थ जगत (पंच महाभूत) से चिपकाव है, पृथ्वी जल अग्नि वायु और आकाश , कंठ तक ये सभी पदार्थ जड़ Layer में आते है फिर एक सूक्ष्म Layer मन बुद्धि चित्त अहंकार भी है -> वहा तक भी राक्षसो की पहुंच है
  • पदार्थवादी अंहकार भी हो जाए तो भी हमें नष्ट कर देगा
  • जब हम संसार में निर्लिप्त अवस्था में रहते है तो उसे उदगीथ कहते है
  • विशुद्धि चक्र के उपर आज्ञा चक्र का बीज मंत्र ॐ है, ॐ को ही उदगीथ कहेगे
  • योगी हमेशा कंठ से उपर रहता है, यही सब देव लोक भी है, इसी में क्षीर सागर भी है
  • भौतिक जगत में आकण्ठ डूबना हमारे शरीर में रोग दुख पैदा करेगा, हमारे शरीर में रोग दुख के रूप में राक्षस उत्पन्न होते है
  • रोग दुख कठिनाईयां हमारा खून चूसते है तो इसलिए पिशाच भी कह दिया गया है
  • उदगीथ का अर्थ कि हम इनसे बाहर निकले
  • दोस्ती पदार्थ से तो करे / संसार से तो करे परन्तु Aware भी रहे, दोस्ती कही गर्दन ना नोच डाले, इनका स्वभाव ही नोचना है
  • घी / तेल लगाकर पानी में घुसेंगे तो जोंक नहीं काटता है
  • प्रज्ञा रूपी नाव (उदगीथ) पर आरूढ होकर जाएंगे तब संसार प्रभावित नहीं करेगा
  • चोर सब जगह नहीं जाता, जहा सर्तकता (पुलिस का पहरा) (आत्मज्ञान) है, उस आत्मज्ञान ॐ (उदगीथ) से अपने को आवृत कर लें तो संसार में जीने का पूर्ण आनन्द प्राप्त होगा

मडलब्रह्मोपनिषद् में याज्ञवल्कय ऋषि को आदिनारायण सुर्य बता रहे है कि अन्तरलक्ष्य चार प्रकार से किया जा सकता है फिर याज्ञवल्कय जी पूछते है कि मै नहीं समझ पाया तो उसे आप स्वयं ही मुझे समझाए, फिर सुर्यनारायण कह रहे हैं कि पंचभूतो का आदि कारण विद्युत पुंज के समान है उसमें एक चतुपीठ है जिसके बीच में तत्व का प्रकाश होता है, वह प्रकाश अति गूढ़ और अव्यक्त है, का क्या अर्थ है

  • विद्युत पुंज = प्रकाश
  • चर्तुषपीठ = सहस्त्त्रार चक्र के बारे में बताया गया है
  • जहा पर चर्तुषपीठ / चर्तुमुखी ब्रह्मा है, चारो का केंद्र कहीं न कहीं होगा, जैसे मस्तिष्क के 4 भाग है -> Frontal + Parietal + Temproral + Occipital -> यही चारो ब्रह्मा के मुख है, चारो का अपने में एक लगाव है, इसी को चतुषपीठ या सहस्त्रार चक्र कह देते है
  • Parietal / Frontal / Temporal सब दो दो भागों में है, दोनो को मिलाकर एक कहते हैं
  • जैसे फेफडे के भी दो भाग बाया व दाया होते है परन्तु हम उसे एक फेफड़ा ही कहते है
  • Brain का केंद्र सहस्रार चक्र को कहा गया

गुरू की अवज्ञा करने वाले की क्या गति होती है कृपया प्रकाश डाला जाय

  • गुरु की कृपा ना मिलना ही सबसे बडी दुर्गति है फिर हम गुरु की Light से वंछित हो जाएंगे
  • गुरु भी कितनी बार उठाएगा यदि कोई बार बार गिरेगा तो गुरु भी छोड देता है तथा दूसरे पर प्रयास करता है
  • पुलस्त ऋषि ने रावण को कोशिश किया था कि सुसंस्कारी बना दे परन्तु जब वह नहीं माना तो उसे छोड दिया तथा यह समझा कि संसार के अन्य शिष्य भी अपने ही नाती है तो वे उनको सवारने चल पड़े
  • कौआ भी अपने बच्चो को उडाना सीखाता है जब नहीं उडते तो उन्हे फैक देता है कि या तो उडों या मरो
  • हर कोई इसी प्रकार करता है यदि स्कुल में कोई विद्यार्थी बार बार Fail रहता है तो एक Limit होती है, एक Bench उसके लिए हमेशा Reserve नहीं रख सकते फिर स्कुल से निकाल देते है ताकि अन्यों को भी अवसर मिले
  • गुरु जी ने कहा कि तुम्हे फिर जन्माएगे तथा फिर मारेगे जब तक साफ ना हो जाए, ईश्वर का भी यही काम है, सफाई करना
  • इस प्रकार वे उर्जा का रूपांतरण कर सकते है, आत्मा इन सबसे परे है, ईश्वर ने यह विशेष अधिकार सभी को दिया है कि वह अपने अनुसार जीवन में इसका उपयोग कर सकता है, इसी विशेष अधिकार के सदुपयोग व दुर्पयोग ही हमसे से प्रत्येक व्यक्ति करता हैं
  • प्रकृति के साथ खान पान व संयम न रहे तो भी प्रकृति हमें मार डालती है, आखिर शरीर कब तक सहेगा
  • क्रिया की प्रतिक्रिया पर ही फल आधारित है, ऋषि मुनि ये बात जानते थे इसलिए चिन्ता नहीं करते थे
  • गुरु केवल अपनी ओर से प्रयास कर सकते है तथा प्रेरणा भर दे सकते हैं
  • गुरु के
  • सब हमारा गुरु है
  • शिष्य को अपनी तरफ से गुरु के प्रति समर्पण / आत्मसर्मपन करना होता है
  • गुरु अपनी Life Style से प्रेरणा भर दे सकते है, राम , कृष्ण, बुद्ध -> सभी ने अपने जीवन से प्रेरणा भर ही दिया है

क्या चक्रों की गति का कोई Pattern भी होता है, कृपया प्रकाश डाले

  • चक्रो का अपना Magnetic Field होता है
  • जैसे Dynamno में Kinetic Erergy / गति के कारण वहा से AC Current निकाल सकते है, उसी प्रकार चक्रो से भी AC Current की भांति तरंगे उठती रहती है
  • कितनी Direction में एक चक्र उन तरंगो को निकालेगा तो उसी को कोण / पंखुडिया कहेंगे
  • वहा चक्रों में एक Magnetic Field है तो उसे कमल की पंखुड़ि कह दिया गया है
  • शरीर के बाहर तक भी उसकी पहुंच है यदि चक्रों को Refine भी कर दिया जाए तो वह चक्र अन्य लोको से भी समपर्क जोड़ लेता है तथा उन लोको से जुडकर वहा का लाभ देता रहता है तथा चलते फिरते भी उसका लाभ मिलता रहता है
  • चक्रो की गति Clockwise होती है
  • स्वस्तिक का जैसा Clockwise बना दिया जाता है
  • देखने का अपना तरीका है, उपर से देखेंगे तो Clockwise दिखेगा तथा नीचे से देखेंगे तो AntiClockwise दिखेगा, यह सापेक्षता के सिद्धान्त पर चलता है
  • जैसे भवर में भी एक गोल गति रहता है
  • सारे ब्रह्माण्ड के परमाणु गोल घूम रहे हैं

चक्रो में गति तो गोल है परन्तु जैसे प्रत्येक शब्दो का अपना एक Pattern होता है तो चक्रो की गति का Pattern बीज मंत्र के अनुरूप होगा या बीज मंत्र के भीतर विद्यमान पंखुड़ियां के अनुरूप होगा

  • पंखुड़ियां बाहर के आधार पर होती है तथा बीज मंत्र उन पंखुड़ियों को चाबी से ताला खोलने की भांति खोलता है
  • जैसे चाबी में Groove होते है ठीक उसी प्रकार बीज मंत्र लं वं रं यं हं भी Groove है जो चक्रो को खोलने का काम करते हैं, जब खोला तो कितनी Direction में वह कमल खिला तो ये ये बीज मंत्र जिनका Pattern व Frequencies अलग अलग है

बीज मंत्र के अनुरूप जब अलग अलग स्पंदन महसूस होता है तथा पंखुड़ियां खुलती हैं तो क्या एक ही चक्र पर अलग अलग स्पंदन होना भी स्वभाविक है

  • ऐसा भी हो सकता है कि एक ही चक्र पर अलग अलग तरह का स्पंदन हो
  • जब क्रोध कम होता है, मोह भी टूट रहा है तथ क्रूरता दया में बदल रही है
  • यही तरंगे हमें यह अनुभव करती हैं कि अब हमें पहले की अपेक्षा क्रोध कम आता है, इस क्रोध को किसने कम किया तो यही चक्रों वाली तरंगे ही इस क्रोध को कम करती है
  • इन्हीं तरंगों पर ध्यान देने से फिर चेतना में गहराई व समझ बढ़ती जाती है

वांग्मय 15 में आया है कि 22 फरबरी 1956 की रात को स्टोर में अत्यंत शक्तिशाली विस्फोट हुआ था, उसके कारण एशियाई देशों और ऑस्ट्रेलिया भयंकर तूफान व आंधी आई, जिससे कारण रेडियो संचार में गड़बड़ी पड़ गया, यह विस्फोट जहां भावी परिवर्तनों के संकेत हैं वहां यह भी है कि मनुष्य अपने शरीर में स्थित उन बीज शक्तियों को जो नाड़ी जाल में संसार के ग्रह नक्षत्रों की शक्तियों को बांधे हुए हैं जागृत कर इन परिवर्तनों में साझेदार हो सकता है अर्थात वह उन्हें रोकने की सामर्थ्य रखता है और विस्फोट की भी, इसको थोड़ा सा स्पष्ट करें

  • बीज मंत्र जब जगते है तो अलग अलग लोकों से सम्पर्क स्थापित कर के अलग अलग Frequencies से वे जुड़ते हैं, सारा संसार ही तरंगों का खेल है
  • बीज मंत्र रूपी Sound से तरंग ही निकलते हैं तथा चक्रों से भी कंपन निकल रहा है
  • जैसे जब सुर्य से विस्फोट होगा तो सुर्य से द्यातक किरणे निकलेगी तथा उनको वो किरणें प्रभावित करेंगी जिनके चक्र Clean नहीं है तथा वे उनसे तालबद्ध नहीं हो पा रहे
  • यदि अवतारी चेतना जैसे राम कृष्ण जब आती है तो जब वो युद्ध करते है तो वह युद्ध केवल असुर तत्वों से कर रहे होते हैं
  • चक्र जागरण से वे एक खास प्रकार की wave / पदार्थ को मार रहे होते हैं
  • चक्र जागरण = भीतर से अवतार प्रक्रिया शुरू
  • चक्र जागरण हमारे भीतर के कुसंस्कारो / दुष्प्रवृतियों को भी हटाएंगा तथा सत्प्रवृत्ति संवर्धन भी करेगा
  • यह चक्रों की विशेषता है
  • पंचकोश जागरण की कोई भी क्रिया दोनो काम करती है -> कचरों को भी हटाता है तथा सफाई भी करता है -> संश्लेषण – विश्लेषण दोनो क्रियाएं करता है
  • उस अग्नि में कुण्डलिनी जागृत होती है

इस प्रसंग को कैसे समझे कि रामायण में आता है जब युद्ध समाप्त हो गया तथा जब वर्षा हुई थी तो वानर जागृत / जीवित हो गए थे तथा असुर जागृत नहीं हो पाए तो क्या यह इस कारण था कि उनमें रोकने का सामर्थ्य भी था और विस्फोट का भी

  • विस्फोट का अर्थ है कि Radiation में बदलाव का होना क्योंकि जैसे सुर्य विस्फोट के माध्यम से वह ग्रहों में Balance करता है, जब संतुलन बिगड़ रहा होता है तो उसे संतुलित करने वाले रेडिएशन वहां (सुर्य) से अपने आप निकलते हैं
  • सारा संसार Magnetic Field से चल रहा है, अतरिक्षिय प्रवाह चुम्बकीय तरगों के रूप में होते हैं, हमारा केंद्र सुर्य है तो वह सुर्य से वह प्रवाह निकलता रहता है
  • सुर्य में विस्फोट से प्राण की किरणे निकलती रहती है तो जो सहचर होते है, वे बच जाते हैं
  • काल बाल से वही बचे जो हंस का ध्यान धरे
  • आने वाले दिनो में वही बचने वाले है जो हंस (आत्मसत्ता / जीवात्मा) का ध्यान करे
  • आत्मसाधना करने वाले ही अब बच पाएंगे
  • उन विस्फोटक तरंगो का उन (आत्मज्ञानी) पर असर नहीं पड़ता
  • संसार का कोई भी पदार्थ या किसी भी प्रकार की कोई भी तरंगे आत्मा को प्रभावित नहीं करती

मनुष्य में असुर व देवता दोनो है इन दिनों दानव का प्रभाव अधिक है जिसके कारण अपने अन्दर का देवता कमजोर पड रहा है तो अपने भीतर के देवता को मजबूत कैसे बनाया जाए

  • मजबूती के लिए कुछ योगाभ्यास करना होगा
  • योग शब्द मजबूती के लिए होता है
  • ईश्वर मजबूत है तथा हम यदि कमजोर हो गए
  • तो ईश्वर से सम्पर्क बढ़ाना होगा तथा ईश्वर से सम्पर्क बनाकर लाभ लेना शुरू कर सकते हैं
  • गुरुदेव ने पंचकोश साधना अनिवार्य कहा है
  • यह साधना हमें मजबूती प्रदान करेगी तथा भीतर के कुविचारो / कुसंस्कारो / असुरता को दबोच देगी
  • हम यह साधना ईमानदारी से नहीं तथा केवल मनोरंजन के रूप में करते हैं तो इसलिए पांचो कोशो की साधना के जो क्रिया योग है उसे अपनी सफाई के लिए उपयोग करे
  • इसी क्रिया योग से भीतर अग्नि उत्पन्न होता रहेगा तथा इन्ही प्रयासों से रोग / दुखः / कष्टों को शैवाल की तरह साफ करते रहे
  • लगातार खदेडते रहने से दुश्मन (रोग / दुखः) आक्रमण करना बन्द कर देता है तथा समझ जाता है कि उसकी दाल यहा नहीं गलने वाली

क्या निष्ठा व लगन दोनों एक है या अलग अलग, कृपया प्रकाश डाले

  • निष्ठा – लगन – परिक्षम से करता जो कोई काम है => यहा तीन शब्दो का जब उपयोग किया है तो अवश्य ही इनके भाव पक्षों में भी कुछ अन्तर होगा
  • निष्ठा = अटूट विश्वास तथा उसे वह काम करना ही करना है -> जैसे राम काज किए बिना मोहे कहा विश्वाम -> यह निष्ठा कहलाएंगी
    निष्ठा साधुओं जैसी होनी चाहिए, कितना भी दुत्कार मिले वह चुप नहीं रहेगा तथा लोकसेवा का काम नहीं छोडेगा, बाकी लोग छोड देंगे, अटूट शब्द जुड़ा है, ईश्वर के काम के प्रति
  • जब असुर/राक्षस दुष्टता/तोड फोड़ नहीं छोड रहें तो देवता/संत तो और भी शांत है तो हम जोड़ने का आदत क्यों छोडे
  • निष्ठा = सेवा भाव के प्रति अटूटता बनी रहे
    पढ़ना है या साधना करनी है तो सब छूट जाए परंतु पढ़ना या साधना ना छूटे इसी को निष्ठा कहते हैं
  • साधना कर रहे है तो कितना लगन से कर रहे हैं तो कितना गहराई से कर रहे है, अब लगन की भूमिका आती है, उस समय क्या सोचा जा रहा है, क्या केवल हम पढ रहे है या भीतर व्यवहार में भी घोल रहे हैं तो लगन से या भाव से पढ़ रहा था या नहीं यह महत्वपूर्ण है

विवेकानंद व रामकृष्ण परमहंस के प्रसंग में आता है कि जब 1800 ई० में रामकृष्ण कैंसर Patient हो गए तो डाक्टर ने कहा कि इनके Infection से बच कर रहना तो विवेकानंद उनका कफ बलगम लेकर आए तथा सारे गुरु भाईयों में बाट दिया सबने उसे अमृत मानकर पिया तब जाकर वह रामकृष्ण मिशन मठ फला फूला, परन्तु आपने भी बहुत बताया तथा हमारे सामने वह स्थिति आएगी तो मन में Hesitation आएगा तथा हम वह पी नहीं पाएंगे, तो इस जन्म में हम वह गुरु भक्ति कैसे लाए तथा गुरु के प्रति हमारा समर्पण हो

  • गुरु के प्रति कृतज्ञता -> हम अपने गुरु के अनुदानों को कितना महत्व दिए, व्यक्ति इसके आधार पर उसके प्रति कृतज्ञ होता है
  • गुरुदेव ने सब कुछ दे दिया और बदले में गुरु ने हमसे कुछ मांगा नहीं
  • हम ने उनकी बातों को ज्ञान को Seriously लिया, थोडा सा भी किसी से लिया तो कुछ अधिक ज्ञान या अन्य किसी रूप में अवश्य देंगें
  • इसमें आत्म संतोष मिलता है तथा शांति भी मिलती है
  • जो शिष्य इसे समझते हैं वे गुरु का कार्य बढ़ चढ़कर करते हैं तथा गुरु के अनुदानों को चुकाने का भाव रखे
  • गुरु से अपना दुखः ना कहे, उनके दुखः में अपना हाथ बटाएं कि उनका क्या लक्ष्य है तथा किस लक्ष्य को लेकर उन्होंने कार्य किए तब कहेंगे कि हमने गुरु का कुछ काम किया
  • हमारा जब Accident भी हुआ तो हमने गुरु जी से या ईश्वर से यह नहीं कहा कि मुझे बचाएं
  • जितना बचा हुआ है उससे हम गुरु का क्या कार्य कर सकते है
  • अभी भी नींद नहीं आती कि गुरुदेव ने कहा कि शिक्षक पैदा करो तो हम अपनी क्षमता के अनुरूप क्या अच्छा कर सकते है
  • प्रत्येक को Freedom भी देना है, सारा संसार अपना घर है, सारी विद्याएं अपनी है, उसका Good Use करे तथा उसमें जो रुकावट आती है तो उसमें क्या मदद कर सकते है, उसका फल भी मिलता है
  • यदि यह भाव उठ रहा है कि हम कुछ कर नहीं पा रहे तो यह भाव भी एक दिन बड़ा काम करवा डालेगा, यह भाव बढ़ते बढ़ते बढ़ते हमें चुप नहीं रहने देगा तथा यही भाव हमसे वह कार्य करवा भी रहा है
  • कुछ की गति धीमी होती है तथा प्रत्येक की एक गति एक सी नहीं होती या कभी किसी को परिवार परिसर परिस्थितियां माहौल नहीं मिला तो यह भी एक बड़ा कारण बनता है   🙏

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