पंचकोश जिज्ञासा समाधान (24-01-2025)
कक्षा (24-01-2025) की चर्चा के मुख्य केंद्र बिंदु:-
कठोपनिषद् में आया है कि जो परम पुरुष अगुष्ठ परिमाण प्राणी के देह के मध्य भाग में स्थित है, वह भूत भविष्य और वर्तमान का शासक है, उसे इस प्रकार जान लेने के बाद प्राणी न तो किसी की निंदा और न ही किसी से घृणा करता है, यही वो ब्रह्म है, का क्या अर्थ है
- प्राणी की देह के मध्य भाग में कुण्डलिनी स्थित होता है, अंगुष्ठ का अर्थ बहुत छोटा होता है, सातो चक्रो में चौथा चक्र (अनाहात) मध्य हो गया, हृदयाकाश में अनाहात चक्र में सुर्य का ध्यान करे
- मध्य का एक ही अर्थ ना समझे, आत्मा सर्वव्यापी है तो भाव के अनुरूप इसकी स्थिति बदल जाएगी
- मध्य केंद्र अन्तःकरण में मस्तिष्क के बीच में भी स्थित है
- मध्य का एक अर्थ – उसके भीतर -> शरीर के भीतर कही भी जहा अच्छा लगे, वहा सुर्य के रूप में ध्यान करे
ब्रह्मविद्योपनिषद् में नासिका के अग्र भाग में अच्युत तथा उसके अंतिम भाग में परमपद प्रतिष्ठिति जानना चाहिए, उस पर से पर और कुछ भी नहीं है, ऐसा शास्त्रो में आया है, उस देहातीत को नासिका के अग्र भाग से 12 अंगुल उपर जाना चाहिए, का क्या अर्थ है
- पर से पर का अर्थ यहा सहस्तार चक्र में जाने की बात की जा रही है
- पर = आज्ञा चक्र = षटचक्र तक = पांचो तत्व + महः तत्व (मन बुद्धि चित्त अहंकार)
- पर से पर = सहस्तार चक्र
- 12 अंगुल की दूरी -> भीतर से यह दूरी मापी जाएगी
- Brain रीढ की हड्डी से अछूता है
- रीढ की हड्डी Brain stem से भी उपर / परे / सब से परे कहा गया तो अब यह माने कि सहस्तार से परे कुछ नहीं
- विशुद्धि चक्र से भी कुछ नाड़ियां उपर जाती है
- मन बुद्धि चित्त अंहकार वाले Area से भी यह जुडा है, यह बाहर के आकाश का भी प्रतिनिधित्व करता है
- 6 तालु आज्ञा नासिकाग्र
- 10 वा vocal cord, 9 वा विशुद्धि चक्र, 8 वा अनहात चक्र व सातवा नाभी चक्र . . .
- हर Joint पर इसके तार गए हैं . . .
- Superconcions वाले Area में भी इसके Nerve गए है
- हमें देखना चाहिए कि इसके (प्रत्येक चक्रो के) Nerve कहा कहा जाते हैं, यह हमें Anatomy से पता चलेगा
बृहदआरण्यकोपनिषद् के तृतीय ब्राह्मण में आया है कि प्रजापति के दो पुत्र हुए – सुर व असुर, असुर प्रार्थना करके सोचने लगे कि हम मन बुद्धि से उन देवताओ पर भारी पड़े तथा फिर वे देवताओ को परेशान करने लगे, अन्त में तब देव ने अपने मुख में निवास करने वाले प्राण से निवेदन किया कि आप हमारे लिए उदगीथ का पाठ करे, मुखस्थ प्राण ने इस प्रार्थना को स्वीकार कर लिया और उदगीथ का गान किया जब असुरो ने यह जाना कि देवता उदगाता के द्वारा हमारे उपर आक्रमण करेंगे तब उन लोगो ने प्राण के पास जाकर उसे भी पाप से विद् करने का प्रयत्न किया परन्तु मिट्टी के ढेले के पत्थर से टकराकर चूर चूर हो जाने के समान वे असुरगण विभिन्न प्रकार से छिन्न भिन्न होकर धवस्त हो गए, इस प्रकार देवगण विजयी हुए व असुरगण पराजित हुए, का क्या अर्थ है, क्या असुर वहा तक नहीं पहुंच पाए
- असुर = पदार्थ जगत
- पदार्थ जब आत्मा को मारने पहुंचा तो कही तो जाकर पदार्थ चूर चूर हो जाएगा
- पदार्थ आंखो में जाकर आंखो को खराब कर सकता है, रोग उत्पन्न कर सकता है
- अब यदि हमने आँखे बंद कर ली, कान बंद, मन शान्त, तृष्णा शान्त तो अब वह पदार्थ कहा जा सकता है
- उदगीथ का अर्थ यहा ॐ से है, सारे संसार में व्याप्त होकर भी उससे लिप्त नहीं होता तथा राक्षस भी उसका कुछ नहीं कर सकते
- आत्मा को ॐ कहते हैं आत्मा में स्थित हो जाएंगे तो संसार का कोई रोग- दुःख नहीं होगा
- शरीर में रोग दुख होने का कारण यह है आदमी आत्म स्थित नहीं है, दवा के प्रभाव से एक रोग भागेगा तो दूसरा रोग घर कर लेगा
- आत्म साधना को उदगीथ कहते हैं
- सुर में सुर ना मिला तो असुर है
- शुक्राचार्य रावण यह सभी पदार्थ वादी थे, पदार्थ से जीतना चाहते थे, रावण की नाभी में तीर मारे तो उसकी मृत्यु हो गई
- जो आत्मावलंबी है उसे नहीं मार सकते
- पदार्थ से जहा चिपकेंगे वहा मार देगा
- सुर व असुर में केवल अ का अन्तर है
- हम भी यदि भौतिक वादी बन गए तो समझे कि राक्षस हो गए
- बाहर की ध्वनियो ( जैसे DJ का) का अधिक प्रयोग जहा पर होता है, वह राक्षसी शादिया कहलाती है
- अच्छा व फूहड -> दोनो तरह के गीत गाए जा सकते है व नृत्य भी किए जा सकते हैं
यदि किसी व्यक्ति का चरित्र ठीक नहीं है परन्तु वह काम बढिया कर रहा है तो उसका महत्व माना जाएगा या नहीं जैसे कोई नशा करने वाला व्यक्ति यदि Research भी कर रहा है तो उसका प्रभाव अन्यों पर पड़ेगा या नहीं
- उन पर प्रभाव पड़ेगा जिस विषय पर खोज कर रहा दे, वैज्ञानिक विज्ञान के जिस विषय पर खोज कर रहा है वह सभी पर प्रभाव डालेगा
- यदि कोई कारीगर अच्छा काम करता है तथा रात को शराब पीकर सोता है तो हमें उससे कोई मतलब नहीं होता, सम्मान योग्ताओं का होता है
- गुलाब के पेड में काटे भी है और फूल भी है तथा यदि हम फूल तोडने गए है परन्तु कांटो को लेकर नाक मुंह सिकोडते है तो फूल को भी हमें छोड़ना होगा
- वरेण्यम = अच्छाइया चुनना
- यदि किसी को अपने Survival के लिए गलत आदत लग भी गई है तो उसे वह छोड़ भी देगा परन्तु प्रतिभा बहुत महत्वपूर्ण है
- ईश्वर गुण व दोष दोनो देखता है
- जिस Field / विषय में दोष है, उस विषय का Professor नहीं बन सकता, उस विषय का प्रभाव नहीं पड़ेगा
- एक व्यक्ति यदि एक विषय में Fail हो गया तो इसका यह मतलब नहीं कि वह पूरा फेल हो गया, वह किसी दूसरे Field / विषय में चमक सकता है तथा उत्कृष्ट कार्य कर सकता है
- हर समय दाग / बुराईया खोजते न चले, सुकरात के चेहरे पर भी दाग थे परन्तु फिर भी वे सभी को अच्छे लगते थे
श्रीमद भगवदगीता में आया है कि कोई भी पुरुष किसी भी काल में क्षण मात्र भी कर्म किए बिना नही रहता, क्योंकि सभी पुरुष प्रकृति से उत्पन्न हुए गुणों द्वारा ही विवश होकर कर्म करते है, प्रकृति व प्रकृति से उत्पन्न गुण जब तक जीवित है तब तक कोई भी पुरुष कर्म किए बिना नहीं रह सकता, यहा केवल पुरुष शब्द ही क्यों आ रहा है, स्त्री क्यों नही आया है
- पुरुष = स्त्री व पुरुष दोनो = जीव = प्राणी, इसका अर्थ Male Female से मत लीजिए
- आत्मा ना नर है तथा ना ही नारी है
- शरीर को प्रकृति तथा आत्मा को पुरुष कह दिया जाता है
- काया = प्रकृति = शरीर -> एक ही है
- जीव को पुरुष कहते है
- स्त्री का, दुर्गा का, सरस्वती का पूजन पुरुसुत्त से ही होगा
- जीव कर्म करने के लिए धरती पर आया है, इसके लिए उसे ज्ञानेंद्रियां वह कर्मेंद्रियां मिली हैं
- जब हम जगे रहते हैं तो कुछ ना कुछ कार्य करते रहते हैं या सोते रहते हैं तो भी मन के माध्यम से क्रियाएं लगातार चलती रहती हैं
- आँखे मिली है तो जब पलक झपकाएंगे या आंखें खोलेगे तो कुछ ना कुछ देखेंगे ही देखेंगे
- बिना कर्म के यह कैसे हो सकता है कि हम सोचे भी नहीं, देखे भी नहीं, खाएं भी नहीं तो अस्तित्व ही नष्ट हो जाएगा
- इसलिए कहा गया है कि किसी भी क्षण में कोई भी जीव है या Particle भी लगातार दौड रहा है, इस संसार कही भी स्थिरता नहीं है तो क्रियाएं इस संसार में लगातार चल रही है
- Creativity को ही संसार कहते हैं
शरीर के किसी विशेष स्थान पर ध्यान करते समय कुछ भी नहीं सोच पाते, एक बार में अचानक से Blank हो जाता है तो क्या ये एक प्रकार का Inertia है / जड़ता है या कुछ और है, उसके बाद खुद को सुकुन मिलता है तथा अच्छा लगता है
तो क्या वह भी ध्यान की ही एक स्थिति है
यह अवस्था घर पर बैठे बैठे भी आ जाती है तथा ऐसा लगता है कि हम बैठकर भी कुछ नहीं सुन रहे तथा देखते हुए भी कुछ नहीं देख रहे होते हैं
- अस्थिरता को यहा पर Vaccum / Blank कहा गया क्योंकि मन को लगातार दौड़ने की आदत थी परन्तु अभी जब शांत शून्य अवस्था में वह मन आया तभी ऐसी स्थिति (Blank की स्थिति) हमारे सामने उत्पन्न हुई
- इसे हम इस प्रकार समझ सकते हैं कि यदि किसी दिन रात काम करने वाले व्यक्ति को यदि हम आधा घंटा कुर्सी पर बैठा दें तो उसे लगेगा कि हम बेकार है तथा उसे खाली खाली सा लगेगा, उसी को Vaccum कहेंगे
- मन शांत है कोई विचार नहीं उठ रहा -> तो Vacuum है, यह चिदाकाश है, महोपनिषद् में इसे तुरीया स्थिति कहा गया
- उस अवस्था में यदि सुकुन मिलता है तो उस समय आप चिदाकाश मै है, शिव हमेशा चिदाकाश में रहता है
- यह ध्यान की ही एक उच्च अवस्था है तथा उसी को शून्यलय समाधि कहते हैं, उस आनन्द में खो जाते हैं
- यदि इस अवस्था में बैठें बैंठें भी नही सुन रहे तो इसे कुछ खराब ना माने
- यदि यह अवस्था बार बार आ रही है तो उस अवस्था में Driving करना छोड दे
- घर में बैठे या किसी Meeting में यह स्थिति आती है = यह सहजता है, सहज समाधि में इसे ले सकते, क्योंकि उसके बाद भी आप बहुत बारीकी से काम कर रहे है तथा आपके Mind का Freshness भी गया नहीं है तथा शरीर फिर से Enerzied होकर चार्ज हो रहा है
जब मन के भीतर सब कुछ शांत हो जाता तो क्या यह चित्ताकाश की स्थिति है या चिदाकाश की स्थिति है
- यह चिदाकाश की स्थिति है
- चित्ताकाश में विचार चले गए परन्तु चिदाकाश में कल्पनाएं व विचार सब जीवंत रहते है
- चिदाकाश में आनन्द और शांति मिलता है
कुछ लोग जो सूर्य का ध्यान करते हैं तो उन्होंने अपना अनुभव बताया कि उनके सामने भी ऐसी स्थिति आ जाती है कि कुछ समय के लिए बिल्कुल Blank और काला हो जाता है तो क्या इस स्थिति को भी चिदाकाश के समतुल्य माना जा सकता है
- जब काला शब्द आ गया तो इसका मतलब है कि वे (उनका मन) उस Area / अवस्था से गुजर रहे हैं जहा पर से इस सुर्य का प्रसवन हुआ है क्योंकि वेदो का यह मानना है कि यह सुर्य Black Hole से निकला है तो सुर्य को White Hole कह दिया जाता है
- वेद / उपनिषद में जिस सुर्य की बात की जाती है, वह ज्ञानात्मक है जिसे सुर्य की आत्मा सविता कहा जाता है तथा इस पर अतः त्राटक भी किए जाते हैं
- बाहर त्राटक कर रहे थे तो बाह्य त्राटक में यह आ सकता है, उसके केन्द्र में चले गए तो मिलेगा कि कहा से (Black Hole से) वह सुर्य निकला
- आखिर सोचा जाए कि सूर्य प्रकट कब और कहां से हुआ होगा तो उसमें कोई अधेरा या Black Hole ही होगा
- सुर्य का जब अन्त होता है तो भी वह सुर्य Black Hole में ही विलीन हो जाता है
- इसे हम इस प्रकार समझे कि वह सूर्य Black Hole में चार्ज होने के लिए गया तथा चार्ज होकर के फिर वह Black Hole में से ही White Hole (सुर्य) के रूप में प्रकट होकर आ गया
- तो यह तो बीच की अवस्था है कि जहा सुर्य भी तथा अंतरिक्ष भी गायब हो जाते है
- लेकिन इसके बाद की अवस्था भी है, ईश्वर तेज के रूप में है, यदि ये आंखें त्राटक नहीं करती तो यह स्थिति नहीं आती
- यह स्थिति बाह्य त्राटक में आ सकती है
क्या यह स्थिति सुर्य के उत्पन्न होने से पूर्व की स्थिति है या सूर्य के अंत होने के बाद की स्थिति है
- यह पहले की स्थिति है, यह सुर्य के जन्म से पूर्व की स्थिति है
- सुर्य समाप्त भी हो गया तो वास्तव में कहां समाप्त हुआ क्योंकि आत्मा तो नष्ट होती नहीं
- सुर्य यदि बाद में Black Hole भी बन गया तो भी इस स्थूल सुर्य की सत्ता Fuse हुई परन्तु आत्मा नहीं मरी, इसका आभामंडल / औरा काम करते करते थक गया है, तो अभी केवल Emission खत्म हुआ
- इस सुर्य का भी जो जनक महासूर्य होगा, जिसकी परिकम्रा ये सभी सुर्य करते हैं, उस महासूर्य ने इसे अपनी तरफ खींच लिया, ये सब उसी में विलीन होते हैं जहां से ये निकले होते हैं
- हम अपनी यात्रा को चुपचाप साक्षी भाव से जागृत रखे
- जब हर जगह Dark ही Dark ही है तो फिर
अगुष्ठ मात्र एव पुरुषा
ब्रह्म सुर्य समम ज्योति - इसलिए आध्यात्मिक सुर्य को देखिए तथा हमारी वे आँखे visible नहीं है, अभी हम इन स्थूल आँखो से देख रहे थे, इन आँखो की एक Limit / सीमा है जैसे हम Alpha wave, Infra Red, Microwave, Gamma, X-ray आदि नहीं देख सकते केवल Visible Rays (7 रंग) को ही / एक खास Wavelength को ही देख सकते हैं इसके अलावा नहीं देख सकते
- उल्लु को दोपहर में अंधेरा लगता है, उसकी भी आँखे है
- ये केवल अपनी अपनी आँखो की देखने की क्षमता भर है कि कोई कुछ देख पा रहा तथा कोई उसे न देखकर अन्य देख पा रहा है
- आप त्राटक आँखे खोलकर कर रहे थे
- अंधेरा तभी होगा जब कोई न कोई Object बीच में आएगा, जैसे बादल आ गया, परंतु यदि Object ही ना रहे तो
- जब प्रकाश को ही ईश्वर ने समेट लिया हो तो ऐसी अवस्था में ब्रह्म मुहूर्त जैसे शब्दों का प्रयोग होता है, जहां न दिन है न रात्रि है
- इस तरीके से कल्पना योग से ब्रह्म मुहूर्त को बढ़िया कह दिया जाता है -> संध्या कहकर -> जहां ईश्वर वास करता है ना वहा दिन है और ना ही रात्री, दिन और रात को मिला दे तो मिला देंगे तो अभी ना दिन है ना रात्रि का राज्य है ब्रह्म मुहूर्त वाले समय को कहा गया गया है कि वहा ईश्वर वास करता है, इसे चिदाकाश भी कह सकते है तथा ब्रह्ममूहर्त के समय पर यह ध्यान कर सकते हैं
वर्तमान समय में वर्ण आश्रम व्यवस्था का समुचित लाभ समाज को कैसे प्राप्त हो कृप्या प्रकाश डाला जाय
- Dutyfullness से मिलता है
- Godliness तो सबके पास है, सब ईश्वर के भक्त हैं
- Age के सदुपयोग को आश्रम व्यवस्था कहते है, हम किसी भी उम्र में रहे, अपने लिए, समाज के लिए, राष्ट्र के लिए उपयोगी बने या पूरे Ecology के लिए उपयोगी बने
- इसे आश्रम व्यवस्था कहा जाता है
- योग्ताओं के सदुपयोग को वर्ण व्यवस्था कहते हैं, यदि हम आध्यात्म विज्ञान के धनी है तो आध्यात्म ज्ञान के professor बनकर समाज को लाभ दे, दिगभ्रांतो को दिशा दे
- यदि अपने शक्ति केन्द्रो को जगा लिया है तथा तम की शक्ति बढ़ गई है तो सुरक्षा व्यवस्था को अच्छे से संभाले, तथा अपनी उस शक्ति का सदुपयोग करे तथा सही Judgement होना चाहिए -> इस तरह का काम करना है
- किसी खास जाती विशेष में जन्म लेना, उसे वेद महत्व नहीं देता है बल्कि उसे व्यक्ति ने क्या योग्यता प्राप्त की तथा उस ज्ञान का लाभ संसार को दे रहा है अथवा नहीं
- अभी आपात धर्म था तो गुरुदेव ने कहा कि ब्राह्मण धर्म खतरे में है तथा हमे संभालना है
- अभी आध्यात्म ही खतरे में है समाज कंगाल हो गया है तो सभी को परिश्रम पुरुषार्थ करना सीखाया जाए व सीखा भी जाए ताकि हर कोई स्वावलंभी बने तथा हर हाथ को काम हो तो दरिद्रता मिटेगी व आभाव हटेगा -> इसी को वैश्य व्यवस्था कहते हैं
सहस्रार चक्र का प्वाइंट त्रिकुटी के सीधे ऊपर है या ऊपर पीछे की ओर पेराइटल- आक्सीपेटल पॉइंट पर है
- चोटी में एक बाल नहीं रखा जाएगा, एक समूह गुच्छा बनाकर रखते है,
- Parietal व occipital को मिलाएंगे तो तीन मुहान मिलेगा इसी को कहा जाता है
- जहा चोटी रखते है, शिखा स्थान पर सहस्तार चक्र है,
- विष्णु सहस्त्र फन फैलाए शेषनाग पर सो रहा है, यह cerebrum में ही सब कुछ है
- Cerebrum में ही तीनो है
- रुद्रो ललाटे
- शिखायाम विष्णु
- ब्रह्मा मूर्धनी
- यह Needle की भाति sharp Edge नहीं है बल्कि यह एक चक्र है
- इसलिए सहस्तार एक चक्रवात है हमें केवल एक चक्र को ही नहीं जगाना बल्कि सारे Neurons को जगाना है
- सारे Neurons को जगाने की प्रक्रिया सहस्तार चक्र में है 🙏
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