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पंचकोश जिज्ञासा समाधान (25-02-2025)

पंचकोश जिज्ञासा समाधान (25-02-2025)

कक्षा (25-02-2025) की चर्चा के मुख्य केंद्र बिंदु:-

छान्दयोपनिषद् में आया है कि मृत्यु से डरते हुए देवो ने त्रयी विद्या में प्रवेश किया व अपने को छन्दो से आच्छादित कर लिया, आच्छादित होने के कारण ये छंद कहे गए तो यहा त्रयी विद्या क्या है

  • गायंत्री विद्या को त्रयी विद्या कहते हैं, त्रयी विद्या में ऋग्वेद – यजुर्वेद – सामवेद आता है
  • छन्द = अर्थववेद को छंद कहते है = तीनो वेदो का Application अर्थववेद के रूप में जो है, उसे छन्द कहते हैं
  • विद्या सीखने के बाद उसका प्रयोग करना आना चाहिए, विद्या सीखने के बाद उसका प्रयोग नहीं कर पाए तो वेदों के ज्ञान का लाभ नहीं ले पाएंगे

मडंलब्रह्मोपनिषद् में आया है कि वह ज्ञान की लौ में आरूढ व्यक्ति के लिए जानने योग्य है वह बाह्य और अभ्यान्तर लक्ष्य है, उसी के मध्य जगत निम्न हो जाता है, वह नाद बिंदु व कला से परे अखण्ड मंडल है, वह सगुण व निर्गुण स्वरूप है, इसे जानने वाला विमुक्त हो जाता है, का क्या अर्थ है

  • सगुण = साकार
  • निर्गुण = निराकार
  • गायंत्री वा इदम् सर्वम -> यहा एक ब्रह्म के सिवा दूसरा कुछ नहीं
  • साकार -> जो दिखाई दे
  • प्रकाश को निराकार मान लेते है, प्रकाश का कोई फोटो नहीं बना सकते, फोटो केवल पदार्थों का बनाया जा सकता है
  • सभी गुणों में रहते हुए इससे र्निलिप्त है, सत रज तम सभी में रमण करते हुए इससे लिप्त नहीं हो पा रहा
  • पवित्राय साधु नाम -> शुद्ध भी करते है
  • विनाशय च दुष्कृताम -> शत्रु से युद्ध भी करते हैं -> संलिप्त दिखते है परन्तु वे युद्ध नहीं कर रहे होते अपितु उर्जा का रूपांतरण कर रहे होते हैं, हम उसमें लिप्त हो जाते हैं तो रोने चीखने लगते है
  • ईश्वर सगुण (गुण) में रहते हुए भी निर्गुण है
  • केनोपनिषद् में आया है की सारी क्रियाकलाप उसी के चलते हो रही है, मन को भी गति वही दे रहा है

उसी को देखने के लिए 3 दृष्टि के बारे में बताया है अमावस्या प्रतिपदा व पूर्णिमा, का क्या अर्थ है

  • अमावस्या = अभी preparetory के छात्र है, घने अधेरे में हम है
  • जब साधना की शुरुवात करने लगे तो इसे प्रतिपदा कहेंगे
  • प्रयास करके चमक कर के साधक जब निकले तो उसे पूर्णिमा कहेंगे

अर्थववेद की भूमिका में आया है कि राजा के लिए शांतिक पौष्टिक कर्म, तुला पुरुषादि महादान की विशेष आवश्यकता पड़ती है, यहा तुला पुरुषादि क्या है

  • पहले लोग तराजु / तुला में तोलकर उसके बराबर द्रव्य देते थे, इसका अर्थ यह है कि जो पुरुषार्थी व्यक्ति है उनको पुरुषार्थ मिलना चाहिए तथा ज्ञानी को सम्मान मिलना चाहिए
  • ज्ञानी को प्रतिष्ठा सम्मान नहीं देगे तो वे दूसरे देशो में चले जाते हैं -> यथायोग्य समायोजन का गुण राजाओं में होना चाहिए
  • राजा इसलिए बनाए जाते है कि वे संस्कृति की रक्षा करेंगे तथा जो भारतीय संस्कृति को नुकसान पहुंचा रहे है उनको दण्डित करे तथा उनसे प्रजा की रक्षा करे
  • जिसमें यह गुण है वह राजा है
  • सुपुत्रो को सम्मान देना / दुलारना व कुपुत्रों को सुधारना
  • तुलादान का अर्थ है कि उनके संसाधनो की कमी ना होने दे

देवताओं की मूर्तिया पाठ्य पुस्तके तो है तो उनको सजाने में ढेर सारा धन लगाना कितना उचित है कृपया प्रकाश डाला जाय

  • जितनी जरूरत है उतना तक होना चाहिए तथा बिना वस्त्रों के देवता ना रहे
  • सारे देवी देवता को इतना सोना चांदी से लाद दिए कि उनका वास्तविक स्वरूप ही खो गया
  • एक बार रामकृष्ण परमहंस को किसी ने मखमल भेट किया तो उन्होंने जब ओढ़ा तो उन्हें नींद नहीं आ रही थी तो उन्हे वह कांटे जैसा लग रहा था, जब उस कंबल को फैके, फिर नींद आया
  • हजरत साहब एक बार अपनी बेटी के घर गए तो वहा रेशमी कपडा टांग रखा था तो वे वही से लौट गए
  • पूज्य गुरुदेव ने भी कहा कि हमारी मूर्तिया नहीं बनाई जाए क्योकि हम व्यक्ति नहीं विचार है परन्तु कुछ शिष्य नहीं मानें तो हम कह सकते है कि भावनाओं को दिशा नहीं दी जा रही
  • अधिक श्रृगार से चोरी का खतरा बना रहता है तथा फिर चोरी से भी बचाव करना है
  • हनुमान जी को एक श्रद्धालु भक्त ने सोने की आंख लगा दी तो एक चोर उखाड़ कर ले गया
  • हम विवेक से काम ले तथा आवश्यकता से अधिक खर्च न करे
  • कमला व लक्ष्मी को धूमावति जैसा ना सजाएं
  • यह सब विवेक पर निर्भर है तो हर जगह हम अपने विवेक का उपयोग करें तथा परंपराओं को नहीं विवेक को महत्व दें

ॐ की अर्ध चतुर्थ मात्रा है वहीं समस्त देवों के रूप में अव्यक्त होकर आकाश में विचरण करती है

अर्ध मात्रा की उपासना ही उचित है क्योंकि इससे कर्म बन्धन कटती है इस पर प्रकाश डाले

  • अर्ध बिंदु / चंद्र बिन्दु को चौथा चरण कहेंगे
  • जागृत – स्वपन – सुषुप्ति के बाद चौथे चरण तुरीया में हमें प्रवेश करना चाहिए, तुरीया साधना आनन्दमय कोश का अन्तिम वाला Practical है
  • माण्ड्यकोपनिषद् में तुरीया को ही पाने को Phd कहता है कि हम सदैव तुरीयावस्था में रहे, जीवनमुक्त अवस्था को तुरीयावस्था कहते है
  • तुरीयातीत भी एक शब्द का प्रयोग होता है जिसका अर्थ विदेह है
  • इस जीवन मे जीते हुए हम निर्लिप्त जीवन जीए व शांतिमय जीवन जीए तथा सब जगह रमण करे व कहीं लिप्त न हो
  • स्थिरप्रज्ञ या रितम्बरा प्रज्ञा शब्द का भी प्रयोग किया है
  • चौथे चरण को ही यहा अलग अलग नामों से कहा गया है
  • गायंत्री के चार चरणों में, गायंत्री को चौथा चरण ॐ भूर्भुव: स्वः भी कह सकते है तथा यदि यह भी न कहे तो वहा पर चौथा चरण का अर्थ सत रज तम, इन सबसे परे एक अवस्था है तथा हम उसमें प्रवेश करे, उपनिषदों में इसकी जानकारी भी मिलती है
  • कभी कभी साधना कम्र में घर परिवार या Duty के समय में भी आत्मा की झलक भी थोड़ी थोड़ी आती है, उसमें ऐसा लगता है कि Meditation में आनन्द सा आ गया तो वही चौथा चरण है, उसी को चंद्र बिन्दु कह दिया है, उसमें हमें प्रवेश करना है, उसी अवस्था में योगी को अधिक रहना चाहिए तथा उसी की तलाश में बने रहिए, उस मस्ति को हम maintain रखे

इस प्रकार की आनन्द की अवस्था जब कभी ध्यान में या कभी अपने आप आती है तो उस अवस्था को Maintain करने के लिए क्या प्रयास किया जा सकता है

  • अपने आप वह अवस्था नहीं आती है परंतु जब हम मेडिटेशन में एक खास अवस्था में पहुंचते हैं तब वह अवस्था आती है तो यहा हर चीज विज्ञान के ढ़ंग से चलता है, अपने आप यहा कुछ भी नहीं होता
  • Meditation के कम्र में एक खास Tuning जब हुई है तब वह अवस्था आई है तो हम उस अवस्था को हम ढूढ़े कि हम उस समय क्या सोच रहे थे तथा उस समय कैसा Meditation चल रहा था, Mind (मन) का state उस समय क्या था, जहा भी विचारो की ऐसी शान्त अवस्था आती है, चित्त निर्मलत्व को पाया तो उस समय वह State आएगा

सामान्य गति से जानु की प्रदक्षिणा करना क्या है

  • जैसे सांस खीचते समय (पूरक) 16 मात्रा करे तथा फिर कुंभक में हो तो 64 मात्रा करे तथा जब रेचक करे तो 32 मात्रा तक करे
  • यहा मात्रा का अर्थ आज में समय के अनुरूप 1 सैकंड मान सकते हैं, जब घड़ियों का विकास नहीं हुआ था तो उन दिनों मात्रा शब्द का प्रयोग करते थे जैसे पालथी मारकर बैठना
  • एक पैर को घुमाकर तथा दूसरे पैर को इसके उपर रखना, घुमा कर रखने को इसको जानु कह दिया गया
  • मात्रा शब्द एक Time Interval है तो उतने समय में हमें करना चाहिए
  • 3 Second में गायंत्री मंत्र का एक बार उच्चारण हो जाना चाहिए
  • उस अवस्था में 5 मिनट में 100 बार हो गया
  • इस Harmonic State को 10 – 15 मिनट तक maintain रखना होता हो तो पाएंगे कि मन को शांत करने में गायंत्री मंत्र का एक विशेष Frequency से जप करना भी मन को नियंत्रण करने का कार्य करता है

यज्ञ के बाद सुर्य भगवान को प्रणाम कर जो प्रदक्षिणा हम करते है क्या वह भी यही है

  • वह प्रदक्षिणा अलग है,वहा मंत्र बोला जाता है
  • हे परमात्मा यदि हमसे किसी प्रकार के पाप कर्म बन गए हो जिन्हे हमें जानते है या नहीं भी जानते तो वो सभी नष्ट हो जाते है, जब हम आपके अनुशासन में चलना स्वीकार कर लेते हैं
  • अब के बाद हमारे सभी क्रिया कलाप ईश्वर के अनुशासन में चलेंगे
  • यह शिक्षण साथ में चलना चाहिए
  • प्रत्येक क्रिया के साथ शिक्षण भी जुड़ा होता है

एक प्रसंग में कुंभक की स्थिति में आकर समाधि की अवस्था को प्राप्त करने की बात की जा रही है तथा कुंभक की अवस्था में पूर्ण समर्पण भाव करने से चेतनाशून्य की अवस्था में आकर समाधि में प्रवेश किया जा सकता है, इसके पीछे का क्या विज्ञान है

  • कुंभक का अर्थ है विचारो का आवागमन बंद करना, जैसे जब श्वास खींचे व छोडे नहीं तो यहा उपनिषद् में विचारों को भी श्वास कहा है
  • पतंजलि ने चारों को ही श्वास कह दिया है
  • विषयों की तरफ जो भीतर (मन बुद्धि अंहकार) या बाहर (पंच तत्व) भाग रहा है, तो यहा सब भाग दौड बन्द कर शांत अवस्था में शांति की अवस्था आएंगी
  • गुरुदेव ने भी ध्यान के Audio में कहा है कि मन शांत, तृष्णा शांत, वासना शांत, अंहता शांत
  • यहा शांत का अर्थ शांत अवस्था से ही है

क्या हम यह समझ सकते हैं कि कुंभक की अवस्था में जब प्राणों का अवरोध होता है या आवागमन रुकता है तब मन का भटकाव भी रुकता है तो क्या उससे जोड कर इसे देखा जा सकता है

  • कुंभक से मन का भटकाव रुकेगा ही रुकेगा जैसे यदि किसी को क्रोध आया तो यदि वह खिसलाएगा तो सांस बाहर आएंगा तो यह भी है कि प्राणायाम के द्वारा मन को बांधा जा सकता है
  • पहले सभी की भावनाओ को व विचारों को सुनो -> किसी के कहने मात्र से उबल न पड़ो
  • कुंभक की अवस्था में हमारी Receiving व Digestion Power बढ़ जाती है, धारण करने की क्षमता बढ़ती है, Capacitance भी बढ़ता है
  • जो उर्जा हमने प्राणायाम में खीची उसे धारण करने की क्षमता कुंभक में बढ़ती है

क्या हम यह समझ सकते है कि कुंभक में जितना लंबे समय तक रहने अभ्यास हम करते हैं तो उतना समय मन को अधिक मिलता तथा उतने अधिक समय में समाधि की उस शांत अवस्था पाने का समय भी अधिक मिलता है

  • शांत अवस्था का अर्थ Dead होना नहीं बल्कि वह अपने मूल स्वरुप में वह आत्मा आहलादित व प्रसन्ना Feel कर रहा है
  • भटकाव शब्द यहा उचित नहीं लगता
  • वास्तव में मन कहीं भटकता नहीं है वह अपने गुण व स्वभाव के कारण उस दिशा में गति करता है तो जैसा उसका गुण स्वभाव है वहा वहा उसकी गति होती है
  • हमारे काम लायक नहीं है तो हम अक्सर कह देते हैं कि हमारा मन भटकता है वास्तव में अपने मन में जो दबे संस्कारों के वशीभूत होकर जो विचार उठते है तो उसी के अनुरूप उस की गति होती है तो वह मन तो अपना काम कर रहा होता है
  • हमारा मुख्य कार्य उस मन को केवल दिशा देना है
  • मन को दिशा स्वाध्याय मनन चिंतन के माध्यम से दी जा सकती है

महानारायणोपनिषद् में आया है कि मेरे चित्त में वेद तथा वेदार्थ धारण हो तथा इसका कभी भी विस्मरण न हो, मेरे कानो में हमेशा वेदवाक्य सुनाई पडे तथा ये कभी नष्ट न हो, तन में स्थिरता को प्राप्त करूं, हम सुनते तो है लेकिन धारण नहीं कर पाते तथा Practical में धारण नहीं कर पाते, इस पर प्रकाश डाले

  • सुनने तथा करने का अभ्यास कम्र बनाएं रखा जाए तो फिर वह याद अधिक आने लगता है
  • धीरे धीरे ही पकड़ मजबूत हो रही होती है
  • यदि लाभ नहीं भी हो रहा तो भी अभ्यास छोड़ना नहीं होता तथा नियमित स्वाध्याय करे, चाहे मन लगे या ना लगे कभी ना कभी ठोकर खाकर सही हो ही जाते है, नियमित स्वाध्याय का प्रभाव पड़ता ही पड़ता है
  • नियमित स्वाध्याय करेंगे तो उतने समय तक मन लगता है तथा स्वाध्याय के लिए अपने मन लायक विषय को चुन लिया जाए
  • हर विषयों पर गुरुदेव ने वांग्मय में तथा उपनिषदों में लिखा है
  • जिस प्रकार का हमारा मन है तो उसी प्रकार से हम आत्मा को पा ले, यह मन का खूबी है कि किसी भी Nature का व्यक्ति आत्मा को पा सकता है, इससे सरल उपाय नहीं है
  • जो सर्वव्यापी है उसे सफल शिक्षक की जरूरत है, Channel बदलने की जरूरत ही नहीं है, जो सर्वव्यापी है उसे हर जगह से पाया जा सकता है

क्या वरूण मुद्रा और सूर्य मुद्रा एक साथ लगाया जा सकता है कृपया प्रकाश डाला जाय

  • दोनो एक साथ लगाया जा सकता है तथा यह प्राण मुद्रा कहलाता है
  • जैसे पहले अपान मुद्रा में रोगों को हटाए तथा फिर शरीर के भीतर प्राण को भरे
  • पहले रोगो को  निकाले तथा फिर अच्छाईयो को भरे  🙏

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